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तम्बाकू सेवन
तम्बाकू सेवन एक भयावह समस्या है, जो आयाम की दृष्टि से अन्य सभी प्रकार की सामाजिक समस्याओं और प्रदूषणों से कहीं बड़ी है। सभी आयु वर्गों के बच्चे इस समस्या से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। सामान्यतः तम्बाकू के सेवन की आदत युवावस्था से आरम्भ होती है। तम्बाकू में पाया जाने वाला मुख्य पदार्थ निकोटिन मानव जाति के लिए अब तक ज्ञात नशीले पदार्थों में सबसे व्यसनी पदार्थ है। तम्बाकू के सेवन ने तो अब वैश्विक महामारी जैसा रूप ले लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट (2008) के अनुसार 20वीं सदी में दुनिया भर में तम्बाकू सेवन रूपी महामारी ने 100 करोड़ से अधिक लोगों को काल के ग्रास में पहुँचा दिया और वर्तमान में दुनिया भर में प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख लोगों की मृत्यु तम्बाकू और तम्बाकू उत्पादों के सेवन से होती है।
तम्बाकू उपयोग के प्रकार
अनुमानतः विश्व भर में प्रतिदिन 15 अरब से अधिक सिगरेट की खपत होती है। भारत में शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सिगरेट के साथ बीड़ी का उपयोग भी बहुत अधिक है। तम्बाकू का उपयोग धूम्रपान के अतिरिक्त भी अन्य तरह से सेवन किया जाता है जैसे गुटखा, पान मसाला, पान में मिलाकर आदि। उत्तर भारत में हुक्का धूम्रपान काफी प्रचलित है जबकि उड़ीसा एवं आन्ध्रप्रदेश में इसे चुट्टा धूम्रपान के नाम से जाना जाता है। भारत में तम्बाकू का धूम्रपान के लिए उपयोग करने का सबसे लोकप्रिय साधन बीड़ी है। अपने छोटे आकार के बावजूद इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड और टार अधिक मात्रा में होता है। गरीब व्यक्ति के लिए यह धूम्रपान का एक सस्ता एवं सुलभ साधन है, जो उसके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। भारत में युवाओं में हुक्का धूम्रपान और सिगरेट धूम्रपान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
धूम्रपान के कारण
लोग विभिन्न गलत कारणों एवं जानकारी के अभाव में करते हैं धूम्रपान आरम्भ करते हैं-
(i) युवाओं को लगता है कि धूम्रपान अपने साथी समूहों एवं मित्रों के मध्य एक पहचान देता है।
(ii) युवावस्था में धूम्रपान का आरम्भ स्वयं को अधिक परिपक्व महसूस करना और लोगों को यह दिखाना है कि वे अब अपरिपक्व या नासमझ नहीं हैं।
(iii) कुछ लोगों को यह भ्रांति होती है कि धूम्रपान से वे सहज एवं विश्रान्त अनुभव करते हैं।
(iv) स्वच्छंदता का अनुभव करने के लिए तथा घर एवं विद्यालय के अनुशासनात्मक वातावरण को न मानने के लिए भी युवाओं में धूम्रपान की प्रवृत्ति देखने को मिलती है।
(v) कुछ लोग इसलिए भी धूम्रपान करते हैं कि उन्हें लगता है कि इससे वे अधिक एकाग्रचित्त एवं उत्तेजित अनुभव करते हैं और यह तनाव से उन्हें राहत देता है।
(vi) कई लोग ऐसा मानते हैं कि धूम्रपान से पाचन में सुधार और गैस की समस्या नहीं होती और यह मल उत्सर्जन में भी सहायता करता है, किन्तु ये सब मिथ्या धारणाएँ हैं। वस्तुतः वर्तमान परिवेश में धूम्रपान शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में एक सामाजिक स्वीकार्य प्रचलन है और ग्रामीण क्षेत्रों में समूह में धूम्रपान करना आम बात है।
तम्बाकू सेवन एवं धूम्रपान से स्वास्थ्य समस्याएँ
