समाजशास्‍त्र / Sociology

समांतर माध्य का अर्थ एवं परिभाषा | समान्तर माध्य के गुण | समान्तर माध्य के दोष

समांतर माध्य का अर्थ एवं परिभाषा
समांतर माध्य का अर्थ एवं परिभाषा

समांतर माध्य का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Mean)

गणितीय माध्यों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण समांतर माध्य होता है। इसको माध्य या औसत के नाम से भी जाना जाता है। जब किसी श्रेणी के पदो के जोड़ में पदों की संख्या से भाग कर दिया जाता है तो जो परिणाम प्राप्त होता है वह मध्यक औसत या समांतर माध्य कहलाता है। इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने अपनी परिभाषाएं निम्न प्रकार दी हैं-

“किसी श्रेणी के पदों के मूल्यों के योग में उनकी संख्या का भाग देने से जो मूल्य प्राप्त होता है। उसे समान्तर माध्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”- किंग

“एक समंक माला के पदों के मूल्यों के योग में उनकी संख्या से भाग देने से प्राप्त संख्या माध्य होती है।”- सैक्राइस्ट

“समान्तर माध्य किसी विचरण का समतोलन केन्द्र है।”- प्रो. मिल्स

समान्तर माध्य के गुण (Merits of Mean)

(1) माध्य हमेशा निश्चित रहता है। एक समंकमाला में चाहे जिस रीति का प्रयोग किया जाये चाहे जिस सूत्र का प्रयोग किया जाये परिणाम सभी से एक जैसा निकलता है।

(2) इसकी गणना करना बहुत ही सरल होता है। सामान्य योग्यता वाला व्यक्ति इसकी गणना कर सकता है।

(3) समांतर माध्य की गणना करने में समूह के सभी पदों का प्रयोग होता है।

(4) चारलियर जाँच के आधार पर इस माध्य की शुद्धता की जाँच की जा सकती है।

(5) इसमें बीजगणितीय गणना का प्रयोग किया जा सकता है।

(6) इसको ज्ञात करने में मध्यका की तरह पदों को आरोही क्रम या अवरोही क्रम में रखना आवश्यक नहीं होता है और न ही बहुलक की तरह सामूहीकरण करने की आवश्यकता होती है।

(7) समांतर माध्य सर्वाधिक स्थिर माध्य है। यदि एक समग्र में कई न्यादर्श लिये जायें तो सभी का मान समान आयेगा।

(8) समांतर माध्य की गणना में चूँकि सभी पदों का प्रयोग किया जाता है इसलिये ये कहा जा सकता है कि यह काफी प्रतिनिधि मूल्य होता है।

समान्तर माध्य के दोष (Demerits of Mean)

(1) समान्तर माध्य का पहला दोष यह होता है कि इसका प्रदर्शन बिन्दुरेखीय नहीं हो सकता।

(2) कभी-कभी समान्तर माध्य से गलत निष्कर्ष निकल आते हैं। जैसे यदि ‘अ’ व्यवसाय का लाभ पिछले तीन वर्षों से 30,000 रु., 40,000 रु.,50,000 रु. हो रहा है तो इसका औसत 40,000 रु. होगा। इसी प्रकार यदि ‘ब’ के व्यवसाय में पिछले तीन वर्षों से लाभ 50,000 रु., 40,000 रु. 30,000 रु. हो रहा है तो इसका औसत 40,000 रु. होगा। इन दोनों व्यक्तियों के व्यवसाय का समान्तर माध्य समान है तो ऐसी दशा में यह कहा जा सकता है कि दोनों का व्यवसाय समान है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है जबकि ‘अ’ का व्यवसाय उन्नति की ओर है और ‘ब’ का व्यवसाय अवनति की ओर है।

(3) यदि समंक माला में कोई मूल्य अज्ञात है तो उस समंकमाला का समान्तर माध्य ज्ञात नहीं किया जा सकता है।

(4) कभी-कभी समान्तर माध्य के द्वारा हास्यास्पद परिणाम निकलते हैं जैसे यदि किसी परिवार में तीन आदमी हैं और दूसरे परिवार में चार आदमी हैं तो इन दोनों परिवार का समान्तर माध्य 3.5 व्यक्ति होगा जो हास्यास्पद है।

(5) यदि किसी सामग्री में गुणात्मक रूप सम्मिलित है तो उसका समान्तर माध्य नहीं निकल सकता। इसमें मध्यका का प्रयोग किया जाता है।

(6) समान्तर माध्य प्रायः ऐसा मूल्य प्रदान करता है जो श्रेणी के अन्दर नहीं पाया जाता है अतः वह श्रेणी के मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता जैसे यदि 10, 20, 120 का समान्तर माध्य निकाला जाये तो वह 50 आयेगा जो इन तीनों में मूल्य एक भी नहीं है।

(7) अनुपात दर प्रतिशत आदि का अध्ययन करने के लिए समान्तर माध्य अनुपयुक्त साबित होता है।

(8) यदि समंक माला में संख्याओं का वितरण अति विषम हो तो ऐसी स्थिति में निकाला गया। समांतर माध्य उपयुक्त नहीं कहलायेगा।

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shubham yadav

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