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शरीर के पोषण में कार्बोहाइड्रेड एवं वसा के योगदान का विवेचन कीजिए।
शरीर के पोषण में कार्बोहाइड्रेड एवं वसा के योगदान- शरीर के पोषण के लिए छह तत्त्व अनिवार्य होते हैं। ये तत्त्व हैं-
(1) प्रोटीन,
(2) कार्बोहाइड्रेट्स,
(3) वसा,
(4) खनिज लवण,
(5) विटामिन,
(6) जल।
मुख्य या स्थूल पोषक तत्त्व
1. कार्बोहाइड्रेट्स
कार्बोहाइड्रेट उन सभी कार्बनिक यौगिकों का समूह है जो कि आवश्यक रूप से तीन तत्त्वों— कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से बने होते हैं। सभी प्रकार के कार्बोहाइड्रेट कुछ मूल इकाइयों से मिलकर बने होते हैं। कार्बोहाइड्रेट की मूल इकाइयाँ हैं— ग्लूकोज, फ्रक्टोज तथा ग्लेक्टोज।
कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण
वनस्पति से प्राप्त भोज्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट मुख्यतः शर्करा, स्टार्च और रेशे के रूप में होता है। इन सभी प्रकार के कार्बोहाइड्रेट को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—(1) उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट और (2) अनुपलब्ध कार्बोहाइड्रेट।
(1) उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट – शर्करा और स्टार्च मानव के पाचन तंत्र में आसानी से पच जाते हैं तथा शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए उपलब्ध हो सकते हैं। अतः इन्हें उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट कहा जाता है। यद्यपि शर्करा और स्टार्च दोनों ही उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट हैं तथापि इनमें मूलभूत अंतर है। स्टार्च एक बहुत बड़ा अणु है जोकि बहुत सारी मूल कार्बोज इकाइयों अर्थात् ग्लूकोज से बना होता है।
शर्करा एवं स्टार्च के खाद्य स्त्रोत–मीठे पदार्थ (चीनी, गुड़, शहद), अनाज (गेहूँ, चावल), मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा) जड़ व मूलकन्द (आलू, शकरकंदी, अरबी, टैपियोका), पके हुए फल (केला, आम, चीकू) में रहते हैं।
उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट के कार्य
उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट के मुख्य कार्य निम्न हैं—
(i) ऊर्जा प्रदान करना- कार्बोहाइड्रेट का मुख्य कार्य विभिन्न शारीरिक कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करना है। एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट से लगभग 4 किलो कैलोरी ऊर्जा मिलती है। कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत है। भारतीय भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा सर्वाधिक होती है। हमारे भोजन से प्राप्त होने वाली कुल कैलोरी का 60-70 प्रतिशत भाग कार्बोहाइड्रेट ही प्रदान करता है।
(ii) प्रोटीन को अन्य कार्यों के लिए अवमुक्त करना- यदि शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कार्बोहाइड्रेट का उचित मात्रा में सेवन किया जाए तो प्रोटीन शारीरिक वृद्धि के अपने मुख्य कार्य के लिए उपलब्ध होते हैं। यदि आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पर्याप्त नहीं है तो प्रोटीन शारीरिक वृद्धि के स्थान पर ऊर्जा प्रदान करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं।
(iii) वसा के उपयोग में सहायता देना- कार्बोहाइड्रेट, वसा के चयापचय में सहायक होता है इसलिए शरीर में वसा के सही उपयोग के लिए भोजन में कार्बोज की कुछ मात्रा का होना आवश्यक है।
(2) अनुपलब्ध कार्बोहाइड्रेट- रेशे या फाइबर उन सभी कार्बोहाइड्रेट का समूह है, जो कि वनस्पति से प्राप्त खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं। रेशा या फाइबर मानव के पाचन तंत्र द्वारा पचाये नहीं जा सकते क्योंकि इनके पचाने वाले एंजाइम मानव के पाचन तन्त्र में नहीं होते हैं। इसलिए उन्हें अनुपलब्ध कार्बोहाइड्रेट कहा जाता है। उदाहरण के लिए, सेलुलोज रेशा या फाइबर को नियामक पदार्थ भी कहा जाता है। यद्यपि रेशा या फाइबर से शरीर को कोई पोषक तत्त्व नहीं मिलता फिर भी यह शरीर की कुछ क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक हैं।
रेशा या फाइबर के खाद्य स्त्रोत
यह अनाज तथा दालों की बाहरी परत (चोकर) में पाया जाता है। गेहूँ के दाने, आटा तथा छिलके वाली दालें जैसे-उड़द की दाल, राजमा, लोबिया में अधिक मात्रा में रेशा पाया जाता है। कुछ सब्जियों जैसे पालक, मटर, भिंड़ी, बैंगन, फलियाँ तथा फलों जैसे आम, अमरूद, संतरा, आँवला, मौसंबी आदि में रेशा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
