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अपराध के प्रमुख सिद्धान्त
अपराध समाज की भांति शाश्वत व सार्वभौमिक है। अपराध क्यों होता है, इसकी खोज अनेक • विचारकों ने की है। उन्होंने अपराध के अनेक कारणों का पता लगाया है। इनमें से कुछ कारणों को अत्यधिक महत्व देने के कारण सम्प्रदाय के रूप में इनका विकास हुआ है। उन्हें अपराधशास्त्र के सम्प्रदाय (Schools of Crime) कहा जाता है। इनके अन्तर्गत अपराध के कारणों तथा उनके नियन्त्रण व निराकरण का व्यवस्थित विवेचन मिलता है। पिछली दो शताब्दियों में जिन अपराध के सम्प्रदायों का विकास हुआ है उनमें से कुछ सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. शास्त्रीय सम्प्रदाय (Classical Theory or School),
2. भौगोलिक सम्प्रदाय (Ecological or Geographical School),
3. समाजवादी सम्प्रदाय (Socialistic School),
4. प्रारूपवादी सम्प्रदाय (Typological School),
5. समाजशास्त्रीय सम्प्रदाय (Sociological School),
6. मैक्रो समाजशास्त्रीय सिद्धान्त (Macro Sociological Theory),
7. माइक्रो समाजशास्त्रीय सिद्धान्त (Micro Sociological Theory),
8. बहुकारक सिद्धान्त (Multiple Cause Theory ) ।
1 शास्त्रीय सम्प्रदाय (Classical Theory or School),
शास्त्रीय सम्प्रदाय का विकास 19वीं सदी में इंग्लैण्ड में हुआ। इसके प्रतिपादकों में बेन्थम और बेकेरिया प्रमुख माने जाते हैं। इस सिद्धान्त का आधार सुखवादी मनोविज्ञान है जिसके अनुसार व्यक्ति का व्यवहार सुख तथा दुःख से परिचालित और नियन्त्रित होता है। जिन कार्यों में दुःख की अपेक्षा सुख अधिक मिलने की आशा होती है वे कार्य व्यक्ति स्वेच्छा से स्वतः करता है और इसके विपरीत स्थिति होती है तो . व्यक्ति उस काम को नहीं करता। संक्षेप में अपराध के कारण को स्पष्ट करते हुए इस सिद्धान्त में यह कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी स्वतन्त्र इच्छा होती है। वह हर कार्य के सम्बन्ध में सुख-दुख के आधार पर निर्णय लेता है और सुख की खोज में अपराध करता है।
आलोचना यह निम्न प्रकार है
1. यह नहीं माना जा सकता है कि सभी अपराधी सुख-दुःख या हानि-लाभ का हिसाब लगाकर अपराध करते हैं। कई अपराध उत्तेजना या आवेगवश भी किये जाते हैं।
2. अपराध में अपराधी इरादा महत्वपूर्ण है, किन्तु इस सिद्धान्त में उसकी उपेक्षा हुई है।
3. सभी अपराधियों को एक सा दण्ड देना उचित नहीं। बच्चों व सिद्धहस्त अपराधियों में भेद करना चाहिए।
4. यह सिद्धान्त अव्यावहारिक और हानिकारक है। प्रश्न 3 भौगोलिक सम्प्रदाय से आप क्या समझते हैं ?
