B.Ed./M.Ed.

पाठ्यचर्या मूल्यांकन की आवश्यकता, लाभ एवं स्रोत

पाठ्यचर्या मूल्यांकन की आवश्यकता
पाठ्यचर्या मूल्यांकन की आवश्यकता

पाठ्यचर्या मूल्यांकन की आवश्यकता, लाभ एवं स्रोत (Need, Advantages and Sources of Curriculum)

यदि हमें एक कुशल और प्रभावी पाठ्यचर्या का निर्माण करना है तो हमें विद्यमान पाठ्यचर्या का मूल्यांकन करना होगा और इसे अधिक संगत बनाने के लिए इसमें परिवर्तन करने होंगे; क्योंकि यदि हम किसी भी विशिष्ट ग्रेड हेतु बनी पाठ्यचर्या में लम्बे समय तक कोई संशोधन नहीं करते हैं, इसमें विषय से सम्बन्धित हाल की घटनाओं को शामिल नहीं करते ‘यह समय के साथ महत्त्वहीन व असार्थक ही हो जाएगी। अतः, एक पाठ्यचर्या के मूल्यांकन की आवश्यकता सर्वप्रथम तो इसके विषय क्षेत्र से उत्पन्न होती है। यदि किसी अन्तर्वस्तु क्षेत्र में समय-समय पर विकास कार्य होते हैं और प्रचलित परिवर्तनों को समाविष्ट नहीं किया जाता है तो विद्यार्थी यथार्थ को नहीं जान सकेंगे। अतः, हाल की घटनाओं के समावेश तथा पाठ्यचर्या की संरचना में उन्हें उपयुक्त स्थान देने के लिए पाठ्यचर्या का विधिवत विश्लेषण करने की आवश्यकता है। यह वैज्ञानिक विश्लेषण ही पाठ्यचर्या का मूल्यांकन होगा यदि इसे युक्तिसंगत रूप से किया जाए।

पाठ्यचर्या की रूपरेखा में संकल्पना और प्रक्रियाओं की दृष्टि से भी कुछ निष्क्रिय सामग्री हो सकती है जो अधिकाल में अप्रचलित हो जाती है और क्षेत्र में प्रयोग में नहीं आती है। अतः, पाठ्यचर्या से ऐसी संकल्पनाओं व प्रक्रियाओं को हटाने के लिए इसका सामाजिक आधार पर विश्लेषण किया जाता है। इसे पाठ्यचर्या वस्तुपरक मूल्यांकन भी कहते हैं।

कोई भी पाठ्यचर्या कागज पर देखने में अच्छी लग सकती है, लेकिन शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए वास्तविक निष्पत्ति को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। उदाहरणतः माध्यमिकोत्तर संस्थानों (माध्यमिक स्कूल के शिक्षित व्यक्ति) को माध्यमिक स्तर पर एक विशेष विषय पढ़ाए जाने के ढंग के बारे में कई शिकायतें हो सकती हैं। हम किस प्रकार पाठ्यचर्या कार्यान्वयन की प्रभावशीलता में सुधार ला सकते हैं ताकि माध्यमिकोत्तर संस्थानों के अपेक्षित स्तर को प्राप्त किया जा सके। इस सन्दर्भ में पाठ्यचर्या मूल्यांकन ही पाठ्यचर्या के परिशोधन और प्रभावशीलता को उन्नत करने में हमारी सहायता कर सकता है।

एक पाठ्यचर्या की कुशलता को उन्नत करने के लिए शैक्षिक पद्धति में निर्गत और आगत का विश्लेषण करना होगा और विश्लेषण द्वारा व्यक्त किए गए आवश्यक संशोधन करने होंगे। इस प्रकार का प्रयास भी पाठ्यचर्या के मूल्यांकन के अन्तर्गत आता है।

