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वायुमण्डल से क्या आशय है?
पृथ्वी के चारों ओर फैले हुए वायु या हवा के आवरण को वायुमण्डल (Atmo sphere) कहा जाता है। यह समुद्र तल से लगभग 1600 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला हुआ है। वायुमण्डल में घनत्व भी होता है जो ऊँचाई के अनुसार तीव्रता से घटता जाता है। वायु का लगभग 97 प्रतिशत भाग धरातल से 30 किलोमीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है। पृथ्वी से ज्यों-ज्यों दूर होते जाते हैं, वायु विरल होती जाती है ।
वायुमण्डल का संघटन (Composition of Atmosphere)
वायुमण्डल अनेक गैसों के मिश्रण से बना है। इसमें नाइट्रोजन 78 प्रतिशत, ऑक्सीजन 21 प्रतिशत तथा 1 प्रतिशत अन्य गैसें आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, हीलियम तथा ओजोन पायी जाती हैं। साथ ही कुछ मात्रा में जलवाष्प, धूलकण, धुआँ आदि विद्यमान रहते हैं। ऑक्सीजन जीवनदायिनी गैस है। नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में होते हुए भी अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पति के विकास में सहायक होती है। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने से पानी बनता है। कार्बन डाइऑक्साइड और जल दोनों पेड़-पौधों के विकास के लिये आवश्यक हैं। ओजोन गैस सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है।
वायुमण्डल का महत्त्व
पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व बनाये रखने के लिये वायुमण्डल का बहुत महत्त्व है क्योंकि –
(1) वायुमण्डल सूर्य की पराबैंगनी घातक किरणों से पृथ्वी के जीवधारियों को बचाने में सहायक है।
(2) यह पृथ्वी पर जीवन हेतु अनुकूल तापमान बनाये रखता है जिससे जीवन के लिये धरातल न अधिक गर्म और न अधिक ठण्डा होता है।
(3) वायुमण्डल पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ध्वनि तरंगों को भेजने का माध्यम है। वायुयान की उड़ानें भी वायुमण्डल के कारण सम्भव हो सकी हैं।
(4) पृथ्वी पर मौसम परिवर्तन; जैसे- ताप सन्तुलन, वायु का संचार, वर्षा आदि वायुमण्डल के कारण ही सम्भव है।
(5) जीवन को बनाये रखने के लिये वायुमण्डल में प्राणदायी गैसें एवं रक्षक गैसें भी हैं।
वायुमण्डल की संरचना
तापक्रम को भिन्नता और तापक्रम में परिवर्तन की दर के आधार पर वायुमण्डल को पाँच परतों में बाँटा जाता है- (1) क्षोभमण्डल, (2) समतापमण्डल, (3) मध्यमण्डल, .(4) ऊष्मामण्डल तथा (5) बाह्यमण्डल ।
1. क्षोभमण्डल
ध्रुवों पर इसकी ऊँचाई 8 किलोमीटर तथा विषुवत वृत्त पर 18 किलोमीटर तक है। इस परत में जलवाष्प तथा धूल कण पाये जाते हैं। इसमें मौसम सम्बन्धी सभी घटनाएँ जैसे- बादल, वर्षा और तूफान आदि घटित होती हैं। इसी परत में सभी प्रकार का जीवन पाया जाता है। इसमें ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है। प्रति 165 मीटर ऊँचाई केसाथ 1° सेल्सियस की दर से तापमान घटता है। इस मण्डल को परिवर्तन मण्डल के नाम से भी जानते हैं।
2. समतापमण्डल
वायुमण्डल की दूसरी परत समतापमण्डल कहलाती है। इसमें 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक तापमान समान रहता है फिर क्रमशः बढ़ने लगता है।
3. मध्यमण्डल
इस मण्डल की ऊँचाई समुद्रतल से 50 से 80 किलोमीटर है। इस मण्डल में जलवाष्प, बादल तथा धूल कण की कमी के कारण तापक्रम कम है और पवन काफी तीव्र गति से बहती है।
4. ऊष्मामण्डल
ऊष्मामण्डल का फैलाव समुद्र तल से 80 किलोमीटर की ऊँचाई से प्रारम्भ होता है। इस मण्डल में वायु का घनत्व बहुत कम है। इसमें ऊँचाई के साथ-साथ तापक्रम बढ़ता है।
इन मण्डलों में गैसों की दो परतें भी हैं जिन्हें ओजोन परत और आयन परत (आयनमण्डल) कहते हैं। ओजोन परत का फैलाव पृथ्वी से 32 से 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक है। इसमें ओजोन गैसों की प्रधानता है। यह परत सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है। आयन परत पृथ्वी से 80 से 400 किलोमीटर की ऊँचाई पर है। इस परत में उपस्थित विद्युत कण पृथ्वी से प्रक्षेपित तरंगों को रोककर पुनः पृथ्वी पर लौटा देती है। इस प्रकार यह हमें रेडियो, ट्रान्जिस्टर के माध्यम से विभिन्न प्रकार के रेडियो प्रोग्राम सुनने में सहायता करती है। ध्रुवों पर ध्रुवीय प्रकाश की झलक इस परत के कारण ही दिखायी देती है।
5. बाह्यमण्डल
यह वायुमण्डल की सबसे बाहरी परत है। इसकी ऊपरी सीमा अनिश्चित है। इस परत में वायु का घनत्व सबसे कम है। यहाँ वायु विरल होती है।
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