समाजशास्‍त्र / Sociology

चित्रमय प्रदर्शन का अर्थ | चित्रमय प्रदर्शन के लाभ या महत्व | चित्रमय प्रदर्शन की सीमायें

चित्रमय प्रदर्शन का अर्थ
चित्रमय प्रदर्शन का अर्थ

चित्रमय प्रदर्शन का अर्थ बताइये।

अधिकांशतः सांख्यिकी समंक विशाल और जटिल होते हैं जिससे जन-सामान्य की समझ में आसानी से नहीं आते हैं। इन्हें सुगमता से समझने के लिए इनका बिन्दुरेखीय प्रदर्शन किया जाता है किन्तु बिन्दुरेखीय प्रदर्शन मस्तिष्क को प्रभावित नहीं करता है अतः इनका चित्रों द्वारा प्रदर्शन किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि चित्रमय प्रदर्शन वह क्रिया है जिसमें समंकों को रोचक एवं आकर्षक ज्यामिति आकृतियाँ जैसे- दण्ड चित्र, वृत्त एवं आयत आदि चित्रों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

चित्रमय प्रदर्शन के लाभ या महत्व (Utility and Advantages of Diagrams)

चित्रमय प्रदर्शन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

1. सरल व सुबोध बनाना चित्रों के द्वारा जटिल अव्यवस्थित और विशाल समंक राशि आसान हो जाती है और एक साधारण व्यक्ति को उसे समझने में कोई कठिनाई नहीं होती है। सिर्फ अंकों को देखकर कोई निष्कर्ष निकालना आसान नहीं होता है किन्तु चित्र को देखकर विशेषता स्पष्ट हो जाती है। उदाहरण के लिए हम कृषि उत्पादन की वृद्धि को हरित क्रान्ति के रूप में जानते हैं परन्तु यदि दूसरी ओर पाँचवी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत होने वाले कृषि उत्पादन को चित्रों द्वारा प्रस्तुत कर दिया जाये तो सही स्थिति एक दृष्टि में स्पष्ट हो जायेगी और दिमाग पर कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा। प्रसिद्ध विद्वान प्रो. स्टीफेन के अनुसार- “एक चित्र अधिक स्पष्ट तथा चित्र को सीधे आकर्षित करने वाली तस्वीर प्रदान करता है।”

2. अधिक समय तक स्मरणीय अधिक समय तक अंकों को स्मरण करना अत्यन्त कठिन होता है। मनुष्य कुछ समय बाद ही अंकों को भूल जाता है, परन्तु चित्रों द्वारा आँकड़ों की एक अमिट छाप मस्तिष्क पर पड़ती है जो अधिक समय तक बनी रहती है।

3. आकर्षक एवं प्रभावशाली चित्र अधिक आकर्षक होते हैं। ये सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं। प्रायः अधिक रंगों में तथा आकर्षक रूप में होने के कारण मस्तिष्क पर इनका प्रभाव स्थाय रूप से पड़ता है। प्रसिद्ध विद्वान सी. डब्ल्यू लेख के अनुसार सभी प्रकार के समकों को अत्यन्त प्रभावशाली रूप में निरूपण करने के लिए चित्रों का प्रयोग किया जा सकता है।”

4. तुलना करने में सहायक चित्रों की सहायता के द्वारा विभिन्न सूचनाओं की प्रभावशाली तुलना की जा सकती है। उदाहरण के लिए कई वर्षों के औद्योगिक उत्पादन या निर्यात को चित्रों द्वार प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है और उसका अध्ययन तुलनात्मक ढंग से किया जा सकता है। यह सत्य है कि चित्रों की सही उपयोगिता तुलना द्वारा ही स्पष्ट होती है।

5. चित्रों को समझने के लिए विशेष शिक्षा या ज्ञान की आवश्यकता नहीं चित्रों को समझना आम व्यक्ति के लिए अत्यन्त आसान है। इन्हें समझने के लिए सांख्यिकी का पूरा ज्ञान होना आवश्यक नहीं होता है। एक पढ़ा लिखा या अनपढ़ व्यक्ति चित्रों को देखकर बहुत अंशों में उनका अभिप्राय निकाल सकता है। इसी कारण विज्ञापन में चित्रों की सहायता ली जाती है।

