समाजशास्‍त्र / Sociology

उपकल्पना या परिकल्पना का अर्थ, परिभाषाएँ, प्रकार तथा प्रमुख स्रोत

उपकल्पना या परिकल्पना का अर्थ
उपकल्पना या परिकल्पना का अर्थ

उपकल्पना या परिकल्पना का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Hypothesis)

उपकल्पना या परिकल्पना – अनुसन्धानकर्त्ता किसी भी अनुसन्धान समस्या का चयन करने के पश्चात् समस्या के सम्बन्ध में ‘कार्यकारण सम्बन्धों’ का पूर्वानुमान लगा लेता है अर्थात् पूर्व चिन्तन कर लेता है। यह पूर्वानुमान या पूर्व चिन्तन ही परिकल्पना या प्राक्कल्पना या उपकल्पना के नाम से जानी जाती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का अनुमानित विवरण ही एक परिकल्पना या प्राक्कल्पना है। इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है –

“एक परिकल्पना एक मान्यता, शर्त अथवा सिद्धान्त है, जिसे शायद विश्वास के बिना भी मान लिया जाता है, जिससे इसके तार्किक परिणाम ज्ञात हो सकें तथा इस ढंग के द्वारा इसकी उन अन्य तथ्यों से समानता का परीक्षण किया जा सके जो ज्ञात है अथवा निर्धारित किए जा सकते हैं।”- वेब्स्टर अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोश

“प्राक्कल्पना अनुसन्धान और सिद्धान्त के बीच एक आवश्यक कड़ी है जो ज्ञान वृद्धि की खोज में सहायक होती है।”-  गुडे एवं हाट

“यह ज्ञात व प्राप्त तथ्यों के सामान्य अवलोकन पर आधारित एक कार्यकारी अस्थायी उपचार अथवा हल होती है जो कि कुछ विशेष घटनाओं को समझने व अन्य खोज में मार्गदर्शन के लिए अपनायी जाती है।”- एम. एच. गोपाल

“किसी भी गवेषण में हम एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जब तक कि हम उसको जन्म देने वाली कठिनाइयों के सुझावात्मक स्पष्टीकरण अथवा समाधान से प्रारम्भ न करें। ऐसे प्रारम्भिक स्पष्टीकरण कुछ विषय-वस्तु द्वारा हमारे पूर्व-ज्ञान द्वारा हमें सुझाव प्रस्तुत करते हैं। जब वे प्रस्तावों के रूप में सूत्रबद्ध कर लिए जाते हैं, तो उन्हें प्राक्कल्पना कहा जाता है।”– कोहेन तथा नागेल

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परिकल्पना के प्रकार (Types of Hypothesis)

विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार की परिकल्पनाओं का उल्लेख किया है, जिनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ पर किया गया है। गुडे एवं हाट ने निम्नलिखित तीन प्रकार की परिकल्पनाओं का उल्लेख किया है-

1. अनुभवात्मक समानताओं से सम्बन्धित (Related to Empirical Uniformities) – इन परिकल्पनाओं का प्रमुख आधार मानव का सामान्य ज्ञान, दैनिक जीवन के अनुभव तर्क वाक्य वक्तव्यों, लोकत्तियाँ एवं विश्वास आदि है, जैसे सामान्यतः ऐसी कहावते प्रचलन में होती हैं कि गंजा व्यक्ति धनवान होता है, पशुओं में सियार तथा पक्षियों में कौआ अत्यधिक चालाक होती है, अतः अध्ययन का मुख्य बिन्दु इस प्रकार की परिकल्पनाओं में सामान्य तथ्यों की जाँच करना होता है।