भारत में धूम्रपान करने वाले व्यक्ति विभिन्न तरह के कैंसर से प्रभावित हो रहे हैं विशेष तौर पर फेफड़ों का कैंसर और मुँह का कैंसर। इसके अतिरिक्त धूम्रपान से अन्य स्वास्थ्य जोखिम भी जुड़े हुए हैं जैसे दिल का दौरा पड़ना, हृदय की बीमारियाँ और एम्फाइसीमा (फेफड़ों से सम्बन्धित रोग)। सामान्य तौर पर धूम्रपान शरीर के सभी तंत्रों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, किन्तु फेफड़ों में होने वाले कैंसर के लिए 75 प्रतिशत ब्रोंकाइटिस और एम्फाइसीमा के लिए 75 प्रतिशत मामलों में और स्थानिम-अरक्तता सम्बन्धी हृदय रोगों में धूम्रपान एक मुख्य कारक होता है।
प्रत्येक एक सिगरेट औसतन जीवन के 7 मिनट कम करती है। तम्बाकू में उपस्थित हानिकारक रासायनिक पदार्थ हैं– निकोटीन, कार्बन मोनोऑक्साइड और टार। निकोटीन के कारण उच्च रक्तचाप, हृदय गति में तेजी, सीरम कोलेस्ट्राल, सीरम ट्राइग्लिसराइड्स और मुक्त वसीय अम्लों में वृद्धि होती है। मानव रक्त में कार्बन मोनोऑक्साइड हीमोग्लोबिन के साथ जुड़कर कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन में रूपांतरित हो जाती है जिससे हृदय की पेशियों और शरीर के अन्य ऊतकों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में बाधा आती है।
अप्रत्यक्ष धूम्रपान
धूम्रपान करना परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी एक स्वास्थ्य जोखिम है। धूम्रपान न करने वाला व्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप से एक ओर तो सिगरेट के अग्रभाग के जलने से उत्पन्न धुएँ को श्वसन के माध्यम से अपने शरीर में पहुँचाता है। दूसरी ओर धूम्रपानकर्ता द्वारा निःश्वसन के माध्यम से छोड़े गए धुएँ को ग्रहण करता है। यही कारण है कि धूम्रपान न करने वाला न चाहते हुए भी समान स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो जाता है।
तम्बाकू सेवन के नियंत्रण में आने वाली मुख्य चुनौतियाँ
(i) तम्बाकू सेवन से सम्बन्धित हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता का स्तर कम होना।
(ii) बाजार में तम्बाकू उत्पादों की बड़ी मात्रा में सहज उपलब्धता।
(iii) समाज में कम आयु में ही लोगों द्वारा तम्बाकू उत्पादों का सेवन आरम्भ करना।
(iv) राज्य सरकारों को तम्बाकू सेवन को प्रतिबन्धित करने के सीमित अधिकार होना है।
(v) सरकार द्वारा तम्बाकू नियंत्रण को उच्च प्राथमिकता पर न रखना।
(vi) तम्बाकू नशा उन्मूलन की सुविधाओं की सीमित उपलब्धता होना।
(vii) सरकार के समक्ष तम्बाकू और तम्बाकू उत्पादों के व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध कराना भी एक गम्भीर चुनौती है।
तम्बाकू नियंत्रण
तम्बाकू सेवन से उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याओं को शिक्षा एवं जनसंचार के माध्यम से, पाठ्यक्रमों में सम्मिलित करके और प्रसार शिक्षा के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। तम्बाकू के विरोध में विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल से दुनिया के अनेक देशों ने अपने यहाँ कानून बनाकर इस समस्या को नियंत्रित करने का प्रयास किया । डॉक्टर, स्कूल-कॉलेजों के शिक्षकगण और अभिभावक एक अच्छा आदर्श प्रस्तुत कर तम्बाकू नियंत्रण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। धूम्रपान करनेवाले व्यक्ति द्वारा किसी भी स्तर व अवस्था में धूम्रपान छोड़ना उसके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। धूम्रपान छोड़ने की अनेक विधियाँ हैं जो धूम्रपानकर्ता को इस आदत को छोड़ने में सहायक होती है। इन विधियों में सम्मिलित हैं— सामाजिक सहयोग, चिकित्सालय, निकोटिन रिपलेसमेन्ट थैरेपी और अन्य डॉक्टरी उपचार तम्बाकू के विरुद्ध कोई भी कदम इसके निवारण और रोकथाम दोनों पर केन्द्रित होना चाहिए।
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