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अनौपचारिक शिक्षा क्या है?- विशेषताएँ, उद्देश्य, अभिकरण, महत्व

अनौपचारिक शिक्षा क्या है
अनौपचारिक शिक्षा क्या है

अनौपचारिक शिक्षा क्या है? (Informal Education)

अनौपचारिक शिक्षा में अनौपचारिक शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है जो ‘शिक्षा’ की विशेषता बतलाता है। अनौपचारिक शब्द दो शब्दों की सन्धि से बना है उपचारिक। अन् का अर्थ ‘नहीं’ तथा उपचारिक शब्द ‘उपचार’ से बना है। उपचार का अन् + अर्थ है इलाज, चिकित्सा या व्यवस्था इस प्रकार अनौपचार का अर्थ है ‘व्यवस्थाहीन, अर्थात् जिसके लिए कोई चिकित्सा या प्रयत्न या चेष्टा न की जाए। इस प्रकार अनौपचारिक शिक्षा वह है जिसे व्यक्ति बिना किन्हीं व्यवस्थित साधनों अथवा प्रयासों के स्वतः ही प्राप्त कर लेता है। जीवन में मनुष्य अनेक साधनों तथा माध्यमों से अनुभव प्राप्त करता है। इन साधनों तथा माध्यमों को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-

(1) वे साधन व माध्यम जिनकी जानबूझकर इसलिए व्यवस्था की जाती है कि हम उनसे अनुभव या शिक्षा प्राप्त करें। उदाहरण के लिए विद्यालय की व्यवस्था जानबूझ – कर केवल इसलिए की जाती कि हम उनसे अनुभव या शिक्षा प्राप्त कर सकें।

(2) वे साधन या माध्यम जिनका जानबूझकर आयोजन नहीं किया है किन्तु अपने मूलरूप में ही रहकर अनुभव प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए जंगल में खड़े नीम के पेड़ को देखकर हम अनुभव प्राप्त करते हैं कि नीम के पेड़ का आकार, पत्तियों, फूल व फलों का आकार व रंग-रूप कैसा होता है। इसी प्रकार हम अपने भौतिक तथा सामाजिक वातावरण में करोड़ों ऐसे साधन व माध्यम पाते हैं जो हमें प्रतिदिन अनेक अनुभव प्रदान करते हैं। ये साधन शिक्षा के अनौपचारिक साधन हैं जो हमें अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करते हैं। परिवार, समुदाय, धर्म, राज्य, रेडियो, टेलीविजन तथा समाचार-पत्र आदि अनौपचारिक शिक्षा के प्रमुख साधन हैं।

प्रो. जे.एस. रॉस के अनुसार, “अनौपचारिक शिक्षा बालक के द्वारा सभी प्रभाव ग्रहण करना और उसे अपनी प्रकृति से उत्तेजित कर पूर्णतया विकास करना सिखाती है।” सरल शब्दों में “अनौपचारिक शिक्षा जीवन से सम्बन्धित वे अनुभव हैं, जिन्हें हम बिना किसी व्यवस्थित प्रयास, संस्था तथा साधन के स्वाभाविक स्थिति से प्राप्त करते हैं। इस प्रकार की शिक्षा प्रत्यक्ष रूप से जीवन से सम्बन्धित होती है तथा जीवन पर्यन्त चलती है।”

अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Informal Education)

अनौपचारिक शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) अनौपचारिक शिक्षा के लिए किन्हीं विशेष प्रयासों तथा व्यवस्था की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस शिक्षा को हम जीवन के लिए किए गए संघर्षों से स्वतः ही प्राप्त कर लेते हैं। जीवन के लिए हम जितना विस्तृत सामाजिक तथा भौगोलिक वातावरण प्राप्त करेंगे हमारे अनुभव उतने ही अधिक विस्तृत होंगे और उतनी ही अच्छी शिक्षा होगी।

(2) अनौपचारिक शिक्षा स्वाभाविक जीवन से सम्बन्धित, सरल तथा प्राकृतिक रूप में होती है।

(3) अनौपचारिक शिक्षा व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों तथा उसकी रुचि पर निर्भर करती है।

(4) अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपने चारों ओर के वातावरण परिवार, पड़ोस एवं समाज आदि पर मूल रूप से निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि ये ही अनौपचारिक शिक्षा के मुख्य स्रोत हैं।

(5) अनौपचारिक शिक्षा मनुष्य की अपने अनुभवों से लाभ उठाने की योग्यता पर निर्भर करती है।

(6) अनौपचारिक शिक्षा कष्टसाध्य तथा श्रमसाध्य नहीं होती है। अनौपचारिक शिक्षा सुखद तथा मनोरंजनकारी होती हैं।

(7) अनौपचारिक शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है क्योंकि व्यक्ति जीवन भर अनुभव प्राप्त करता रहता है।

