B.Ed./M.Ed.

समाजमिति का अर्थ | समाजमिति का महत्त्व | Sociometry in Hindi

समाजमिति का अर्थ
समाजमिति का अर्थ

समाजमिति का अर्थ (Meaning of Sociometry )

मोरेनो (Moreno) पहले समाजशात्री थे जिन्होंने विद्वानों का ध्यान समाजशास्त्र में समाजमिति की ओर आकर्षित किया। जेनिंग्स (Jenings) का कहना है, “सामान्य तौर पर यह पद्धति किसी विशेष अवसर पर किसी समूह के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट करने की विधि है।”

गणनात्मक विधि से गणना का पता लग जाता है, बाहर की बातों का स्पष्टीकरण हो जाता है। उदाहरणार्थ, गणना करने से यह स्पष्ट हो जायेगा कि देश में कितने व्यक्ति बेकार हैं; परन्तु वे क्यों बेकार हैं ? यह स्पष्ट नहीं हो सकेगा। इस आन्तरिक बात का पता लगाने के लिए समाजमिति का सहारा लेना पड़ता है।

इस दृष्टि से मोरेनो ने ऐसे पैमाने, कुछ ऐसे मापदण्ड बनाये जिनसे समाज की आन्तरिक प्रक्रियाओं का, रागद्वेष का केवल वर्णन ही न किया जा सके अपितु पैमानों से उसे नापा भी जा सके।

समाजमिति प्रणाली (Sociometric Technique) – यह विधि अधिमान व्यवस्था (Preferential System) पर आधारित है। उदाहरणार्थ, यदि हमें 5 विद्यार्थियों के मध्य प्रेम अथवा लोकप्रियता का पता लगाना है तो प्रत्येक विद्यार्थी को कागज की एक स्लिप दी जायेगी। और उनमें से तीन विद्यार्थियों को प्रथम, द्वितीय व तृतीय अधिमान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को लोकप्रिय माना जायेगा। रेखाचित्र को समाजचित्र (Sociogram) और सारणी को समाज-सारणी (Socio-Matrix) कहा जाता है।

समाजचित्र (Sociogram) – इस प्रकार यह स्पष्ट है कि समाजमिति द्वारा अनेक गुणात्मक तथ्यों का अध्ययन सम्भव है और इनको संख्यात्मक रूप दिया जा सकता है। जहाँ संख्यात्मक पद्धति असफल रहती है वहाँ समाजमिति सहायता करती है। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह विधि कष्टसाध्य है ।

आगे दी गई सारणी से पता चलता है कि A विद्यार्थी सबसे अधिक लोकप्रिय है और D विद्यार्थी सबसे कम ।

समाजचित्र

समाजचित्र

समाजमिति का महत्त्व (Importance of Sociometry)

समाजशास्त्रीय अनुसंधान में समाजमिति का महत्त्व निम्नलिखित है-

(1) समाजमिति प्रणाली किसी भी समस्या के कारणों का पता लगाने में उपयोगी है।

(2) सदस्यों के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्धों का पता लगाने में सक्षम विधि है।

(3) इस विधि द्वारा एक-दूसरे की प्राथमिकताओं का ज्ञान आसानी से हो सकता है।

(4) समाजमिति द्वारा सांस्कृतिक समृद्धि, यथार्थ आमदनी, सामाजिक क्रियाओं में सहभागिता की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

(5) पैमाना आदर्श प्रतिरूपों पर आधारित होने से माप उपयुक्त एवं उचित होती है।

समाजमिति प्रणाली और सम्बन्धों का प्रदर्शन (Presentation of Sociometry Method and Relations)

समाजमिति प्रणाली में समाजचित्र (Sociogram) और समाज-सारणी (Socio-Matrix ) दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इन दोनों के आधार पर अध्ययन किये जाने वाले समूह के सदस्यों के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्धों की रूपरेखा के बारे में पता लगा लिया जाता है। कुछ महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निम्नलिखित हो सकते हैं-

(1) एकपक्षीय प्राथमिकता (One Sided Preference) – यह वह स्थिति है, जब व्यक्तियों में एक-दूसरे को प्राथमिकता देता है परन्तु दूसरा उसे प्राथमिकता नहीं देता है।

(2) पारस्परिक प्राथमिकता (Mutual Preference) – यह वह स्थिति होती है, जब दो व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे को प्राथमिकता देते हैं।

(3) त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय प्राथमिकता (Triangular Preference)- जब दो व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे को प्रत्यक्ष तौर पर प्राथमिकता नहीं दे रहे होते हैं, किन्तु तीसरे या चौथे व्यक्तियों द्वारा दी गई प्राथमिकताओं के कारण सम्बन्धित हो जाते हैं।

(4) दलबन्दी ( Cliques)- इस प्रकार के सम्बन्ध में अनेक विद्यार्थी स्वयं परस्पर एक-दूसरे को चुनते हैं, किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से सम्बन्धित नहीं रहते हैं।

(5) लोकप्रिय नेता (Choice Star)- जिस व्यक्ति को सर्वाधिक प्राथमिकता प्राप्त होती है वह लोकप्रिय या सर्वप्रिय कहलाता है। उदाहरणार्थ, दी गई सारणी से पता चलता है कि A विद्यार्थी सबसे अधिक लोकप्रिय है।

(6) अप्रत्यक्ष नेता (Secondary Star)- यह वह व्यक्ति होता है जो कि समूह के अन्य व्यक्तियों में तो लोकप्रिय नहीं होता, परन्तु उसे लोकप्रिय नेता और उसके बाद के स्थान वाले नेता का समर्थन प्राप्त होता है।

(7) पूर्णतया उपेक्षित (Totally Neglected)- ऐसा व्यक्ति जो किसी के द्वारा न चुना गया हो, पूर्णतया उपेक्षित कहलाता है। समाज-सारणी में D ऐसा ही विद्यार्थी हैं।

समाजमितीय पैमानों के निर्माण की प्रक्रिया (Construction of Sociometric Scale)

एक समाजमितीय पैमाने के निर्माण में निम्न प्रक्रिया अपनायी जाती है-

(1) संस्था का चुनाव ( Selection of Institution)- समाजमितीय पैमाने के निर्माण में सबसे पहले उस संस्था, समूह, व्यवहार अथवा वर्ग को चुन लिया जाता है जिसकी माप की जाती है। इस संस्था, समूह, वर्ग अथवा व्यवहार को स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया जाता है।

(2) मांप का पहलू (Aspect of Measurement) –प्रत्येक पहलू को मापने के लिए पैमाना नहीं बनाया जाता है अपितु यह निश्चित कर लिया जाता है कि संस्था के किस पहलू की माप की जानी चाहिए।

(3) सम्बन्धित तत्त्वों का चुनाव (Selection of Related Facts) –पैमाना बनाते समय उन समस्त तत्त्वों का ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है जो किसी संस्था, समूह, वर्ग या परिस्थिति को निर्मित करते हैं ।

(4) उचित भार प्रदान करना (Giving Proper Weight)- पैमाने को अधिकाधिक उपयोगी बनाने की दृष्टि से यह आवश्यक व अपरिहार्य (Indispensable) हो जाता है कि प्रत्येक तत्त्व को उसके महत्त्व के अनुसार भार प्रदान किया जाय। भार प्रदान करने में सामान्य विधि, अन्तर की विधि अथवा सिगमा विधि को काम में लाया जाता है।

इसी भी पढ़ें…

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment