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मदिरापान का अर्थ
सभी आयु वर्गों में विशेषतः युवाओं में दिन-प्रतिदिन बढ़ रही मद्यपान की प्रवृत्ति आज एक गंभीर चिंता का विषय है। पश्चिमी संस्कृति की भाँति ही भारत में भी मद्यपान प्रगतिशील, आधुनिकता तथा बौद्धिकता का पर्याय मानकर तथा मूड परिवर्तन करने के लिए किया जा रहा है। चिकित्सा विज्ञान का भी मत है कि मादक पदार्थों और मद्यपान का नियमित सेवन करने वाले धीरे-धीरे अनुपयोगी और अनुत्पादक बोझ बनकर समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं। मद्यता या मदिरापान एक वैश्विक सामाजिक समस्या के साथ एक बीमारी भी है जिसके चार प्रमुख लक्षण हैं-
1. तृष्णा या उत्कट इच्छा- इस लक्षण के अन्तर्गत व्यक्ति को मद्यपान की तीव्र लालसा या इच्छा जाग्रत होती है।
2. स्वनियंत्रण की कमी-इस लक्षण के अन्तर्गत एक बार व्यक्ति मद्यपान आरम्भ करने के बाद अपनी इच्छा या नियंत्रण से स्वयं को रोक नहीं पाता और अपनी सहन सीमा से अधिक शराब का सेवन करता है।
3. निर्भरता- इस लक्षण के अन्तर्गत शराबी व्यक्ति इतना शराब पर निर्भर हो जाता है कि बिना पीये उसे कुछ अच्छा नहीं लगता न वह कुछ काम कर पाता है। इस स्थिति में यदि शराब को नहीं लिया जाता है तो शरीर पर शराब की निर्भरता स्पष्ट हो जाती है और निर्वतन लक्षण जैसे उल्टी आना, अधिक मात्रा में पसीना आना, शरीर में कम्पन, चिंता आदि लक्षण विकसित हो जाते हैं। यह लक्षण शरीर के वे संकेत हैं जो दिखते हैं कि शरीर बिना शराब लिए हुए कार्य करने के लिए अपने आपको समायोजित कर रहा है। जब व्यक्ति शराब पीना छोड़ देता है तो उसमें ‘निर्वतन लक्षण’ प्रकट होते हैं जैसे शारीरिक लक्षण देखने को मिलते हैं।
4. सहनशीलता—जो व्यक्ति शराब के लिए सहनशीलता बना लेते हैं उन्हें समान प्रभाव उत्पन्न करने के लिए अधिक से अधिक शराब की आवश्यकता होती है। एक शराब पीने वाला पहले थोड़ी मात्रा में शराब पीना प्रारम्भ करता है और फिर शराब की मात्रा बढ़ाता जाता है क्योंकि उसमें शराब को सहन करने की क्षमता बढ़ती जाती है और उसे अब अधिक मात्रा में शराब पीने से वही आनंद मिलता है जो पहले कम शराब पीने में मिलता था। अधिक मात्रा में शराब पीना उसके स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ा देता है।
मद्यपान के मस्तिष्क एवं शरीर पर प्रभाव
1. प्रमस्तिष्क प्रान्तस्था- यह विचार शक्ति निर्णयन क्षमता, संवेग नियंत्रण एवं पाँच इन्द्रियों से सम्बन्धित मुख्य क्षेत्र है। शराब के प्रभाव से व्यक्ति की सोचने की शक्ति क्षीण हो सकती है। जिससे व्यक्ति बिना सोचे-समझे कोई भी कार्य करने लगता है। इसके अतिरिक्त बिना किसी कारणवश क्रोध भी करने लगता है। इसके प्रभाव से इन्द्रियों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है जैसे दृष्टि का धुंधला होना। दीर्घकालिक शराब के सेवन से यह क्षेत्र स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त भी हो सकता है।
2. अनुमस्तिष्क – मस्तिष्क का यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण दैनिक कार्यों के समन्वय में योगदान देता है जैसे-चलना और वस्तुओं को पकड़ना। शराब के सेवन से शरीर की अनैच्छिक क्रिया धीमी हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपना संतुलन नहीं बनाए रख पाता और शरीर में कंपन का अनुभव करता है।
3. अन्तस्था- मस्तिष्क का यह क्षेत्र शरीर की अनैच्छिक क्रियाओं जैसे- श्वसन, तापमान नियंत्रण आदि को नियंत्रित करता है। एक ही समय में अधिक मात्रा में शराब के सेवन से व्यक्ति अचेतन अवस्था या कोमा में भी जा सकता है।
4. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र – शराब का सेवन तंत्रिकाओं, सुषुम्ना और मस्तिष्क से निर्मित इस भाग की सूचना आदान प्रदान की प्रणाली को प्रभावित करता । इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में सोचने, बोलने एवं क्रिया करने की गति क्षीण हो जाती है।
5. अधः श्चेतक- मस्तिष्क का यह क्षेत्र शरीर की मुख्य क्रियाओं जैसे हृदय स्पंदन और भूख व प्यास की भावना को नियंत्रित करता है। शराब के सेवन से व्यक्ति की हृदय स्पंदन दर कम हो जाती है और व्यक्ति को अधिक भूख और प्यास का अनुभव होता है।