इसी प्रकार अभीष्ट पाठ्यचर्या और क्रियात्मक पाठ्यचर्या में भी अंतर हो सकते हैं। अभीष्ट पाठ्यचर्या, पाठ्यचर्या प्रलेख में निर्धारणों का उल्लेख है जिनमें पाठ्यचर्या की क्रियात्मक तथा मूल्यांकन पद्धतियाँ शामिल हैं। क्रियात्मक पाठ्यचर्या में कक्षा के वास्तविक प्रक्रम का संकेत है जिनके माध्यम से अभीष्ट पाठ्यचर्या का कार्य सम्पादित किया जाता है। अतः क्या अभीष्ट (desirable) है और क्या कार्यान्वित किया जाता है (actually implemented) इसमें अंतर हो सकता है। इस अंतर को कम करने और स्वीकृति के उचित स्तर तक लाने के लिए पाठ्यचर्या का मूल्यांकन पुनः सहायक होगा। ये कुछ उदाहरण पाठ्यचर्या के विकास के दौरान पुनरीक्षण, प्रबंध तथा पाठ्यचर्या कार्यान्वयन के एक अभिन्न अंग के रूप में पाठ्यचर्या के मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

पाठ्यचर्या मूल्यांकन लाभ/महत्त्व (Advantages/Importance of Curriculum Evaluations)

प्रायः यह प्रश्न उठता है कि पाठ्यचर्या के मूल्यांकन की क्यों आवश्यकता पड़ती है ? इस प्रश्न का व्यावसायिक उत्तर तो विद्यार्थी के अधिगम में सुधार और इस प्रकार शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार पर बल देना है, परंतु पाठ्यचर्या का मूल्यांकन और भी कई कारणों से महत्त्वपूर्ण है जिन्हें हम इसके लाभ भी कह सकते हैं। पाठ्यचर्या मूल्यांकन के कुछ मुख्य प्रयोजन निम्न हैं-

1. नई पाठ्यचर्या का विकास (Development of New Curriculum) – यदि हम माध्यमिक स्तर पर एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम के लिए एक नई पाठ्यचर्या का विकास करना चाहते हैं तो एक भिन्न प्रणाली द्वारा वर्तमान पाठ्यचर्या का मूल्यांकन आज की वर्तमान उभरती आवश्यकता के अनुरूप होगा। इसके लिए सामान्यतः तो यह किया जा सकता है कि विद्यमान पाठ्यचर्या को आज की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिए उसमें काट-छांट की जाए क्योंकि बहुधा योजना प्रक्रम में निर्णय बिल्कुल मनमाने ढंग के होते हैं। इस प्रक्रिया में पाठ्यचर्या के बोझिल होने का खतरा भी उत्पन्न हो जाता है। अतः, नई पाठ्यचर्या के विकास पर वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने के लिए विद्यमान पाठ्यचर्या का मूल्यांकन करना आवश्यक है।

2. कार्यान्वयन के अन्तर्गत पाठ्यचर्या की समीक्षा/ पुनरीक्षण (Review of Curriculum while Implementation)- पाठ्यचर्या के कार्यान्वयन के दौरान इसके आयोजकों व विषय विशेषज्ञों से तुरंत प्रतिपुष्टि मांगी जाती है। अतः, इस प्रतिपुष्टि की आवश्यकता हेतु भी उन्हें पाठ्यचर्या का मूल्यांकन करना पड़ता है ताकि सभी सम्बद्ध उद्देश्यों की प्रभावी प्राप्ति के लिए आवश्यक हो तो उनमें संशोधन किए जा सके।

3. निष्क्रिय सामग्री को हटाना और विद्यमान पाठ्यचर्या को अद्यतन करना (Removing Passive Content and Updating Existing Curriculum) – एक बार पाठ्यचर्या के निर्माण व विकास के बाद जब उसे क्रियान्वित किया जाता है तो विभिन्न लोगों से इसकी प्रतिपुष्टि ली जाती है तत्पश्चात् यह भी आवश्यक हो जाता है कि पाठ्यचर्या से अव्यवहृत व असार्थक विचारों और प्रक्रियाओं को हटाया जाए और पाठ्यचर्या में प्रचलित समसामयिक परिवर्द्धन शामिल किए जाएँ। अतः, विषय-वस्तु अथवा प्रक्रियाओं को सम्मिलित करने अथवा विलोपन के बारे में वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने के लिए भी पाठ्यचर्या मूल्यांकन प्रयोग आवश्यक होता है।

