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विभिन्न त्यौहारों में आहार
भारत दुनिया के कुछ देशों में है जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहकर एक-दूसरे के त्यौहारों को आनंद एवं उत्साह के साथ मानते हैं। देखा जाए तो भारत में लगभग प्रतिदिन एक त्यौहार मनाया जाता है।
इन त्यौहारों में लोगों को पारंपरिक व्यंजनों को पकाने और उन्हें सभी के साथ आनन्दपूर्वक खाने का अवसर मिलता है। विभिन्न त्यौहारों के ये पारंपरिक व्यंजन सदियों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के रूप में स्थानान्तरित होते रहते हैं। यहाँ पर कुछ प्रमुख त्यौहार और उनमें उपयोग किये जाने वाले व्यंजनों को प्रस्तुत किया जा रहा है-
1. बैशाखी- छोले-भटूरे, नारियल के लड्डू, खीर, मक्के की रोटी, सरसों का साग, पिंडी चना, तिल की गजक, तिल के लड्डू आदि।
2. क्रिसमस- क्रिसमस कुकीज, पुडिंग, चिलियन ब्रेड, केक, फ्रूट बार, मॉकटेल आदि।
3. ओणम– केला का हलवा, इडली, नारियल चटनी, ड्राई फ्रूट केसरी, मसाला डोसा, मोह करी, मोदक, सांभर वड़ा, राइस पुट्टू आदि।
4. दीपावली – बादाम फिरनी, गुलाब जामुन, पेड़ा, बेसन के लड्डू, जलेबी, रसमलाई, वा लड्डू, दूध पाक, केसर काजू, काजू बर्फी, शक्कर पारे, गाजर का हलवा, खीर आदि।
5. होली- जलजीरा, प्याज भजिया, आलू चाट, पापड़, पकौड़ा, गुझिया, कांजी के वड़े, दही बड़ा, ठंडाई, केसर चावल आदि।
6. इंद- बादामी गोश्त, बादाम फिरनी, नवाबी बिरयानी, मटन कोरमा, सिवैया, सूफी मालपुआ, शीर कोरमा आदि।
किशोरों, वयस्कों एवं गर्भवती महिलाओं हेतु पोषण
1. किशोरों के लिए पौष्टिक की आवश्यकता- किशोरावस्था तेजी से विकास और बढ़त की आयु है। यह अवस्था लगभग दस वर्ष तक रहती है। इस समूह में व्यक्तियों के विकास की गति बहुत अधिक भिन्न हो सकती है। इसी आयु में शरीर में, मन से कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं। लड़कियाँ 11 और 14 वर्ष की आयु के बीच और लड़के 13 और 16 वर्ष की आयु के बीच परिपक्वता को प्राप्त होते हैं। शरीर में पानी की मात्रा, शरीर के आयाम और हड्डियों और वसा की दृष्टि से – लड़कों और लड़कियों में बहुत अधिक अन्तर होता है। यह स्वाभाविक ही है कि विकास की इस प्र अवधि में पौष्टिक आहार की आवश्यकता बहुत अधिक होता है। जिस व्यक्ति ने भी किशोरों को भोजन करते हुए देखा हो, वह यह बता सकते हैं कि इस आयु में कितनी भूख लगती है। यदि भोजन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो लड़के तो खाते ही चले जाते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि यदि भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की पर्याप्त मात्रा न हो तो भी किशोर अपनी क्षुधा मिटाने के लिए उसे खा लेंगे लेकिन, उससे उन्हें वे पौष्टिक तत्त्व नहीं मिलेंगे जो विकास के लिए आवश्यक हैं। इसी आयु में पौष्टिक आहार पाने वाले और उससे वंचित किशोरों के बीच अन्तर स्पष्ट हो जाता है।
2. वयस्क – वयस्कता व्यक्ति के जीवन में ऐसी स्थिर अवस्था होती है जब शरीर का पूर्णरूपेण विकास हो चुका होता है। इस आयु में शरीर के विकास या बहुत अधिक परिश्रम के लिए पौष्टिक तत्त्वों की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती। उनकी आवश्यकता इस कारण होती है कि शरीर की क्रियाएँ बनी रहें। इस आयु में व्यक्ति निर्माण कार्य में लगता है, अर्थात् अपने निर्वाह के लिए किसी काम में लग जाता है। इस कारण उसको पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है, जिससे कि वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार काम-काज करता रहे।
3. गर्भावस्था – गर्भावस्था और स्तनपान काल, दो ऐसी अवस्थाएँ हैं जबकि एक स्त्री को अधिक आहार की आवश्यकता होती है। उसे गर्भ के नौ महीने में ही अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए आहार पहुँचाना होता है और बाद में उसे अपना दूध पिलाना होता है। जब बच्चा पेट में पल रहा होता है और दूध पीता है तो उसकी माँ को पौष्टिक आहार अवश्य मिलना चाहिए। गर्भावस्था में स्त्री के शरीर और उसके मन पर बहुत बोझ पड़ता है। उन दिनों स्त्री को न केवल अपने शरीर बल्कि भ्रूण के विकास के लिए भी आहार की आवश्यकता पड़ती है। गर्भ के दिनों में बच्चे के विकास के लिए अधिक आहार आवश्यक है, जिससे कि गर्भवती स्त्री के शरीर में वसा की तहें जम जाएँ जो बाद में माँ के शरीर में दूध उत्पन्न करने के लिए ऊर्जा संचित रहे। इस प्रकार ऊतकों के संश्लेषण के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों को पहुँचाना आवश्यक होता है, क्योंकि बच्चा पेट में बढ़ रहा होता है।
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