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व्यवहार तकनीकी की अवधारणा, विशेषताएँ एवं उपयोगिता

व्यवहार तकनीकी (Behavioural Technology)

व्यवहार तकनीकी- व्यवहार की उत्पत्ति परिस्थिति (Situation) द्वारा होती है। शैक्षिक परिस्थितियाँ कक्षागत व्यवहार को जन्म देती हैं इसलिए शिक्षक एवं छात्र के व्यवहार का अध्ययन आवश्यक हो जाता है और साथ ही वैयक्तिक विभिन्नताओं (Individual Differences), छात्रों एवं शिक्षकों में निहित क्षमताओं तथा कुशलताओं का पता लगाने के लिए व्यवहार तकनीकी का अध्ययन आवश्यक होता है। अतः इस तकनीकी का प्रमुख उददेश्य शिक्षक तथा छात्र के कक्षागत व्यवहार में वांछित परिवर्तन व सुधार करना है।

वर्तमान शिक्षा को बालकेन्द्रित माना जाता है। व्यवहार तकनीकी, शिक्षा का व्यवहारिक पक्ष है। मानव व्यवहार का अध्ययन मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है इसलिए मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान कहते हैं। अध्यापक के लिए आवश्यक है कि वह मनोविज्ञान अर्थात् छात्रों की आयु स्तर, मानसिक क्षमता, योग्यता एवं व्यक्तिगत विभिन्नताओं का स्पष्ट ज्ञान रखे, तभी वह शिक्षण के उद्देश्यों (Teaching Objectives) को प्राप्त करने के लिए सीखने के अनुभव उत्पन्न करके (Learning Experiences) अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन (Desired Behavioural change) कर सकेगा। व्यवहार तकनीकी का प्रमुख उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया को सशक्त एवं सुगम बनाए रखना तथा छात्रों के अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन एवं प्रगति का पता लगाना है।

व्यवहार तकनीकी को आगे बढ़ाने का श्रेय प्रोफेसर बी. एफ. स्किनर (B.F. Skinner) को है। उन्होंने शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रयोगों द्वारा सीखने के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। स्किनर ने अपने सक्रिय अनुकूलन सिद्धान्त (Operant Conditioning Theory) द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि केवल पशुओं के व्यवहार को ही नहीं वरन् मानव के व्यवहार को भी परिवर्तित तथा नियन्त्रित किया जा सकता है।

व्यवहार तकनीकी की अवधारणा (Concept of Behavioural Technology)

व्यवहार तकनीकी न केवल छात्रों के व्यवहार में परिवर्तनों पर ही ध्यान देती है बल्कि यह शिक्षक के कक्षा व्यवहार में भी अपेक्षित परिवर्तन लाने का प्रयास करती है जिससे कि बालक के व्यवहार में स्वतः ही वांछित परिवर्तन आ जाए। शिक्षक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने का प्रयास करते समय इस तकनीकी की यह अवधारणा होती है कि प्रत्येक व्यक्ति में शिक्षक के गुण जन्मजात नहीं होते बल्कि उनमें शिक्षक के गुणों का विकास प्रशिक्षण के माध्यम से किया जाता है।

इसलिए व्यवहार तकनीकी का कार्य क्षेत्र शिक्षक के कक्षा व्यवहार का अध्ययन, निरीक्षण, विश्लेषण तथा मूल्यांकन करना एवं व्यवहार को विकसित करने के लिए अनेक प्रविधियों का निर्माण व प्रयोग करना है। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण प्रविधियों निम्नलिखित हैं-

(1) सूक्ष्म शिक्षण ( Micro Teaching),

(2) ट्यूटोरियल समूह-प्रशिक्षण (Tutorial Group Training),

(3) सिमुलेटेड सामाजिक कौशल शिक्षण (Simulated Social Skill Teaching),

(4) अन्तः प्रक्रिया विश्लेषण (Interaction Analysis) एवं

(5) अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction) |

इन प्रविधियों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान फ्लैण्डर (Flander) एवं एमीडोन (Amedon) का है। बी.एफ. स्किनर, एन. फ्लैण्डर, एमीडोन और एण्डसर आदि प्रमुख विद्वानों ने व्यवहार तकनीकी के विकास में महत्वपूर्ण कार्य किए तथा व्यवहार तकनीकी की अवधारणा को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया है-

