स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

शारीरिक शिक्षा का शैक्षिक आधार | Educational Basis of Physical Education in Hindi

शारीरिक शिक्षा का शैक्षिक आधार
शारीरिक शिक्षा का शैक्षिक आधार

शारीरिक शिक्षा का शैक्षिक आधार स्पष्ट कीजिए।

शारीरिक शिक्षा के निम्न शैक्षिक आधार हैं-

(1) शारीरिक-संस्कृति

शारीरिक शिक्षा के पर्यायवाची शब्द के रूप में यद्यपि शारीरिक संस्कृति शब्द का प्रयोग होता रहा है परन्तु यह भ्रामक अवधारणा अधिक देर तक लोगों को भ्रमित न कर सकी। चूँकि शारीरिक-संस्कृति मात्र मनुष्य के मांसपेशीय विकास व उसके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तक ही सीमित मानी जाती थी अर्थात् पूर्णरूपेण शारीरिक अथवा मांसपेशीय विकास को ही अपना लक्ष्य मानती थी। शारीरिक सौष्ठव प्राप्त कर प्रसिद्धि पाना ही इसकी इतिश्री भी मानी गई, जबकि शारीरिक शिक्षा को मनुष्य के समग्र व्यक्तित्व विकास के साधन रूप में स्वीकार किया गया। शारीरिक-संस्कृति में निष्ठा रखने वाले व्यक्ति शरीर को हृष्ट-पुष्ट, सुडौल व सुविकसित बनाने हेतु अखाड़ों में विविध प्रकार के व्यायाम किया करते हैं तथा श्रेष्ठ मांसपेशीय शारीरिक सौष्ठव-प्रदर्शन हेतु विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी करते हैं। जैसे- सर्वोत्तम शारीरिक प्रतियोगिताएँ, भार उत्तोलन प्रतियोगिताएँ तथा सौन्दर्य प्रतियोगिताएँ आदि।

शारीरिक शिक्षा जो कि सामान्य शिक्षा का ही एक अंग स्वरूप है, उसे केवल शारीरिक व्यायाम द्वारा शारीरिक सौष्ठव तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। चूँकि शारीरिक शिक्षा इससे भी कहीं अधिक व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व के विकास से जुड़ी है। शारीरिक संस्कृति की जहाँ तक जीवंतता का प्रश्न है वह क्लबों, सौन्दर्य प्रतियोगिताओं एवं शारीरिक सौन्दर्य संस्थाओं में अभी भी जीवित है।

जहाँ एक ओर यह सच है कि शारीरिक संस्कृति और शारीरिक शिक्षा एक-दूसरे से पृथक् नहीं वरन् एक-दूसरे की पूरक हैं वहीं दूसरी ओर शारीरिक संस्कृति केवल उसके संकुचित अर्थ की सीमा में बाँधकर भी नहीं रखा जा सकता है। चूँकि रूस, चाइना, कोरिया, जापान आदि जैसे देशों द्वारा तो इसे समग्र व्यक्तित्व के विकास के साधन के रूप में स्वीकार किया गया है जो केवल व्यक्ति के शारीरिक पक्ष के विकास के ही पोषक नहीं वरन् व्यक्तित्व के चहुंमुखी एवं सन्तुलित विकास के भी पोषक हैं। कहना न होगा कि शारीरिक संस्कृति को वर्तमान सन्दर्भों में संकुचित अर्थ में लेना सर्वथा अनुपयुक्त होगा। चूँकि संस्कृति शब्द इतना विस्तृत है जो केवल एकपक्षीय विकास का ही प्रतिनिधित्व नहीं करती वरन् इसका सम्बन्ध समग्रता अथवा पूर्णतया से भी है।

(2) व्यायाम

व्यायाम वे शिष्ट शारीरिक क्रियाएँ या गतिविधियाँ हैं जो मनुष्य के शरीर को चुस्ती, फुर्ती, शारीरिक सौष्ठव और सन्तुलन प्रदान करती हैं। व्यायाम न केवल शारीरिक स्फूर्ति व आन्तरिक संतुलन से सम्बन्धित है वरन् इसके द्वारा अनेक चिकित्सीय और उपचारात्मक लाभ भी उठाए जा सकते हैं। इस दृष्टि से व्यायाम के मुख्य दो लाभ होते हैं-(i) निकासात्मक, (ii) सुधारात्मक

