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मादक पदार्थ व्यसन
“व्यक्ति और समाज के लिए हानिकारक आदत डालने वाले मादक पदार्थों का जब बारम्बार लम्बी अवधि तक या स्थायी रूप से नशा प्राप्ति के लिए सेवन करना मादक पदार्थों का व्यसन कहलाता है।”
“मादक पदार्थों पर निरंतर एवं बाध्यकारी निर्भरता को मादक पदार्थों का व्यसन कहा जाता है।”
मादक पदार्थों का दुरुपयोग या नशाखोरी
जब व्यक्ति जान-बूझकर बिना डॉक्टरी सलाह के कोई पदार्थ ग्रहण करता या डॉक्टरी सलाह के विपरीत अधिक मात्रा या अधिक आवृत्ति में किसी पदार्थ का सेवन करता है, तो इसे मादक पदार्थों का दुरुपयोग या नशाखोरी कहते हैं। लम्बी समयावधि तक मादक पदार्थों का व्यसन व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक कार्यप्रणाली को बुरी तरह से प्रभावित करता है। किसी भी प्रकार के ड्रग को नशाखोरी के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
आज नशीली दवाओं के सेवन की समस्या विश्वव्यापी हो चुकी है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि ‘नशा संस्कृति’ ने तेजी से बढ़ते हुए आज नवयुवकों, स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों तक में अपने पैर जमा लिए हैं। हाल ही के वर्षों में पाश्चात्य देशों की भाँति भारत में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. तनावग्रस्त जीवनशैली जिसके परिणामस्वरूप होने वाली मानसिक समस्याएँ, जैसे-अवसाद, चिंता, अनजान भय, असुरक्षा की भावना, कुण्ठा, नकारात्मक विचार, बाइपोर डिसऑर्डर आदि।
2. परिवार के लोगों, मित्रों, सम्बन्धियों एवं समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता।
3. वर्तमान में ड्रग्स लेना फैशन सिंबल की तरह उभर रहा है। दोस्तों और साथी समूह के दबाव और बहकावे में आकर मादक पदार्थों का सेवन करना ।
4. बढ़ती हुई जनसंख्या, अशिक्षा, औद्योगीकरण, शहरी प्रवास, मलिन बस्तियाँ, बेरोजगारी, बदलती जीवनशैली, देर रात की पार्टियाँ, सोशल नेटवर्किंग्स साइट्स और इंटरनेट का बढ़ता चलन भी इस समस्या के उल्लेखनीय कारणों में हैं।
5. बदलती हुई सामाजिक मान्यताएँ।
6. मादक पदार्थों की सरलता से उपलब्धता भी इस समस्या का एक कारण है। नशीले पदार्थों को कुछ खास जगहों से सरलता से खरीदा जा सकता है।
7. मादक पदार्थों के अनुभव की उत्सुकता और कुछ नया करने की चाहत ।
8. आदत डालने वाले मादक पदार्थों से अनभिज्ञता।
9. मूड परिवर्तन और सुखानुभूति की कामना भी इन मादक पदार्थों के सेवन का महत्त्वपूर्ण कारण है। सुखानुभूति की कामना करना मानव की एक सहज व स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इस कामना को प्राप्त करने के लिए मादक पदार्थों को अपनाते हैं और इसी क्रम में वे उनके कुछ दिनों बाद दास बन जाते हैं।
10. परिवार का अशांत वातावरण, आज के व्यस्त, मशीनी और भाग-दौड़ वाले जीवन में अभिभावकों द्वारा बच्चों की समस्याओं पर ध्यान न दे पाना।
मादक पदार्थों का व्यक्ति पर प्रभाव
मानव शरीर पर पड़ने वाले लघु एवं दीर्घकालिक दुष्प्रभावों के अनुसार मादक पदार्थों को विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. स्वापक पीड़ानाशक दवाएँ
ये दर्द से राहत प्रदान करने वाली या उसके प्रभाव को कम करने वाली दवाएँ हैं। जैसे- अफीम, मॉर्फिन, हेरोइन और कोडीन। हेरोइन का दूसरा नाम ‘ब्राउन शुगर’ भी है और यह अत्यन्त तीव्र एवं हानिकारक पदार्थ है।
सेवन का तरीका
अफीम-मुँह से और अंतःश्वसन (कश खींचना) ।
मॉर्फिन-इंजेक्शन के द्वारा।
कोडीन- मुँह से (गोलियों और एक सीरप ) ।
हेरोइन-इंजेक्शन, अंतःश्वसन।
लघुकालिक प्रभाव
(i) सुख अनुभूति बोध ।
(ii) विचार प्रक्रिया में परेशानी, उदासीनता और सुस्ती
(iii) भूख, प्यास और दर्द की भावना का अनुभव न होना।
(iv) हेरोइन का अधिक मात्रा में सेवन पेशी-स्फुरण के साथ बेहोशी और और ऐंठन, अचेतनता मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
दीर्घकालिक प्रभाव
(i) अस्थिर मनोदशा।
(ii) कामेच्छा की कमी।
(iii) अपच या कब्ज
(iv) सांस लेने में तकलीफ।
(v) शारीरिक विकृति ।
2. उत्तेजक
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली को तेज एवं उत्तेजित करने वाले पदार्थों को उत्तेजक कहते हैं। जैसे एम्फीटामीन जिसका सेवन मुख से किया जाता है और कोकीन जिसका सेवन सूँघकर किया जाता है।
लघुकालिक प्रभाव
(i) उत्साह और सुख अनुभूतिबोध ।
(ii) शरीर में अल्प समय के लिए बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा का अनुभव करना।
(iii) भूख न लगना।
(iv) अनिंद्रा ।
दीर्घकालिक प्रभाव
(i) स्थायी तौर पर अनिंद्रा की समस्या
(ii) पाचन तंत्र में कमजोरी
(iii) हृदय की तीव्र और अनियमित धड़कन
(iv) मनोदशा में बारंबार परिवर्तन।
(v) मनोविक्षिप्तता या पागलपन।
3. अवसादक
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली को धीमा करने वाले पदार्थों को अवसादक कहते हैं। जैसे-बारबिटुरेट्स, बैंजोडियाजोपाइन्स जिनका सेवन मुख से गोली के रूप में किया जाता है और शराब।
लघुकालिक प्रभाव
(1) चिंता और तनाव से राहत ।
(ii) सुख अनुभूति बोध
(iii) तंत्रिका-पेशीय समन्वय में कमी।
(iv) एकाग्रता और निर्णयन क्षमता में कमी।
(v) बेहोशी एवं अधिक मात्रा में सेवन से नींद।
दीर्घकालिक प्रभाव
(i) अवसाद।
(ii) थकान की स्थायी समस्या ।
(iii) श्वसन में तकलीफ।
(iv) कामेच्छा में कमी
(v) स्मृति एवं निर्णयन क्षमता में कमी।
(vi) नींद से सम्बन्धित गंभीर रोग।
4. भ्रांतिजनक मादक पदार्थ
मानव की धारणा, संवेग और मानसिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाले पदार्थों को भ्रांतिजनक मादक पदार्थ कहते हैं। जैसे-एल.एस.डी. जिसका सेवन मुख से गोली के रूप में पी.सी.सी. का सेवन सूंघकर या धूम्रपान रूप में मेसकालाइन का सेवन मुख से गोली के रूप में और सिलासाइबिन का सेवन धूम्रपान के रूप में किया जाता है।
लघुकालिक प्रभाव
(i) मनोदशा में बारंबार परिवर्तन ।
(ii) दिशा, दूरी और समय का विरूपण।
(iii) आभासी मतिभ्रम ।
(iv) स्वयं की पहचान का आभास न होना।
दीर्घकालिक प्रभाव
(i) जीवन के प्रति पूर्ण रूप से निरुत्साह।
(ii) पागलपन या विक्षिप्तावस्था।
5. केनाबिस समूह
