समाजशास्‍त्र / Sociology

मौलिक अनुसन्धान का अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें एवं उपयोगिता

मौलिक अनुसन्धान का अर्थ
मौलिक अनुसन्धान का अर्थ

मौलिक अनुसन्धान का अर्थ बताइये। 

मौलिक अनुसन्धान का अर्थ – मौलिक सामाजिक अनुसंधान में सामाजिक जीवन व घटनाओं के सम्बन्ध में मौलिक सिद्धान्तों व नियमों का अनुसंधान किया जाता है तथा इस अनुसन्धान का उद्देश्य नवीन ज्ञान की प्राप्ति व वृद्धि तथा पुराने ज्ञान की पुनर्परीक्षा द्वारा उसका शुद्धिकरण होता है। इस प्रकार की खोज में नवीन तथ्यों व घटनाओं का अध्ययन किया जाता है और साथ ही इस बात की भी जाँच की जाती है कि जो प्रचलित पुराने सिद्धान्त व नियम हैं, ये वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में सही हैं, अथवा नहीं, हो सकता है कि नवीन परिस्थितियों में भी पुराने सिद्धान्त व नियम खरे उतरें, यह भी हो सकता है कि नवीन परिस्थितियों के अनुसार उनमें कुछ आवश्यक सुधार या कुछ परिवर्तन करना आवश्यक हो जाये। साथ ही यह भी हो सकता है कि नवीन परिस्थितियों की माँग नवीन सिद्धान्त एवं नियम हों। मौलिक शोध के अन्तर्गत नये सिद्धान्तों व नियमों की खोज नवीन परिस्थितियों तथा नवीन समस्याओं के उत्पन्न होने पर की जाती है। ऐसा इस उद्देश्य से किया जाता है कि इन नये सिद्धान्तों का वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों के साथ अधिकाधिक सामंजस्य बैठ जाये और उनके सम्बन्ध में अपने नवीनतम ज्ञान के द्वारा वर्तमान परिस्थितियों की चुनौतियों का सामना अधिक सफलतापूर्वक कर सके। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मौलिक अनुसंधान की प्रकृति आधारभूत रूप में सैद्धान्तिक है क्योंकि इसका एकमात्र उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति, ज्ञान में वृद्धि और शुद्धिकरण होता है। सत्य की खोज करना मौलिक शोध का प्रमुख लक्ष्य है और इसलिए समस्त घटनाओं के शोध में यह केवल इसी लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति सजग एवं प्रयत्नशील रहता है।

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मौलिक अनुसन्धान की परिभाषा  

पी. वी. यंग ने मौलिक अनुसंधान को परिभाषित करते हुए लिखा है, “मौलिक अनुसन्धान उसे कहते हैं जिसमें ज्ञान का संचय केवल ज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है।”

गुडे एवं हाट के अनुसार, “मौलिक अनुसन्धान वह अनुसन्धान है जिसकी सहायता से एक विशेष अध्ययन विषय के प्रमुख कारकों को ज्ञात किया जाता है तथा नयी दशाओं के प्रभावों को समझा जाता है। और निष्कर्षो को सामान्य सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत करके घटनाओं की प्रकृति से सम्बन्धित जानकारी दी। जाती है।”

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मौलिक अनुसन्धान की प्रमुख विशेषतायें

मौलिक अनुसन्धान की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है-

1. मौलिक अनुसन्धान का उद्देश्य वैज्ञानिक पद्धतियों की सहायता से सामाजिक घटनाओं के कार्य-कारण सम्बन्धों को स्पष्ट करना है।

2. मौलिक अनुसन्धान के द्वारा या तो वर्तमान में प्राचीन सिद्धान्तों की व्यावहारिकता का सत्यापन किया जाता है या नवीन सिद्धान्तों की रचना की जाती है।

3. मौलिक अनुसन्धान किसी विशेष समय अथवा स्थान की सीमा से बँधे हुए नहीं रहते। सामान्यतया इनका अध्ययन क्षेत्र तुलनात्मक रूप से व्यापक होता है ।

4. मौलिक अनुसन्धान किसी तात्कालिक समस्या का समाधान करने के लिए नहीं किया जाता अपितु इसका उद्देश्य ज्ञान का संचय करना है।

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मौलिक अनुसन्धान की उपयोगिता (Utility of Basic Research)

सामाजिक शोध में मौलिक अनुसन्धान की कुछ निम्नलिखित उपयोगिताएँ या प्रकार्य हैं-

1. एक अध्ययन जब किसी नये सिद्धान्त या नये नियमों को स्पष्ट करता है तब इसकी सहायता से भविष्य में घटने वाली सामाजिक घटनाओं की प्रवृत्ति को समझना सरल हो जाता है। इसका अर्थ है कि मौलिक अनुसन्धान अप्रत्यक्ष रूप से अनेक समस्याओं का समाधान करने में सहायक है। उदाहरणार्थ भारत की जनजातियाँ एक लम्बे अरसे तक उपेक्षित रहीं। मौलिक अनुसन्धान के द्वारा जब इस सच्चाई का पता चला तो बाह्य समूहों के सम्पर्क में लाकर जनजातियों के जीवन को अधिक प्रगतिशील बनाया जा सकता है तब इसके आधार पर बनने वाली नीतियों की सहायता से आज जनजातियों के जीवन में बहुत परिवर्तन हुआ है।

2. मौलिक अनुसन्धान की प्रकृति बहुस्तर वाली होती है परिणामस्वरूप इनके माध्यम से ऐसे सिद्धान्तों का प्रादुर्भाव होता है जिसके आधार पर भविष्य में भी नवीन ज्ञान का सृजन करने की प्रेरणा मिलती है।

3. विशिष्ट समस्या से सम्बन्धित प्रमुख कारणों को ज्ञात करने में भी मौलिक शोध अधिकाधिक सहायता करता है।

4. प्रशासकों के लिये भी मौलिक अनुसन्धान एक प्रमाणिक और उपयोगी प्रणाली है। इसलिये आज सामाजिक अनुसंधान के सिद्धान्तों का प्रयोग केवल सरकारी संगठनों द्वारा ही नहीं किया जाता अपितु गैर-सरकारी तथा व्यापारिक संगठन द्वारा भी अनुसन्धान का आयोजन करके, कार्य करने के कुशल तरीकों की खोज की जाने लगी है जिससे उनके द्वारा किये गये शोध से लाभ उठाकर वे अपनी क्षमता में वृद्धि कर सकें।

5. किसी समस्या के समाधान के लिए मौलिक अनुसंधान एक साथ बहुत से विकल्प प्रस्तुत करता है। ऐसे शोध में बहुत अधिक समय और धन की जरूरत होती है परन्तु इसके माध्यम से कोई न कोई ऐसा विकल्प अवश्य मिल जाता है जिसके द्वारा सम्बन्धित समस्या का निराकरण किया जा सके।

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shubham yadav

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