शरीररूपी यन्त्र को सुचारु रूप से चलाने तथा उसमें उत्पन्न होने वाले विविध दूषण एवं अवरोधों को दूर करने हेतु व्यायाम की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है। चूँकि शरीर की विभिन्न क्रियाओं को सुचारु रूप से चलाने में इनकी अहम् भूमिका है। अतः विद्यालयों में शारीरिक व्यायाम की महत्ता को स्वीकारते हुए नित्य प्रति व्यायाम हेतु समय सारिणी में प्रतिदिन एक घण्टा रखा जाना आवश्यकीय हो जाता है।

खेलकूद

खेलकूद या Games & Sports एक ऐसा शब्द है जो अपने वृहद् अर्थ के साथ सुप्रचलित भी है। खेल बालक की सहज वृत्ति है जिसे शिशु प्रारम्भ से ही स्वभावतः करता रहता है। इसे वह कहीं से सीखता नहीं वरन् स्वयं ही हाथ पैर मारकर सम्पन्न करता रहता है। शैक्षिक सन्दर्भ में खेल का सामान्य अर्थ उन शारीरिक परिवर्तनों अथवा गतिविधियों से लिया जाता है, जिसे खिलाड़ी बार-बार खेल के मैदान में करता है। उनकी ये क्रियाएँ खेल की दशा के अनुसार बदलती रहती हैं। खेलकूद मुख्यतः दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं

(i) व्यक्तिगत खेल, (ii) दलीय खेल ।

(i) व्यक्तिगत खेल 

ये वे खेल हैं जिसमें खिलाड़ी व्यक्तिगत अथवा एकांगी रूप से भाग लेता है अर्थात् किसी अन्य खिलाड़ी के सहयोग के बिना ही किसी भी खेल प्रतिस्पर्द्धा में अपने कौशल और तकनीक का आश्रय लेकर खेल खेलता है जिसमें सफलता-असफलता हेतु वह स्वयं ही उत्तरदायी होता है तथा अपने खेल का मूल्यांकन स्वयं कर लेता है। यही नहीं खिलाड़ी स्वयं ही अपनी खेल विशेष सम्बन्धी सक्षमता व निष्पादन के सम्बन्ध में आश्वस्त रहता है। किसी भी खेल में सफलता पाने हेतु खिलाड़ी स्वयं ही उसका अभ्यास कर तत्सम्बन्धी कुशलता अर्जित करने का प्रयास करता है। व्यक्तिगत खेलों के अन्तर्गत एथलेटिक्स, कुश्ती, बॉक्सिंग, जूडो, तैराकी, शतरंज, धनुर्विद्या आ जाते हैं। विशेष प्रतिभासम्पन्न विद्यार्थियों की सक्षमता के विकास के लिए विद्यालय में शारीरिक प्रशिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए अथवा समय-समय पर विशेष आमंत्रण के आधार पर प्रशिक्षकों को विशिष्ट खेलों के प्रशिक्षण हेतु आमंत्रित किया जाना चाहिए।

(ii) दलीय-खेल

जिन खेलों में सम्पूर्ण दल या एक से अधिक खिलाड़ी भाग लेते हैं उन्हें दलीय खेल कहा जाता है। दलीय खेल वे सहयोगपरक खेल हैं जो मनोरंजन की दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण होते ही हैं साथ ही खिलाड़ियों के प्रजातन्त्रात्मक नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों का विकास करते हैं।

खेल चाहे व्यक्तिगत हो अथवा दलीय यह खिलाड़ियों के शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विकास में अनिवार्य भूमिका निभाते हैं। व्यवस्थित व संयमित खेलों द्वारा न केवल ये खिलाड़ी आत्म विकास करते हैं वरन् राष्ट्र विकास का परचम भी उठाते हैं। दलीय खेलों में मुख्यतः हॉकी, बॉलीवॉल, फुटबाल, कबड्डी, खो-खो, क्रिकेट आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। दलीय खेल ही कक्षागत स्तर अथवा सामूहिक रूप से विद्यालय में आयोजित किये जाने चाहिये। इनका नित्यप्रति का अभ्यास ही विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद होगा।

(4) शारीरिक प्रशिक्षण

साधारणतया शारीरिक शिक्षा और शारीरिक प्रशिक्षण में अल्पज्ञ लोग कोई अन्तर नहीं कर पाते हैं और दोनों को समानार्थी और एक-दूसरे के पूरक सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।

शारीरिक प्रशिक्षण वस्तुतः सेना में सैनिकों को शारीरिक बलिष्ठता व कठिन परिश्रम के योग्य बनाने हेतु दिये जाने वाले प्रशिक्षण का ही दूसरा नाम था।

