समाजशास्‍त्र / Sociology

शिष्टाचार को समझाते हुये शिष्टाचार में अपकर्ष की विस्तृत विवेचना कीजिए।

शिष्टाचार का अर्थ
शिष्टाचार का अर्थ

शिष्टाचार का अर्थ

शिष्टाचार तथा नैतिकता का अंतर बहुत सीमान्त है। नैतिकता तथा शिष्टाचार दोनों ही उचित और अनुचित के बोध से सम्बन्धित है। लेकिन नैतिकता का क्षेत्र शिष्टाचार की तुलना में अधिक व्याप्त है। नैतिकता का सम्बन्ध सम्पूर्ण सांस्कृतिक विरासत से है, जबकि शिष्टाचार केवल वैयक्तिक व्यवहारों क्षेत्र को स्पष्ट करते हैं। एक विशेष संस्कृति में शिष्टाचार अथवा सदाचार व्यवहार का वह आचरण है जिस को व्यक्ति से एक विशेष आयु लिंग स्थिति अथवा वर्ग के व्यक्ति के प्रति प्रदर्शित की जाती है। सदाचार का उद्देश्य सभी वर्गों के लोगों के बीच पारस्परिक सद्भाव तथा स्नेह की भावना को बढ़ाना है। वर्तमान युग के सांस्कृतिक विघटन की एक प्रमुख अभिव्यक्ति शिष्टाचार के पतन के रूप में देखने मिलती हैं यह पतन दो रूपों में विद्यमान है एक तो यह कि बहुत से लोग एक तो व्यर्थ का दिखावा अथवा बुर्जुआ-मनोवृत्ति मानकर इसका पालन करना आवश्यक नहीं समझते। बहुत से व्यक्ति अपनी विघटित मनोवृत्ति के कारण शिष्टाचार को एक महत्वपूर्ण सामाजिक रूप में नहीं देखते, यह कि बहुत से व्यक्ति अपनी विघटित मनोवृत्ति के कारण शिष्टाचार को एक महत्वपूर्ण सामाजिक रूप में ही नहीं देखते। शिष्टाचार के पतन की समस्या को अनेक क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

1. वर्तमान युग में आयु और शिष्टाचार के बीच अभाव

आज वर्तमान समय में आयु और शिष्टाचार के बीच समन्वय का नितान्त अभाव दिखाई देता है। परम्परागत संस्कृति में प्रत्येक व्यक्ति की आयु में अपने से बड़े व्यक्ति तथा विशेषकर वृद्ध व्यक्तियों के प्रति शब्दों द्वारा सम्मान प्रदर्शित करना आवश्यक था। आज इस प्रवृत्ति का तेजी से विकास हुआ है। इसके फलस्वरूप परिवार में जीविका उपार्जित करने वाले युवा सदस्य वृद्ध अथवा दूसरे सदस्यों से शिष्ट व्यवहार करना आवश्यक नहीं समझते बल्कि अक्सर उनका अपमान भी कार्यालयों में युवा अधिकारी वृद्ध चपरासी को निर्दयतापूर्वक डाँटना अपना वैधानिक अधिकार समझते हैं। वृद्ध व्यक्तियों के सामने अपनी नग्नता तथा उसके पिछड़ेपन का बखान करना एक गौरव की बात समझते हैं। शिष्टाचार में इससे अधिक पतन और क्या हो सकता है।

2. भव्य सत्कार में हास

परम्परागत समाज में भव्य सत्कार करना हमारी संस्कृति का एक विशेष गुण था। आज वर्तमान युग में शिष्टाचार की कमी होने के कारण भव्य सत्कारों में कमी का होना शिष्टाचार के पतन को दर्शाता है। आज घर में किसी अतिथि का आ जाना एक विपत्ति समझी जाने लगी है। अनेक परिवारों में अतिथ्य सत्कार के स्थान पर अतिथि की उपेक्षा की जाती है। उसके सामने बढ़ते हुये खर्चों की बातें करना, स्थात्राभाव की व्यवहार में उदासीनता दिखाना तथा बच्चों के माध्यम से उसका अपमान करना साधारण सी भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में यह शिष्टाचार में होने वाला एक गंभीर पतन है।