6. सूचना के साथ-साथ मनोरंजन होना सुन्दर चित्र सूचना देने के साथ-साथ मनोरंजन भी देते हैं। विभिन्न सूचनाओं के अध्ययन में इनकी सहायता लेने से थकावट का अहसास नहीं होता है।

7. समय या श्रम की बचत चित्रों की सहायता से ऑकड़ों को समझने व उनसे निष्कर्ष निकालने में कम समय तथा श्रम की आवश्यकता होती है। बगैर किसी परिश्रम के बड़ी सरलता से और एक दृष्टि में आँकड़े पर्याप्त मात्रा में आ जाते हैं।

8. समंकों का संक्षिप्त रूप चित्र समकों को संक्षिप्तता प्रदान करते हैं। इनका निर्माण समस्या पर विचार करने एवं पर्याप्त विश्लेषण करने के बाद होता है।

चित्रमय प्रदर्शन की सीमायें(Limitations of Diagrammatic Presentation)

सांख्यिकीय तथ्यों का चित्रमय निरूपण महत्त्वपूर्ण सांख्यिकीय ढंग अवश्य है परन्तु यह अन्य सांख्यिकीय रीतियों का स्थानापन्न नहीं है। इसे इन विधियों का पूरक मात्र कहा जाता है। उन व्यक्तियों के लिए चित्रमय प्रदर्शन भ्रमात्मक होते हैं। जो बिना सावधानीपूर्ण अध्ययन के उनसे निष्कर्ष निकालते हैं। प्रमुख विद्वान एम. जे. मोरो के अनुसार किसी चित्र का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त चौकन्ना रहना आवश्यक होता है। वह इतना सरल स्पष्ट तथा मनभावी होता है कि असावधान व्यक्ति बड़ी आसानी से मूर्ख बन जाता है। इस तकनीकी का प्रयोग करते समय तथा निष्कर्ष निकालते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता है। इन चित्रों की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

1. तुलना के लिए गुण स्वभाव की समान आवश्यकता- चित्रों में तुलना ठीक तरीके से तभी होगी जब वे समान गुण के आधार पर बनाये गये हों। यदि वे दो अलग-अलग गुणों के आधार पर बनाये जायें तो उनमें तुलना करना भ्रामक व अशुद्ध होगा।

2. सूक्ष्म अन्तर दिखाना सम्भव नहीं- अधिक सूक्ष्म अन्तर को चित्रों द्वारा प्रदर्शित करना सम्भव नहीं है। उदाहरण के लिए यदि क और ख दो व्यक्तियों की मासिक आय क्रमशः 320 रुपये व 325 रुपये है तो चित्रों द्वारा इस अन्तर को प्रकट करने में कठिनाई होगी तथा इस अन्तर का अनुमान चित्रों को देखकर नहीं लगाया जा सकता है।

3. संख्यात्मक प्रदर्शन असम्भव- आँकड़ों का पूर्ण रूप से शुद्ध रूप में चित्रों द्वारा प्रदर्शन सम्भव नहीं होता है। चित्र अनुमानित रूप में आंकड़ों का प्रदर्शन करते हैं। चित्र उपयुक्त वही के लिए होते हैं जहाँ संख्या मूल्य प्राप्त करना उद्देश्य न हो बल्कि चित्रों को देखकर उनके मूल्यों का अनुमान लगाया जा सकता है।

4. केवल तुलनात्मक अध्ययन सम्भव – चित्रों की सहायता के द्वारा केवल तुलनात्मक अध्ययन ही सम्भव हो पाता है। अकेले चित्र का कोई विशेष अर्थ नहीं है जब आँकड़ों वाले चित्रों से उसकी तुलना की जाती है तब उसका अर्थ स्पष्ट होता है और उसकी उपयोगिता बढ़ जाती है।

5. निष्कर्ष निकालने का एक उचित साधन- चित्रों के द्वारा पूर्ण सत्य निष्कर्ष निकालना उसकी सम्भव नहीं है। चित्र निष्कर्ष की ओर इंगित करते हैं परन्तु उन्हें पूर्ण सूचना व सन्दर्भ के साथ ही अध्ययन किया जाना उचित होता है।

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shubham yadav

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