(8) अनौपचारिक शिक्षा अभौतिक, मानवीय भावनात्मक तथा संस्कृति – प्रधान होती है। इस कारण अनौपचारिक शिक्षा व्यक्ति के सर्वागीण व्यक्तित्व तथा जीवन को कहीं अधिक प्रभावित करती है।

अनौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Informal Education)

औपचारिक शिक्षा का आयोजन तथा संगठन किसी न किसी उद्देश्य को लेकर किया जाता है। शैक्षिक तकनीकी से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि औपचारिक शिक्षा दिन प्रति दिन उद्देश्य-केन्द्रित होती जा रही है। इसके विपरीत, अनौपचारिक शिक्षा उद्देश्यरहित होती है, किन्तु सही अर्थों में ऐसा नहीं है। सिर्फ अन्तर इतना है कि औपचारिक शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट रूप से निर्धारित किए जाते हैं इसलिए हम औपचारिक शिक्षा के उददेश्यों का सरलता के साथ उल्लेख कर देते हैं। लेकिन अनौपचारिक शिक्षा में कोई पूर्व निश्चित उद्देश्य न होने के कारण हम उसके उद्देश्य नहीं बता पाते हैं और यह कह देते हैं कि वह उद्देश्यविहीन है।

वास्तव में, अनौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य अत्यन्त व्यापक तथा सामान्यीकृत होते हैं। उनको कुछ शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। संक्षेप में, अनौपचारिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए जा सकते हैं-

(1) व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में समन्वय स्थापित करना।

(2) जीवनोपयोगी ज्ञान तथा अनुभव प्रदान करना।

(3) सफल जीवन व्यतीत करने की योग्यता का विकास करना।

(4) व्यक्ति के व्यक्तित्व के सभी आयामों, पहलुओं तथा क्षेत्रों को प्रभावित कर उन्हें एक निश्चित दिशा प्रदान करना।

अनौपचारिक शिक्षा के अभिकरण (Agency of Informal Education)

अनौपचारिक शिक्षा के प्रमुख अभिकरण इस प्रकार है-

(1) परिवार (Family) – परिवार को बालक का प्राथमिक विद्यालय कहा जाता है। परिवार में प्राप्त शिक्षा बालक को उसके सम्पूर्ण शिक्षा का आधार प्रदान करती है। परिवार के महत्व को विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने भी स्वीकार किया है इसलिए विद्यालय में परिवार जैसा वातावरण बनाने की बात पर बल दिया है। मॉण्टेसरी और फ्रोबेल के किण्डरगार्टन की आवधारणा इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

फ्रोबेल के अनुसार, “कक्षाएँ आदर्श अध्यापिकाएँ हैं और घर द्वारा दी गयी औपचारिकेत्तर शिक्षा सर्वाधिक प्रभावशाली और स्वाभाविक होती है।”

(2) समुदाय (Community)- परिवार के बाद बालक की शिक्षा की द्वितीय सीढ़ी समुदाय होता है। बालक समुदाय के सम्पर्क में आकर अनेक बातों को सीखता है। शिक्षा के साधन के रूप में समुदाय विद्यालयों की स्थापना करता है व शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण भी करता है।

बोगार्ड्स के अनुसार, “समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है, जिसमें कुछ मात्रा में हम की भावना होती है और वह एक क्षेत्र विशेष में रहता है।”

(3) राज्य (State)- राज्य शिक्षा का अनौपचारिक साधन है। शिक्षा का समुचित प्रबन्ध करना राज्य का प्रमुख कर्त्तव्य है क्योंकि अच्छी शिक्षा द्वारा ही एक अच्छे राज्य का निर्माण किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में अरस्तु ने अपनी पुस्तक (Republic) में कहा है कि, उचित शिक्षा राज्य पर निर्भर है और एक उपयुक्त राज्य की स्थापना उचित प्रकार की शिक्षा द्वारा हो सकती है।” परिवार, समुदाय की तरह बालक राज्य से भी अनौपचारिक रूप से कुछ न कुछ सीखता रहता है।

(4) धर्म (Religion) – धार्मिक संस्थाएँ एवं विभिन्न धर्म भी हमारी शिक्षा को प्रभावित करते हैं। ये शिक्षा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करते हैं। धर्म के माध्यम से बालकों में नैतिक मूल्यों का विकास किया जा सकता है। गिलबर्ट के अनुसार, “धर्म, ईश्वर व देवताओं के प्रति, जिनके ऊपर मनुष्य अपने को निर्भर अनुभव करता है, गतिशील विश्वास और आत्मसमर्पण है।”

