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सपाट पद का अर्थ
इस विकृति में पैर का मध्यवर्ती आर्च दबा हुआ होता है और पैर की मध्यवर्ती सीमा खड़े होते समय जमीन को स्पर्श करती है। यह विकृति सामान्यतः कुछ स्तर तक बहिर्वर्तन से सम्बन्धित होती है।
सपाट पद के प्रकार
सपाट-पद दो प्रकार के होते हैं-
1. संरचनात्मक सपाट – पद- संरचनात्मक सपाट पद में पैर का मध्यवर्ती आर्क सामान्य स्थिति में भी दिखाई देता है। दूसरे शब्दों में अपरिवर्तनीय प्रकार की विकृति है जिसमें पैर पर किसी प्रकार का दबाव न डालने पर भी पैर का मध्यवर्ती आर्च सदैव दबा हुआ दिखाई देता है।
2. कार्यात्मक सपाट-पद- कार्यात्मक सपाट पद में विकृति प्रकट होती है और पैर का मध्यवर्ती आर्क केवल तभी दिखाई देता है जब व्यक्ति खड़ा होता या जब पैर पर दबाव पड़ता है। जब पैर का दबाव हटा दिया जाता है या व्यक्ति बैठ जाता है तो पैर का मध्यवर्ती आर्च सामान्य दिखाई देता दूसरे शब्दों में कार्यालय सपाट पद एक प्रतिवर्ती विकृति है।
सपाट पद के कारण
(1) पैरों की मांसपेशियाँ विशेषतः टिबिलियस एंटीरियर, टिबिलियस पोस्टीरियर में कमजोरी या पक्षाघात से भी सपाट-पद विकृति विकसित हो सकती है।
(2) पैरों या टखने में लगने वाली चोटें भी इस विकृति को उत्पन्न कर सकती हैं।
(3) अनुचित प्रकार के जूतों के उपयोग से भी यह विकृति पैदा हो सकती है।
(4) कभी-कभी शरीर के अन्य दोष या विकृति जैसे धनुर्जानु, पार्वअग्रकुब्जता भी सपाट पद विकृति के उत्तरदायी कारक हो सकते हैं।
(5) रिकेट्स या संस्थितिजन्य दोष-उठने, बैठने, लेटने, खड़े रहने और सोने की दोषपूर्ण संस्थिति सपाट पद का कारक हो सकती है।
(6) बिना विश्राम किये लगातार खड़े रहने या पैरों पर दबाव डालने से पैरों की मांसपेशियों और लिगामेन्ट्स पर अनावश्यक खिंचाव उत्पन्न होता है।
(7) मोटापा भी सपाट-पद विकृति के लिए उत्तरदायी कारक हो सकता है।
सपाट-पद के लिए शारीरिक उपचार
सपाट-पद के लिए शारीरिक उपचार हेतु निम्न उपाय करने चाहिए –
(1) यदि आवश्यक हो तो जोड़ों को उपचारात्मक व्यायामों से गतिशील बनाए रखना चाहिए।
(2) सही तरीके से चलना और उचित संस्थिति को बनाये रखने हेतु प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
(3) कन्ट्रास्ट बाथ, विद्युतीय उद्दीपन, मालिश और सुधारात्मक व्यायाम कुछ महत्त्वपूर्ण शारीरिक विधियाँ हैं जिनका उपयोग सपाट-पद के उपचार हेतु किया जाता है।
(4) जहाँ आवश्यक हो वहाँ पैर के आर्च या चाप को आधार प्रदान करने वाले जूतों का उपयोग करना चाहिए।
(5) सपाट – पद विकृति से ग्रसित व्यक्ति को चलने के सही तरीकों के बारे में जानकारी देनी चाहिए और उसे लगातार दोषयुक्त संस्थिति में खड़े रहने जैसी आदतों को छोड़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
(i) पैर के आर्च या चाप को जहाँ तक संभव हो स्वस्थ रखना चाहिए। (ii) पैर की मांसपेशियों का सुदृढ़ीकृत करना विशेषतः इन्वर्टर और इन्ट्रिन्सिक मांसपेशियों को ।
सपाट-पद के लिए सुधारात्मक व्यायाम
(1) जमीन से एड़ी को उठाये बिना पैर के पंजे से तौलिया को खींचना ।
(2) बैठने की स्थिति से पैर के पंजों से जमीन पर पड़े कंकड़ उठाना।
(3) कुर्सी पर बैठे हुए पैर के पंजे से पेन्सिल को उठाना। इसके बाद ‘ए’ से ‘जेड’ तक सभी अक्षर लिखने का प्रयास करना। लिखने की इस प्रक्रिया को बारी-बारी से दोनों पैरों द्वारा करना चाहिए।
(4) पैरों पर बिना दबावयुक्त और दबावयुक्त व्यायामं सपाट-पद विकृति के उपचार में दो रूपों में लाभदायक होते हैं – (i) पैरों में मांसपेशीय तान को बनाए रखने में; (ii) पैरों की मांसपेशियों को सुदृढ़ीकृत करने में ।
(5) पैरों के पंजों पर चलना।
(6) रेत में नंगे पैर चलना।
(7) ढलानयुक्त या झुकावदार बोर्ड पर चलना।
(8) पैर के पंजे से हवा में अक्षरों को लिखना और इस बात का ध्यान रखना कि गति कूल्हे या घुटने से आरंभ न हो।
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