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वृत्तिक सूचनाओं के घटक
व्यावसायिक या वृत्तिक सूचना के घटक से आशय उन व्यक्तियों से है जो सूचना के स्रोत, सूचना संग्रहण तथा सूचना प्राप्त करने वालों की श्रेणी से जुड़े होते हैं। सूचना प्राप्ति के स्रोत के अन्तर्गत व्यावसायिक संचालक या प्रबन्धक आते हैं जो उनके यहाँ वृत्ति से सम्बन्धित सभी प्रकार की सूचनाएँ परामर्शदाता या वृत्तिक मास्टर को उपलब्ध करवाते हैं। इसके लिये वृत्तिक मास्टर का उनके सम्पर्क में रहना आवश्यक है। सम्पर्क साधने के लिये आवश्यक है कि वृत्तिक मास्टर जाकर उनसे व्यक्तिगत रूप में मिले तथा संचालक और प्रबन्धक को छात्रों के बीच वार्ता देने के लिये आमंत्रित करे। सम्पर्क की निरन्तरता बनाये रखने के लिये पत्राचार आवश्यक है।
प्रथम महत्त्वपूर्ण घटक परामर्शदाता है। कुछ विद्यालयों में निर्देशन का कार्यभार परामर्शदाता के पास होता है। परामर्शदाता ही विभिन्न व्यवसायों या वृत्तियों सम्बन्धी सूचनाओं को एकत्रित करने तथा उनको उपयोग में लाने की सुविधा की दृष्टि से व्यवस्थित करने तथा छात्रों में सूचनाओं के प्रसारण का कार्य करता है। व्यक्ति से सम्बन्धित सूचनाओं को एकत्रित एवं उनका व्यवस्थित रिकॉर्ड रखने का उत्तरदायित्व भी परामर्शदाता का होता है।
द्वितीय घटक मनोवैज्ञानिक होता है जो व्यक्ति से सम्बन्धित बुद्धि, अभिरुचि, अभिवृत्ति, रुचि, संवेगात्मक स्तर और व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों के तथ्य उपलब्ध करवाता है। मनोवैज्ञानिक एक प्रशिक्षित व्यक्ति होता है जो परीक्षणों के प्रशासन, मूल्यांकन और परिणामों का विश्लेषण करने में निपुण होता है। उसके बाद सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण उपलब्ध होते हैं। मनोवैज्ञानिक विद्यालय में भी हो सकता है अथवा व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक होते हैं, जिनकी सहायता ली जा सकती है।
सूचना का तृतीय घटक व्यक्ति स्वयं होता है। वृत्तिक सूचना के साथ व्यक्ति से सम्बन्धित सूचना या तथ्यों का ज्ञान होना आवश्यक है। परामर्शदाता जब वृत्तिक निर्देशन देता है तो वृत्ति के लिये अपेक्षित गुणों का व्यक्ति के गुणों से मिलान करता है तभी वह सहायता करने के लिये अग्रसर होता है। व्यक्ति से सम्बन्धित समस्त सूचनाओं का आलेख परामर्शदाता इतने व्यवस्थित रूप में रखता है कि आवश्यकता होने पर उनको शीघ्र निकाल ले।
कैरियर मास्टर प्रायः प्रत्येक विद्यालय में होने चाहिये। यदि विद्यालय परामर्शदाता की नियुक्ति करने में असमर्थ है तो उसकी कमी कैरियर मास्टर के द्वारा पूरी हो सकती है। इसका कार्य शैक्षिक एवं वृत्तिक सूचनाओं को एकत्रित करना साथ ही छात्रों से सम्बन्धित समस्त तथ्यों का संग्रह करना है। कैरियर मास्टर ही दोनों से सम्बन्धित सूचनाओं का विश्लेषण करके उनका मिलान करेगा। मिलान करने के बाद वह छात्र को उचित परामर्श देने में समर्थ होता है।
वृत्तिक सूचनाओं की आवश्यकता
वंशानुगत वृत्ति या व्यवसाय को जीविकोपार्जन का साधन बनाने की परम्परा अब समाप्त हो चुकी है। साथ ही शिक्षा के प्रसार और तकनीकी विकास के कारण उद्योगों में विविधीकरण तथा विशिष्टता में हुयी वृद्धि के कारण वृत्तिक सूचनाओं का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया है। वृत्तिक सूचनाओं की आवश्यकता को स्पष्ट करने के लिये निम्नलिखित बिन्दु महत्त्वपूर्ण हैं-
1. वृत्तिक चयन में सहायता- वृत्तिक सूचनाओं के आधार पर छात्र को अपनी योग्यता तथा क्षमता के अनुरूप वृत्ति के चयन में सहायता मिलती है।
