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निबंधात्मक परीक्षा में सुधार के उपाय

निबंधात्मक परीक्षा में सुधार के उपाय
निबंधात्मक परीक्षा में सुधार के उपाय

निबंधात्मक परीक्षा में सुधार के उपाय (measures of improving essay type examination)

निबंधात्मक परीक्षा में सुधार के निम्नलिखित मुख्य उपाय हैं:

1. प्रश्न रचना में सुधार (Improvement in question setting)- निबंधात्मक परीक्षा को उपयोगी तथा वस्तुनिष्ठ बनाने के लिए प्रश्नों की रचना में सुधार लाना आवश्यक है। इस संदर्भ में कई बातें महत्त्वपूर्ण हैं। प्रश्नों का निर्माण करते समय सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए प्रश्नों की संख्या बढ़ा दी जा सकती है। जितने समय में परीक्षार्थी पाँच या छः लम्बे-लम्बे प्रश्नों का उत्तर लिखते हैं, उतने समय में बीस या पच्चीस छोटे-छोटे प्रश्नों के उत्तर आसानी से लिख सकते हैं। दूसरी बात यह है कि प्रश्न इस प्रकार के हों जिनसे विद्यार्थी का स्मृति के साथ-साथ उनकी सूझ तथा विवेचनात्मक क्षमता की भी जाँच हो सके। तीसरी बात यह है कि प्रश्नों का निर्माण करते समय विद्यार्थी की व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखा जाए। कुछ प्रश्न कठिन तथा कुछ आसान हों ताकि सभी स्तरों के विद्यार्थी उत्तर दे सकें। और चार्थी बात यह कि प्रश्नों की भाषा स्पष्ट हो ताकि उनके अर्थ समझने में संदिग्धता उत्पन्न न हो।

2. मूल्यांकन में सुधार (Improvement in marking)- उत्तर-पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में सुधार करके निबंधात्मक परीक्षा की त्रुटियों को एक बड़ी हद तक दूर किया जा सकता है। परीक्षकों को चाहिए कि एक साथ मिलकर एक समान मापदण्ड बना लें और इसी के अनुसार प्रश्नोत्तरों की जाँच करें। किसी प्रश्न के उत्तर के लिए जो अपेक्षित हों, उन्हें लिख लिया जाए तथा प्रत्येक के लिए अंक निर्धारित कर लिया जाए। ऐसा करने से मूल्यांकन का मापदण्ड बहुत अंशों में समान तथा वैज्ञानिक हो सकेगा।

3. परीक्षक में सुधार (Improvement in examiners)- निबंधात्मक परीक्षा को उपयोगी बनाने के लिए परीक्षकों में सुधार करना भी आवश्यक है। उत्तरों की जाँच करते समय परीक्षक को पूर्वधारणा, पक्षपात तथा अन्य व्यक्तिगत तत्वों से मुक्त होना चाहिए। उत्तरों को सावधानी से पढ़ना चाहिए ताकि वह जान सकें कि परीक्षार्थी ने अपेक्षित बातों को लिखा है अथवा केवल बात बनाया है। इसी तरह परीक्षक को चाहिए कि उत्तरों की जाँच उस समय करें जबकि वे मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ हों।

4. मूल्यांकन के लिए पर्याप्त समय (Sufficient time for evaluation)- उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच के लिए परीक्षकों को पर्याप्त समय मिलना चाहिए। अपर्याप्त समय होने के कारण परीक्षक उत्तरों की जाँच समुचित ढंग से करने में असमर्थ होते हैं। अतएव चाह कर भी वे परीक्षार्थी के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं। यदि उन्हें पर्याप्त समय मिल जाए तो वे अपने कर्त्तव्य को पूरा करने में समर्थ हो सकते हैं।

5. अध्यापन में सुधार (Improvement in teaching)- निबंधात्मक परीक्षा की त्रुटियों को दूर करने तथा इसकी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए अध्यापन में आवश्यक है। किसी विशेष पर वे टिप्पणी लिखवाने के बदले उसके विभिन्न पहलुओं का सुधार करना भी विवेचन करना, उसमें विद्यार्थियों की अभिरुचि जगाना तथा उनकी योगयता को सूझ के माध्यम से विकसित होने देना अधिक लाभप्रद है। इससे एक ओर विद्यार्थियों को समझ कर सीखने का प्रोत्साहन मिलेगा और दूसरी ओर रटकर याद करने की प्रवृत्ति कम जाएगी इस तरह हम परीक्षा प्रणाली से उनकी वास्तविक योग्यता का मापन हो सकेगा।