4. पाठ्यचर्या मूल्यांकन द्वारा छात्रों के अपेक्षित व व्यवहारगत परिवर्तनों में बदलाव को जानना ( Knowing the Change between Expected and Desirable Behavioural Outcomes by Curriculum Valuation)— पाठ्यचर्या के मूल्यांकन द्वारा विद्यार्थियों से अपेक्षित तथा उनमें हो चुके व्यवहारगत परिवर्तनों की तुलना हो जाती है। इसके अभाव में यह नहीं कहा जा सकता है कि उद्देश्यों की पूर्ति हुई है अथवा नहीं तथा यदि हुई भी है तो किस अंश अथवा सीमा तक। इससे यह भी पता चलता है कि ज्ञान, अवबोध, कौशल, मूल्य, अभिवृत्ति आदि सम्बन्धी उद्देश्य कहाँ तक पूर्ण हो सके हैं।

5. भावी उपयोगी निर्देशन हेतु (For Future useful Guidance)– पाठ्यचर्या की प्रक्रिया सतत चलती रहती है। वृत्त वस्तु पर अंकित बिन्दुओं के समान उसके क्रमिक सोपान एक-दूसरे के बाद आते चले जाते हैं। इस दृष्टि से मूल्यांकन भावी कार्य के लिए उपयोगी निर्देश देता है मूल्यांकन के आधार पर ही निर्णय लिया जा सकता है कि जो कुछ प्राप्त हो चुका है उसे कैसे आगे बढ़ाया जाए तथा जिसकी प्राप्ति नहीं हो सकी है उसके लिए किस प्रकार के परिवर्तन किए जाएँ।

6. पाठ्यचर्या की प्रभावशीलता मालूम करना (To Know the Effectiveness of Curriculum)- किसी भी पाठ्यचर्या की प्रभावशीलता का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करने के लिए उसके शीघ्र तथा दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति के सन्दर्भ में, पाठ्यचर्या के मूल्यांकन का प्रयोग आवश्यक होगा यह मूल्यांकन प्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के मूल्यांकन से भिन्न है। अंतर यह है कि पाठ्यचर्या का मूल्यांकन अधिक व्यापक है और इसमें विद्यार्थी मूल्यांकन के अतिरिक्त विद्यार्थियों में पाठ्यचर्या के विभिन्न अंगों की उपयुक्तता के सम्बन्ध में निर्मित भावनाएँ भी शामिल हैं।

उपर्युक्त बिन्दुओं के विवेचन से स्पष्ट है कि पाठ्यचर्या मूल्यांकन, अध्यापकों और निर्णयकर्ताओं की पाठ्यचर्या तथा इसके विकास और कार्यान्वयन पर वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने में सहायता कर सकता है निःसन्देह यह किसी पाठ्यचर्या मूल्यांकन कार्य का मुख्य उद्देश्य है मूल्यांकन के परिणामों का प्रयोग भावी शैक्षिक प्रयास को उन्नत करने में किया जा सकता है अन्यथा पाठ्यचर्या मूल्यांकन के किसी प्रयोग का कोई अर्थ नहीं है । प्रशासकों नीति निर्माताओं, अध्यापकों, माता-पिता तथा उन विद्यार्थियों द्वारा भी यदि किसी स्कूली पाठ्यचर्या को कार्यान्वित किया जा रहा है तो उनके पास इसे उत्तरदायी बनाने के काफी कारण हैं। यह केवल पाठ्यचर्या की मूल्यांकन प्रक्रिया है जो पाठ्यचर्या के कार्यान्वयन के स्तर पर शीघ्र प्रतिपुष्टि प्रदान कर सकती है। इसलिए इन कारणों से पाठ्यचर्या मूल्यांकन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण बन जाती है।