यह शारीरिक प्रशिक्षण की प्रक्रिया अलग-अलग देशों द्वारा अलग-अलग प्रकार से अपनाई गई लेकिन कुछ सामान्य गतिविधियों को सभी देशों ने अपने सैनिकों हेतु अपनाया; यथा- मार्चिंग, दौड़ना, पहाड़ों पर चढ़ना व उतरना, तालबद्ध व्यायाम, घुड़सवारी, वजन उठाना, सूर्य नमस्कार आदि।

यही नहीं सेना के साथ-साथ पुलिसकर्मियों के लिए भी इस प्रकार के प्रशिक्षण की व्यवस्था होती थी। कई लोग शारीरिक शिक्षा को पी०टी० के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। समय व बदलती हुई परिस्थितियों के फलस्वरूप इस व्यवस्था को शैक्षिक संरचना में भी लाने का प्रयास किया गया और इसी प्रकार के कठोर परिश्रम की संकल्पना को जब मूर्त रूप देने का प्रयास किया गया तो इसमें जो मूलभूत अन्तर आया वह था कोमल विद्यार्थियों की शारीरिक क्षमता का। फलतः इस क्षेत्र में बहुत अधिक सफलता न मिल सकी। चूँकि सैनिकों व पुलिसकर्मियों के परिश्रम से विद्यार्थियों के कठोर परिश्रम को नहीं मिलाया जा सकता। शारीरिक प्रशिक्षण जहाँ एक ओर मांसपेशीय व शारीरिक बलिष्ठता के विकास तक सीमित है। वहाँ शारीरिक शिक्षा का अर्थ व क्षेत्र इससे कहीं अधिक विस्तृत है। यही कारण है कि आज शिक्षा के क्षेत्र में अवकाश प्राप्त सैनिक प्रशिक्षण अधिकारियों का स्थान अध्यापकों एवं प्राध्यापकों ने ले लिया है तथा शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत शारीरिक प्रशिक्षण के महत्त्व को समझाने का प्रयास कर हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि शिक्षा जहाँ समग्र व्यक्तित्व विकास की बात लेकर चल रही है। वहाँ पर शारीरिक शिक्षा किसी भी प्रकार से उपेक्षणीय नहीं है। शारीरिक प्रशिक्षण इस पक्ष की अनिवार्यता की पुष्टि करता है। इस हेतु विद्यालयों में इस प्रकार के शारीरिक प्रशिक्षण को समय सारणी में अनिवार्यतः समय सामूहिक प्रार्थना के पश्चात् विद्यालय के प्रारम्भ अथवा अन्त में दिया जाना चाहिये।

(5) कवायद

शारीरिक शिक्षा को एक अन्य समानार्थी नाम ड्रिल भी जाना जाता है। यह शब्द सेना से लिया गया है। सेना में किसी भी क्रमबद्ध कार्यक्रम को ड्रिल कहा जाता है। सामान्यतः ड्रिल बैंड सभी धुन अथवा संगीत की सहायता से की जाती है। यह ड्रिल व्यक्तिगत एवं सामूहिक शारीरिक गतिविधियों के साथ जुड़ी है।

व्यक्तिगत व्यायामों को सामूहिक रूप से कराने पर वह मास ड्रिल कहलाती है। यदि कवायद का सही अर्थ देखा जाये तो इसका अर्थ होता है- “उपयुक्त आदेश पाने पर व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध तरीके से गतिविधियों का अभ्यास करना।” विद्यालयी जीवन में इस प्रकार की ड्रिल का विशेष महत्त्व होता है। बच्चों में अनुशासन व व्यवस्था लाने हेतु ‘मास ड्रिल’ का आयोजन किया जाता है। ड्रिल का अभ्यास करवाते समय शारीरिक शिक्षा के शिक्षक हेतु निम्न बिन्दु विचारणीय हैं

(i) व्यक्तिगत अभ्यास क्रमानुसार करवाना।

(ii) सम्पूर्ण कक्षा या समूह को गिनती व संगीत के साथ अभ्यास करवाना।

(iii) समय के अनुसार प्रदर्शन को खण्डों में विभक्त करवाते हुए उसकी व्याख्या भी करना।

(6) जिमनास्टिक्स 

शारीरिक शिक्षा पर यूरोपीय विचारधारा के प्रभाव के फलस्वरूप इस शब्द का प्रचलन शारीरिक शिक्षा के पर्यायवाची शब्द के रूप में हो गया। वस्तुतः जिमनास्टिक शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा से हुई है, जिसका अर्थ है ‘नैकेड आर्ट’ अर्थात् ‘नग्न-कला’ ।

