समाजशास्‍त्र / Sociology

बाल अपराध में मनोवैज्ञानिक कारक | अपराध के समाज मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त

बाल अपराध में मनोवैज्ञानिक कारक
बाल अपराध में मनोवैज्ञानिक कारक

बाल अपराध में मनोवैज्ञानिक कारक

बाल अपराध में मनोवैज्ञानिक कारक निम्नलिखित है-

(i) मानसिक हीनता (Mental Deficiency)

गाडार्ड (Goddard) ने यह विचार व्यक्त किया है कि मानसिक दुर्बलता (Feeble-mindedness) अपराध का एक मात्र कारण है। बुद्धिहीनता के कारण व्यक्ति को अच्छे और बुरे का ज्ञान नहीं होता है। इस कारण व्यक्ति अपराध करते हैं। यौन अपराध सामान्य तथा निम्न बुद्धि के व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं। यौन अपराधियों में लड़कियों का मानसिक स्तर अत्यन्त निम्न पाया जाता है। बुद्धिहीनों को आसानी से अपराध में प्रविष्ट किया जा सकता है। अपराध और बुद्धिहीनता का घनिष्ठ सम्बन्ध है।

(ii) उद्वेगों का संघर्ष और अस्थिरता (Emotional Conflict and Instability)

बाल अपराधियों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वे विदेशियों की संतानें थी, नष्ट-भ्रष्ट घरों के थे, अवैध थे अथवा उनके माता-पिता को समाज में कोई आदर प्राप्त नहीं था। ऐसे घरों के बच्चों में मानसिक संघर्ष होना स्वाभाविक है।

(iii) हीनता की भावना (Inferiority Complex)

हीनता की भावना एक प्रकार की भयंकर मनोवृत्ति है, जिसका जन्म असुखकर संवेगों से होता है तथा जो व्यक्तित्व के समुचित विकास को बाधित करता है। जहाँ तक बाल-अपराध से इसका सम्बन्ध है कहा जाता है कि यह संवेगात्मक अस्थिरता को जन्म देकर मस्तिष्क के संतुलन को खतरा पहुँचाता है। इसका परिणाम यह होता है कि बाल में क्रोध, कायरता तथा भय जैसी अनेक मनोवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है। इसकी प्रक्रिया यह रहती है कि जो भावना या इच्छा दबाई गई है वह यद्यपि अवधान के साथ केन्द्र में तो नहीं रहती किन्तु फिर भी अर्द्ध-चेतन में वह अपना अस्तित्व बनाए रखती है। फिर यह किसी दूसरी दिशा में फूट निकलने का प्रयत्न करती है और यही बाल अपराध की दिशा होती है।

(iv) साइकोपैथिक बालक (Psychopathic Child)

बाल-अपराध के लिये यह भी – महत्त्वपूर्ण दशा है। गोडार्ड ने ओहियों के अपने अन्वेषण में पाया कि 30% के लगभग केस साइकोपैथिक केस थे। साइकोपैथिक बालक रुग्ण मस्तिष्क वाला होता है। ये जन्म से अस्थिर स्वभाव वाले होते हैं तथा प्रारम्भ में ही कुछ पागलपन के लक्षण भी दिखाते हैं, किन्तु ये नक्षण इतने अपूर्ण होते हैं कि उन बालकों को पागल की किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। ये समाज में जिम्मेदारी का निभाने वाले, सामंजस्य न कर पाने वाले तथा अपने ऊपर नियन्त्रण न रख पाने वाले होते हैं। ये सारी बातें उन्हें सरलतया बाल-अपराध की ओर खींच ले जाती है।

(v) न्यूरोटिक बालक (Neurotis Child)

न्यूरोसिस (तंत्रिकाताप) एक कार्यात्मक स्नायुविक अव्यवस्था है। न्यूरोसिस एक अर्जित मानसिक लक्षण है। न्यूरोसिस में उच्च अहं और मूलप्रवत्यात्मक माँगों में हमेशा विद्रोह। कृत्रिमता, तीव्र तनाव रहता है। अन्त में यही दबाव और दमन की स्थिति आती है। अब इन दोनों में संघर्ष होता है। न्यूरोसिस की पृष्ठभूमि में कई आवश्यक तत्व हैं, प्रथम तो यह है कि भय और दूसरा चिन्ता, कुशलता तथा अहंतृप्ति अन्तिम तत्व हैं। बाल अपराध मानसिक संघर्ष का उत्पादन है और न्यूरोसिस अहं तथा उच्च अहं को माँगों का समझौता है।

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shubham yadav

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