स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

शारीरिक शिक्षा का महत्त्व | Importance of Physical Education in Hindi

शारीरिक शिक्षा का महत्त्व
शारीरिक शिक्षा का महत्त्व

शारीरिक शिक्षा का महत्त्व बताइए

आधुनिक समय में शारीरिक शिक्षा का निम्न महत्त्व है-

1. नैतिक गुणों का विकास

 शारीरिक शिक्षा के विभिन्न कार्यक्रमों में छात्रों को सामाजिक सम्पर्क के अवसर मिलते हैं तथा प्रत्येक सदस्य व्यावहारिक ढंग से परिचित होता है और नैतिकता के गुणों का अर्जन करता है। सद्भावना, सच्चाई, ईमानदारी आदि गुण सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।

2. आर्थिक उपादेयता

 वर्तमान में खेल एवं शारीरिक शिक्षा केवल शारीरिक विकास तक सीमित नहीं है, अपितु इसका तीव्र व्यवसायीकरण हुआ है। कतिपय खेलों यथा-टेनिस, क्रिकेट, गोल्फ आदि में प्रयोजन की अवधारणा नयी और अर्थपूर्ण दिशा प्रदान कर रही है।

3. जीविकोपार्जन के सुयोग्य बनाना

 छात्रों को जीविकोपार्जन के सुयोग्य बनाना शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य है। शारीरिक शिक्षा के विभिन्न उप-विषयों का ज्ञान प्राप्त करके छात्र जीवन के विविध क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य करके जीविकोपार्जन कर सकते हैं।” भी

4. नागरिकता के गुण

अच्छे नागरिक किसी भी समाज एवं राष्ट्र की उन्नति में सहायक होते हैं। शारीरिक शिक्षा द्वारा व्यक्ति नियमों का पालन करना, खेल भावना, दूसरों के प्रति आदर एवं पैस राष्ट्रीय गौरव की भावना जैसे नागरिकता के गुणों को ग्रहण करता है।

5. राष्ट्रीय एकीकरण

भारतीय संविधान के अनुसार अपने देश में आज वर्गविहीन, जातिविशीनं तथा शोषणविहीन समाज की स्थापना करनी है और यह तभी संभव है जब हम प्रारम्भ से ही छात्रों के हृदय में इसके लिए निष्ठा एवं संकल्प पैदा कर दें। शारीरिक शिक्षा राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय कैडेट कोर, स्काउटिंग एवं गाइडिंग आदि कार्यक्रमों द्वारा छात्रों में राष्ट्र भावना लाने और राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

6. अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध का विकास

 शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद से अंतर्राष्ट्रीय अवबोध का विकास होता है। वर्तमान में विश्वबन्धुत्व की भावना की अति आवश्यकता है। आज सर्वत्र तनाव के विविध क्षेत्र दृष्टिगोचर हो रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में अंतर्राष्ट्रीय अवबोध ‘विश्व शांति’ का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

7. सामाजिक चेतना का विकास

 आधुनिक भौतिकवादी और व्यक्तिवादी समाज में सामाजिक चेतना का ज्ञान विशेष महत्त्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्त्तव्य, अधिकार तथा स्थान की जानकारी होना आवश्यक है, जिससे वह आदर्श नागरिक की तरह राजनैतिक तथा सामाजिक क्रियाओं में कुशलतापूर्वक भाग ले सके और एक आदर्श नागरिक की तरह जीवनयापन कर सके।

8. नेतृत्व के गुणों का विकास

 शारीरिक शिक्षा की विभिन्न गतिविधियों एवं खेल परिस्थितियों के अन्तर्गत छात्रों द्वारा बहुत से कार्य आयोजित एवं व्यवस्थित होते हैं। अनेक प्रकार की क स्थितियों का सामना करना पड़ता है। तत्कालीन निर्णय लेने पड़ते हैं। ऐसा करते समय छात्रों में नेतृत्व के गुणों अर्थात् सत्यता, धैर्य, उत्साह, सहिष्णुता, विवेक, ईमानदारी, आत्मनिर्भरता, निस्वार्थता, कार्यरत रहना, आत्मविश्वास, मौलिकता, दक्षता, निर्णय करने की शक्ति, साधनपूर्णता आदि गुणों का विकास होता है।