2. विश्लेषणात्मक चरों से सम्बन्धित (Related to Analytical Variables)- कुछ परिकल्पनाओं का सम्बन्ध विश्लेषणात्मक चरों से होता है, यद्यपि किसी भी सामाजिक घटना का घटित होना अनेको कारकों पर निर्भर करता है, किन्तु इनमें से कोई एक कारक प्रमुख एवं अन्य सभी सहायक कारक होते हैं। यही कारण है कि इसे कारणात्मक परिकल्पना के नाम से भी जाना जा सकता है। इसके अन्तर्गत यह ज्ञात किया जाता है कि यदि किसी एक कारक में परिवर्तन होता है तो वह दूसरे को किस सीमा तक प्रभावित करते हैं, जैसे उत्तम फसल, पर्याप्त मात्रा में खाद, पानी एवं बीज पर निर्भर करती है। यदि इसमें से किसी एक में भी परिवर्तन होता है तो इसका फसल पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

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3. जटिल आदर्श प्रारूपों से सम्बन्धित (Concerned with Complex Ideal Types) – प्रायः ऐसी परिकल्पना में तथ्यों की तर्कपूर्ण परीक्षा की जाती है और इस कार्य के लिए एक सामान्य तथ्य अथवा निष्कर्ष को पूर्वाधार माना जाता है। इस प्रकार की परिकल्पनाओं का सम्बन्ध अल्पसंख्यक समूहों व परिस्थितियों की दशाओं से होता है। अपने अध्ययन में एक प्रमुख विद्वान ने इस परिकल्पना को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि-

“केन्द्रीभूत गोलाकार नगर विकास की प्रकृति के लक्षण होते हैं।”- वर्गेस

इन परिकल्पनाओं को सम्बन्धात्मक परिकल्पनाओं के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि ऐसी परिकल्पनाओं में निकाले गये निष्कर्ष विभिन्न कारकों के मध्य तार्किक अन्तर्सम्बन्धों पर आधारित होते हैं। इनका प्रमुख उद्देश्य आनुभाविक एकरूपताओं में तार्किक रूप से निकाले गये सम्बन्धों की उपस्थिति का परीक्षण करना होता है, ये परिकल्पनाएँ सिद्धान्त निर्माण में भी सहायता प्रदान करती हैं। एक प्रमुख विद्वान दुर्खीम ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘आत्महत्या’ में निम्नलिखित सम्बन्धात्मक परिकल्पनाओं का विकास किया

(a) पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक आत्महत्या का प्रतिशत पाया जाता है।

(b) ग्रामीण क्षेत्रों में भी नगरीय क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक आत्महत्या का प्रतिशत पाया जाता है।

परिकल्पना के प्रमुख स्रोत (Sources of Hypothesis)

परिकल्पना के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-

1. सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Cultural Background)- परिकल्पनाओं के निर्माण एवं विज्ञान के विकास में सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी देश की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि उस देश में ऐसा वातावरण उत्पन्न करती है, जोकि विज्ञान की उत्पत्ति एवं विकास को प्रोत्साहित एवं हतोत्साहित करता है। सांस्कृतिक पृष्ठभूमि एवं सांस्कृतिक मूल्यों के कारण ही समाजशास्त्र एवं भौतिक विज्ञानों का विकास अमरीका एवं पश्चिमी देशों में अधिक हुआ। भारत एवं अमरीका की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में अन्तर पाया जाता है, जिसके कारण इन दोनों देशों की परिकल्पनाओं में भी अन्तर पाया जाता है। भारत की परिकल्पना धर्म, आध्यात्मवाद, संयुक्त परिवार प्रथा, नातेदारी सामूहिकता एवं जाति-व्यवस्था आदि पर आधारित है, क्योंकि यहाँ इन्हीं व्यवस्थाओं का अधिक महत्व है। इन देशों में सुख का सम्बन्ध कई बातों से जोड़ा जाने लगा है और सुख के प्रसंग को लेकर विभिन्न परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया है।

2. सामाजिक परिवर्तन (Social Change) – प्रत्येक समाज और संस्कृति परिवर्तनशील है। इनमें समयानुसार परिवर्तन होते रहते हैं तथा ये परिवर्तन नवीन परिकल्पनाओं की उत्पत्ति भी करते हैं। उदाहरणार्थ भारतीय समाज में हुए परिवर्तनों को फलस्वरूप यह कहा गया है कि जिस क्रम में नगरीकरण एवं औद्योगीकरण में वृद्धि होगी उसी क्रम में संयुक्त प्रथा एवं जाति प्रथा का विघटन होता जाएगा।