इसके साथ ही यदि किसी को पाठ्यचर्या योजना अर्थात् अनुशासन की आवश्यकताएँ विद्यार्थियों की जरूरतें, संस्थागत मांगें, सामाजिक तथा शैक्षिक वातावरण पर विभिन्न विचारों के अनुसार एक पाठ्यचर्या की योजना तैयार करनी है तो उसे समस्त आवश्यकताओं का विश्लेषण करना होगा जिसे एक पाठ्यचर्या मूल्यांकन की प्रक्रिया द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है। पाठ्यचर्या की समाप्ति के बाद छात्र जो रोजगार व कार्य करने में समर्थ होंगे, पाठ्यचर्या आयोजन उनका सावधानीपूर्वक विश्लेषण करेंगे और इस प्रकार उन्हें पाठ्यचर्या के वांछित उत्पाद के निर्देशनों को सूचीबद्ध करने में मदद मिलेगी। विद्यार्थियों द्वारा पाठ्यचर्या के समाप्त होने पर उनको इस परिचालन के लिए दिया जाएगा तो इस सन्दर्भ में भी पाठ्यचर्या मूल्यांकन प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण है।

पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया में भी पाठ्यचर्या की विकासात्मक परीक्षा एक आवश्यक कदम होता है जिसमें यह परीक्षा पाठ्यचर्या के सम्बन्ध में क्षेत्र से आवश्यक प्रतिपुष्टि एकत्र करने हेतु की जाती है। ऐसी सूचना का व्यवस्थित संकलन और प्रयोग कुछ और नहीं बल्कि सूक्ष्म प्रसंग में एक पाठ्यचर्या मूल्यांकन का प्रयोग ही है। यह प्रयोग भी पाठ्यचर्या विकास के समस्त प्रक्रम में महत्त्वपूर्ण है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि पाठ्यचर्या मूल्यांकन-प्रयोग, पाठ्यचर्या विकास और कार्यान्वयन आदि समस्त प्रक्रमों में बहुत महत्त्वपूर्ण है।

पाठ्यचर्या मूल्यांकन के स्रोत (Sources of Curriculum Evaluation)

ऐसे अनेक स्रोत हैं जहाँ से एक निर्दिष्ट स्कूल पाठ्यचर्या के बारे में सोद्देश्य सूचना एकत्र की जा सकती है। इनमें मुख्य स्रोतों का विवरण निम्नलिखित है-

1. विद्यार्थी (Student) – एक विशिष्ट पाठ्यक्रम के विद्यार्थी किसी भी पाठ्यचर्या के मूल्यांकन में अत्यधिक आवश्यक सूचना के ‘स्रोत हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि पाठ्यचर्या किस प्रकार प्रासंगिक है और किस प्रकार इसे क्रियान्वित किया जा सकता है। इस दिशा में विद्यार्थियों से वास्तव में अभीष्ट निर्गत विनिर्देशन प्राप्त किया जाता है व यह पता लगाया जाता है कि क्या उन्हें वास्तव में पाठ्यचर्या के उद्देश्यों की प्राप्ति हो गई है। यह सूचना प्रायः मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा संकलित की जाती है व इसका स्वरूप मात्रात्मक रहता है। इसी प्रकार विद्यार्थी द्वारा गुणात्मक सूचना भी इस सन्दर्भ में प्राप्त कर सकते हैं कि वे कहाँ तक पाठ्यचर्या के अभीष्ट उद्देश्यों को प्राप्त कर सके हैं क्योंकि विद्यार्थियों के ये अनुभव पाठ्यचर्या को संशोधित करने की दृष्टि से अधिक मूल्यवान है।

2. अध्यापक (Teacher)- पाठ्यचर्या का पुनरीक्षण (Review ) / मूल्यांकन स्कूल के अध्यापकों द्वारा किया जाना चाहिए फिर भी अन्य लोगों को भी इसमें सम्मिलित किया जा सकता है। शिक्षक इसलिए पाठ्यचर्या मूल्यांकन के अभिन्न भाग हैं क्योंकि वे ही कक्षा में पाठ्यचर्या को पढ़ाने का कार्य पूरा करते हैं। अतः वे पाठ्यचर्या के क्रियान्वयन के बारे में मूल्यवान सूचना दे सकते हैं। अतः, अध्यापक पाठ्यचर्या मूल्यांकन के बहुत महत्त्वपूर्ण अभिकर्ता हैं। इसके साथ ही वे अध्यापक भी जो वर्तमान में विषय को पढ़ा तो नहीं रहे हैं, परंतु जिन्हें विषय-वस्तु का पर्याप्त ज्ञान है तथा जिनके पास विशिष्ट पाठ्यचर्या की पृष्ठभूमि की सूचना है वे भी पाठ्यचर्या मूल्यांकन में सहायक हो सकते हैं। बस केवल एक शिक्षक के रूप में उनमें पाठ्यचर्या की समीक्षा के लिए अपेक्षित कौशल होना चाहिए।

