अनुक्रम (Contents)
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रचलित वर्तमान समाजशास्त्र पाठ्यचर्या के दोष
1. उद्देश्यों की पूर्णता न रखने का सिद्धान्त विषय से सम्बन्धी प्राप्त व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में उद्देश्यों को परिभाषित नहीं किया गया है।
2. अनुभवों की सम्पूर्णता का सिद्धान्त समग्र अनुभवों व क्रियाकलापों, विज्ञान क्लब आदि रोचक कार्य आदि को स्थान नहीं दिया गया है।
3. विषय वस्तु का संगठित न होना विषय वस्तु को संगठित नही किया गया है। संकेन्द्रीय विधि की ओर भी ध्यान नही दिया गया है।
4. विस्तृत वस्तु की निर्धारित अवधि में पूर्णता निर्धारित विस्तृत विषय वस्तु को छात्रों को निर्धारित अवधि में पूर्ण नहीं करा सकते है।
5. विषयों में सह सम्बन्ध का अभाव समाजशास्त्र के पाठ्यचर्या में सह सम्बन्ध का अभाव है।
6. पुस्तकीय ज्ञान पर अधिक बल सैद्धान्तिक एवं पुस्तकीय ज्ञान पर अधिक बल देता है।
7. विविधता की कमी बालक और बालिकाओं की व्यक्तिगत विभिन्नताओं की ओर ध्यान नही दिया जाता है।
8. लचीलेपन की कमी नम्यता के सिद्धान्त को लेकर तैयार नही किया गया है।
9. क्रिया का सिद्धान्त वर्तमान पाठ्यचर्या को स्वअनुभव तथा करके सीखने द्वारा नही सीखा जा सकता है।
10. जीवन में असम्बन्धित छात्र यर्थाथ जीवन के समस्याओं के साथ समायोजन करने में असमर्थ है।
11. संकुचित दृष्टिकोण-यह परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बनाया गया है।
12. आवश्यकताओं के अनुकूल का सिद्धान्त वर्तमान समाजशास्त्र पाठ्यचर्या छात्र एवं दैनिक जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से दूर है।
13. समाज तथा सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखकर तैयार नही किया गया है।
14. विषय केन्द्रित तथा प्रकरण को ध्यान में रखकर तैयार नही किया गया है।
15. सृजनात्मक कार्य की कमी है।
16. निरर्थक नीरस व अनुपयुक्त है।
17. परीक्षाओं पर अधिक बल देता है।
18. प्रकरणों अथवा उपविषयों के विस्तार तथा कठिनाई स्तर के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी नही मिलती है।
19. अभ्यास व दोहराने पर अधिक बल दिया जाता है।
20. शिक्षण के उद्देश्यों तथा सीखने के अनुभवों का विस्तृत वर्णन नही किया गया है।
समाजशास्त्र की वर्तमान पाठ्यचर्या पुस्तकीय सैद्धान्तिक अमनोवैज्ञानिक तथा बोझिल है बाल केन्द्रित क्रियायें तथा बालकों के लिये उपयोगी क्रियाओं की कमी है।
समाजशास्त्र के वर्तमान पाठ्यक्रम में परिवर्तन हेतु सुझाव
1. व्यक्तिगत विभिन्नताओं रूचियों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिये
2. मौखिक और गृहकार्य/दत्त को भी स्थान दिया जाना चाहिये ।
3. शिक्षक अधिगम सामग्री तथा उनके उपयोग में लाने के लिये उचित दिशा निर्देश मिलने चाहिये ।
4. समाजशास्त्र शिक्षक को उद्देश्यों का निर्धारण सावधानी से कराना चाहिये ।
5. प्रयोगात्मक, क्रियात्मक कार्य बालक स्वयं करके सीख जाए।
6. लचीला होना चाहिये।
7. उपयोगिता, समन्वय मनोवैज्ञानिक सृजनात्मक क्रियाशील सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्य तथा लचीलेपन के सिद्धान्त का निर्धारण निर्माण होना चाहिये।
8. उद्देश्यों का निर्धारण बालक के ज्ञानात्मक भावात्मक विभाजित करना चाहियें।
9. शिक्षक तथा छात्र के लिये स्पष्ट निर्देश भी दिये जाने चाहिये।
10. समाजशास्त्र की विषय वस्तु को अधिक प्रस्तुत किया जाना चाहिये ।
11. मूल्यांकन के लिये पाठ्यक्रम में उचित सुझाव दिये जाने चाहिये।
इसी भी पढ़ें…
- मनोगामक कौशलों हेतु प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? | कौशल शिक्षण के सोपान
- वृत्तिका विकास से आप क्या समझते हैं?
- वृत्तिका विकास तथा रोजगार चयन को प्रभावित करने वाले कारक
- रोयबर द्वारा वृत्तिक विकास के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त
- वृत्तिका विकास का बहुलर द्वारा किए गए वर्गीकरण
- निर्देशन का महत्त्व
- निर्देशन के विभिन्न सिद्धान्त
- निर्देशन कार्यक्रम की विशेषताएँ
- निर्देशन कार्यक्रम को संगठित करने के उपाय, विशेषताएँ तथा प्रकार
- निर्देशन का क्षेत्र, लक्ष्य एवं उद्देश्य
- निर्देशन का अर्थ | निर्देशन की परिभाषा | निर्देशन की प्रकृति | निर्देशन की विशेषताएँ
- निर्देशन की आवश्यकता | सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता
- अभिप्रेरणा क्या है ? अभिप्रेरणा एवं व्यक्तित्व किस प्रकार सम्बन्धित है?
- अभिप्रेरणा की विधियाँ | Methods of Motivating in Hindi
- अभिप्रेरणा का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार
- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक
- अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकार, महत्त्व, उपयोग/लाभ, सीमाएँ
- शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अनुप्रयोग
- शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र