स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

स्वास्थ्य के निर्धारक तत्व | Determinants of Health in Hindi

स्वास्थ्य के निर्धारक तत्व
स्वास्थ्य के निर्धारक तत्व

स्वास्थ्य के निर्धारक तत्व

स्वास्थ्य एक बहुआयामी धारणा है। मानव स्वास्थ्य अनेक प्रकार के कारकों द्वारा प्रभावित होता रहता है। कुछ प्रमुख कारकों जैसे-शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक तथा आध्यात्मिक के अलावा मानव स्वास्थ्य पर अनेक प्रकार के निर्धारकों का भी प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार के निर्धारकों में से कुछ प्रमुख निर्धारक जैसे कि व्यवहार का तरीका, राजनीतिक प्रणाली, जैविक स्थितियाँ, सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियाँ आदि स्वास्थ्य सेवाओं की वितरण प्रणाली एवं पर्यावरण आदि। इसका तात्पर्य यह हुआ कि एक ओर जहाँ स्वास्थ्य का निर्धारण प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा स्वयं ही किया जा सकता है, वहीं पर उसके स्वास्थ्य के निर्धारक तत्त्वों के अन्तर्गत समाज एवं पर्यावरण की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

1. राजनीतिक अवस्था

स्वास्थ्य राष्ट्र की राजनैतिक व्यवस्था से भी सम्बन्धित है। प्रायः स्वास्थ्य तकनीकों को कार्यान्वित करने के मार्ग में मुख्य बाधा तकनीकी की अपेक्षा राजनैतिक है। साधनों के बंटवारे, मानवीय संसाधन नीति, तकनीक के चयन एवं स्वास्थ्य सेवाओं का वह क्रम जिसमें ये सेवाएँ समाज के विभिन्न भागों में सुगमता से उपलब्ध हों इनसे सम्बन्धित निर्णय राजनैतिक व्यवस्था के तरीकों के उदाहरण हैं, जिनसे सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं का गठन किया जा सकता है।

2. स्वास्थ्य सेवाओं की वितरण प्रणाली

स्वास्थ्य सेवाओं का लक्ष्य लोगों के स्वास्थ्य स्तर में सुधार लाना है। परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण सेवा पद व्यक्तिगत व सामुदायिक सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला को समाहित करता है। ये सेवाएँ बीमारी के इलाज बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने हेतु होती हैं। बच्चों के प्रतिरक्षण से किसी विशेष बीमारी के खतरे को रोका जा सकता है। स्वच्छ पानी के प्रबंध से जल से उत्पन्न होने वाली बीमारियों के फैलाव व उनसे होने वाली मृत्यु से “सुरक्षा की जा सकती है। गर्भवती महिलाओं व बच्चों की देखभाल बच्चों एवं माता की अस्वस्थता और मृत्युदर में कमी लाने में योगदान देगा। ये सभी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के अंग हैं। ये भी उसके घटक हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के प्रयास (मार्ग) के रूप में देखा जाता है।

3. आनुवंशिकता

प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक गुण कुछ सीमा तक उसके – गुणसूत्रों की प्रकृति से निश्चित होते हैं और ये गुणसूत्र उसे उसके अभिभावकों के द्वारा मिलते हैं। गुणसूत्रों की संरचना बाद में परिवर्तित नहीं हो सकती। गुणसूत्रों की खराबी बहुत सी बीमारियों को उत्पन्न करती है, जैसे-सिकल सैल एनीमिया, हीमोफीलिया, चयापचय की कुछ खराबी इत्यादि। अतः स्वास्थ्य की स्थिति गुणसूत्रों की संरचना पर निर्भर करती है।

4.वातावरण

बाह्य वातावरण उन चीजों से बना है जिससे व्यक्ति जनन के बाद सम्पर्क में आता हैं। इसे तीन घटकों में विभाजित किया जा सकता है। ये घटक हैं- शारीरिक घटक, जीव वैज्ञानिक घटक एवं मानसिक व सामाजिक घटक। ये सभी घटक अथवा कोई एक घटक व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और इसका सीधा प्रभाव होता है। यदि वातावरण किसी व्यक्ति के अनुकूल है तो वह अपनी शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का भरपूर प्रयोग कर सकता है।

5. जीवन पद्धति

जीवन पद्धति का अर्थ है लोगों के रहन-सहन का तरीका और यह सामाजिक मूल्यों, व्यवहारों और गतिविधियों को प्रतिबिम्बित करता है। स्वस्थ जीवन पद्धति स्वास्थ्य की जरूरत है। उदाहरण के लिए पौष्टिकता, पर्याप्त नींद, शारीरिक गतिविधियाँ आदि। स्वास्थ्य में व्यक्ति की जीवन पद्धति और इसे निश्चित करने वाले कारक दोनों तत्त्व शामिल हैं। आज के समय में स्वास्थ्य समस्याओं को विशेषतया विकासशील देशों में परिवर्तित जीवन पद्धति के साथ जोड़ा गया है। भारत जैसे विकासशील देशों में जहाँ पर परम्परागत जीवन पद्धति अभी भी जारी है, स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी की वजह से बीमारी के खतरे से मृत्यु मानवीय आदत और परम्परा का परिणाम है।

6. सामाजिक आर्थिक स्थिति

ऐसा माना जाता है कि किसी भी देश के नागरिकों का स्वास्थ्य स्तर एवं उस देश की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। उस देश में विद्यमान विभिन्न स्वास्थ्य संसाधनों एवं उनकी वितरण प्रणाली के द्वारा शिक्षा, वहाँ की आर्थिक स्थिति, व्यावसायिक अवसरों, आवास, पर्याप्त पोषण स्तर, वहाँ की प्रति व्यक्ति आय एवं वहाँ के सकल घरेलू उत्पाद आदि से सीधा सम्बन्ध होता है। क्योंकि अत्यधिक एवं समुचित वित्तीय प्रबंधन के द्वारा अनेक रोगों का नियंत्रण या उनकी रोकथाम की जा सकती है और स्वास्थ्य से सम्बन्ध स्तरों को कम किया जा सकता है एवं व्यक्ति, परिवार एवं वहाँ के स्वास्थ्य स्तर में पर्याप्त वृद्धि कर पाना संभव होता है। लेकिन फिर भी कुछ जटिल प्रकार की सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ होती हैं जो कठिनाइयों के साथ ही सुलझाई जा सकती हैं। इसके विपरीत एक अच्छा सामाजिक-आर्थिक वातावरण व्यक्ति, परिवार एवं समुदाय को अधिकांश स्वास्थ्य आवश्यकताओं की यथासंभव पूर्ति कर सकता है।

उपर्युक्त वर्णित निर्धारकों के अतिरिक्त स्वास्थ्य के अन्य निर्धारक भी हैं, जैसे-महिला शिक्षा, कृषि बाल कल्याण, ग्रामीण विकास, शहरी सुधार, वृद्धावस्था में स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक कल्याण आदि इन निर्धारकों की भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

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shubham yadav

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