3. विषय विशेषज्ञ (Subject Expert)- पाठ्यचर्या के कार्यान्वयन पर सन्तुलित सूचना विशेष रूप से अनुशासन के दृष्टिकोण से प्राप्त करने के लिए यह भी उचित होगा कि क्षेत्र में अन्य विषय के विशेषज्ञों के विचारों को भी संगत और विश्वसनीय समझकर उन पर विचार किया जाए विषय विशेषज्ञ अन्य वर्गों; जैसे—क्षेत्र में कार्यरत अथवा स्व-नियोजित (Self employed) व्यक्ति हैं। अतः, वे क्षेत्रीय परिस्थितियों के बारे में बहुमूल्य सूचना देंगे जो पाठ्यचर्या मूल्यांकन की दृष्टि से अत्यधिक मूल्यवान होगी।

4. पाठ्यचर्या विशेषज्ञ (Curriculum Expert) – पाठ्यचर्या विशेषज्ञ पाठ्यचर्या के विकास हेतु प्रयुक्त आधुनिक तकनीक के बारे में सूचना दे सकते हैं जो विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी हो सकती है। तार संचार की भाषा को पाठ्यक्रम की विषय वस्तु के बिन्दुओं को संकलित करने की युग पुरानी प्रथा अप्रचलित हो चुकी है। एक सोउद्देश्य पाठ्यचर्या में निर्गत विनिर्देशनों को स्पष्ट किया जाता है अर्थात् पाठ्यचर्या में यह ‘स्पष्ट किया जाता है कि पाठ्यक्रम के अन्त तक विद्यार्थी क्या करने योग्य होंगे ? किन परिस्थितियों में उन्हें आचरण करना होगा ? और त्रुटियों की स्वीकृति का सन्तुलन क्या होगा ?. पाठ्यचर्या विशेषज्ञों ने तब से अब तक बहुत उपयोगी कार्य किया है और पाठ्यचर्या मूल्यांकन में उनकी सहायता अत्यन्त उपयोगी है। अतः पाठ्यचर्या विशेषज्ञ पाठ्यचर्या मूल्यांकन के लिए सूचना के अच्छे स्रोत हैं।

5. नीति निर्माता (Policy Makers)- शीर्ष निकायों; जैसे—केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी. बी. एस. ई.); राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद् (एन. सी. ई. आर. टी.), राष्ट्रीय ओपन स्कूल (एन. ओ. एस.) माध्यमिक शिक्षा राज्य बोर्ड में उत्तरदायी स्थानों पर प्रतिष्ठित नीति निर्माता भी पाठ्यचर्या मूल्यांकन के लिए सूचना के श्रेष्ठ स्रोत हैं। अपने पदों के कारण वे अर्थव्यवस्था, उद्योग, कृषि व शिक्षा के बारे में सरकारी नीतियों के वर्तमान तथा सम्भावित परिवर्तनों की उनको अच्छी जानकारी होती है। स्कूल की पाठ्यचर्या से इन सभी क्षेत्रों का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सम्बन्ध निहितार्थ है। हाल के पिछले समय के कुछेक दृष्टान्त सामने आये हैं कि राज्य में सरकारों के बदलने की घटनाएँ इतिहास व विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों में विशिष्ट परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी हुईं। इसलिए नीति निर्माता पाठ्यचर्या मूल्यांकन के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

6. समुदाय (Community) – स्थानीय समुदाय जिसमें एक विशिष्ट पाठ्यक्रम के शिक्षित व्यक्ति (प्रोडक्ट) (शिक्षित/प्रशिक्षित) को नियोजित किया जाता है, पाठ्यचर्या मूल्यांकन के लिए सूचना का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकता है। स्थानीय समुदाय की आवश्यकताएँ पाठ्यचर्या को संगत तथा आवश्यकता आधारित अथवा अन्यथा बना सकती हैं। समुदाय की आवश्यकताओं व अपेक्षाओं के आधार पर एक संशोधित पाठ्यचर्या सामाजीकृत और उत्तरदायी नागरिक उत्पन्न कर समुदाय के उद्देश्य को बेहतर प्राप्ति करेगी।

