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उचित संस्थिति का अर्थ (Good Posture)
उचित संस्थिति का तात्पर्य बैठने, सीधा खड़े होने, पढ़ने, लिखने या शरीर की अन्य किसी क्रिया के दौरान शारीरिक स्थिति का उचित एवं यथार्थ संतुलन स्थापित करने से है। एक उचित संस्थिति में, बिना किसी प्रयास के संपूर्ण शरीर का भार दोनों पैरों पर रहता है और पूरा शरीर एक ऊर्ध्वाधर रेखा में प्रतीत होता है। उचित संस्थिति में शरीर के सभी अंग अपने कार्यों को दक्षतापूर्ण निष्पादित कर पाते हैं।
स्थैतिक और गतिक दोनों अवस्थाओं में उचित संस्थिति के लिए सामान्य पेशीय तान, यांत्रिक स्वतंत्रता, उचित समन्वयन और तंत्रिका-पेशीय नियंत्रण की आवश्यकता होती है। उचित संस्थिति में शारीरिक भार के स्थानांतरण के लिए सबसे अनुकूल स्थिति है। उचित संस्थिति में शरीर के सभी अक्ष ऊर्ध्वाधर रेखा के समानान्तर स्थित होते हैं।
किसी भी संस्थिति को तब उचित संस्थिति कहा जाता है जब यह अधिकतम क्षमता और न्यूनतम प्रयास के साथ वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो। एक उचित संस्थिति में, शरीर के सभी अंग न्यूनतम संभव तनाव एवं दबाव में उचित रूप से पूर्ण संतुलन की दशा में संरेखित होते हैं।
उचित संस्थिति के आवश्यक तत्त्व
1. संचलन दक्षता-उचित संस्थिति के फलस्वरूप ही शरीर की अस्थियाँ, पेशियाँ और सन्धियाँ यांत्रिक रूप से दक्षतापूर्वक कार्यों का निष्पादन करती हैं। उचित संस्थिति के कारण शरीर के सभी अंग एक सही संरेखन में होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उन पर कम तनाव एवं दबाव पड़ता है। उचित संस्थिति व्यक्ति को सभी शारीरिक गतियों एवं क्रियाओं, जैसे- चलना, दौड़ना, कूदना आदि में अधिक प्रभावी, योग्य और समन्वित बनाती है। एथलीट के लिए भी किसी खेल विशेष में कौशलों के उचित निष्पादन के लिए उचित संस्थिति एवं मुद्रा का ज्ञान होना आवश्यक है। उचित संस्थिति के कारण शरीर की इष्टतम ऊर्जा ही उपयोग होती है, शरीर से ऊर्जा का अवांछित क्षय नहीं होता है।
2. स्वास्थ्य एवं फिटनेस- उचित संस्थिति किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य, फिटनेस एवं शारीरिक क्षमता को दर्शाती है। उचित संस्थिति से शरीर के आंतरिक अंग बेहतर एवं समन्वित तरीके से कार्य करते हैं। शरीर के अंतःकंकाल के उचित संरेखन में होने पर आंतरिक अंगों को उचित सुरक्षा मिलती है।
3. शारीरिक गठन या आकार- शरीर का सामान्य एवं सममित आकार शारीरिक एवं सामाजिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। एक अच्छी तरह से समन्वित मानव शरीर निश्चित रूप से व्यक्ति के संतुलित एवं आकर्षक व्यक्तित्व का परिचायक होता है।
उचित संस्थिति के लाभ
1. शरीर क्रियात्मक लाभ
(i) वायुजीवी सहनशीलता या कार्डियो-वैस्कुलर इन्ड्यूरेन्स में सुधार आना।
(ii) शहरी एवं शांत नींद आना।
(iii) शरीर की मांसपेशियों का अधिक सुदृढ़ होना।
(iv) शरीर की मांसपेशियों में अवांछित तनावों में कमी आना।
(v) शरीर की मांसपेशियों में शीघ्र थकान का अनुभव न होना।
(vi) सन्धियों, तन्तुओं एवं कण्डराओं में अधिक लोच एवं तन्यता का विकास होना।
(vii) शारीरिक गतियों को वेगपूर्वक निष्पादित करने में सक्षम होना।
2. मनोवैज्ञानिक लाभ
(i) मानसिक रूप से अधिक विश्रान्त अनुभव करना।
(ii) मनःस्थिति का सकारात्मक होना।
(iii) स्वस्थ और ऊर्जायुक्त अनुभव करना।
(iv) मानसिक स्वास्थ्य का उचित होना।
(v) गामक क्रियाओं को बेहतर एवं कुशलतापूर्वक निष्पादित कर पाना।
3. सामाजिक लाभ
(i) समाज में उचित पहचान मिलना।
(ii) समाज में सक्रिय व्यक्तित्व की छवि अभिव्यक्त होना।
(ii) युवाओं के साथ-साथ वृद्धजनों की भी उत्पादकता में वृद्धि होना।
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