6. हिप्पोकैम्पस – मस्तिष्क का यह क्षेत्र स्मृति से सम्बन्धित है। एक ही समय में अधिक मात्रा में शराब के सेवन से व्यक्ति का कुछ समय के लिए स्मृति विलोप हो जाता है। शराब में दीर्घकालिक प्रभावों में यह क्षेत्र स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है, ऐसा होने पर व्यक्ति के सीखने की क्षमता समाप्त हो जाती है।
शराब का सेवन मानव शरीर को विभिन्न रूपों में हानि पहुँचाता है। मस्तिष्क पर इसकी क्रिया के फलस्वरूप सोचने-समझने, धारणा एवं तर्कशक्ति प्रभावित होती है। हृदय पर इसकी क्रिया के फलस्वरूप हृदय स्पंदन दर धीमी होती है और दीर्घअवधि तक यदि शराब का सेवन किया जाए तो हृदय रोग, हृदयाघात और उच्च रक्तचाप की संभावना बढ़ जाती है, आमाशय पर इसकी क्रिया के फलस्वरूप अधिक मात्रा में आमाशय अम्ल निर्मित होता है तो पाचन तंत्र को प्रभावित करता है और दीर्घअवधि तक यदि शराब का सेवन किया जाए तो आमाशय कैंसर और अल्सर की संभावना अधिक | बढ़ जाती है; वृक्कों पर इसकी क्रिया के फलस्वरूप अधिक मात्रा में मूत्र निर्मित होता है जिससे वृक्कों को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है और दीर्घअवधि तक यदि शराब का सेवन किया जाए। तो वृक्क कार्य करना बन्द भी कर सकते हैं; त्वचा पर इसकी क्रिया के फलस्वरूप त्वचा में अधिक लालिमा दिखाई दे सकती है क्योंकि ये त्वचा की सतह पर रक्त प्रवाह की मात्रा को बढ़ा देता है; नेत्रों पर इसकी क्रिया के फलस्वरूप प्रकाश में दृष्टि की समंजन क्षमता क्षीण होती है; यकृत पर इसकी क्रिया के फलस्वरूप लिवर सिरोसिस नामक रोग भी हो सकता है।
अपराध, हत्या, वेश्यावृत्ति, पारिवारिक उपेक्षा, कुपोषण रोग (जैसे यकृत का सिरियोसिस, शराब निर्भरता संलक्षण, शराबी मनोविक्षिप्ति) बेरोजगारी, सड़क दुर्घटनाएँ अत्यधिक मद्यपान से गंभीर चिकित्सीय, मनोवैज्ञानिक और समाजवैज्ञानिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
मद्यपान का उपचार
किसी भी व्यक्ति को ऐल्कोहॉल समस्या उस समय होती है जबकि उसकी शराब पीने की आदत उसे या किसी अन्य को समस्या बन जाती है। ऐल्कोहॉल समस्या की उपचार विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. बिना चिकित्सा के परिवर्तन- अनेक समस्यात्मक मद्यपान करने वाले स्वयं ही अपनी शराब पीने की मात्रा में कमी ले आते हैं। उनके परिवार वाले, मित्र आदि व्यवहार के बदलने में उनकी सहायता करते हैं। कुछ ऐल्कोहॉलिक्स ऐनोनीमस नाम की संस्था या अन्य समाज कल्याण संस्था की सहायता लेकर शराब पीना छोड़ने या कम करने की चेष्टा करते हैं। यह संस्थाएँ व्यक्ति को शराब पूर्ण रूप से छोड़ने पर बल देती हैं। ऐल्कोहॉलिक्स ऐनोनीमस जो AA से जानी जाती है ऐसा संगठन है जो शराब पीने वालों को साथ-साथ लाकर, मीटिंग करके जिनमें धार्मिक प्रवचन भी होते हैं, शराब पीने के रोग के उपचार की चेष्टा करते हैं।
2. मनोचिकित्सा– अनेक प्रकार से मनोचिकित्सा समस्यात्मक शराब पीने वालों को दी जाती है। मनोचिकित्सा के साथ ऐल्कोहॉलिक्स ऐनोनीमस अथवा किसी प्रकार का रासायनिक उपचार भी किया जाता है।
3. रासायनिक उपचार – कई चिकित्सक शराबी व्यक्ति के उपचार के लिए औषधियों का प्रयोग करते हैं। ऐसी औषधियाँ दी जाती हैं जो ऐल्कोहॉल के साथ अन्तःक्रिया करके अप्रिय प्रभाव उत्पन्न करती हैं। सबसे आम औषधि जिसका प्रयोग किया जाता है वह डायसलफिराम है। अप्रिय प्रभावों में शामिल होते हैं जैसे-चेहरा का फूल जाना, सीने में दर्द, हृदय की गति तेज हो जाना, जी मिचलाना, उल्टी आना, पसीना आना, सिरदर्द, आँखों के आगे अँधेरा आना, कमजोरी साँस लेने में कठिनाई एवं रक्तचाप में तेजी से कमी। यह प्रभाव उस समय तक नहीं होते जब तक ऐल्कोहॉल और औषधि दोनों अंतर्ग्रहण नहीं कर लिए जाते हैं।
4. विरुचि चिकित्सा- इसमें अनुबंधन सिद्धान्त का प्रयोग किया जाता है। बिजली का झटका, एक ऐमेटिक औषधि अथवा कोई अन्य विरुचि सम्बन्धी उत्तेजक देकर रोगी में ऐल्कोहॉल के प्रति अरुचि पैदा की जाती है।
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