7. विरत छात्र (Drop Out Student)- वे विद्यार्थी जो एक विशिष्ट पाठ्यक्रम छोड़ चुके हैं अब भी पाठ्यचर्या मूल्यांकन के लिए बहुमूल्य स्रोत बन सकते हैं। यह विद्यार्थी पाठ्यचर्या के उन कारकों की ओर संकेत कर सकते हैं जो उनके द्वारा पाठ्यक्रम को छोड़ देने के लिए उत्तरदायी बने। इन विरत छात्रों के लिए एक निदानकारी परीक्षा के आयोजन से वर्तमान पाठ्यचर्या द्वारा उत्पन्न भ्रान्ति के बारे में मूल्यवान सूचना प्राप्त हो सकती है। यह प्रतिपुष्टि पाठ्यचर्या को संशोधित करने तथा सुधारने में सहायक होगी।

8. नियोजक तथा उद्यमी (Manager and Entrepreneure)- नियोजकों का मत है। कि जिन्हें अपनी जरूरत के अनुसार शिक्षित व्यक्ति (प्रोडक्ट) को नियोजित करना पड़ता. है, पाठ्यचर्या की क्षमताओं व कमजोरियों पर प्रकाश डालेगा। वे जो स्वनियोजित हैं चाहे असंगठित सेवा क्षेत्र में हों, एक विशिष्ट पाठ्यचर्या की क्षमताओं व कमजोरियों पर बहुत उपयोगी सूचना प्रदान कर सकते हैं। ऐसी सूचना पाठ्यचर्या को सामाजिक तौर पर संगत और उपयोगी बनाने में सहायक होगी।

आंकलन व मूल्यांकन (Assessment And Evaluation)

आंकलन व मूल्यांकन के सम्बन्ध में तथा आंकलन परीक्षण और मूल्यांकन से सम्बन्धित अन्य पदों के सम्बन्ध में काफी भ्रम है। आज हर कोई इस बात चिन्तित है कि ‘कोई ‘बच्चा पीछे न छूट जाए’ (No Child Left Behind ) इस बात ने भी आंकलन परीक्षण और मूल्यांकन को महत्त्वपूर्ण विषय बना दिया है।

आंकलन वह सूचना है जो शिक्षा देने के लिए अध्यापक और छात्र द्वारा संकलित की है जाती है, जबकि मूल्यांकन, इकाई (Unit) के अन्त में अध्यापक द्वारा किसी उपकरण का प्रयोग कर छात्र का स्थान निर्धारण करना है जिससे इस सूचना का प्रयोग तुलना या छात्रों की छँटनी के लिए किया जा सके। आंकलन, अधिगम की क्रिया में छात्र और अध्यापक के लिए है, जबकि मूल्यांकन प्रायः अन्य लोगों के लिए है।

“Assessment is for the student and the teacher in the act of learning while evalution is usually for others.”

यदि गणित के अध्यापकों को अपने प्रयास कक्षा के आंकलन पर केन्द्रित करने थे तो वह मुख्यतः संरचनात्मक प्रकृति है और इसमें विद्यार्थियों का शैक्षिक लाभ प्रभावकारी होगा। इन प्रयासों में कक्षा में प्रश्न और चर्चा के माध्यम से विभिन्न आंकलन कार्यों का प्रयोग कर प्रदत्तों का संकलन सम्मिलित होगा और मुख्यतः विद्यार्थी क्या जानते और समझते हैं पर ध्यान दिया जाएगा।

आंकलन बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह शिक्षा का अभिन्न अंग है। दुर्भाग्यवश मूल्यांकन की मांगों के कारण इसमें बाधा पड़ती या रुकावट आती है। मूल्यांकन की सबसे बड़ी मांग ग्रेडिंग (Grading) या रिपोर्ट कार्ड है। वास्तव में उसके साथ समस्या नहीं होनी चाहिए थी सिवाय इसके कि परम्परागत रूप में मूल्यांकन (ग्रेड) का निर्धारण केवल छात्र के आंकिक औसत की गणना से होता है जो कागज और पेन्सिल पर उसके आंकलन से किया जाता है जिसे परीक्षण कहते हैं।

