स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

शारीरिक फिटनेस का अर्थ एवं परिभाषा |शारीरिक फिटनेस के प्रकार | शारीरिक फिटनेस के घटक

शारीरिक फिटनेस का अर्थ एवं परिभाषा
शारीरिक फिटनेस का अर्थ एवं परिभाषा

शारीरिक फिटनेस का अर्थ एवं परिभाषा

शारीरिक फिटनेस के सन्दर्भ में भिन्न-भिन्न विचार प्रचलित हैं। कुछ विचारकों ने इसे किये जाने वाले कार्य से संबंधित किया है, कुछ विचारकों ने इसे सुगठित शारीरिक संगठन माना है तो कुछ ने इसे शरीर क्रियात्मक प्रणाली का उचित विकास के रूप में स्वीकार्य किया है। वस्तुतः इस शब्द के व्यापक अर्थ हैं। यह व्यक्ति में केवल कुछ गामक गुणों यथा शक्ति, गति एवं सहन शक्ति के विकास से अधिक है। साधारण शब्दों में जो व्यक्ति ऊर्जावान, उत्साही और दिए गए काम को पूर्ण निष्ठा से करने में सक्षम होता है, उसे शारीरिक रूप से फिट कहा जा सकता है।

शारीरिक फिटनेस का स्तर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न होता है। यह व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले कार्य, आकार, संरचना, आयु, लिंग और अनुकूलन क्षमता की प्रकृति पर निर्भर करता है। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न खेलों में फिटनेस की आवश्यकता में भी बदलाव आता है। शारीरिक फिटनेस में गामक तंत्र, जैविक तंत्र और मनोतंत्र कुशलतापूर्वक कार्य निष्पादन करते हैं।

शारीरिक स्वास्थ्य और खेल पर संयुक्त राज्य अमेरिका की अध्यक्षीय परिषद् ने शारीरिक फिटनेस और खेलकूद को निम्न रूप में परिभाषित किया है, “शारीरिक फिटनेस व्यक्ति की दैनिक कार्यों को पूर्ण ऊर्जा, शक्ति और सतर्कता से बिना थके कार्य करने की क्षमता है। इसके बाद भी व्यक्ति में खाली समय का सदुपयोग करने और अप्रत्याशित आपात् स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त ऊर्जा विद्यमान रहती है।”

वेबस्टर शब्दकोश के अनुसार, “शारीरिक फिटनेस व्यक्ति की दैनिक कार्यों को बिना थके करने की क्षमता है। इसके बाद भी व्यक्ति में शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने और किसी आपात स्थिति से निपटने की भी पर्याप्त क्षमता विद्यमान रहती है।”

डेविड आर. लैम्ब के अनुसार, “शारीरिक फिटनेस सफलतापूर्वक जीवन की वर्तमान और संभावित चुनौतियों का सामना करने की क्षमता है।”

डॉ. क्रोल्स के अनुसार, “शारीरिक फिटनेस किसी व्यक्ति की जीवन शैली से सम्बन्धित तनावों का सफल अनुकूलन है।”

ब्रूनो बैले के शब्दों में, “शारीरिक फिटनेस किसी व्यक्ति की जैव-गर्तिक क्षमता पर निर्भर करती है और यह जैव-गतिक क्षमता कार्यात्मक और चयापचय क्षमता के संयोजन से निर्मित होती है।”

शारीरिक फिटनेस के प्रकार

शारीरिक फिटनेस दो प्रकार की होती है- 1. स्वास्थ्य से सम्बन्धित शारीरिक फिटनेस और 2. कौशल से सम्बन्धित शारीरिक फिटनेस।

1. स्वास्थ्य संबंधी फिटनेस-इसका तात्पर्य है कि शरीर के विभिन्न तंत्र स्वस्थ हैं और पूर्ण दक्षता से कार्यरत हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति विभिन्न दैनिक कार्यों को पूर्ण सजगता से निष्पादित करता है और खाली समय का सदुपयोग विभिन्न आनंददायी गतिविधियों के द्वारा करता है। यह हृदय रोगों से संबंधित जोखिम कारकों का सकारात्मक प्रभाव डालता है, यह कमर दर्द, मधुमेह, ऑस्टियोपोरोसिस और मोटापे के खतरे भी कम करने में प्रभावी है। इसके अतिरिक्त यह भावनात्मक तनाव का प्रबंधन करने का भी एक प्रभावी उपाय है। अन्य शब्दों में, स्वास्थ्य से सम्बन्धित फिटनेस व्यक्ति को स्वस्थ, प्रसन्नता एवं जीवन का पूर्ण आनंद लेने में सक्षम बनाती है।

