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सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अर्थ
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अर्थ (Meaning of Information and Communication Technology)- किसी व्यक्ति या समूह के विचारों, भावों, सन्देशों एवं सूचनाओं आदि को अतिशीघ्र दूसरे व्यक्ति या समूह तक प्रेषित करना संचार या सम्प्रेषण कहलाता है। इस व्यवस्था का संचालन करना सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के अन्तर्गत आता है अर्थात् सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का आशय उस व्यवस्था से है, जोकि सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह तक प्रेषित करने में अपना योगदान प्रस्तुत करती है। सामान्य रूप से सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रमुख साधन दूर संचार है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी को स्पष्ट करते हुए विद्वानों ने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये हैं-
‘सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का आशय संचार साधनों की व्यवस्था के कुशलतम संचालन से है, जो सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित करने में सहायता करती है। “
– प्रो. एस. के. दुबे
‘सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का आशय उन समस्त संचार साधनों के व्यवहारिक प्रयोग की और संकेत करता है, जो मानव के कल्याण तथा आवश्यकता पूर्ति हेतु सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। “ श्रीमती आर. के. शर्मा
उपर्युक्त कथनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सूचना एवं सम्प्रेषण प्रौद्योगिकी एवं दूसरे से सम्बन्धित है क्योंकि सूचना के अभाव में सम्प्रेषण प्रौद्योगिकी का कोई महत्व नहीं रह जाता है तथा सम्प्रेषण प्रौद्योगिकी का कोई महत्व नहीं रह जाता तथा सम्प्रेषण प्रौद्योगिकी के अभाव में सूचनाओं को भी एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्र गति से नहीं पहुँचाया जा सकता। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि सम्प्रेषण एवं सूचना तकनीकी एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं ।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की मूल अवधारणाएँ
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की मूल अवधारणाएँ निम्नवत् हैं.
(i) शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य छात्र के व्यवहार में परिवर्तन करना है। इस व्यवहार परिवर्तन के कुशलतापूर्वक सम्पन्न होने का उत्तरदायित्व शिक्षक पर है। शिक्षण की तकनीकी छात्र के भीतर यथेष्ट अधिगम व्यवहार उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करती है।
(ii) सूचना एवं सम्प्रेषण का सीधा सम्बन्ध व्यावहारिक परिस्थितियों से है। इन परिस्थितियों की रचना, उनकी प्रभाविता एवं उनका मूल्यांकन सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के द्वारा सम्भव है।
(iii) इसके द्वारा पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे तत्वों में विभाजित कर उन्हें छात्रों के सामने स्वतन्त्र रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
(iv) अच्छे कुशल शिक्षकों का लाभ अधिक-से-अधिक छात्रों को दिया जा सकता है।
(v) शिक्षक की अनुपस्थिति में भी छात्र स्वयं सीख सकते हैं।
(vi) सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से एक ऐसे साधन तन्त्र की कल्पना की जा सकती है, जो शिक्षण-उद्देश्यों की उपलब्धि कराने में पूर्णत: सक्षम हो ।
(vii) शैक्षिक परिस्थिति में व्यवहार एवं उसे उत्पन्न करने वाले साधन तन्त्र को जिस सीमा तक पहचानना एवं परिभाषित करना सम्भव होता है, उसी सीमा तक उपयुक्त शैक्षिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जा सकता है।
(viii) अनुदेशन द्वारा छात्र को समुचित पुनर्बलन दिया जा सकता है।
(ix) अनुदेशन द्वारा छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें सीखने का अवसर दिया जा सकता है।
- शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अनुप्रयोग
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