9. रचनात्मक एवं अभिव्यक्ति का माध्यम

खेलकूद का रचनात्मक पहलू भी उल्लेखनीय है। किशोरावस्था में बालक तथा बालिका में अतिरिक्त शक्ति होती है। खेलकूद द्वारा उनकी इस अतिरिक्त शक्ति को सरलता से रचनात्मक मार्ग में परिचालित किया जा सकता है। इस प्रकार उनकी अतिरिक्त शक्ति का सदुपयोग हो जाता है। शारीरिक शिक्षा छात्रों को इस बात का अवसर भी देती हैं कि वे अपने गुण-दोष जान सकें और अपने दोषों को दूर कर अपने गुणों का विकास करें। खेल परिस्थितियों में प्रत्येक छात्र को अपनी योग्यताओं एवं क्षमताओं को समझने का अवसर मिलता है।

10. सहयोग की भावना का विकास

 आज जटिल समाज में प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिवादी होता जा रहा है परन्तु आधुनिक परिस्थितियाँ इस बात पर बल देती हैं कि जब तक मानव सहयोग की भावना से कार्य नहीं करता तब तक वह सफल जीवन यापन नहीं कर सकता। विश्व में शांति स्थापना के लिए भी सहअस्तित्व का होना आवश्यक है। इसके अभाव में कोई भी व्यक्ति सफल नागरिक के रूप में कार्य नहीं कर सकेगा, शारीरिक शिक्षा द्वारा बालकों में परस्पर सहयोग से कार्य करने की भावना का विकास होता है तथा वे मानवीय मूल्यों के प्रति सचेत रहते हैं।

11. अवकाश के समय का सही सदुपयोग

शारीरिक शिक्षा के माध्यम से अवकाश का सुन्दर उपयोग होता है। प्रायः देखा यह जाता है कि जिन शैक्षणिक संस्थाओं में अध्ययन के पश्चात् अतिरिक्त समय में खेलकूद की सुविधा होती है, वहाँ किसी प्रकार की अनुशासनहीनता नहीं होती। शारीरिक शिक्षा अनुशासन स्थापित करने का एक सशक्त माध्यम है। शैक्षणिक संस्थाओं के लिए इस संदर्भ में इसकी महत्ता और बढ़ जाती है।

12. समन्वय एवं कार्य विभाजन

शारीरिक शिक्षा एवं खेलों में प्रतिभागिता से समन्वय की भावना आती है। मिल-जुलकर कार्य करने की प्रेरणा समन्वय का आधार है कार्य विभाजन द्वारा श्रम हैं। आगे और आगे हम बढ़ते चलें। हम निरंतर गतिशील हों, क्रियाशील हों, विकास की सर्वोत्तम विधा की तलाश हम जारी रखें। एकाध बार की असफलता से हम निराश न हों। इन सब भावनाओं का विकास खेलकूद द्वारा सर्वोत्तम रूप से हो सकता है।

13. वैयक्तिक एवं सामाजिक समायोजन

शारीरिक शिक्षा वैयक्तिक एवं सामाजिक सामायोजन के लिए सहायक सिद्ध होती है। अध्ययनों से स्पष्ट है कि अच्छे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य वाले बालक सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक ढंग से सुसमंजित होते हैं, जबकि शक्ति से कमजोर बालक सामाजिक कठिनाइयों, कुसमायोजन और हीनता की भावना से ग्रसित होते हैं।

14. स्वास्थ्य सम्बन्धी ठीक आदतों का विकास

शारीरिक शिक्षा व्यक्तियों को स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य समस्या के प्रति जागरूक करती है। स्वस्थ व्यक्तित्व के कई पक्ष हैं जैसे- शारीरिक, मानसिक, नैतिक, संवेगात्मक एवं भावनात्मक शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों में इस प्रकार की गतिविधियों का प्रावधान होता है जो उन्हें शारीरिक रूप से सक्रिय, मानसिक रूप से जागरूक, स्वस्थ और संवेगात्मक रूप से दृढ़ करे। नैतिक रूप से

15. व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास

शारीरिक शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। उचित वातावरण के द्वारा उनकी शक्ति तथा योग्यता के अनुसार उन्हें जीवन के लिए तैयार करना है। उन्हें अपने भावी जीवन को सफलतापूर्वक व्यवस्थित तथा सुखपूर्वक व्यतीत करने में सक्षम बनाना है।

