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लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योग में अंतर
लघु उद्योग (Small Industry) – लघु उद्योगों की कार्य क्षमता पर विचार किया जाये तो लघु उद्योग, कुटीर उद्योग एवं वृहत् उद्योग के बीच के उद्योग माने जाते हैं; जैसे—एक कम्पनी ताले बनाने का कार्य करती है या रेडियो बनाने का कार्य करती है तो इसको लघु उद्योग के अन्तर्गत माना जाता है। लघु उद्योग में पूँजी का निवेश की सीमा 1 करोड़ से कम होती है। लघु उद्योगों के अन्तर्गत हौजरी, ताले बनाना, रेडियो बनाना, बटन बनाना, बर्तन बनाना एवं प्लास्टिक के सामान बनाना आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।
कुटीर उद्योग (Cottage Industry)- कुटीर उद्योगों का आशय उन उद्योगों से होता है जोकि परिवार के सदस्यों द्वारा पूर्णकाल एवं अंशकाल के व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं; जैसे-घर की महिला अचार बनाकर बेचती है तथा फटे-पुराने कपड़ों से दरी बनाकर बेचती है तो वह कुटीर उद्योगों की श्रेणी में आयेगा। इस प्रकार वे उद्योग जो ग्राम एवं समाज में स्थानीय स्तर पर अपने परिवार के सहयोग से चलाये जाते हैं, कुटीर उद्योगों की श्रेणी में आते हैं।
(1) राष्ट्रीय नियोजन समिति के अनुसार, “कुटीर उद्योग वह उद्योग है, जिसमें लोग अपने उपकरणों के साथ अपने घरों में अपने परिवार के सदस्यों की सहायता से या अधिक से अधिक 5 मजदूरों की सहायता से उत्पादन करते हैं।”
(2) उत्तर प्रदेश कुटीर उद्योग समिति 1945 के प्रतिवेदन के मतानुसार, “कुटीर उद्योग शब्द का प्रयोग उन बड़े मिलों की तुलना में किया जाता है, जहाँ पर उत्पादन बड़ी मिलों के समान ही थोड़ी मात्रा में छोटी-छोटी जगहों में होता है और कारीगर थोड़े समय ही कार्य करता है। “
लघु एवं कुटीर उद्योगों में सम्बन्ध
लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योगों की समस्याओं में एवं पूँजी निवेश सम्बन्धी प्रक्रिया में सामान्य रूप से एकता की स्थिति पायी जाती है। लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योगों में अनेक प्रकार की समानताएँ पायी जाती हैं तथा अनेक प्रकार की असमानताएँ पायी जाती हैं। समानता की दृष्टि से देखा जाये तो लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योगों के उद्देश्य, समस्या, उत्पादन तकनीकी एवं रोजगार की उपलब्धताओं में समानता पायी जाती है। इसके साथ-साथ असमानता देखी जाये तो मात्र उत्पादन, रोजगार एवं पूँजी निवेश की दृष्टि से असमानता पायी जाती है। इस प्रकार लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योग एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।
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