2. दक्षता तथा प्रशिक्षण का ज्ञान – इन सूचनाओं से छात्रों को ज्ञात होता है कि किस वृत्ति के लिये कैसी दक्षता और प्रशिक्षण आवश्यक है। इस जानकारी के आधार पर वह उसके लिये आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त कर सकता है।
3. कार्य सन्तोष व समायोजन में सहायक- वृत्तिक सूचनाओं और व्यक्तिगत योग्यता तथा क्षमता के अनुरूप वृत्ति में प्रवेश करने पर व्यक्ति का वहाँ समायोजन अच्छा होता है और वह कार्य करने से सन्तोष प्राप्त होता है।
4. निर्देशन सहायता प्रदान करने में सहायक- वृत्तिक मास्टर के पास जब व्यक्ति और वृत्ति से सम्बन्धित सूचनाएँ होती हैं तो दोनों का मिलान करके उसे निर्देश सहायता प्रदान करने में सुविधा रहती है।
5. वृत्तिकों में विविधता – आज प्रत्येक व्यवसाय में कृत्यों के क्षेत्र में विविधता में वृत्तिकों के नये पदों का सृजन किया है। वृत्तिकों के सृजन से व्यवसाय जगत् में हो रहे परिवर्तनों से व्यक्ति को अवगत कराने में सूचनाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण रहती है।
6. छात्रों के संकुचित क्षेत्र को विस्तृत करना- वृत्तिक सूचनाएँ छात्रों के वृत्तिकों से परिचय क्षेत्र का विस्तार करने में सहायता करती है।
वृत्तिक सूचनाओं का महत्त्व
वृत्तिक निर्देशन में शैक्षिक और व्यावसायिक दोनों प्रकार की सूचनाओं का महत्त्व है। इन सूचनाओं के निर्देशन में महत्त्व पर बेयर तथा रॉडबर ने अपनी पुस्तक Occupational information; It’s nature and uses में इस प्रकार अपने विचार व्यक्त किये हैं-
1. सूचनात्मक उपयोग- छात्र इन सूचनाओं के द्वारा वृत्ति से परिचित होता है।
2. अन्वेषणात्मक उपयोग- इन सूचनाओं के आधार वृत्ति मास्टर और छात्र दोनों ही वृत्ति के बारे में अन्वेषण कार्य कर सकते हैं।
3. समायोजनात्मक उपयोग- ये सूचनाएँ छात्र को किसी वृत्ति या व्यवसाय का इतना परिचय करवा देती हैं कि उसको यह समायोजन में बहुत सहायता मिलती है।
4. निश्चयात्मक उपयोग- इन सूचनाओं के द्वारा छात्र को वृत्ति का इतना परिचय करवा दिया जाता है कि परामर्शदाता छात्र द्वारा लिये निर्णय के बारे में आश्वस्त हो जाता है।
5. प्रेरणात्मक उपयोग- सूचनाओं से छात्र को भावी योजनाओं के बनाने की प्रेरणा मिलती से है।
6. मूल्यांकनात्मक उपयोग- इन सूचनाओं के द्वारा छात्र की वृत्ति सम्बन्धी जानकारी का मूल्यांकन करने में उपयोग हो सकता है।
हॉपोक ने अपनी पुस्तक ‘Occupational information’ सूचनाओं के निर्देशन में महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया है
1. नवीन सूचनाओं के द्वारा परामर्शदाता और छात्र दोनों के वृत्ति सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि होती है। ये सूचनाएँ छात्रों के संकुचित परिचय क्षितिज को विस्तृत बनाती है।
2. सूचनाओं की सहायता से छात्रों द्वारा लिये निर्णयों में दृढ़ता आती है।
3. सूचनाएँ छात्रों में विद्यालय, पाठ्यक्रम तथा व्यवसाय एवं वृत्ति सम्बन्धी चयन में रुचि का विकास करती हैं।
4. सूचनाओं की उपलब्धता छात्रों को स्वयं व्यवसाय एवं वृत्ति के चयन की शक्ति प्रदान करती है।
5. पर्याप्त सूचनाओं की जानकारी छात्र को बार-बार पाठ्यक्रम या व्यवसाय बदलने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाती है।
6. सूचनाओं के द्वारा परामर्शदाता को नवीन प्रवृत्तियों का ज्ञान होता है जिससे उसकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
7. इन सूचनाओं से स्थापन सेवा के सफल संचालन में सहायता मिलती है।
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