स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

पोषण का अर्थ एवं परिभाषा, भोजन का वर्गीकरण तथा भोजन के कार्य

पोषण का अर्थ एवं परिभाषा
पोषण का अर्थ एवं परिभाषा

पोषण का अर्थ

पोषण एक आधारभूत मानवीय आवश्यकता है और स्वस्थप्रद जीवन का मूलाधार है। जीवन की प्रारम्भिक अवस्था से ही उचित वृद्धि, विकास एवं सक्रियता के लिए उचित आहार एक पूर्वापेक्षा है। पोषण और स्वास्थ्य का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

बिना अच्छे पोषण के अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों में से पोषण एक प्रमुख कारक है। भोजन पोषक तत्त्वों का स्रोत है इसलिए भोजन न केवल पौष्टिक होना चाहिए अपितु यह स्वास्थ्यप्रद, साफ और रोगाणुरहित भी होना चाहिए। यदि दैनिक आहार गलत होगा तो एक या अधिक पोषक तत्त्वों की अधिकता या उनकी कमी के कारण कुपोषण की स्थिति निर्मित होगी जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। कुपोषण शरीर की वह स्थिति है जो पोषक तत्त्वों की कमी (अल्पपोषण), अतिरिक्तता (अतिपोषण) अथवा संतुलन के कारण उत्पन्न होती है।

पोषण की परिभाषा

1. “विज्ञान की वह शाखा जिसका केन्द्रीय बिन्दु भोजन और उससे सम्बन्धित अन्य पहलुओं का अध्ययन करना है, पोषण कहलाती है।”

2. “पोषण उन प्रक्रियाओं का अध्ययन है जिनके माध्यम से प्राणि ऐसे पदार्थों को ग्रहण और उनका उपयोग करता है जो उसकी वृद्धि और विकास में सहायक होते हैं।”

3. “प्राणी द्वारा भोजन ग्रहण करने के बाद भोजन में आने वाले परिवर्तन सम्बन्धी अध्ययन को पोषण करते हैं।”

विज्ञान की वह शाखा जिसका केन्द्रीय बिन्दु भोजन और उससे सम्बन्धित अन्य पहलुओं का अध्ययन करना है, पोषण कहलाती है। भोजन से तात्पर्य शरीर को पोषण प्रदान करने वाले पदार्थों से है। भोजन के कई विशिष्ट कार्य होते हैं। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, शरीर के निर्माण में सहायता करता है, सभी रोगों से रक्षा करता है और शरीर की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। भोजन में कछ ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं जो हमारे शरीर के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। भोजन से मिलने वाले इन रासायनिक पदार्थों को तत्त्व कहते हैं। ये पोषक तत्त्व भोजन के आहार घटक हैं। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा, विटामिन, जल, खनिज आदि भोजन के प्रमुख घटक हैं।

भोजन का वर्गीकरण

भोजन को अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण

(1) प्राणिजन्य भोजन (2) वनस्पतिजन्य भोजन

2. रासायनिक संयोजन के आधार पर वर्गीकरण

(1) प्रोटीन

(2) वसा

(3) कार्बोहाइड्रेट

(4) विटामिन

(5) खनिज लवण

3. प्रमुख कार्यों के आधार पर वर्गीकरण

(1) ऊर्जा देने वाले भोजन- वसा व कार्बोहाइड्रेट वाले भोजन को ऊर्जा प्रदान करने वाला माना गया है। जैसे-तेल, घी, मक्खन, गुड़, जैम, साबूदाना, चावल, अनाज, केला, आलू आदि।

(2) शरीर का निर्माण करने वाले भोजन- प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ इस वर्ग में आते हैं। प्रोटीन के द्वारा नई कोशिकाओं का निर्माण किया जाता है। इसी कारण शरीर में वृद्धि होती है। दालें, दूध, अंडा, मांस, मछली, सोयाबीन इसके उदाहरण हैं।

(3) विनियामक तथा प्रतिरक्षात्मक भोजन- विटामिन व खनिज लवणयुक्त भोजन पदार्थ इस वर्ग में आते हैं। इस वर्ग के भोज्य पदार्थ हमारे शरीर की जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं तथा इस शरीर में नियमन का कार्य करने में सहायक होते हैं।

4. पोषण के महत्त्व के आधार पर वर्गीकरण

(1) अन्न एवं मोटे अन्न,

(2) दालें, तिलहन और गिरी,

(3) वनस्पतियाँ,

(4) प्राणिजन्य भोजन,

(5) अन्य खाद्य पदार्थ ।

भोजन के कार्य

भोजन के मुख्यतः तीन कार्य होते हैं—

1. शरीर क्रियात्मक कार्य- जीवन में विभिन्न क्रियाओं के लिए हर क्षण ऊर्जा की आवश्यकता होती है। शरीर में ऊर्जा देने का कार्य मुख्य रूप से कार्बोज एवं वसा द्वारा किया जाता है। इन दो पोषक तत्त्वों को शरीर का ईंधन कहते हैं। शरीर में कार्बोज और वसारूपी ईंधन के ज्वलन से ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा का उपयोग शरीर की विभिन्न अंतः एवं बाह्य क्रियाओं के लिए किया जाता है।

इसके अतिरिक्त शरीर की वृद्धि और मरम्मत के लिए भोजन आवश्यक है। शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों में वृद्धि और मरम्मत दोनों कार्य के लिए प्रोटीन अनिवार्य है। भोजन का अन्य महत्त्वपूर्ण शरीर क्रियात्मक कार्य है, शरीर की रोगों से रक्षा और शरीर की विभिन्न क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाना। भोजन के कुछ विशिष्ट पोषक तत्त्व यथा— विटामिन और खनिज लवण इन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

2. सामाजिक कार्य- भोजन हमारे सामाजिक सम्बन्धों को बनाता है व उनमें घनिष्ठता उत्पन्न करता है। लगभग सभी सामाजिक कार्य भोजन के साथ ही सम्पन्न होते हैं। शिशु जन्म, विवाह, मुंडन, नामकरण, जन्मदिन आदि में भोजन एक प्रमुख भाग होता है। शोक के अवसरों पर भी भोजन महत्त्वपूर्ण होता है। बीमार व्यक्तियों से मिलने जाते समय अपनी भावनाओं का प्रदर्शन हम फल देकर करते हैं। शुभ सूचनाओं को सुनाने के साथ खुशी दर्शाने के लिए भी मिठाई भेंट की जाती है। इस तरह से सुख-दुःख के सभी सामाजिक अवसरों पर भोजन महत्त्वपूर्ण होता है।

3. मनोवैज्ञानिक कार्य- भोजन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हमारी भावनाओं जैसे प्यार, सुरक्षा की भावना आदि की भी संतुष्टि होती है। माँ जब अपने बच्चे के लिए उसकी पसंद का भोजन बनाती है तो यह उसका अपने बच्चे के प्रति प्यार तथा लगाव को दर्शाता है। दूसरी तरफ अपनी पसन्द का भोजन खाकर बच्चा सुरक्षा का अनुभव करता है। चिरपरिचित भोजन के अभाव में व्यक्ति स्वयं को अकेला व असहाय महसूस करता है। मानसिक संवेगों की निकासी का माध्यम भी कई बार भोजन ही बनता है। जैसे हम अपना गुस्सा प्रदर्शित करने के लिए भोजन से इन्कार या अकेलेपन में थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ-न-कुछ खाना, बच्चों को दंड या पुरस्कार देने के लिए भोजन का कई बार प्रयोग किया जाता है।

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shubham yadav

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