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प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण एवं उपचार के सम्बन्ध में
प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण विशेष रूप से बचपन में मात्रा या गुणवत्ता में अपर्याप्त आहार के सेवन से उत्पन्न होने वाले रोगों श्रेणी के रूप में माना जाता है। यह न केवल बच्चों की बीमारी एवं मृत्यु के कारणों में से एक है वरन् यह स्थायी विकलांगता एवं मानसिक स्वास्थ्य की क्षति का कारण है। प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण मुख्य तौर पर दो रूपों में देखने को मिलता है—
(i) सूखा रोग या भरास्मस
(ii) क्वाशियोरकर ।
(i) मरास्मस सूखा रोग
यह एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों में दिखने वाला सबसे आम मोटीन ऊर्जा कुपोषण का प्रकार है। सूखा रोग से ग्रस्त बच्चे को निम्न नैदानिक लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है-
(1) बच्चे की मांसपेशियाँ सूखने के कारण उसका शरीर हड्डियों का ढाँचा रह जाता है।
(2) उसकी त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ जाती हैं उसका चेहरा बंदर जैसा हो जाता है।
(3) उसे सामान्य पानी जैसे पतले दस्त आते हैं या मल में अम्ल जैसे तत्त्व होते हैं और उसकी मात्रा बहुत अधिक होती है।
(4) दस्त आने के कारण उसके शरीर में पानी की कमी हो जाती है।
(5) ऐसे बच्चे का वजन उस आयु के बच्चों की तुलना में बहुत कम होता है।
(6) उसके शरीर का तापमान सामान्य से बहुत कम होता है और नाड़ी बहुत धीमी होती है।
(7) इसके बाल रूखे और मटमैले होते हैं।
(8) पेट या तो पीठ से सटा होता है अथवा वायु के कारण फूला हुआ होता है।
(9) चेहरा पिचक जाने से आँखें बड़ी-बड़ी लगती हैं और लगता है कि वह आँखें फाड़-फाड़ कर देख रहा है।
(10) हो सकता है कि बच्चे को सदा भूख लगती रहे।
(ii) क्वाशियोरकर
क्वाशियोरकर का भोजन में प्रोटीन की मात्रा तथा गुणवत्ता दोनों में कमी होना है। सामान्यतया यह 2-3 वर्ष के बच्चों में पाया जाता है-
(1) टाँगों के निचले भाग, चेहरे या सारे शरीर पर सूजन आना।
(2) बच्चे का वचन कम होने के साथ विकास सामान्य दर से नहीं हो पाता है।
(3) बाल सीधे और पतले हो जाते हैं और बहुधा रंग बदल जाता है।
(4) त्वचा मोटी तथा खुरदरी हो जाती है। यह आसानी से निकल कर दरार छोड़ देती है।
(5) क्वाशियोरकर द्वारा पीड़ित बच्चे के यकृत का आकार विस्तृत हो जाता है।
प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण का उपचार
इस उपचार के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. समुचित आहार—उद्देश्य यह है कि आहार में कैलोरियों और प्रोटीन की जो कमी है उसे दूर किया जाय।
2. संक्रमण रोगों का उपचार।
3. माता-पिता को स्वास्थ्य की शिक्षा देना- माता-पिता को स्वास्थ्य की शिक्षा देना आवश्यक है जिससे कि वे बच्चे का पालन-पोषण ठीक ढंग से करें और बच्चे इस रोग से पीड़ित न हों।
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