जिमनास्टिक्स शब्द का अर्थ है उपयोगी, आवश्यक एवं वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर शरीर के प्रत्येक अवयव एवं स्नायुओं को सुन्दरता एवं सुडौलता प्रदान करना है।

जिमनास्टिक आधुनिक युग की नहीं वरन् प्राचीन युग की देन है। प्राचीनकाल में यूनान निवासियों द्वारा सुडौल देह-यष्टि की कामनावश इस कला का विकास किया गया।

अठारहवीं शताब्दी में जर्मन विशेषज्ञ ‘गट्स-मथ’ की जिमनास्टिक में गहरी पैठ ने उन्हें इस कला (जर्मन जिमनास्टिक व्यायाम) के पितामह के रूप में ख्याति प्रदान की। यही नहीं इनके द्वारा ही शारीरिक शिक्षा में जिमनास्टिक को प्रयोग किये जाने का भी सुझाव दिया गया। ‘गट्स-मथ’ की जिमनास्टिक क्रिया विशेषज्ञता और गहरी समझ के कारण लोगों पर उसका विशेष प्रभाव पड़ा। यही नहीं लिखित विषय-वस्तु प्रदान करने हेतु ‘गट्स-मथ’ द्वारा जिमनास्टिक्स पर साहित्य लिखा गया जिसमें से कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें इस प्रकार हैं-

(i) जिमनास्टिक्स फार द यंग 

(ii) गेम्स।

(iii) जर्मन जिमनास्टिक

जर्मनी के ही एक अन्य खेल विशेषज्ञ ‘एडाल्फ स्पीड़ा’ द्वारा इस दिशा में व्यायाम की पाठशाला खोलकर एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया। शारीरिक शिक्षा और जिमनास्टिक एक-दूसरे के पूरक होते हुए। भी एक नहीं हैं। यद्यपि शारीरिक शिक्षा और जिमनास्टिक्स को बहुत लोगों द्वारा समानार्थी समझा जाता है परन्तु यह तो निश्चित है कि शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत जिमनास्टिक सम्बन्धी गतिविधियाँ अपना विशेष स्थान रखती हैं। कुछ विशिष्ट देश जैसे स्वीडन, डेनमार्क और जर्मनी में जिमनास्टिक शब्द को शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद सम्बन्धी गतिविधियों से जोड़ा जाता है।

अन्य शारीरिक व्यायाम एवं गतिविधियों की भाँति जिमनास्टिक को भी शारीरिक बलिष्ठता, सौन्दर्य, लचीलेपन, सामंजस्य एवं सुदृढ़ता हेतु प्रयोग में लाया जाता है। जिमनास्टिक्स न केवल शारीरिक वरन् व्यक्ति के मानसिक संवेगात्मक विकास के लिए भी अत्यन्त आवश्यक है। समाज में अपनी सन्तुलित देहयष्टि के प्रदर्शन एवं प्रतिष्ठा पाने के लिए भी इनका प्रचलन अतिशयता से हो रहा है। जिमनास्टिक व्यायामों के लिए विशिष्ट व आवश्यकीय उपकरण इस प्रकार हैं-

(i) व्यायाम हेतु मैट (जमीन पर)।

(iii) पैरेलल बार।

(ii) हॉरीजैन्टल बार।

(iv) बैलेंस बीम।

(v) स्टील बार।

(vii) रोमन रिंग्स।

(vi) वाल्टिंग हॉर्स, साइड हॉर्स, पॉमेल हॉर्स, लॉग हॉर्स।

(viii) रोपस

(ix) लैडर्स।

(xi) स्वीडिश बॉक्स।

(x) ट्रैम्पोलियन।

निःसन्देह जिमनास्टिक्स विद्यार्थियों हेतु प्रभावी व्यायाम है। इस हेतु कक्षा व्यवस्था व प्रबन्ध इस प्रकार का होना चाहिये कि सभी विद्यार्थियों से व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से गतिविधियाँ करवाई जा सकें। इस व्यवस्था के अन्तर्गत समस्त जिमनास्टिक्स के उपकरणों के चारों ओर विद्यार्थियों को एकत्रित व निर्दिष्ट किया जाना चाहिये जिससे वे स्वतन्त्र रूप से आदेशों का पालन करते हुए जिमनास्टिक व्यायामों को कर सकें तथा शारीरिक शिक्षा के अध्यापक द्वारा उनका सुविधाजनक ढंग से निरीक्षण भी किया जा सके।

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shubham yadav

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