स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

यौन शिक्षा का अर्थ | यौन शिक्षा का उद्देश्य |यौन रोगों पर नियंत्रण

यौन शिक्षा का अर्थ
यौन शिक्षा का अर्थ

यौन शिक्षा का अर्थ

यह साधारण धारणा है कि यौन शिक्षा प्रजनन और यौन के आधारभूत तथ्यों के संबंध में युवकों और युवतियों को शिक्षित करने के लिए है। वस्तुतः यौन शिक्षा संतोषपूर्ण पारिवारिक संबंधों को विकसित करने और विवाह और संतानोत्पत्ति के उत्तरदायित्व के लिए तैयार होने के अधिक व्यापक क्षेत्र के लिए है।

यौन शिक्षा का उद्देश्य

यौन शिक्षा के उद्देश्य में इस क्षेत्र में व्याप्त गलत धारणाओं, वर्जनाओं और मिथकों को दूर करना एवं कामवासना के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति को बढ़ाना है।

1. बालक की यौन जिज्ञासा की संतुष्टि- छोटे बच्चों की आरंभिक जिज्ञासाओं को यौन शिक्षा की आवश्यक शुरुआत के रूप में जाना जाना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि परिवार में माँ की गर्भावस्था, परिवार में एक नये बच्चे का जन्म और विपरीत लिंग के जननांगों संबंधी विषय में बच्चे की जिज्ञासाएँ कामुकता की निशानी नहीं हैं। इसलिए बड़ों को बच्चों के इस तरह के सवालों का जवाब देते समय शर्म महसूस नहीं करना चाहिए। बच्चों की इन जिज्ञासाओं को स्वाभाविक रूप से यथासंभव सही जानकारी को बिना किसी अनावश्यक विवरण के साथ सरल शब्दों में बताने का प्रयास करना चाहिए।

2. किशोरावस्था में यौन शिक्षा- किशोरावस्था गहन यौन चेतना की अवस्था है क्योंकि इस अवस्था में यौन आवेग दृढ़ता से अनुभव किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त इस अवस्था में किशोरों के आंतरिक एवं बाह्य अंगों में विशिष्ट शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसलिए यौवनारंभ से संबंधित शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों पर व्यक्तिगत और सामूहिक विचार-विमर्श के द्वारा उन्हें इन परिवर्तनों के बारे में स्पष्ट एवं वैज्ञानिक जानकारी दी जाए जिससे वे इन परिवर्तनों के प्रति अनभिज्ञ न रहें। किशोरों को प्रजनन की संरचना और क्रियाविज्ञान पर जानकारी दी जानी चाहिए। ऐसी जानकारी को चार्ट, फ्लेशकार्ड, फ्लिप चार्ट, फ्लेनलग्राफ और मॉडल के साधनों के आधार पर वार्त्ता, प्रश्नोत्तर सत्रों, फिल्मस्ट्रिप और फिल्मों द्वारा दी जा सकती है।

3. विपरीत सेक्स के सदस्य के प्रति सही अभिवृत्ति- किशोर लड़के एवं लड़कियों के बीच विपरीत सेक्स के सदस्यों के प्रति सही अभिवृत्ति विकसित की जानी चाहिए। प्रतिजाति या विपरीत यौन के प्रति व्यवहार, यौन मानदण्डों और नैतिक नियमों पर व्यक्तिगत एवं सामूहिक विचार-विमर्श, प्रश्नोत्तर या फिल्म सहित विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।

4. विवाह और प्रेम के प्रति स्वस्थ मनोवृत्ति – विवाह के लिए साथी का चुनाव, आयोजित विवाह और प्रेम विवाह तथा विवाह और संतानोत्पत्ति की जिम्मेदारियाँ जैसे प्रश्नों पर व्यक्तिगत और समूह में विचार-विमर्श होना चाहिए।

5. जनसंख्या शिक्षा- जनसंख्या समस्या के बारे में जानकारी और व्यक्ति, परिवार और समुदाय के कल्याण के लिए छोटे परिवारों की आवश्यकता से संबंधित जानकारी प्रदान की जानी चाहिए।

यौन शिक्षा को प्रदान करने के लिए बाल्यावस्था को उपयुक्त माना गया है। बाल्यकाल के व्यवहारों का किशोरावस्था में व्यापक परिवर्तन देखने को मिलता है। इसलिए किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों, उत्तेजना, भावात्मक अस्थिरता का सामना करने से पूर्व उसकी तैयारी के रूप में यौन शिक्षा के अन्तर्गत उसे सही, स्पष्ट एवं वैज्ञानिक जानकारी देना आवश्यक है जिससे वह किशोरावस्था की चुनौतियों में स्व-नियंत्रण में रह सके।