2. कौशल सम्बन्धित फिटनेस-कौशल सम्बन्धित फिटनेस के समान ही लाभदायक है, किन्तु यह कार्य या खेल विशेष के लिए आवश्यक गामक कौशलों से भी सम्बंधित है। यही कारण है कि कौशल से सम्बन्धित फिटनेस को गामक फिटनेस भी कहा जाता है।

शारीरिक फिटनेस के घटक

शारीरिक फिटनेस के अन्तर्गत आने वाले स्वास्थ्य एवं कौशल सम्बन्धित फिटनेस के घटकों के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण बात है। जहाँ स्वास्थ्य संबंधी फिटनेस मांसपेशीय शक्ति, मांसपेशीय सहनशक्ति, कार्डियो-वैस्कुलर सहनशक्ति, लचीलापन एवं मोटापे से मुक्ति या शारीरिक संरचना, इन 5 घटकों से मिलाकर बनता है, वहीं कौशल संबंधी फिटनेस, स्वास्थ्य संबंधी फिटनेस के 5 घटकों के साथ 5 और अतिरिक्त घटकों को सम्मिलित करता है- मांसपेशीय बल, चपलता, गति, संतुलन और प्रतिक्रिया समय। इस प्रकार कौशल संबंधी फिटनेस कुल 10 घटकों का संयोजन है।

(अ) स्वास्थ्य सम्बन्धी फिटनेस के घटक

1. मांसपेशीय शक्ति- यह मांसपेशी या मांसपेशीय समूह की अधिकतम शक्ति उत्पन्न करने की क्षमता है। मांसपेशीय शक्ति को डायनमोमीटर एवं टेन्सियोमीटर उपकरणों की सहायता से मापा जाता है। ये उपकरण मांसपेशीय समूह द्वारा एकल प्रयास में लगाए गए बल की मात्रा का मापन करते हैं।

मांसपेशीय शक्ति का विकास- भार प्रशिक्षण, अनुकूलन अभ्यास, मेडसिन बॉल व्यायाम, प्लायोमैट्रिक व्यायाम, सर्किट ट्रेनिंग, डम्बल अभ्यास आदि।

2. मांसपेशीय सहनशक्ति – मांसपेशीय समूह अपनी पूर्ण क्षमता के साथ जितनी समयावधि तक कार्य कर सकती है, उसे मांसपेशीय सहनशक्ति कहते हैं। अन्य शब्दों में किसी कार्य को करने में जब मांसपेशीय थकान शीघ्र होती है तो मांसपेशीय सहनशक्ति कम होती है।

मांसपेशीय सहनशक्ति का विकास- दौड़ना, तैराकी, रस्सी कूदना, साइकिलिंग, सीढ़ियाँ चढ़ना, तेज पैदल चाल, क्रास कंट्री दौड़, भार प्रशिक्षण, सर्किट ट्रेनिंग, फार्टलेक, ट्रेनिंग, हिल रनिंग आदि।

3. कार्डियो-वैस्कुलर सहनशक्ति – यह हृदय और की कार्यक्षमता है जिसके अंतर्गत शरीर की कार्यशील मांसपेशियों को रक्त आपूर्ति की जाती है। इस रक्त में घुलित ऑक्सीजन का मांसपेशीय कोशिकाएँ उपयोग कर सहनशक्ति व्यायाम के लिए आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन करती हैं।

4. लोचशीलता या नम्यता- यह शरीर के जोड़ों को गति प्रदान करने की क्षमता है जिसमें बिना किसी अनुचित दबाव के गति के अधिकतम सीमा क्षेत्र में जोड़ों की गति संभव हो पाती है। उदाहरणार्थ, सीधी खड़ी मुद्रा में बिना घुटनों को मोड़ते हुए अपने दोनों हाथों से पैर की अंगुलियों को स्पर्श करना।

लोचशीलता का विकास- स्टेटिक स्ट्रेचिंग, डायनोमिक स्ट्रेचिंग, बैलेस्टिक स्ट्रेचिंग, असिस्टिड स्ट्रेचिंग, योगासना अभ्यास आदि।

5. मोटापे से मुक्ति या शरीर संरचना- मोटापा शरीर में वसा की अधिकतम मात्रा संचयन करने को संदर्भित करता है जिसके कारण कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं, जैसे-कोरोनरी हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह एवं श्वसन संबंधी समस्याएँ। मोटापे को व्यक्ति के शारीरिक भार के सापेक्ष शरीर में पायी जाने वाली वसा की मात्रा के संदर्भ में मापन किया जाता है।

