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सन्तुलित आहार का अर्थ एवं परिभाषा
सन्तुलित आहार वह भोजन है जिसमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ ऐसी मात्रा व समानुपात में हों कि जिससे कैलोरी, खनिज लवण, विटामिन व अन्य पोषक तत्त्वों की आवश्यकता समुचित रूप से पूरी हो सके। इसके साथ-साथ पोषक तत्त्वों का कुछ अतिरिक्त मात्रा में प्रावधान हो ताकि अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि में इनकी आवश्यकता की पूर्ति हो सके।
इस परिभाषा में तीन बातें उल्लेखनीय हैं-
1. संतुलित आहार में विभिन्न खाद्य पदार्थ सम्मिलित होते हैं— संतुलित आहार का मुख्य उद्देश्य आहार द्वारा व्यक्ति को सभी पोषक तत्त्वों की पूर्ति से है। इनकी प्राप्ति के लिए खाद्य पदार्थों को उनके पोषक तत्त्वों एवं कार्यों के आधार पर विभिन्न खाद्य वर्गों में विभाजित किया गया है। अतः प्रत्येक खाद्य वर्ग से खाद्य पदार्थों का चुनाव करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि आहार द्वारा सभी पोषक तत्त्वों की आपूर्ति हो ।
2. संतुलित आहार शरीर की पोषक तत्त्वों की आवश्यकता को पूरा करता है- संतुलित आहार सभी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता को पूरा करता है क्योंकि इसमें सही मात्रा व अनुपात में खाद्य पदार्थों का चुनाव किया जाता है। किसी व्यक्ति को अपनी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए कितना भोजन लेना चाहिए, यह उस व्यक्ति की पोषक तत्त्वों की प्रस्तावित दैनिक मात्रा पर निर्भर करता है।
3. अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि के लिए संतुलित आहार अतिरिक्त पोषक तत्त्व प्रदान करता है- संतुलित आहार में पोषक तत्त्वों के लिए मात्रा इतनी होती है कि कुछ समय के लिए भोजन न मिलने की अवधि में भी शरीर में पोषक तत्त्वों की मात्रा पर्याप्त बनी रहती हैं। इससे तात्पर्य है कि जब पोषक तत्त्वों की आवश्यकता पूर्ण रूप से पूरी न हो पा रही हो, तो ऐसी स्थिति से निपटने के लिए संतुलित आहार सुरक्षात्मक मात्रा अर्थात् कुछ अतिरिक्त मात्रा में पोषक तत्त्व भी प्रदान करता है।
सन्तुलित आहार निम्न लक्ष्यों की पूर्ति करने वाला होता है-
(1) शरीर को गर्मी एवं शक्ति प्रदान करना।
(2) शारीरिक वृद्धि एवं विकास करना।
(3) शरीर की रोगों से रक्षा करना और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना।
(4) शरीर की विभिन्न क्रियाओं पर नियंत्रण रखना।
आहार नियोजन और इसको प्रभावित करने वाले कारक
आहार नियोजन का अर्थ पर्याप्त पोषण प्रदान करने की योजना बनाना है। आहार नियोजन पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित खाद्य पदार्थ के चयन का ही अभ्यास नहीं है, बल्कि यह मजेदार और आकर्षक आहार बनाने से भी सम्बन्धित है। आहार नियोजन करते समय ध्यान रखने योग्य कारक निम्न हैं-
1. पौष्टिकता की दृष्टि से पर्याप्त- आहार नियोजन में महत्त्वपूर्ण कारक व्यक्ति की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति है। एक परिवार में विभिन्न आयु वर्ग के व्यक्ति होते हैं, जैसे-बच्चा, किशोर, वयस्क, वृद्ध व्यक्ति आदि। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी विशेष पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ होती हैं। आहार नियोजन का मूल उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।