वास्तविकता में लड़के एवं लड़कियों द्वारा यौन शिक्षा से संबंधित प्रश्नों का सही, संतुलित एवं वैज्ञानिक कसौटी पर उत्तर देना एक मुख्य चुनौती है। परिपक्व एवं अनुभवी व्यक्तियों ने यौन शिक्षा से संबंधित जानकारी को शीर्ष गोपनीयता के रूप में रखा और इसे नैतिकता से जोड़ दिया है। समाज में भी इस संबंध में इतने प्रतिबंध और निषेध स्थापित कर इसे अत्यंत गोपनीयता का विषय बना दिया है। भारत जैसे देशों में स्थिति और अधिक अपरिवर्तनवादी हैं जहाँ यौन से संबंधित विषयों को नैतिक भावना के उल्लंघन के रूप में लिया जाता है। ऐसे वातावरण में शिक्षकों और विशेषज्ञों द्वारा इस संदर्भ में जानकारी देना कठिन है। यहाँ तक कि अभिभावक भी इस सन्दर्भ में अपने बच्चों को यौन शिक्षा दिये जाने में स्वयं को असमंजस की स्थिति में पाते हैं। किन्तु जो कुछ भी कठिनाइयाँ हो उनका समाधान अभिभावकों, शिक्षकों, विशेषज्ञों एवं नीति निर्माताओं को खोजकर बच्चों के हितों को ध्यान में रखना होगा।

यौन संचारित रोग

यौन संचारित रोगों को रतिज रोगों के नाम से भी जाना जाता है। ये रोग संक्रामक रोगों का ही एक समूह है जो मुख्यतः यौन संपर्कों के द्वारा उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार के रोग जीवाणुओं, विषाणुओं एवं प्रोटोजाअल, कवक आदि कारकों एवं बाह्य परजीवियों द्वारा उत्पन्न होते हैं।

समस्या का विस्तार – मलेरिया एवं तपेदिक के बाद यह रोग एक अत्यधिक कठिन समस्या के रूप में है। भारत में यौन संचालित रोगों में सिफलिस और सुजाक रोग सबसे अधिक फैले हैं।

यौन संचारित रोग उत्पन्न करने वाले कारक

सामाजिक घटक- प्रायः यौन संचारित रोगों को ‘सामाजिक रोग’ के नाम से भी जाना जाता है। यौन रोगों के प्रसार के लिए उत्तरदायी मूल सामाजिक घटक वेश्यावृत्ति है। इसके साथ ही कुछ अन्य सहयोगी घटकों में टूटे हुए परिवार, पारिवारिक कलह, वैवाहिक जीवन में असंतुलन, गरीबी एवं नशाखोरी आदि हैं।

यौन रोगों पर नियंत्रण

यौन रोगों पर नियंत्रण के लिए कुछ आवश्यक उपाय निम्नलिखित हैं-

1. रोगी का पता लगाना- प्रत्येक यौन रोगी के पीछे समाज में कम से कम एक अज्ञात रोगी अवश्य होता है जिसका पता लगाना आवश्यक इस तरह के कार्य को ‘चिकित्सा सामाजिक कार्यकर्त्ता’ के द्वारा रोगियों से संपर्क करके उनके यौन संपर्कों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

2. व्यक्तिगत निरोध- यौन रोगों के खिलाफ व्यक्तिगत बचाव के लिए कंडोम एवं डायाफ्राम का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

3. रोगी का उपचार- यौन रोगी में व्याप्त प्रवृत्ति उपचार के पूर्ण होने के पूर्व ही गायब हो जाने की होती है। पूर्ण एवं पर्याप्त उपचार के बिना इन रोगों से मुक्ति असंभव कार्य है।

4. स्वास्थ्य शिक्षा- स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से समाज में व्याप्त यौन रोगों से सम्बद्ध समस्याओं के प्रति लोगों में जागरूकता उत्पन्न की जा सकती है और विभिन्न प्रकार की उपलब्ध चिकित्सा सेवाओं के उपयोग के लिए उन्हें प्रेरित किया जा सकता है।

5. सामाजिक चिकित्सा – सामाजिक उपायों के अन्तर्गत निम्नलिखित सम्मिलित हैं-

(i) वैवाहिक सलाह प्रदान करना ।

(ii) यौन शिक्षा प्रदान करना ।

(iii) वेश्यावृत्ति को समाप्त करके पुनर्वास की व्यवस्था करना।

(iv) सामाजिक स्तर के अनुकूल रहन-सहन में सुधार लाना।

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shubham yadav

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