सर्वाधिक अनुभवी अध्यापक यह कहेंगे कि वे अपने छात्रों को वे क्या जानते हैं, विभिन्न परिस्थितियों में कैसा निष्पादन करते हैं और उसके विभिन्न स्तरों पर कौशल की क्या उपलब्धि है, के परिप्रेक्ष्य में भली प्रकार जानते हैं। दुर्भाग्यवश जब ग्रेड प्रदान करने का समय आता है तब वे अपने इस धनी खजाने को उपेक्षित कर देते हैं और परीक्षण के अंकों तथा कठोर औसतांकों पर विश्वास करते हैं जो सम्पूर्ण कहानी का एक लघु भाग है ।

वेन डी वाले और लेविन (Wan de Walle and Lavin, 2006) के अनुसार- “The myth of grading by statistical number crunching is so firmly ingrained in schoolding atall levels that you may find it hard to abandon. But it is unfair to students to parents, and as the teacher to ignore all of the information you get almost daily froma problem based approach in favour of a handful of numbers based on tests that usually focus on low level skills.”

इस समस्या का कारण यह है कि विद्यार्थी यह सीख जाते हैं कि क्या मूल्यवान है और उन्हीं वस्तुओं के लिए प्रयत्न करते हैं। यदि यूनिट के अन्त में परीक्षण (Tests) आपका ग्रेड निर्धारित करते हैं, तो अनुमान लगाइए कि बच्चे क्या अच्छा करना चाहेंगे, या यूनिट के अन्त में परीक्षण में? आप तमाम अच्छी और महान् क्रियाएँ कर सकते हैं, पर यदि परीक्षण के परिणाम को ही हर कोई मूल्यवान मानता है- अध्यापक, विद्यार्थी और अभिभावक तो आप क्या करेंगे?

हमें अच्छा करने के लिए अपने द्वारा नित्यप्रति की जाने वाली क्रियाओं को महत्त्व देना चाहिए और यह सीखना चाहिए कि उन्हें आंकलन और मूल्यांकन दोनों के लिए कैसे प्रयोग किया जाए।

यह एक आसान कार्य नहीं है। हम जो कुछ कर रहे हैं यह उससे बहुत भिन्न हैं हम पढ़ाने और आंकलन करने के अभ्यस्त हैं। वास्तव में पढ़ाने और आंकलन के मध्य रेखा बहुत धुंधली है (WCTM, 2000)। रुचिकर सत्य यह है कि कुछ भाषाओं में अधिगम (Learning) और अध्यापन (Teaching) एक ही शब्द हैं (Fosnot and Dolla)| आवश्यकता इस बात की है कि हम नित्यप्रति के आधार पर आंकलन करें जिससे हमें यह चयन करने की सूचना प्राप्त हो कि हमें अगले दिन क्या पढ़ाना है? यदि हम पूरी यूनिट पढ़ाते हैं और यह जानने के लिए कि बालक क्या जानता है, यूनिट के अन्त में टेस्ट की प्रतीक्षा करते हैं, तो हम अप्रसन्न रूप में आश्चर्यचकित होंगे। दूसरी ओर यदि हम नित्यप्रति के आधार पर पूरी यूनिट की अवधि में आंकलन करते हैं तो हमें अंतिम मूल्यांकन के लिए इन सभी आंकलनों का औसत ज्ञात नहीं करना पड़ेगा वरन् उस अंतिम मूल्यांकन के लिए हमें अति तात्कालिक आंकलन का प्रयोग करना पड़ेगा। इस प्रकार हम उस छात्र को दण्डित नहीं करेंगे जो यूनिट के प्रारम्भ में कुछ नहीं जानता और सीखने के लिए वास्तव में परिश्रम करता है, जो आप अनुभव करेंगे कि एक महान विचार है। अतः, इस प्रकार आप यूनिट के अन्त में उसका निर्धारण (Rate) वहाँ करते हैं जहाँ वे हैं। यह, जहाँ वे निष्पादन कर रहे हैं उसका अधिक सही मूल्यांकन करते हैं।