2. आर्थिक पहलू – परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए भोजन की मात्रा व प्रकार का चयन परिवार की आय पर निर्भर करता है। भारतीय समाज में परिवार को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) सीमित आय वाले परिवार-ये परिवार अपने भोजन में अधिक मात्रा में दूध, मांस, फल आदि सम्मिलित नहीं कर सकते हैं। क्योंकि ये महँगे भोज्य पदार्थ हैं। ऐसे बहुत से तरीके हैं जिनसे कम कीमत में पौष्टिक आहार की प्राप्ति हो सकती है-
(a) सस्ते अनाज जैसे ने-ज्वार, बाजरा तथा कुछ मात्रा में जड़ व मूलकंद, जैसे- आलू, अरबी आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
(b) चीनी के स्थान पर गुड़ का प्रयोग किया जा सकता है।
(c) अनाज और दालों का सम्मिश्रण, अंकुरण और खमीरीकरण जैसे विधियों का प्रयोग किया जा सकता है।
(ii) मध्य आय वर्ग वाले परिवार- ये लोग भोजन में अधिक विविधता लाने के लिए चावल/गेहूँ, दालों, दूध, फल व सब्जियों का अधिक प्रयोग कर सकते हैं। ये अपने भोजन में उचित मात्रा में घी, चीनी को भी सम्मिलित कर सकते हैं।
(iii) उच्च आय वर्ग के परिवार- इस वर्ग के परिवार के आहार में दूध व दूध से बने पदार्थों, मांस, सब्जियों, फलों, घी/तेल का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक हो जाता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घी, तेल, चीनी जैसे भोज्य पदार्थ आवश्यकता से अधिक न लिए जाएँ।
3. खाद्य स्वीकृति–व्यक्ति की पसंद-नापसंद, धार्मिक निषिद्धता, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रीतियाँ, कुछ ऐसे कारक हैं जो व्यक्ति को भोजन के प्रति स्वीकृति या अस्वीकृति करते हैं। संतुलित आहार में इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए तथा इन्हीं के अनुसार खाद्य पदार्थों का चयन करना चाहिए।
4. खाद्य उपलब्धता- किसी क्षेत्र विशेष में पाये जाने वाले खाद्य पदार्थों की उपलब्धता भी आहार नियोजन को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए तटवर्ती क्षेत्रों में मछली तथा अन्य | समुद्री जीव-जन्तु आसानी से सुलभ होते हैं। इसी प्रकार, दक्षिणांचल दक्षिण भारतीयों के आहार का मुख्य भाग होता है। इसके साथ ही मौसम के अनुसार फलों एवं सब्जियों की उपलब्धता पर भी विचार करना चाहिए।
5. आहार आवृत्ति और आहार पद्धति-व्यक्ति की आय, सक्रियता का स्तर, शारीरिक अवस्था तथा आयु आहार पद्धति को प्रभावित करते हैं। अतः आहार नियोजन में इन सब पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।
6. आहार में विविधता — एक ही प्रकार का भोजन प्रतिदिन संतुलित आहार के दृष्टिकोण से सही नहीं है। इसलिए आहार नियोजन में विविध प्रकार के खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करना चाहिए। भिन्न-भिन्न रंगों, बनावट व सुवास के खाद्य पदार्थों के उचित चयन व मिश्रण से तथा भिन्न-भिन्न पाक विधियों के प्रयोग से भी भोजन को अधिक स्वादिष्ट व आकर्षक बनाया जा सकता है।
7. क्षुधा संतृप्ति-आहार का नियोजन इस प्रकार का होना चाहिए जिससे भूख की संतुष्टि हो सके। यहाँ क्षुधा संतृप्ति से तात्पर्य ऐसे भोजन से है जिसके खाने से हमें संतोष तथा तृप्ति का अनुभव हो। वसा तथा प्रोटीन की प्रचुरता वाले भोज्य पदार्थों में कार्बोजयुक्त आहार की तुलना में अधिक क्षुधा संतृप्ति की क्षमता होती है। अतः संतुलित आहार में कुछ मात्रा में वसा तथा प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों को अवश्य सम्मिलित करना चाहिए जिससे व्यक्ति को पर्याप्त संतृप्ति मिल सके तथा व्यक्ति को अगले आहार के समय से पहले भूख न लगे।
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