स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

शारीरिक शिक्षा का कार्यक्षेत्र | Scope of Physical Education in Hindi

शारीरिक शिक्षा का कार्यक्षेत्र
शारीरिक शिक्षा का कार्यक्षेत्र

शारीरिक शिक्षा का कार्यक्षेत्र

शारीरिक शिक्षा के कार्यक्षेत्र के सन्दर्भ में कहा जाता है- “मनुष्य और जीवन के मध्य जो कुछ भी आता है वह शारीरिक शिक्षा के कार्यक्षेत्र में शामिल है।”

1. शारीरिक शिक्षा एक शैक्षणिक अनुशासन के रूप में

पूर्ण अकादमिक अनुशासन की कसौटी पर खरा उतरने के लिए शारीरिक शिक्षा विषय शैक्षणिक अनुशासन की निम्न विशेषताओं को सम्मिलित करता है

(i) सुदृढ़ सैद्धान्तिक आधार- शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र सुदृढ़ एवं परिशुद्ध सैद्धांतिक आधार पर आधारित है जो सही एवं प्रासंगिक गतिविधियों में इस शैक्षणिक क्षेत्र को निर्देशित करने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त शारीरिक शिक्षा में अनुसंधान प्रयोजनों के लिए और शिक्षण एवं प्रशिक्षण के उद्देश्यों के लिए सुदृढ़ प्रतिरूपों का भी अनुपालन किया जाता है।

(ii) वैज्ञानिक आधार- शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत घटनाओं एवं तथ्यों के बारे में ज्ञान वैज्ञानिक विधि से प्राप्त होते हैं। शारीरिक शिक्षा में वैज्ञानिक अध्ययन के लिए अपनायी गयी प्रमुख विधियों के सम्भावित क्रम का अनुपालन किया जाता है।

(iii) मापन का सुग्राही उपकरण- शारीरिक शिक्षा में प्रयोगिक अध्ययनों में अत्यन्त संवेदनशील उपकरणों (यथा इर्गोमीटर, जैवयांत्रिक सॉफ्टवेयर) द्वारा गौण अंतरों का पता लगाया जाता है तथा वर्णनात्मक एवं अन्य अध्ययनों में वैधता एवं विश्वसनीयता के परिशुद्ध माप के लिए विभिन्न सांख्यिकीय तरीकों का उपयोग किया जाता है।

(iv) विशिष्ट सीमाएँ – शारीरिक शिक्षा में भी अन्य विषय क्षेत्रों की भाँति गठन के दो रूप, सामान्यीकरण एवं विभेदीकरण होते हैं। सामान्यीकरण के अन्तर्गत अन्य विषय क्षेत्रों से जानकारियों को ग्रहण किया जाता है। विभेदीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत अन्य विषय क्षेत्रों से प्राप्त असम्बन्धित जानकारियों का विभेद करके केवल सम्बन्धित जानकारियों एवं अवधारणाओं को अध्ययन क्षेत्र में शामिल किया जाता है।

(v) एकीकृत विषयक्षेत्र एवं पाठ्यक्रम- शारीरिक शिक्षा में अवधारणाओं का एकीकृत सोपानक्रम है जो ज्ञान के लिए एक समग्र एवं संसत्त संरचना प्रदान करता है और अधिगम को निचले स्तर से उच्च स्तर पर परिवर्तन करने में सहायक होता है।

(vi) शिक्षण की विशिष्ट विधि- शारीरिक शिक्षा में शिक्षण विधि में प्रमुख रूप से क्रियात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। यह विधि मनोगतिक, संज्ञानात्मक एवं सामाजिक भावनात्मक क्षेत्रों में अधिगम के प्रोत्साहन हेतु उपयोगी है।

(vii) अध्ययन के अन्य विषयों से भिन्न अद्वितीय एवं विशिष्ट लक्ष्य एवं उद्देश्य- शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य जहाँ शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास कर शरीर, मन और आत्मा में पूर्णता लाना है, वहीं इसके उद्देश्यों में जैविक शिक्षा, मनोगतिक शिक्षा, बौद्धिक शिक्षा एवं चारित्रिक शिक्षा मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं।

2. शारीरिक शिक्षा एक विषय वस्तु के रूप में

शारीरिक शिक्षा के सिद्धांत एवं विचारधाराएँ विभिन्न विज्ञान एवं मानविकी विषयों पर आधारित हैं जिसके फलस्वरूप शारीरिक शिक्षा शिक्षण प्रक्रिया में एक सार्थक विषय-वस्तु प्रदान करता है। शारीरिक शिक्षा एवं खेल विषय के अन्तर्गत 12 उप-विषय आते हैं। शारीरिक शिक्षा की शैक्षणिक प्रकृति इन उप-विषयों के नाम से ही स्पष्ट होती है। जीव विज्ञान, रसायनशास्त्र, भौतिकी, शरीर रचना विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान एवं गणित जैसे विशुद्ध वैज्ञानिक विषयों से ली गई अनुसंधान प्रविधियों एवं ज्ञान ने शारीरिक शिक्षा के उप-विषय व्यायाम कार्यिकी एवं खेल जैवयांत्रिकी के विकास को प्रभावित किया है। सामाजिक विज्ञान विषयों-मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, इतिहास एवं दर्शनशास्त्र ने खेल एवं व्यायाम मनोविज्ञान, गामक अधिगम खेल समाजशास्त्र, खेल इतिहास एवं खेल दर्शन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। पुनर्वास विज्ञान में विशेष रूप से भौतिक चिकित्सा ने खेल औषधशास्त्र एवं शारीरिक गतिविधि रूपांतरण के विकास पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला। शैक्षिक अनुसंधान ने खेल अध्यापन विकास को उल्लेखनीय ढंग से प्रभावित किया। खेल प्रबंधन उप-विषय में प्रबंधन, विधि, संज्ञान एवं विपणन के प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं।