व्यवहार तकनीकी

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि व्यवहार तकनीकी की अवधारणा के अनुरूप मानव के व्यवहार को अपेक्षित लक्ष्यों (Desirable Objectives) के सन्दर्भ में परिवर्तित एवं नियंत्रित किया जा सकता है।

इस प्रकार शिक्षाविदों के अनुसार व्यवहार तकनीकी निम्न अवधारणाओं पर आधारित है-

(1) शिक्षक व्यवहार का अध्ययन सापेक्षिक रूप में ही किया जा सकता है। सापेक्षकता को हम बच्चों की उपलब्धि के आधार पर ज्ञात कर सकते हैं।

(2) व्यवहार के मुख्य आधार मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक हैं।

(3) शिक्षक व्यवहार का मापन एवं निरीक्षण किया जा सकता है।

(4) व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन किया जा सकता है।

(5) व्यवहार तकनीकी व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया है।

(6) यह तकनीकी शिक्षक के व्यवहार में सुधार तथा उससे सम्बन्धित सुझाव प्रदान करती है।

(7) इसके द्वारा शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।

व्यवहार तकनीकी की विशेषताएँ एवं उपयोगिता (Characteristics and Utility of Behavioural Technology)

व्यवहार तकनीकी की विशेषताएँ एवं उपयोगिता इस प्रकार हैं-

(1) शिक्षक व्यवहार का निरीक्षण एवं वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन किया जा सकता है।

(2) व्यवहार तकनीकी व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया की विधि है।

(3) व्यवहार तकनीकी शिक्षक व्यवहार को नियोजित एवं उद्देश्यपूर्ण बनाती है।

(4) व्यवहार तकनीकी के द्वारा शिक्षक व्यवहार का निरीक्षण, विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया जाता है।

(5) व्यवहार तकनीकी द्वारा शिक्षण के विशिष्ट कौशल (Skill) का विकास किया जा सकता है।

(6) पृष्ठपोषण प्रविधियों (Feedback devices) द्वारा शिक्षक व्यवहार में सुधार लाया जाता है।

(7) शिक्षण के दौरान छात्रों को उचित पुनर्बलन पर बल देती है।

(8) यह तकनीकी शिक्षक सिद्धान्तों (Teaching theories) के विकास में सहायक होती है।

(9) छात्राध्यापकों को प्रशिक्षण के समय उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं और योग्यताओं के अनुसार कौशल के विकास के लिए अवसर दिया जा सकता है।

(10) व्यवहार तकनीकी का उद्देश्य कक्षा-व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना है।

व्यवहार-तकनीकी (शिक्षक व्यवहार की पाठ्यवस्तु) की विषय वस्तु (Subject Matter of Behaviour Teachnology)

(1) शिक्षक व्यवहार का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Teacher Behaviour)

(2) शिक्षक व्यवहार के सिद्धान्त (Principles of Teacher Behaviour)

(3) शिक्षक व्यवहार का स्वरूप एवं उसका विश्लेषण (Nature and Analysis of Teacher Behaviour)

(4) शिक्षक व्यवहार की मापन विधियाँ एवं प्रविधियाँ (Measuring Method and Techniques of Teacher Behaviour)

(5) शिक्षक व्यवहार के प्रतिमान (Models of Teacher Behaviour )

6) शिक्षक व्यवहार का मूल्यांकन (Evaluation of Teacher Behaviour)

(7) शिक्षक व्यवहार में परिवर्तन करने वाली प्रविधियाँ-

(i) सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching)

(ii) टी. समूह प्रशिक्षण (T. Group Training)

(iii) अनुकरणीय सामाजिक कौशल शिक्षण (Simulated Social Skill Teaching)

(iv) अन्तः क्रिया विश्लेषण (Interaction Analysis)

(v) अभिक्रमित अध्ययन (Programmed Instruction)

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