भारत में आतंकवाद की समस्या (Problem of Terrorism in India)
भारत में कुछ राज्यों जैसे मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा एवं मणिपुर में स्वतन्त्रता के तुरन्त बाद ही आतंकवाद की घटनाएँ आरम्भ हो गयी और कुछ राज्यों में जैसे बंगाल, बिहार एवं आन्ध्र प्रदेश आदि में कुछ समय बाद आतंकवाद की घटनाएँ आरम्भ हो गई। वर्तमान समय में भारत के अधिकांश राज्य आतंकवाद का पर्याय बन चुके हैं। भारत में आतंकवाद की समस्या मुख्य रूप से पंजाब एवं कश्मीर के आतंकवाद से स्पष्ट होती है।
सन् 1971 में भारत एवं पाकिस्तान का युद्ध हुआ जिसमें पाकिस्तान को शर्मनाक हार मिली और पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग करके एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण हुआ। पाकिस्तान सरकार का निरन्तर यह प्रयत्न बना रहा कि जिस प्रकार पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कर दिया गया है उसी प्रकार भारत से भी उसके महत्वपूर्ण हिस्सों को अलग कर दिया जाना चाहिए। सैनिक शक्ति की सहायता से ऐसा करना सम्भव नहीं था। अत: पाकिस्तान ने एक योजनाबद्ध तरीके से धर्म के नाम पर पंजाब तथा कश्मीर को भारत में पृथक करने का प्रयत्न किया जाने लगा। पंजाब का आतंकवाद पाकिस्तान की इसी राजनीतिक महात्वाकांक्षा का परिणाम था। पंजाब में आतंकवाद की शुरूआत 1981 से हुई और पंजाब को एक अलग राष्ट्र खालिस्तान के रूप में मांग की जाने लगी। यहीं से पंजाब में हिंसक आतंकवाद का प्रारम्भ हो गया। आतंकवादी संगठनों ने पाकिस्तान द्वारा स्थापित प्रशिक्षण कैम्पों शस्त्र एवं विस्फोटक पदार्थ हासिल करके राज्य में हिंसक घटनाएँ आरम्भ कर दी। आतंकवाद का विरोध करने वालों की सामूहिक रूप से हत्या कर दी जाती थी। सन् 1984 तक यह आतंकवाद इतनी खतरनाक स्थिति में पहुँच गया कि अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मन्दिर को आतंकवादियों ने अपने किले के रूप में प्रयुक्त करना आरम्भ कर दिया है। इस प्रकार आज भारत में आतंकवाद की स्थिति इतनी गम्भीर हो चुकी है जिसका समाधान आसान नहीं दिखता है। इस स्थिति से निपटने के लिए तत्कालीन सरकार आसान नहीं दिखता है। इस स्थिति से निपटने के लिए तत्कालीन सरकार को सेना की सहायता से स्वर्ण मन्दिर आतंकवादियों से मुक्त कराने के लिए बाध्य होना पड़ा। उस समय स्थिति यह हो गयी थी कि यदि तुरन्त आंतकवादियों के लिए कठोर कार्यवाही न की गई होती तो एक दिन पूरा पंजाब आतंकवादियों का गुलाम हो गया होता। कश्मीर का आतंकवाद राज्य समर्थित धार्मिक आतंकवाद की एक जीती जागती तस्वीर है। कश्मीर आज आतंकवाद के कारण एक ऐसी स्थिति में पहुँच गया है जहाँ गोलियों की आवाजें और विस्फोट के धमाके जन-जीवन का एक सामान्य हिस्सा बन चुके है। आरम्भ में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के कुछ प्रमुख मुस्लिम नेताओं को इस बात के लिए तैयार किया गया कि वे कश्मीर को भारत से अलग करके कश्मीर को एक स्वतन्त्र मुस्लिम राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की माँग करें। जब ऐसी माँग कुछ जोर पकड़ने लगी तो कश्मीर में जे. के. एल. एफ. (जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट) नाम से एक संगठन तैयार किया गया जिसका काम पड़ोस के देशों से हथियार और गोला-बारूद प्राप्त करके घाटी में तनाव और भय का वातावरण पैदा करना था। वर्तमान स्थिति यह है कि आज कश्मीर में अनेक आतकवादी संगठन सक्रिय हैं जिनमें जे० के० एल० एफ० के अतिरिक्त हिजबुल मुजाहिद्दीन, लश्करे तोइबा, जैश-ए मोहम्मद जमायत-उल-मुजाहिद्दीन, अल बदर अल-उमर-मुजाहिद्दीन तथा हरकत-उल-मुजाहिद्दीन प्रमुख हैं। प्रेस गिल्ड ऑफ इण्डिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि केवल सन् 1988 और 1991 के बीच ही लगभग दो लाख हिन्दुओं को इस चढ़ते हुए आतंकवाद के कारण कश्मीर से पलायन करना पड़ा। आज कश्मीर में केवल हिजबुल मुजाहिद्दीन संगठन के सदस्यों की संख्या ही 15,000 से अधिक है। कश्मीर के मुसलमान यह मानने लगे है कि सेना द्वारा मुसलमानों को अकारण परेशान किया जा रहा है। दूसरी ओर, घाटी में न तो हथियारों की कोई कमी है और न ही उनका उपयोग करने के लिए कुण्ठित और बेरोजगार युवाओं की कमी है। भारत में आतंकवाद का सबसे चरम रूप तब सामने आया जब 13 दिसम्बर, 2001 को दिल्ली में संसद भवन की ही एक आत्मघाती दस्ते द्वारा ध्वस्त करने की कोशिश की गयी।
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