3. शारीरिक शिक्षा एक गतिविधि के क्षेत्र के रूप में 

ये निम्न प्रकार हैं-

(i) शैक्षिक गतिविधि- शैक्षिक गतिविधियाँ वह साधन हैं जिसके माध्यम से व्यक्ति शारीरिक शिक्षा के बारे में औपचारिक ज्ञान प्राप्त करता है। इस विधि के माध्यम से छात्र शारीरिक शिक्षा के सन्दर्भ ज्ञान, कौशल एवं व्यवहार का अर्जन करने में सक्षम होते हैं जिसके फलस्वरूप वे अपनी रुचियों एवं मूल्यों को शारीरिक शिक्षा के सिद्धांत एवं कार्यप्रणालियों के प्रोत्साहन के लिए प्रयोग करते हैं।

(ii) अन्तसंस्थानिक गतिविधि- शारीरिक शिक्षा के इस कार्यक्रम के अन्तर्गत शारीरिक गतिविधियाँ कक्षा के बाहर किन्तु संस्थान की चारदीवारी के अन्दर आयोजित की जाती हैं। इस तरह यह कार्यक्रम छात्रों को एथलेटिक्स, जिम्नास्टिक एवं अन्य खेलों में अंतर कक्षा एवं अंतर सदन व्यवस्था के अन्तर्गत प्रतिभागिता करने का अवसर उपलब्ध कराते हैं। यह कार्यक्रम छात्रों के मध्य दृढ़ एवं सकारात्मक सामाजिक अन्तर्क्रिया के अतिरिक्त मित्रता एवं आत्मसम्मान को भी बढ़ावा देता है।

(iii) बहिर्संस्थानिक गतिविधि- शारीरिक शिक्षा के ये कार्यक्रम अन्य संस्थाओं के अन्य छात्रों के साथ खेलों में ख्याति या उत्कृष्टता हेतु प्रतियोगिता करने के लिए विभिन्न खेलों में छात्रों को अपने कौशलों का प्रदर्शन करने का अवसर उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार के कार्यक्रम विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के मध्य विभिन्न व्यक्तिगत एवं टीम खेलों में प्रशिक्षण प्राप्त एवं खेल कौशलों में दक्ष छात्रों/खिलाड़ियों के लिए खेल प्रतियोगिताओं को प्रोत्साहित करते हैं। एक सुनियोजित बहिसंस्थानिक खेल कार्यक्रम के माध्यम से छात्रों / एथलीटों को राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा, खेल कौशल एवं उत्कृष्टता दिखाने का अवसर मिलता है।

(iv) रूपांतरित या अनुकूलित गतिविधि- शारीरिक रूप से अक्षम / विकलांग व्यक्तियों/ छात्रों के समुच्चय के लिए निर्धारित गतिविधियों को अनुकूलित गतिविधियाँ कहते हैं। शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों में एक या दो या इससे अधिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होती है जो इन छात्रों को सामान्य या नियमित शारीरिक शिक्षा की कक्षाओं में भाग लेने में बाधा उत्पन्न करती हैं। इस प्रकार के शारीरिक अक्षमता वाले छात्रों के लिए शारीरिक गतिविधियाँ सुनियोजित कार्यक्रम के तहत उनकी विकलांगता की श्रेणी के अनुरूप आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं।

(v) मनोरंजनात्मक गतिविधि- मनोरंजन किसी व्यक्ति द्वारा अपने कार्य के समय के अतिरिक्त गतिविधियों का निष्पादन है। यह सामाजिक रूप से स्वीकार्य एवं लाभप्रद गतिविधियाँ जिनमें व्यक्ति स्वेच्छा से अवकाश के समय में भाग लेता है और जिसके माध्यम से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक विकास के अवसर प्राप्त होते हैं। मनोरंजन शिक्षा आत्म-संतुष्टि के लिए सावधानीपूर्वक चयनित गतिविधियों के माध्यम से व्यक्तियों को रचनात्मक तरीके से अवकाश के समय का उपयोग करने में सहायता प्रदान करती है

4. शारीरिक शिक्षा एक वृत्तिक या सेवा के रूप में

परम्परागत रूप से शारीरिक शिक्षा को शिक्षण क्षेत्र का भाग माना गया है। वर्तमान में शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम गैर-विद्यालय विन्यास में शिक्षण गतिविधि सम्बन्धी, स्वास्थ्य एवं फिटनेस सम्बन्धी एवं खेल सम्बन्धी कैरियर में निरंतर विकास कर रहे हैं। नये व्यावसायिक अवसरों के उद्भव ने उच्च शिक्षित पेशेवरों की आवश्यकता को बढ़ा दिया है जो उच्चस्तरीय कौशलों से युक्त हो, जिनमें विभिन्न आयु वर्ग की आवश्यकताओं की समझ एवं समालोचनात्मक मूल्यांकन करने की क्षमता हो एवं जिनमें शारीरिक शिक्षा व इसके उप विषयों पर अच्छी पकड़ हो ।

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shubham yadav

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