2. भौगोलिक सम्प्रदाय (Ecological or Geographical School),
अपराध का दूसरा सम्प्रदाय भौगोलिक सम्प्रदाय है। इसे आजकल इकोलाजिकल सम्प्रदाय कहा जाता है। इस सम्प्रदाय के अनेक समर्थकों में क्वेटलेट व ग्वैरी प्रमुख हैं। कई विद्वानों ने इंग्लैण्ड और जर्मनी में भी इस सिद्धान्त के अनुसार भौगोलिक परिस्थिति व कारण के आधार पर अपराध और अपराध की दर को स्पष्ट किया है। क्वेटलेट यह मानते थे कि व्यक्ति के प्रति हिंसात्मक अपराध गर्म देशों में तथा सम्पत्ति विषयक अपराध ठण्डे प्रदेशों में अधिक होते हैं। खुले वातावरण और विरल आबादी के क्षेत्र में अपराध कम होते हैं किन्तु घनी आबादी और शहरों के केन्द्र के आसपास अपराध अधिक होते हैं। “माण्टेस्क्यू ने बताया कि भूमध्य रेखा के पास अपराध की संख्या बढ़ती है और उससे दूर अपराध की संख्या में कमी होती है।
आलोचना अपराध में भौगोलिक कारण सहायक होता है किन्तु केवल भौगोलिक आधार पर अपराध के कारण की व्याख्या एकांगी एवं अति सरल व्याख्या है।
3. समाजवादी सम्प्रदाय (Socialistic School),
इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स व ऐंजिल आदि समाजवादी विचारक हैं। इनका यह विश्वास है कि अपराध का मुख्य कारण आर्थिक विषमता व वर्ग संघर्ष है। पूँजीवादी व्यवस्था में अपराध के ये दोनों ही कारण मिलते हैं और समाजवादी व्यवस्था में ये परिस्थितियाँ नहीं मिलती। इसीलिए पूंजीवादी व्यवस्था में अपराध अधिक होते हैं और समाजवादी व्यवस्था में अपराध की संख्या कम होती है।
आलोचना यद्यपि समाजवादी सिद्धान्त का आधार वैज्ञानिक अनुसंधान है फिर भी समाजवाद के अनुचित समर्थन के कारण निष्कर्ष पक्षपातपूर्ण हैं। आर्थिक कारक अपराध में प्रमुख महत्व रखते हैं किन्तु उन्हें एकमात्र नहीं माना जा सकता। यह सिद्धान्त अपराध के कारण की खोज के लिए नहीं बना था। इससे तो अप्रत्यक्ष रूप से अपराध की व्याख्या होती है। इसमें अपराध के अनेक कारकों की उपेक्षा हुई है। बाद के निबन्धों में कार्ल मार्क्स ने अपराध के अन्य कारकों को भी स्वीकार किया और सिद्धान्त की कमियो को एक सीमा तक दूर करने की कोशिश की।
4. प्रारूपवादी सम्प्रदाय (Typological School),
इस सिद्धान्त के अन्तर्गत अपराध के तीन मतों का विकास हुआ। इन तीनों मतों में यह बात स्वीकार की गई है कि अपराधी का एक अपना प्रकार या टाइप होता है। अपराधी व्यक्तित्व कुछ गुणों के आधार पर सामान्य व्यक्तित्व से अलग किये जा सकते हैं तथा ये गुण जन्मजात होते हैं। इस सिद्धान्त को मानने वाले पर्यावरण संबंधी कारकों को अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं मानते हैं। प्रारूपवादी सिद्धान्त में निम्नलिखित तीन मतों का समावेश है :
1. इटैलियन या लोम्ब्रासो का मत,
2. मानसिक परीक्षकों का मत,
3. मनोविश्लेषणवादी मत।
1. इटैलियन या लोम्ब्रासो का मत- इसके प्रमुख प्रतिपादक लोम्बासो है। इनके अन्य समर्थको में गैरफैलो और फेरी प्रमुख हैं। लोम्ब्रासो जब सेना में चिकित्सक थे तो उन्होंने यह देखा कि गोदना गोदने का स्वभाव से सम्बन्ध होता है। सभ्य व अनुशासन प्रिय सैनिकों का गोदना शिष्ट, श्लील और स्वस्थ मनोवृत्ति या रुचि का परिचायक था। इसके विपरीत उद्दण्ड व अनुशासनहीन सैनिकों का गोदना मंदाव अश्लील था।
आलोचना ये निम्नलिखित हैं-
(i) यह सम्प्रदाय अपराधी को जन्मजात मानता है। पर्यावरण के कारकों की उपेक्षा करता है।
(ii) अपराध एक सामाजिक धारणा है न कि जैवकीय जैसा ये विद्वान मानते हैं।
(iii) यह सिद्धान्त अपराध की अति सरल व्याख्या करता है और अपराध संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों को निरर्थक मानता है। इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता।
