स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धान्त | Principles of Health Education in Hindi

स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धान्त
स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धान्त

स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धान्त

स्वास्थ्य शिक्षा लोगों की स्वास्थ्य स्थिति, शारीरिक या मानसिक रुचियों, ज्ञान और दृष्टिकोणों आदि की वस्तुनिष्ठ सूचना पर आधारित है। स्वास्थ्य शिक्षा केवल तभी सार्थक होगी यदि यह व्यक्ति की आवश्यकताओं और रुचियों को संतुष्ट करे। स्वास्थ्य शिक्षा चिकित्सीय विज्ञान तथा सामान्य शिक्षा के सिद्धान्तों और व्यवहारों को एक दूसरे के समीप लाती है-

1. व्यवहार में परिवर्तन हेतु अभिप्रेरणा

अभिप्रेरणा व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया के रूप में लोगों में विकसित की जानी चाहिए। स्वास्थ्य शिक्षा में अभिप्रेरणा का अभिप्राय लोगों को अपने स्वयं के कार्यों और प्रयासों से स्वास्थ्य प्राप्त करने में सहायता करना है। इसमें व्यक्ति को अपनी आदतें और आचरण बदलने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति और सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता है जो सरल कार्य नहीं है। बहुत

2. पुनरावृत्ति एवं प्रबलन

स्वास्थ्य शिक्षक को स्पष्ट रूप से लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं, उनके संभावित समाधान, उनके बौद्धिक एवं शैक्षिक स्तर को समझना चाहिए। तदनुसार स्वास्थ्य शिक्षक को केवल आवश्यक, महत्त्वपूर्ण और सम्बन्धित जानकारी को सरल भाषा में पहुँचाने का प्रयास करना चाहिए। कम ही लोग एक ही बार में सब नई बातों को समझ पाते हैं। इसलिए समय समय पर विभिन्न विधियों द्वारा सूचना की पुनरावृत्ति आवश्यक है।

3. अच्छे मानवीय सम्बन्ध

स्वास्थ्य शिक्षक को यह सदैव स्मरण होना चाहिए कि उसका कार्य लोगों को इस योग्य बनाना है कि वे अपनी समस्याओं को समझ सकें, उनके संभावित समाधान खोज सकें और उन समाधानों को अपने व्यवहार में लाने का प्रयास करें। स्वास्थ्य शिक्षक को दयालु और सहृदय होना चाहिए, उसे जनसाधारण की भाषा में संदेश देना चाहिए और संदेश देने के विभिन्न साधनों एवं विधियों का ज्ञान होना चाहिए।

4. सामुदायिक संगठन का सिद्धान्त

स्वास्थ्य शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि वह समुदाय को अपनी समस्याओं की पहचान करने, उनके संभावित समाधानों को खोजने, उनका क्रियान्वयन करने और उनके मूल्यांकन करने की प्रक्रिया में सम्मिलित करे।

5. स्वास्थ्य आवश्यकताओं के प्रति रुचि

स्वास्थ्य शिक्षा की सफलता की कुंजी है लोगों के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाना। यदि कोई भी स्वास्थ्य कार्यक्रम इस उद्देश्य को पूर्ण नहीं करता है तो वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होंगे। जनसाधारण तब तक अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास नहीं करता जब तक ऐसा करना अति आवश्यक न हो। इसलिए किसी भी स्वास्थ्य कार्यक्रम के क्रियान्वयन से पूर्व लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए। प्रभावी होने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा के सभी कार्यक्रम लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर आधारित होने चाहिए।

6. मुक्त परिचर्चा में सक्रिय सहभागिता

स्वास्थ्य शिक्षा और लोगों के मध्य संचार का मुक्त प्रवाह होना चाहिए। स्वास्थ्य समस्याओं, उनके संभावित समाधान और समाधान के अच्छे और बुरे पक्षों पर ईमानदारीपूर्वक परिचर्चा होनी चाहिए। समूह चर्चा, विशेषज्ञ चर्चा और कार्यशाला सभी सक्रिय ज्ञानार्जन का अवसर प्रदान करते हैं और लोगों के मन के सभी संदेहों को दूर करने में सहायक होते हैं।

7. जनसाधारण का बोधात्मक स्तर

समुदाय में एक ही समय में बहुत सारे स्वास्थ्य संदेशों के प्रचार-प्रसार का प्रयास कारगर उपाय नहीं है। किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ के लिए जो तथ्य अत्यन्त सरल हैं वही बात जनसाधारण को समझने में समय लगता है क्योंकि लोगों की बोधात्मक क्षमता समिति होती है। इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा में यह कहा जाता है कि जिन लोगों को शिक्षा दी जानी है उन लोगों की शिक्षा, साक्षरता और समझ का स्तर ज्ञात होना चाहिए। शिक्षा लोगों की मानसिक क्षमता के भीतर होनी चाहिए ताकि लोग तथ्यों को समझकर उन्हें व्यवहार में ला सकें।

8. सम्प्रेषण का उचित माध्यम

स्वास्थ्य संदेश लोगों तक पहुँचाने के लिए संप्रेषण का माध्यम लोगों के बोधात्मक स्तर के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है। जब लक्षित व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक होती है तब बड़े पैमाने पर संचार माध्यमों (श्रव्य, दृश्य उपकरणों) का उपयोग किया जाता है। अच्छे संप्रेषण के गुणों में सम्मिलित है कि यह सरल, स्पष्ट और संक्षिप्त होना चाहिए। संदेश बिना किसी संदिग्धता के लोगों तक पहुँचना चाहिए।

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shubham yadav

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