3. शिक्षा संस्थाओं में बढ़ती हुयी अनुशासनहीनता

शिक्षा संस्थाओं में बढ़ती हुयी अनुशासनहीनता इस पतन का एक अन्य पक्ष है। विद्या को न तो पैसों से खरीदा जा सकता है और न ही इसे बलपूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिये गुरु की सहानुभूति तथा स्नेह की आवश्यकता होती है। इसी सहानुभूति तथा स्नेह की प्राप्ति के लिये शिक्षा संस्थाओं में विद्यार्थियों तथा शिष्टाचार अथवा सदाचार प्रदर्शित करना आवश्यक समझा जाता है। वर्तमान युग में विद्या को भी एक खरीदी जा सकने योग्य ‘वस्तु’ समझा जाने लगा है। शिक्षकों से अभद्र व्यवहार करना, अनुशासन के नियमों को भंग करना, सस्ता नेतृत्व स्थापित करने के लिये साथियों के साथ मार-पीट करना, कक्षाओं से गायब रहना, लड़कियों का भड़कीली वेश-भूषा में रहना, विद्यार्थियों का शिक्षकों के सामने सिगरेट पीना तथा अनुशासन की बात करने पर शिक्षकों का धमकान सदाचार के पतन की गम्भीर स्थिति को स्पष्ट करता है।

4. आर्थिक जीवन में अशिष्टता

विभिन्न दफ्तरों तथा औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कर्मचारी संघो की स्थापना हो जाने से अधीनस्थ कर्मचारी आश्वस्त हो गये हैं कि कितना भी अभद्र व्यवहार करने पर उन्हें कोई हानि नहीं पहुँच सकती। इसके फलस्वरूप उद्योगों के मालिक और प्रबंधक के साथ अशिष्ट व्यवहार करना, कार्यालयों में कर्मचारियों द्वारा निर्धारित समय से देर में आना, बार-बार अपनी सीट से उठकर चले जाना, ग्राहकों की शिकायत पर उनसे अशिष्ट व्यवहार  व ससुर से अक्सर नौकरों के समान व्यवहार किया जाने लगा है। उनके सामने पति के लिये अथवा अन्य नातेदारों के लिये अपशब्द कहना आधुनिकता का आधार बन गया है। घर में आधुनिक सहेलियों को आमंत्रित करके उनके साथ भद्दे मजाक करना, अंग्रेजी न जानने वाले वृद्ध सदस्यों से अंग्रेजी के शब्द बोलना, अशिष्ट वेश-भूषा धारण करना, बच्चों को गालियाँ देना तथा अपनी सुख-सुविधा के लिये वृद्ध सदस्यों को उनकी सुविधाओं से वंचित करना स्त्रियों में शिष्टाचार के पतन के उदाहरण हैं।

वर्तमान भारतीय समाज में जहाँ तक शिष्टाचार में पतन के कारण का प्रश्न है, यह ध्यान रखना चाहिये ये सभी कारण जो नैतिकता के पतन के लिये उत्तरदायी है। शिष्टाचार में भी ह्रास उत्पन्न करते हैं। इसके पश्चात् भी कुछ अन्य कारण भी है जो शिष्टाचार में अपकर्ष के लिये उत्तरदायी है जैसे तेजी से बढ़ता हुआ सामाजिक विघटन, प्राथमिक सम्बन्धों में कमी, नैतिक मूल्यों का ह्रास आदि। साधरणतया आज सभी व्यक्ति द्वितीयक अथवा दिखावटी सम्बन्धों द्वारा ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, जिसमें शिष्टाचार को एक आवश्यकता के रूप में नहीं देखा जाता।

इस सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट होता हैं कि भारत में आज नैतिकता और शिष्टाचार में होने वाला अपकर्ष सांस्कृतिक विघटन की जीती-जागती तस्वीर है। श्री सुदर्शन ने लिखा है कि “आदमी जब पैदा. हुआ उस समय किसी शक्ति ने उसके कान में कुछ बातें कही थीं। उनमें से एक यह थी कि संसार में तुझ जैसा कोई नहीं है तू अद्वितीय है।’

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shubham yadav

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