सार रूप में नम्बर आबंटित करना मापन है, नम्बर + नम्बरों को अर्थ प्रदान करना आंकलन का उदाहरण है और अन्त में नम्बर + नम्बरों के अर्थ के साथ मूल्य निर्णय मूल्यांकन का उदाहरण है।

अंक (Marks)                           =        मापन

अंक + अंकों का अर्थ                   =       आंकलन

अंक + अंकों का अर्थ + मूल्यनिर्णय =        मूल्यांकन

पर व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए हम आंकलन शब्द का प्रयोग मूल्यांकन के रूप में करते हैं क्योंकि पद आंकलन के बहुविधा (Multiple) अर्थ हैं जैसे—

  • यह मापन और परीक्षण है;
  • यह मूल्यांकन है;
  • यह व्यक्तिगत कठिनाई का निदान करने में सहायक होता है; और
  • यह विद्यार्थी के निष्पादन पर सूचना एकत्रित करने की प्रक्रिया है।

पाठ्यचर्या का विभिन्न चरणों में आंकलन (Assessment of Curriculum in Various steps)

पूर्व प्राथमिक शिक्षा व प्राथमिक चरण की कक्षा 1 एवं 2 इस स्तर पर आंकलन में विभिन्न क्षेत्रों में बच्चों की गतिविधियों पर दिए गए गुणात्मक कथन होने चाहिए और उनके स्वास्थ्य व शारीरिक विकास का आंकलन होना चाहिए। यह आंकलन रोजमर्रा की अन्तःक्रियाओं के दौरान किए गए अवलोकनों पर आधारित होने चाहिए। किसी भी कारणवश लिखित या मौखिक परीक्षा नहीं होनी चाहिए।

प्राथमिक चरण की कक्षा 3 से 8 तक में कई तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें मौखिक व लिखित परीक्षा एवं अवलोकन शामिल है। बच्चों को यह पता होना चाहिए कि उनका आंकलन किया जा रहा है पर उसको उनकी शैक्षणिक प्रक्रिया के भाग की तरह प्रस्तुत करना चाहिए न कि डरावनी धमकी की तरह । इस चरण में उपलब्धि के लिए दिए गए अंक व गुणात्मक कथन उन क्षेत्रों के लिए बहुत जरूरी हैं जिन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है कक्षा 5 के बच्चों के स्व-मूल्यांकन को रिपोर्ट कार्ड में शामिल किया जा सकता है। बड़ी-बड़ी मासिक व वार्षिक परीक्षाओं की जगह समय-समय छोटी-छोटी परीक्षाएँ होनी चाहिए। ऐसी परीक्षाएँ जिनमें परीक्षण का आधार मानदण्ड हो, कक्षा 7 से सत्रीय परीक्षाएँ शुरू होनी चाहिए। जब बच्चे ज्यादा बड़े हिस्से पढ़ने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार हों और उत्तरों पर काम करते हुए कुछ घंटे बिताने लायक हो जाएँ। रिपोर्ट कार्ड में फिर से स्वास्थ्य व पोषण पर सामान्य टिप्पणियाँ देने के साथ-साथ शिक्षार्थी के समग्र विकास पर विशिष्ट टिप्पणियाँ हों और माता-पिता के लिए सुझाव हो।

माध्यमिक व उच्च माध्यमिक चरणों में कक्षा 9 से 12 पाठ्यचर्या के ज्ञान आधारित क्षेत्रों के लिए आंकलन, परीक्षाओं, परियोजनाओं की रिपोर्ट पर आधारित हो सकता है और साथ में शिक्षार्थी का स्व आंकलन भी शामिल हो। बाकी विषयों का आंकलन अवलोकन एवं स्व मूल्यांकन द्वारा किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में विद्यार्थियों के विभिन्न कौशलों/ज्ञान के क्षेत्रों व प्रतिशतांकों के बारे में अधिक विश्लेषण हो। यह बच्चों को उन विषयों को समझने में मदद करेगा जिन पर उन्हें ध्यान देना चाहिए और उनके आगे के विकल्प चयन की प्रक्रिया के लिए एक आधार भी देगा।

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shubham yadav

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