(iv) अपराधियों व गैर अपराधियों में तुलना सावधानी से नहीं की गई। लोम्ब्रासो अपराधियों की
जिस जंगली से तुलना करता है उस सम्बन्ध में लोम्बासों का ज्ञान बहुत कम था।
2. मानसिक परीक्षकों का सिद्धान्त जब लोम्ब्रासो का सिद्धान्त अस्वीकार हुआ तो उनके तक और विधियों का सहारा लेकर गोडार्ड आदि ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसमें अपराधी के कमजोर मस्तिष्क का व्यक्ति माना गया। इस सम्बन्ध में गोडार्ड के प्रमुख विचार इस प्रकार हैं-
(i) सभी मन्द बुद्धि के लोग अपराधी होते हैं क्योंकि ये न तो कानून को समझते हैं और न ही अपने कार्य के परिणाम को।
(ii) सभी अपराधी मस्तिष्क से दुर्बल होते हैं और साथ ही मस्तिष्क से दुर्बल सभी व्यक्ति अपराधी होते हैं।
(iii) मन्द बुद्धि वंशानुसंक्रमण से ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती है।
आलोचना ये निम्नलिखित हैं
1. सभी अपराधी मन्द बुद्धि होते हैं, यह नहीं माना जा सकता। अनेक अपराधी बहुत चतुर होत हैं। वे हमारी तमाम सावधानी और चतुराई पर पानी फेर कर आंखों में धूल झोंक कर अपराध में सफल होते हैं।
2. मन्द बुद्धि के व्यक्ति या तो घर पर अलग बन्द कर दिये जाते हैं या प्रायः पागलखानों में रखे जाते हैं। उन्हें अपराध के अवसर नहीं मिलते
3. अपराध में अपराधी इरादा प्रमुख हैं। मन्द बुद्धि व्यक्ति अपराधी इरादा बनाने में असमर्थ होते हैं।
3. मनोविश्लेषणवादी सिद्धान्त इस सिद्धान्त के प्रतिपादक फ्रायड और उनके साथी हैं। इसमे अपस्मार रोग, नैतिक विक्षिप्तता, अतृप्त कामनाएं, वासनाओं और संवेगात्मक अस्थिरता प्रमुख हैं। व्यक्ति अपनी इच्छाओं को अनेक सामाजिक मान्यताओं के कारण स्वाभाविक ढंग से सन्तुष्ट नहीं कर पाता। अतः उन्हें अनुचित व अस्वाभाविक ढंग से पूरा करने की कोशिश करता है। इससे अपराध होता है।
आलोचना मनोविश्लेषणवादी सिद्धान्त कुछ ही अपराधों को स्पष्ट करते हैं। अपराध की सामान्य व्याख्या के रूप में इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
5. समाजशास्त्रीय सम्प्रदाय (Sociological School),
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त अपराध के अन्य सिद्धान्तों से भिन्न है। अब तक के विवेचित अपराध के सिद्धान्त अपराधी व गैर-अपराधी में अन्तर व्यक्तिगत गुण व विशेषताओं के आधार पर करते हैं, जबकि समाजशास्त्री एक ही प्रकार की प्रक्रिया को सामान्य व अपराधी व्यवहार के लिए उत्तरदायी मानते हैं। सदरलैंड ने इसीलिए समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के सार पर प्रकाश डालते हुए लिखा है अर्थात् अपराध व सामाजिक व्यवहार के प्रेरक समान होते हैं। इसके अतिरिक्त इस सिद्धान्त की मान्यता है कि जो कुछ हम करते हैं उसमें हमारी दृष्टि दो बातों पर रहती है
1. उसका अर्थ दूसरों के लिए क्या होगा तथा
2. उनके साथ हमारे सम्बन्धों पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। समाजशास्त्रीय व्याख्या में जिन बातों पर बल दिया जाता है।
आलोचना इस सिद्धान्त में पर्यावरण को अनुचित महत्व दिया गया है जबकि हम यह जानते हैं कि अपराध के लिए पर्यावरण के साथ व्यक्ति की इच्छा का योग होना चाहिए नहीं तो अपराध नहीं होगा।
6. मैक्रो समाजशास्त्रीय सिद्धान्त (Macro Sociological Theory)
मैक्रो समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के अन्तर्गत चार सिद्धान्त आते हैं- 1. विसंगति (Anomie) 2. भेदक सामाजिक संगठन 3. सब-कल्चर सिद्धान्त, 4. निम्नवर्गीय कल्चर सिद्धान्त।