अनुपलब्ध कार्बोहाइड्रेट के कार्य- अनुपलब्ध कार्बोहाइड्रेट के मुख्य कार्य निम्न हैं— (i) क्षुधा संतुष्टि- पाचन तंत्र में रेशे के अवयव जल सोखकर फूल जाते हैं और भोजन के अवयवों को भारी बनाते हैं। अतः थोड़ा-सा भोजन खाने के बाद हम संतुष्ट हो जाते हैं।
(ii) मल उत्सर्जन–मल में उपस्थित रेशा जल सोखकर मल को मुलायम बनाते हैं, जिससे शरीर में जल का उत्सर्जन आसानी से हो जाता है। यही कारण है कि कब्ज की शिकायत वाले व्यक्तियों को भोजन में रेशे या फाइबरयुक्त खाद्य पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है।
(iii) रोगों की रोकथाम – चिकित्सा क्षेत्र में हुए आधुनिक अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ कि प्रचुर मात्रा में रेशेयुक्त आहार ग्रहण करने से बड़ी आंत के कैंसर, मधुमेह एवं हृदय से सम्बन्धित गम्भीर बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलती है।
2. वसा
कार्बोहाइड्रेट के ही समान वसा में भी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन रहती है। परन्तु इसकी संरचना और गुण कार्बोहाइड्रेट से भिन्न होते हैं। वसा के दो मुख्य अवयव होते हैं वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल। वसा की एक इकाई में तीन वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल की एक इकाई होती है। वसा की एक इकाई को ट्राइग्लिसराइड भी कहते हैं। वसा बहुत सारे ट्राइग्लिसराइड से मिलकर बने होते हैं।
वसा का वर्गीकरण- सामान्य तौर पर वसा अम्लों को उनमें उपस्थित हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या के आधार पर संतृप्त एवं असंतृप्त वसा अम्लों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(i) संतृप्त वसा अम्ल – ऐसे वसा अम्ल जिनमें सभी हाइड्रोजन परमाणु एक निश्चित मात्रा में उपस्थित होते हैं, संतृप्त वसा अम्ल कहलाते हैं। सामान्य तौर पर पशुओं से प्राप्त वसा को संतृप्त वसा अम्ल माना जाता है।
(ii) असंतृप्त वसा – -ऐसे वसा अम्ल जिनमें सभी हाइड्रोजन परमाणु एक निश्चित मात्रा उपस्थित नहीं होते हैं, असंतृप्त वसा अम्ल कहलाते हैं। सामान्य तौर पर वनस्पति तेल और वसा को असंतृप्त वसा अम्ल माना जाता है।
वसा के खाद्य स्त्रोत- भोजन में वसा के दो प्रमुख स्रोत हैं प्राणिजन्य स्त्रोत – प्राणिजन्य वसा के मुख्य स्रोत हैं, जैसे- दूध तथा दूध से निर्मित पदार्थ से दही, पनीर, खोया, मक्खन, मांस की वसा, मछली का तेल आदि ।
वानस्पतिक स्त्रोत–वनस्पतिजन्य वसा के मुख्य स्रोत हैं, जैसे-सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, सोयाबीन का तेल। इनमें लगभग 100 प्रतिशत वसा होती है। इसके अतिरिक्त तिलहन जैसे बादाम, नारियल, सरसों के दाने तथा गिरीदार फलों में भी वसा होती है।
वसा से कार्य
वसा के मुख्य कार्य निम्न हैं—
(i) ऊर्जा प्रदान करना – वसा ऊर्जा का सान्द्रित स्रोत है। 1 ग्राम वसा 9 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है, जबकि 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन से 4.5 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। भोजन में पाये जाने वाले पोषक तत्त्वों के रूप में वसा शरीर की ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। अतिरिक्त ऊर्जा शरीर में वसा ऊतक या एडीपोज ऊतकों में जमा हो जाती है।
(ii) वसा विलय विटामिन का वाहक-वसा, वसा विलय विटामिन (विटामिन, A, D, E, K) के वाहक का कार्य करती है अर्थात् इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती है तथा शरीर में इनके अवशोषण में भी सहायता करती है।
(iii) शारीरिक अंगों की रक्षा- शरीर में वसा एडीपोज ऊतकों में पायी जाती है। त्वचा के नीचे एकत्रित वसा की परतें अवरोधक का कार्य करती हैं और शारीरिक तापमान के नियन्त्रण में सहायक होती है। शरीर के नाजुक अंगों जैसे हृदय एवं वृक्क के चारों ओर वसा की परतें होती हैं जो इन अंगों की चोट और झटकों से रक्षा करती हैं।
(iv) अनिवार्य वसीय अम्ल का स्त्रोत- भोज्य पदार्थों में आमतौर पर पाए जाने वाले वसा अम्लों के कुछ उदाहरण हैं— पामिटिक अम्ल, स्टिऐरिक अम्ल, ओलीय अम्ल । दो वसीय अम्ल ऐसे होते हैं, जो कि हमारे शरीर में निर्मित नहीं किये जा सकते हैं, अतः इनका भोजन में होना आवश्यक है इनको अनिवार्य वसीय अम्ल कहते हैं। यह वसीय अम्ल हैं—लनोलीनिक अम्ल तथा लिनोलिइक अम्ल। अनिवार्य वसीय अम्ल शरीर में कई महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। ये त्वचा की सामान्य वृद्धि, अनुरक्षण में सहायक हैं और शल्की त्वचा के निर्माण में अवरोधक हैं।
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