केनाबिस वर्ग के पौधों से प्राप्त पदार्थ इस समूह के अंतर्गत आते हैं। जैसे-चरस या हशीस, गाँजा और भाँग जिन्हें मारिजुआला भी कहते हैं। इन सभी पदार्थों का सेवन धूम्रपान के रूप में किया जाता है।
लघुकालिक प्रभाव
(i) सुख अनुभूति बोध।
(ii) आँखों में लालपन आना।
(iii) गंध, स्पर्श और स्वाद की चेतनता में अल्पकालिक वृद्धि।
(iv) लघुकालिक स्मृति विलोपन ।
(v) जटिल शारीरिक कार्यों को कम करने में अक्षमता।
दीर्घकालिक प्रभाव
(i) संज्ञात्मक क्षमता में कमी ।
(ii) अमोटिवेशनल सिंड्रोम
(iii) श्वसन में तकलीफ।
(iv) नपुंसकता/बांझपन ।
(v) पागलपन।
6. वाष्पशील विलायक
इस श्रेणी के अन्तर्गत हाइड्रोकार्बन और पेट्रोलियम के यौगिक आते हैं। जैसे-गोंद, वर्निश, इरेजर द्रव्य और पेट्रोल जिनका सेवन सूँघकर किया जाता है।
लघुकालिक प्रभाव
(i) सुख अनुभूति बोध।
(ii) उदासीन विचार।
(iii) बोलने में हकलाहट।
(iv) चाल में लड़खड़ाहट।
(v) मतिभ्रम।
दीर्घकालिक प्रभाव
(i) स्थायी रूप से मस्तिष्क क्षति।
(ii) यकृत, वृक्क और हृदय क्षति।
(iii) पागलपन।
मादक पदार्थों के दुरुपयोग पर नियंत्रण हेतु प्रबन्धन
आज के व्यस्त मशीनी और भाग-दौड़ वाले जीवन में कभी-कभी अभिभावक बच्चों की ओर पूरा ध्यान नहीं दे पाते और बच्चों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। बेरोजगार शिक्षित, संवेदनशील नवयुवक अपने को दुविधा और असमंजस की स्थिति में पाता है। वह इस दुविधा की स्थिति में मादक पदार्थों का सेवन करने लग जाता है। इस व्यसन से छुटकारा पाने का उपाय कठिन अवश्य है किन्तु असाध्य नहीं। इस आदत से छुटकारा दिलाने के लिए उसके परिवार के लोगों, सम्बन्धियों और समाज का सहयोग होना अति आवश्यक है। सबसे पहले तो व्यसनी को दृढ़संकल्प होना चाहिए कि वह भविष्य में कभी भी इसका सेवन नहीं करेगा। मादक पदार्थों के दुरुपयोग पर नियंत्रण हेतु प्रबंधन का पहला कदम चिकित्सा है जिसमें निम्न बातें मुख्य हैं –
1. मादक पदार्थों का सेवन करने वालों की पहचान कर उन्हें इस व्यसन को छोड़ने के लिए प्रेरित करना ।
2. मादक पदार्थों पर आश्रितता से छुटकारा दिलाने के लिए व्यक्ति को चिकित्सीय देखरेख में अस्पताल में इलाज करवाना।
3. मादक पदार्थों पर आश्रितता से छुटकारे के बाद अस्पताल और घर में व्यक्ति की देखभाल और काउंसिलिंग ।
4. पुनर्वास।
मादक पदार्थों की लत एक निवारणीय बीमारी है। शोधों ने यह सिद्ध किया है कि मादक पदार्थों के निवारण कार्यक्रम में यदि परिवार, विद्यालय, समाज और मीडिया को सम्मिलित किया जाए तो इस सामाजिक समस्या पर काबू पाया जा सकता है। अतः आम नागरिकों एवं युवाओं को नशाखोरी के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न संचार माध्यमों में इस हेतु सूचना प्रसारित करनी होगी और शैक्षिक कार्यक्रमों के द्वारा इस समस्या के विभिन्न पक्षों से उन्हें अवगत करना होगा। अभिभावकों, शिक्षकों एवं चिकित्सा पेशेवरों को समाज में यह संदेश प्रसारित करना होगा कि यद्यपि नशाखोरी का चिकित्सीय उपचार है तथापि इसके उपचार से बेहतर जागरूकता द्वारा इसका निवारण है।
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