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3. लोक विश्वास (Folk Beliefs) – प्रत्येक देश की संस्कृति में कुछ ऐसी मान्यताएँ पायी जाती हैं जिन्हें, मुहावरों, कहावतों, दोहों, सूक्तियों एवं तुकबन्दियों आदि द्वारा व्यक्त किया जाता है। समाज में काफी लोग इन्हें आसानी से स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि इनका समाज में एक लम्बे समय से प्रचलन होता है। इन मान्यताओं की सत्यता की सीमा पता करने के लिए अनुसन्धानकर्ता इनमें से किसी को परिकल्पना मानकर अध्ययन कर सकता है।

4. वैज्ञानिक सिद्धान्त (Scientific Theories) : अनेकों परिकल्पनाएँ समाज में पूर्व प्रचलित वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होती हैं। इन सिद्धान्तों पर अनुसन्धानकर्ताओं द्वारा अनेकों अन्य सामान्यीकरण भी किए जाते हैं और इनके द्वारा परिकल्पनाओं के रूप में इन्हीं सामान्यीकरण को ही ग्रहण कर लिया जाता है। समाज वैज्ञानिकों द्वारा मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त पर वर्ग से सम्बन्धित अनेकों परिकल्पनाओं का भी निर्माण किया गया है।

5. अन्तःप्रज्ञा (Intuition ) – बहुत सी परिकल्पनाएँ मानव की अन्तरात्मा अथवा अन्तर्दृष्टि पर आधारित होती हैं, अतः जीवन की अनेक घटनाओं के प्रति हमारे निष्कर्षो का आधार हमारी अन्तर्दृष्टि ही होती है यही कारण है कि कई बार लोगों के मुँह से यह कहते हुए सुना जाता है कि – “मेरा मन यह कहता है। इसे किसी व्यक्ति की अन्तःप्रज्ञा नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि कई बार इस पर आधारित परिकल्पनाओं का परीक्षण करना अत्यन्त कठिन हो जाता है।

6. व्यक्तिगत अनुभव (Personal Experiences) कुछ परिकल्पनाओं का निर्माण व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर भी होता है। जैसे, लोक्ब्रोस ने कहा है कि – “अपराधी जन्मजात होते हैं।” इस परिकल्पना को सैनिकों के अध्ययन से सम्बन्धित अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर ही ग्रहण किया गया था। इनके व्यक्तिगत अनुभव के परिणाम निम्नलिखित हैं – माल्थस की जनसंख्या वृद्धि की कल्पना, न्यूटन की पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की परिकल्पना एवं डार्विन की अस्तित्व के लिए संघर्ष की परिकल्पना आदि।

7. अनुसन्धान एवं साहित्य (Research and Literature) – अनेकों बार परिकल्पना का निर्माण साहित्य एवं व्यक्तियों द्वारा किए गए अध्ययन के निष्कर्ष के आधार पर भी किया जाता है। इस सम्बन्ध में लुण्डबर्ग ने कहा है कि –

“हम कविता साहित्य, दर्शन, समाजशास्त्र, नृजाति विज्ञान एवं वर्णनात्मक साहित्य तथा कलाकारों और चिन्तकों के मानव सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित सिद्धान्तों के आधार पर परिकल्पनाओं का निर्माण कर सकते हैं।”

8. सादृश्यताएँ (Analogies) – अनेकों बार परिकल्पनाओं की उत्पत्ति समरूपताओं से भी होती है। एक प्रमुख विद्वान हरबर्ट स्पेन्सर ने सामाजिक सावयव की कल्पना जीवों की शारीरिक संरचना संग्रहण की थी। इनका मानना था कि समाज भी एक शरीर की भाँति ही होता है। एक अन्य प्रमुख विद्वान जूलियन हक्सले के मतानुसार, किसी विज्ञान की प्रकृति के सम्बन्ध में किए अवलोकन एवं परिकल्पनाओं पर आधारित हो सकते हैं।

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shubham yadav

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