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संस्थिति (Posture) का अर्थ
संस्थिति या आसन लैटिन भाषा के शब्द ‘Ponere’ से लिया गया है जिसका आशय है ‘स्थिति या मुद्रा‘ यहाँ स्थिति से तात्पर्य मानव शरीर की संतुलित स्थिति से है। संस्थिति या आसन में मानव शरीर का कंकालीय एवं पेशीय संतुलन एवं संरेखन सम्मिलित है जो शरीर को एक सुदृढ़ और समन्वित आधार प्रदान करता है। जब कंकालीय और पेशीय तंत्रों में उचित संतुलन होता है, तब मानव शरीर दक्षतापूर्वक गति कर पाता है और अनावश्यक चोटों, खिंचावों, तनावों एवं पीड़ा से कम प्रभावित होता है।
शरीर की संस्थिति और शरीर द्वारा निष्पादित गतियों में गहरा सम्बन्ध है। मानव शरीर की प्रत्येक गति एक संस्थिति से आरम्भ होती है और एक संस्थिति पर ही समाप्त होती है। संस्थिति या शारीरिक मुद्रा एक व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति दोनों को अभिव्यक्त करती है। संस्थिति का सम्बन्ध व्यक्तित्व से भी है। अच्छी संस्थिति सशक्त एवं सक्रिय व्यक्तित्व का परिचायक है।
विभिन्न शिक्षाविदों एवं पेशेवरों ने मानव संस्थिति की अगणित अवधारणाओं और व्याख्याओं को प्रस्तुत किया है। संस्थिति का आशय भी भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थों में होता है, उदाहरण के लिए,
शारीरिक मानवविज्ञानी के लिए- संस्थिति एक प्रजातीय लक्षण हो सकता है।
आर्थोपेडिक सर्जन के लिए- संस्थिति कंकाल एवं मांसपेशीय तंत्र की सुदृढ़ता का एक संकेत हो सकता है।
एक अभिनेता के लिए- संस्थिति व्यक्तित्व एवं संवेगों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सकता है।
शारीरिक शिक्षाविद् एवं फिजियोथैरेपिस्ट के लिए- संस्थिति का अर्थ गति विज्ञान के दृष्टिकोण पर केन्द्रित होता है, जिसके अनुसार, “संस्थिति यांत्रिक क्षमता, गतिबोध, पेशीय संतुलन एवं तंत्रिका – पेशीय समन्वय की एक प्रमाण है।”
संस्थिति की परिभाषा
“मानव संस्थिति सम्पूर्ण शरीर के मूलाधार, शरीर के मनोभाव एवं शारीरिक अंगों की स्थिति को संदर्भित करती है।” “संस्थिति एक शारीरिक स्थिति या शारीरिक मनोभाव है जिसमें शरीर की विभिन्न पेशियाँ समन्वित रूप से कार्य करके शारीरिक संतुलन को स्थापित करती हैं।”
मैथिली के अनुसार, “सभी व्यक्तियों के लिए कोई एक मानक संस्थिति नहीं हो सकती। प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर को शारीरिक दोष एवं विकारों से रहित बनाने का प्रयास करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के लिए, सबसे अच्छी संस्थिति वह है जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों में न्यूनतम तनाव और अधिकतम सुदृढ़ता हो। अंतः संस्थिति एक वैयक्तिक विषय है।”
संस्थिति के प्रकार
संस्थिति सक्रिय एवं निष्क्रिय दोनों हो सकती है-
1. निष्क्रिय संस्थिति
निष्क्रिय संस्थिति को विश्राम, सोने एवं प्रशिक्षण में सामान्य आराम के लिए अंगीकृत किया जाता है। निष्क्रिय संस्थिति में शारीरिक ऊर्जा को बनाए रखने के लिए आवश्यक पेशीय गतियों को न्यूनतम स्तर पर रखने का प्रयास किया जाता है।
2. सक्रिय संस्थिति
सक्रिय संस्थिति को बनाए रखने के लिए शरीर की विभिन्न मांसपेशियों द्वारा एक समन्वित गति से कार्य करने की आवश्यकता होती है। सक्रिय संस्थिति के भी दो रूप हो सकते हैं-
(1) स्थैतिक संस्थिति- स्थैतिक संस्थिति में संपूर्ण शरीर के किसी भी अंग में गति के बिना व्यावहारिक रूप से संपूर्ण शरीर स्थैतिक मुद्रा में होता है।
(2) गतिक संस्थिति-गतिक संस्थिति में कम-से-कम शरीर के कुछ अंग गतिमान अवस्था में होते हैं, जैसे पैदल चाल में व्यक्ति के हाथ और पैर गतिमान व्यवस्था में होते हैं जबकि उसका सिर और पीठ स्थैतिक अवस्था में होते हैं।
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