(ब) कौशल सम्बन्धी फिटनेस के घटक

कौशल सम्बन्धी फिटनेस में स्वास्थ्य संबंधी फिटनेस के उपर्युक्त 5 घटकों के अतिरिक्त निम्न 5 घटक सम्मिलित होते हैं-

1. मांसपेशीय बल – यह मांसपेशियों की कम कम समय में अधिकतम बल उत्पन्न करने की क्षमता है। उदाहरणार्थ, वॉलीबाल में स्मैश करना।

2. चपलता – यह तेजी से सम्पूर्ण शरीर के अंगों की स्थिति और दिशा बदलने की क्षमता है। उदाहरणार्थ, कबड्डी में रेडर द्वारा रेड करना।

3. गति – शारीरिक मांसपेशियों की गति परिवर्तन की दर को मांसपेशीय गति कहते हैं। उदाहरणार्थ, 100 मीटर दौड़।

4. संतुलन- गुरुत्वाकर्षण शक्ति के विरुद्ध शरीर को साम्यावस्था में की क्षमता को संतुलन कहते हैं। मूलतः संतुलन दो प्रकार के होते हैं— स्थैतिक एवं गतिक ।

(i) स्थैतिक संतुलन- स्थैतिक अवस्था में शरीर को साम्यावस्था में बनाए रखने की क्षमता को गतिक संतुलन कहते हैं। उदाहरणार्थ, एक पैर पर खड़े रहना तथा राइफल शूटिंग के समय शरीर को स्थैतिक संतुलन की अवस्था में रखना।

(ii) गतिक संतुलन- गति अवस्था में शरीर को साम्यावस्था में बनाए रखने की क्षमता को गतिक संतुलन कहते हैं। उदाहरणार्थ, पैदल चाल, दौड़, नृत्य में गतिक संतुलन आवश्यक है।

5. प्रतिक्रिया समय — उद्दीपक की प्रस्तुति और उसके प्रति पहली प्रतिक्रिया के बीच के समयान्तराल को प्रतिक्रिया समय कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी दृश्य या श्रव्य उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करने में लगे समय को प्रतिक्रिया समय कहते हैं। उदाहरणार्थ, 100 मीटर दौड़ में पिस्टल की आवाज सुनकर एथलीट दौड़ आरम्भ करते हैं।

विभिन्न खेल प्रशिक्षण विधियाँ

शारीरिक फिटनेस के मूलभूत घटक, जैसे- शक्ति, सहनशक्ति, गति एवं नम्यता के विकास विभिन्न प्रशिक्षण विधियों के माध्यम से किया जाता है। इन विधियों में अग्रलिखित उल्लेखनीय हैं-

1. सतत् प्रशिक्षण विधि।

2. अंतराल प्रशिक्षण विधि।

3. प्रतियोगिता एवं ट्रायल विधि।

4. सर्किट ट्रेनिंग विधि।

5. फार्टलेक ट्रेनिंग विधि ।

6. प्लायोमैट्रिक ट्रेनिंग विधि।

7. भार प्रशिक्षण विधि।

1. सतत् प्रशिक्षण विधि– यह विधि मुख्यतः लम्बी दूरी के धावकों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। इस विधि में व्यायाम बिना किसी विश्राम के लम्बी अवधि तक व्यायाम किया जाता है। लम्बी अवधि तक व्यायाम करने के कारण इस विधि में व्यायाम करने की तीव्रता कम होती है। यह विधि कार्डियो-वैस्कुलर फिटनेस को उन्नत बनाने में प्रभावी है। इस विधि का मुख्य लाभ  है कि इसमें धावक प्रतियोगिता के दौरान जिस नियत गति से दौड़ना चाहता है। लगभग उसी गति से वह ट्रेनिंग के दौरान भी अभ्यास करता है। यही कारण है कि यह विधि एथलीट को मूल प्रतियोगिता | के दृष्टिकोण से स्वयं को तैयार करने में सहायक होती है।

इस ट्रेनिंग विधि के 4 प्रकार हैं- (1) धीमी गति से निरंतर विधि, (2) तेज गति से निरंतर विधि, (3) परिवर्तनशील गति विधि, (4) फार्टलेक विधि।