1. विसंगति (Anomie) का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार लोगों की आकाक्षाएं उनकी सफलता – विफलता संबंधी विचार संस्कृति के द्वारा निर्धारित होते हैं जैसे अमरीकन समाज में सफलता भौतिक दृष्टि से आंकी जाती है और सभी समूह सफलता की वही परिभाषा कहते हैं किन्तु अनेक प्रजातीय समूहों में अपनी आकांक्षाओं की संतुष्टि की क्षमता में बड़ा अन्तर होता है।
2. भेदक सामाजिक संगठन- भेदक संगति सिद्धान्त का सार यह है कि व्यक्ति अपराध करेगा। या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके साथियों में अपराधी प्रवृत्ति तथा अपराध विरोधी प्रवृत्ति के साथियों में संख्या किसकी अधिक है। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि एक समाज के अपराध की दर इस बात पर निर्भर करेगी कि वह समाज समूह के लोगों को अपराधी व गैर अपराधी लोगों से मिलना-जुलना कितना प्रोत्साहित या निरुत्साहित करता है। समूह
3. सब कल्चर सिद्धान्त (उप-संस्कृति सिद्धान्त) (Sub-culture Theory)- एल्बट कोहेन, ए० आर० लिण्डस्मिथ, के० एफ० शुसलर के अपराध सम्बन्धी सब-कल्चर के सिद्धान्त में श्रमिकों के पुरुष वर्ग के अपराध की व्याख्या की गई है। लेकिन इस सिद्धान्त के तर्क संस्कृति पर आधारित अपराधों के विषय में सामान्य रूप से लागू होते हैं। मर्टन के सिद्धान्त की तरह इस सिद्धान्त की यह मान्यता है कि अमरीकन समाज में हर सामाजिक स्थिति में पुरुष बहुत कुछ एक ही प्रकार के मापदण्डों से आंके जाते हैं तथा उनका आत्मसम्मान और औचित्य का भाव इन्हीं मापदण्डों से उनकी उपलब्धियों के आधार पर निर्णीत होता है, विशेषकर उस स्थिति में जब वह घर से बाहर स्कूल व्यावसायिक सन्दर्भ में दूसरे युवकों से प्रतिद्वन्द्विता करते हैं। या
4. निम्नवर्गीय कल्चर सिद्धान्त (Lower Class Culture and Focal Concern)- वाल्टर मिलर यह स्वीकार नहीं करते कि निम्न वर्ग के बच्चे मध्यमवर्गीय संस्कृति के विरुद्ध अपराधी उप संस्कृति का निर्माण करते हैं। इनकी तो यह मान्यता है कि निम्न वर्ग की संस्कृति जो निम्न वर्ग की पृष्ठभूमि में ही विकसित होती है अपराधी व्यवहार को जन्म देती है। संस्कृति में मिलर के अनुसार कुछ व्यक्तिगत गुणों तथा अनुभवों, जैसे- कष्ट, दृढ़ता, चुस्ती, आवेश, भाग्य व स्वतन्त्रता को महत्व मिलता है।
7. माइक्रो समाजशास्त्रीय सिद्धान्त (Micro Sociological Theory),
अभी ये सिद्धान्त विकसित हो रहे हैं, फिर भी अपराध को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण है। इन सिद्धान्तों का केन्द्रीय विषय उस अन्तः क्रियात्मक प्रक्रिया की खोज करना है जो अपराधों को जन्म देती है।
अन्य सिद्धान्त तो अपराधी को अध्ययन का विषय मानते हैं किन्तु ये सिद्धान्त अपराधी व अपराध के शिकार के सम्बन्धों को अपराध को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण मानते हैं । वुल्फ गैंग ने फिलाडेल्फिया में हत्या सम्बन्धी अध्ययन में अनुसंधान की यही शैली अपनाई गई है और उसमें बताया गया है कि अपराधी को आवेश दिलाने व आक्रामक बनाने में अपराध के शिकार का विशेष हाथ था। इस सिद्धान्त के दूसरे व अधिकांश अध्ययन ‘गिरोह अपराध’ से सम्बन्धित हैं।
8. बहुकारक सिद्धान्त (Multiple Cause Theory )
बहुकारक सिद्धान्त की यह मान्यता है कि अपराध के कई कारण होते हैं, जिनमें से एक प्रमुख होता है। यही दूसरे कारकों को सक्रिय करके अपराधी व्यवहार को जन्म देता है। इसलिए अपराध की जटिलता को कई कारकों के आधार पर स्पष्ट करना इस सिद्धान्त के विचारक प्रमुख मानते हैं। इस सिद्धान्त में यह भी स्वीकार किया जाता है कि अपराध अनेक बुराइयों के कारण पनपता है, जैसे मद्यपान, जैवकीय हीनता, माता-पिता के परस्पर प्यार में कमी, मनोविकारीय व्यक्तित्व आदि।
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