(5) पुस्तकालय एवं वाचनालय (Library and Reading Room) – पुस्तकालय एवं वाचनालय अनौपचारिक शिक्षा का प्रमुख साधन हैं। ये संचित ज्ञान के भण्डार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इनमें उपलब्ध पुस्तकों के माध्यम से मनुष्य अथाह ज्ञान को ग्रहण कर सकता है और अपने ज्ञानकोष में वृद्धि कर सकता है। इनमें उपलब्ध विभिन्न पुस्तकों, पत्रिकाओं, उपन्यासों आदि का अध्ययन करके व्यक्ति अपना शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास हेतु ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

(6) संग्रहालय (Museum) – शिक्षा के अन्तर्गत अधिगम उतना ही अधिक स्थाई एवं स्पष्ट होता है, जितना अधिक इन्द्रियों का प्रयोग उस अधिगम को प्राप्त करने में किया जाता है। संग्रहालय में बालक विभिन्न विषयों से सम्बन्धित वस्तुओं का अवलोकन करके ज्ञान प्राप्त करता है। इन विषयों (इतिहास, शिक्षा शास्त्र, भूगर्भशास्त्र कला इत्यादि) के साथ-साथ बालक अपनी संस्कृति और सभ्यता से सम्बन्धित वस्तुओं का अवलोकन संग्रहालय में कर सकता है। संग्रहालय में इन सब विषयों से सम्बन्धित वस्तुओं को सहेज (सम्भाल कर रखा जाता है जिसे बालक देखकर एवं छूकर उसके विषय में ज्ञान प्राप्त करते हैं। माध्यमिक विद्यालयों के लिए संग्रहालय स्थापित करने की संस्तुति मुदालियर आयोग द्वारा भी की जा चुकी है। मुदालियर आयोग ने अपनी संस्तुति में जन साधारण को शिक्षित करने के लिए संग्रहालयों को स्थापित करने का सुझाव राज्य सरकार को दिया।

(7) नाटक (Play)- बालक की सृजनात्मक शक्तियों के विकास के लिए नाटक एक उपयुक्त अभिकरण है। नाटक के माध्यम से बालकों का मानसिक एवं शारीरिक विकास के साथ मनोरंजन भी होता है जिससे बालकों में इसके प्रति रुचि जागृत होती है। नाटक बालकों की सामाजिक, मानसिक एवं शारीरिक विकास एवं बालकों की क्रियाशीलता को बढ़ाने में भी सहायक होता है। नाटक के माध्यम से छात्रों का व्यक्तित्व विकास भी होता है। बालक के संकोची स्वभाव को समाप्त करने का एक उचित अभिकरण नाटक ही है। के द्वारा बालक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा ग्रहण करता है।

(8) स्काउटिंग और गाइडिंग (Scouts and Guides)- शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य छात्र एवं छात्राओं को सामाजिक एवं नैतिक विकास करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्काउटिंग और गाइडिंग उपयुक्त अभिकरण हैं। बालकों को प्रकृति के सम्पर्क में लाकर उनका शारीरिक एवं सामाजिक विकास किया जाता है। प्रकृति के सम्पर्क में आने से बालकों में शारीरिक, सामाजिक एवं नैतिक विकास स्वतः ही होता रहता है। स्काउटिंग एवं गाइडिंग के माध्यम से बालक खेल-खेल में ही विशिष्ट नागरिक बनने की दिशा में अग्रसर हो जाता है। इन संगठनों को भी शिक्षा के अभिकरण का एक अभिन्न अंग है।

अनौपचारिक शिक्षा का महत्व (Importance of Informal Education)

जनसंख्या का विशाल रूप बढ़ता हुआ शिक्षा व्यय तथा औपचारिक शिक्षा की असफलता ने विश्व के शिक्षाशास्त्रियों को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि वर्तमान औपचारिक शिक्षा के स्थान पर शिक्षा की किसी अन्य व्यवस्था की खोज की जाए। इसी कारण से अनौपचारिक शिक्षा पर उनकी दृष्टि पड़ी। औपचारिक शिक्षा से कहीं अधिक अनौपचारिक शिक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि वह हमें इतने अनुभव प्रदान करती है कि वह मनुष्य के जीवन को ही एक शैली तथा दर्शन प्रदान कर देती है। औपचारिक शिक्षा केवल कुछ ज्ञान प्रदान करती है, जबकि अनौपचारिक शिक्षा हमें जीवन के हर क्षेत्र से सम्बन्धित हर प्रकार का ज्ञान प्रदान करती है। अनौपचारिक शिक्षा हमें यह ज्ञान तथा अनुभव प्रदान करती है जो हमारे जीवन में वास्तविक रूप से काम आता है। इसके अतिरिक्त औपचारिक शिक्षा हम जीवन के कुछ वर्षों तक (सामान्यतया विद्यार्थी जीवन तक ही) प्राप्त करते हैं जबकि अनौपचारिक शिक्षा जीवनपर्यन्त चलती है। अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आर्थिक साधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस कारण इसमें शिक्षा-व्यय कम होता है।

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shubham yadav

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