अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 [Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956]
अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1966 के अधीन नैतिक दुराचरण की रोकथाम के लिए कदम उठाए गए हैं। इस अधिनियम के अधीन वेश्यालयों में बचाई गई स्त्रियों और लड़कियों को संरक्षण सदनों और सुधार-गृहों में भेजा जाता है। नैतिक खतरों का सामना रही स्त्रियों और लड़कियों की रक्षा के लिए सुरक्षा-गृहों, अल्पावधि निवास-गृहों, स्वागत-केन्द्रों तथा जिला-आश्रयस्थलों की स्थापना की गयी है।
भारत में कई लड़कियाँ तथा स्त्रियाँ अनैतिक व्यापार के ग्रहजाल में फँस जाती हैं। पहले, वेश्या व्यवसाय प्रत्यक्ष रूप से फौज की छावनियों के समीप के नगरों, बड़े-बड़े शहरों तथा औद्योगिक केन्द्रों में चलाया जाता था। इनमें कई स्त्रियों को अपना शरीर बेचकर धन कमाने के लिए बाध्य किया जाता था। स्वतन्त्रता के बाद देश में वेश्यावृत्ति रोकने के लिए कई कदम उठाए गए। भारतीय संविधान में इस पेशे पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए गए हैं। अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के अधीन प्रत्यक्ष रूप से चलाये जाने वाले वेश्यालयों पर प्रतिबंध लगाया गया तथा वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहित करने वाले कई प्रकार के व्यवहारों और आचरण पर अंकुश लगाए गए। देश में आज भी अनेक होटल तथा निजी मकान वेश्या-व्यवसाय के केन्द्र बने हुए हैं। कई स्त्रियाँ अपने घर में ही यह पेशा चलाने लगती है।
नैतिक पतन की शिकार स्त्रियों को कई प्रकार की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समाज ऐसी स्त्रियों को स्वीकार नहीं करता, कोई भी उनसे विवाह करना नहीं चाहता। उनके अधर्मज बच्चों का पालन-पोषण भी एक बड़ी समस्या बन जाता है। उनके अनैतिक यौन सम्बन्ध से परिवार और समुदाय का वातावरण दूषित हो जाता है। उन्हें तरह-तरह से शोषित किया जाता है। उ ढलने के बाद ऐसी स्त्रियों की दशा अत्यंत ही दयनीय हो जाती है। नैतिक पतन के कारण कई स्त्रियाँ यौन रोगों से ग्रस्त हो जाती है, जिसका समुदाय पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें कुछ स्त्रियाँ कम उम्र की लड़कियों या स्त्रियों को जाल में फँसाकर अपनी आमदनी का जरिया निकाल लेती हैं, लेकिन कई निर्धनता और अभाव में जीवन व्यतीत करती हैं।
नैतिक पतन से ग्रस्त कई स्त्रियाँ कुछ व्यवसाय-धंधा सीखकर नया जीवन शुरू करना चाहती हैं, लेकिन ऐसे अवसर कुछ ही को मिल पाते हैं। उनमें कई सरकार तथा अन्य अभिकरणों द्वारा चलाई जाने वाली संस्थाओं में रहना चाहती हैं, परंतु देश में इस प्रकार की संस्थाओं की कमी है। राज्य सरकार निम्नलिखित उपाय कर सकती है –
(a) संरक्षण गृह बनाना (b) विशेष न्यायालय बनाना (c) नियम बनाना आदि।
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