16. शारीरिक एवं बौद्धिक विकास

महान दार्शनिक प्लेटो के अनुसार, “बालक को दण्ड की अपेक्षा खेल द्वारा नियंत्रित करना कहीं अच्छा है।” खेलकूद से स्वास्थ्य में वृद्धि होती है, खेलने के दौरान शरीर की समस्त मांसपेशियाँ सक्रिय रहती हैं तथा रक्त प्रवाह शरीर में तीव्रता से होता है। इससे शरीर स्वस्थ बना रहता है। कहावत है— “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।” उसमें अच्छे-बुरे को समझने की शक्ति होती है। स्वस्थ शरीर से चारित्रिक दुर्बलताएँ मस्तिष्क में प्रवेश नहीं करतीं। छात्र जीवन में तो खेलकूद अपरिहार्य है। इसमें छात्रों का मस्तिष्क एकाग्र बना रहता है। बालक की समझ खेल व अध्ययन के अतिरिक्त इधर-उधर नहीं भटकती। इसके अतिरिक्त खेलते समय बालक के अन्दर संयम, वृढ़ता, गम्भीरता, एकाग्रता एवं सहयोग की भावना का विकास होता है। खेलकूद की महत्ता प्रायः सभी विद्वानों ने येन केन प्रकारेण स्वीकार की है। छात्र जीवन में तो इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। खेलकूद के अभाव में छात्रों का शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है, फलतः उनमें आत्मविश्वास की कमी उन्हें आत्मानुशासन रहित बना देती है। तत्पश्चात् उनकी समस्याएँ कुंठाग्रस्त होकर गलत मार्ग की तरफ अग्रसर हो जाती हैं।

17. तंत्रिका-पेशीय विकास

तंत्रिका – पेशीय विकास द्वारा गामक दक्षताएँ प्राप्त होती हैं। यह दक्षता अभ्यास और प्रशिक्षण से प्राप्त होती है। इस दक्षता के विकास के साथ ही अनावश्यक शारीरिक गतियों का लोप हो जाता है, प्रयास कम करना पड़ता है एवं थकान में भी कमी आती है। दक्षताओं की प्राप्ति की उपलब्धि में चयनित तंत्रिकाओं में सामंजस्य स्थापित होता है। परिशुद्ध समन्वय स्थापित करने के लिए तंत्रिका संस्थान को अभ्यास के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है। चूँकि गति पेशीय क्रियाओं से उत्पन्न होती है, अतः दक्षता तंत्रिका केन्द्रों एवं पेशियों के संयुक्त कार्य से होती है।

18. सामाजिक विकास

शारीरिक शिक्षा तथा खेल आपस में प्रेमपूर्वक, मिल-जुलकर रहना, आपसी वैरभाव समाप्त करना तथा विभिन्न जाति एवं सम्प्रदाय के साथ आपसी तालमेल के द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना सिखाता है। इसके फलस्वरूप इससे सामाजिक सहयोग के भाव उत्पन्न होते हैं। क्रीड़ा जगत् में एक साथ भाग लेने वाले खिलाड़ी परस्पर प्रतिस्पर्द्धा तो करते हैं, किन्तु द्वेषभाव से दूर रहते हैं। वस्तुतः खिलाड़ी ही किसी देश के सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं। खिलाड़ी हार जीत को जब खेल की भावना से लेने की शिक्षा पाते हैं तो वे जीवन में भी सफलता-असफलता पर संतुलन बनाए रखने में सफल होते हैं।

19. भावनात्मक विकास

एक स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास के लिए संवेगात्मक स्थिरता और पूर्णरूपेण स्वस्थ भावनात्मक अभिव्यक्ति अपरिहार्य अंग है। भावनाओं एवं आवेगों को दबाने से असामाजिक व्यवहार की उत्पत्ति हो सकती है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा हमारी इन मूलभूत प्रवृत्तियों का सदुपयोग करने के लिए अत्यधिक सार्थक एवं महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। खेलकूद प्रतियोगिताओं के माध्यम से अनियंत्रित अभिव्यक्ति हेतु अवसर प्रदान किया जाता है। यह व्यक्ति को अपना प्रभाव डालने का अवसर प्रदान करता है। वस्तुतः निर्धारित उपलब्धि का यह सर्वाधिक सरल उपाय है।

20. चारित्रिक विकास

शारीरिक शिक्षा द्वारा केवल शारीरिक और बौद्धिक विकास ही नहीं किया जाता बल्कि इसके माध्यम से व्यक्ति चारित्रिक गुणों को सरलता से आत्मसात कर पाता है, जैसे सहयोग एवं सामूहिक प्रयास, अनुशासन, सामूहिक हित के लिए निजी हितों का परित्याग, टीम के प्रति प्रतिबद्धता, दृढ़ निश्चय आदि गुण चारित्रिक विकास में प्रथम सोपान का कार्य करते हैं।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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