6. अन्य परीक्षणों का उपयोग (Use of other tests)- निबंधात्मक परीक्षा के साथ-साथ अन्य वस्तुनिष्ठ परीक्षण तथा मौखिक परीक्षण का उपयोग आवश्यक है। वस्तुनिष्ठ परीक्षा के आधार पर प्राप्त अकों से निबंधात्मक परीक्षण की विश्वसनीयता तथा वैधता को निर्धारित करने में बड़ी सहायता मिलती है। वस्तुनिष्ठ परीक्षण के विभिन्न प्रकारों का वर्णन आगे किया जायेगा। इसी तरह मौखिक परीक्षा का उपयोग करके भी निबंधात्मक परीक्षा की उपयोगिता बढ़ाई जा सकती है।

7. द्विपरीक्षक पद (Double examinership)- द्विपरीक्षक पद के उपयोग से निबंधात्मक परीक्षा की बहुत सी त्रुटियाँ दूर हो सकती हैं। अतः व्यावहारिक परीक्षा की तरह सैद्धान्तिक परीक्षा में भी द्विपरीक्षक पद का चलन होना चाहिए। इससे प्रश्नोत्तर के मूल्यांकन पर परीक्षकों के व्यक्तिगत कारकों का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है। कारण यह है कि प्रत्येक परीक्षक को इस बात का भय रहता है कि कहीं उसके द्वारा दिए गए अंक दूसरे परीक्षक के द्वारा दिए गए अंकों से बहुत कम या अधिक न हो जाए।

8. बाजारू पुस्तकों पर रोक (Ban on cheap note books)- अधिकारियों तथा प्रबन्धकों को चाहिए कि गेस पेपर, नोट बुक आदि बाजारू पुस्तकों पर रोक लगा दें। ऐसा होने से विद्यार्थियों को बाध्य होकर अपने वर्ग की निर्धारित पुस्तकों का अध्ययन करना पड़ेगा। इस प्रकार उनकी योग्यता समग्र रूप से विकसित हो सकेगी।

9. योग्य परीक्षकों का चयन (Selection of able examiners) – निबंधात्मक परीक्षा को उपयोगी बनाने के लिए तथा विद्यार्थियों की वास्तविक उपलब्धि की जाँच के लिए योग्य परीक्षकों का चुनाव भी आवश्यक है। उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच के लिए योग्य तथा इच्छुक परीक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए। कुछ परीक्षक अनुभवी नहीं होने के कारण परीक्षार्थियों के साथ न्याय करने में असमर्थ होते हैं । अतः ऐसे परीक्षकों की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए । इसी तरह कुछ परीक्षकों को उनकी इच्छा नहीं होने पर भी नियुक्त कर लिया जाता है । यह भी अनुचित है । अनुभवी परीक्षकों के पास एक ही समय विभिन्न वर्गों की अनेक उत्तर-पुस्तिकाएँ आ जाने के कारण वे चाहकर भी मूल्यांकन करने में न्याय नहीं कर पाते हैं। अतः ऐसे अनुभवी परीक्षकों को एक समय में उतनी ही उत्तर-पुस्तिकाएँ मिलनी चाहिए जिनकी जाँच के समुचित रूप से कर सकें।

10. केन्द्रित मूल्यांकन (Centralised evaulation) – उत्तर-पुस्तिकाओं के केन्द्रित मूल्यांकन से समय तथा श्रम में भी बचत होगी और पैरवी तथा सिफारिश की संभावना भी कम होगी।

उपर्युक्त बातों पर यदि अमल किया जाए तो निबंधात्मक परीक्षा की बहुत सी त्रुटियाँ हो सकती हैं तथा इससे विद्यार्थियों की वास्तविक योग्यता या उपलब्धि की जाँच बहुत दूर हद तक हो सकती है।

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