2. अंतराल प्रशिक्षण विधि- अंतराल विधि सभी प्रकार के इन्डयूरेन्स या सहनशक्ति में सुधार के लिए सबसे बहुमुखी विधि है। अंतराल विधि में व्यायाम अपेक्षाकृत उच्च तीव्रता के साथ किया जाता है तथा व्यायाम के मध्य रिकवरी के लिए अल्प समय के लघु अंतराल दिए जाते हैं। अंतराल विधि में एथलीट को इस गति के साथ वर्कआउट कराया जाता है जिससे हृदय गति बढ़कर 180 धड़कन प्रति मिनट तक पहुँच जाए। इसके बाद एथलीट को अल्प विश्राम दिया जाता है और जब एथलीट की हृदय गति घटकर 120-130 धड़कन प्रति मिनट तक आ जाती है तो पुनः वर्कआउट प्रारंभ कर दिया जाता है। अंतराल विधि में दिये जाने वाले ट्रेनिंग भार का नियंत्रण लगातार हृदय गति की जाँच से किया जाता है। अंतराल विधि का उपयोग प्रशिक्षकों द्वारा विस्फोटक शक्ति, शक्ति-सहनशक्ति, गति सहनशक्ति एवं त्वरित गति को उन्नत बनाने के लिए किया जाता है

3. सर्किट ट्रेनिंग विधि- सक्रिट ट्रेनिंग विधि को वर्ष 1953 में लीडस विश्वविद्यालय इंग्लैण्ड के आर. ई. मॉर्गन और जी.टी. एडमसन ने विकसित किया था। इस विधि में ट्रेनिंग के सभी कारक सम्मिलित होते हैं। सक्रिट ट्रेनिंग से मुख्यतः शक्ति, मांसपेशीय सहनशक्ति, गति, चपलता, नम्यता, कार्डियो-वैस्कुलर सहनशक्ति एवं तंत्रिका-पेशीय समन्वय का विकास संभव है। अंतराल विधि में दिये जाने वाले ट्रेनिंग भार का नियंत्रण लगातार हृदय गति की जाँच से किया जाता है। सर्किट ट्रेनिंग संभवतः सबसे प्रचलित प्रशिक्षण विधि है जिसे विभिन्न खेलों में प्रदर्शन को उन्नत बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। सर्किट ट्रेनिंग में विभिन्न स्टेशन निर्मित किये जाते हैं और एथलीट प्रत्येक स्टेशन पर एक निश्चित समय अंतराल के लिए निर्धारित व्यायामों को करता है। एक स्टेशन पर निर्धारित समय की समाप्ति के बाद एथलीट दूसरे स्टेशन और इसके बाद के सभी स्टेशन पर यही प्रक्रिया को दोहराता है। सामान्यतः एक सर्किट में 10-12 स्टेशन होते हैं। शक्ति-सहनशक्ति के विकास के लिए सर्किट ट्रेनिंग एक बहुत ही प्रचलित एवं प्रभावी विधि है। सर्किट ट्रेनिंग में प्रत्येक स्टेशन में विभिन्न प्रकार के व्यायाम एक के बाद एक किये जाते हैं।

4. फार्टलेक विधि- फार्टलेक एक स्वीडिश शब्द है जिसका अर्थ है स्पीड प्ले। इस विधि में स्पीड या गति पहले से पूर्वनियोजित नहीं होता है। एथलीट दौड़ते समय स्वयं ही अपनी इच्छानुसार प्रतिवेशानुसार दौड़ने की गति को कम या अधिक करते हैं। इसलिए इस विधि के प्रभावी होने के लिए एथलीट को अधिक आत्म अनुशासित होना पड़ता है। इस विधि में हृदय गति 140 से 180 धड़कन प्रति मिनट तक रहती है। इस विधि में प्रशिक्षण का कुल समय 15 मिनट से 1 घण्टे तक हो सकता है। इस विधि द्वारा ऐरोबिक और एनऐरोबिक दोनों प्रकार की क्षमता एक ही समय पर विकसित की जा सकती हैं।

5. भार प्रशिक्षण विधि- गति में सुधार के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारक शक्ति है। एक निर्धारित अवधि के लिए वजन प्रतिरोध में वृद्धि कर शक्ति एवं गति दोनों को विकसित किया जा सकता है। मांसपेशीय शक्ति के विकास के लिए किए जाने वाले वेट ट्रेनिंग व्यायाम से मांसपेशीय तन्तुओं का विस्तार होता है। आरंभ में एथलीटों को यह सलाह दी जाती है वे कम वजन से प्रारम्भ करें और धीरे-धीरे वजन में वृद्धि करें ताकि एक सुदृढ़ आधार बन सकें। वेट ट्रेनिंग अभ्यास में दो पक्ष में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। प्रथम शरीर के बड़े मांसपेशीय समूह जैसे (पैर, छाती, कंधे) को छोटे मांसपेशीय समूह से पहले विकसित करने के लिए अभ्यास करना चाहिए। दूसरा एक मांसपेशीय समूह के लिए व्यायाम करने के बाद उसे रिकवरी पर्याप्त समय देना चाहिए।

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shubham yadav

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