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दृश्य-श्रव्य साधन | Audio Visual Aids in Hindi

दृश्य-श्रव्य साधन
दृश्य-श्रव्य साधन

दृश्य-श्रव्य साधन (Audio Visual Aids)

इस वर्ग में वे सभी साधन सामग्री तथा उपकरण शामिल किए जाते हैं जो हमारी श्रवण तथा चक्षु दोनों ही इन्द्रियों को एक साथ प्रभावित करते हैं और इस तरह देखकर तथा सुनकर दोनों तरह से ही ज्ञान प्राप्ति तथा हमारी सहायता करते है । दृश्य-श्रव्य सामग्री की प्रभावशाली क्रियाएँ निम्नलिखित है-

(1) कम्प्यूटर ( Computer)

(2) दूरदर्शन ( Television)

(3) चलचित्र (Movie / Moving Picture)

1. कम्प्यूटर (Computer)

सूचना एवं सम्प्रेषण के इस युग में सहायक सामग्री के रूप में कम्प्यूटर का प्रयोग सभी विषयों में किया जा रहा है। सामाजिक अध्ययन भी इसका प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह बालकों को अपने विषय में भूत, वर्तमान एवं भविष्य की जानकारी देता है एवं इसमें छात्र अपनी गति से सीखते हैं। छात्राओं की सीखने में रुचि बनी रहती है। अतः अधिगम के लिए छात्र तत्पर रहते है। इसकी सहायता से छात्राओं को प्रेरणा मिलती हैं। छात्र स्वानुशासित रहते हैं । कम्प्यूटर का शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। उपरोक्त विवरण में यह तात्पर्य है कि कम्प्यूटर की सहायता से छात्र सामाजिक अध्ययन में दक्षता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं एवं कम्प्यूटर उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में सहायता प्रदान करता है।

शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर (Computer in Field of Education)

शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर का महत्व निम्न कारणों से है-

(1) कम्प्यूटर के द्वारा शिक्षा क्षेत्र से सम्बन्धित तथ्यों, आँकड़ों व सूचनाओं की प्राप्ति हो जाती है।

(2) कम्प्यूटर सह अनुदेशन द्वारा छात्रों को व्यक्तिगत अनुदेशन प्राप्त होता है। छात्र अपनी गति व क्षमता के अनुसार सीख सकते हैं।

(3) कम्प्यूटर द्वारा जटिल गणनाएँ काफी कम समय में की जा सकती हैं।

(4) इसके द्वारा तथ्यों को लम्बे समय तक संग्रहित करके रखा जा सकता है।

(5) छात्र किसी भी विषय-वस्तु को अपनी आवश्यकतानुसार पुनः दोहरा सकते हैं।

(6) कम्प्यूटर द्वारा किया गया मूल्यांकन निष्पक्ष होता है।

(7) उच्च शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में कम्प्यूटर अत्यन्त उपयोगी है।

(8) विद्यालयों में कम्प्यूटर द्वारा छात्रों को उपचारात्मक शिक्षण दिया जा सकता है।

(9) प्रकरण को छात्रों की आवश्यकता व क्षमता के अनुसार पढ़ाया जा सकता है।

(10) कम्प्यूटर द्वारा छात्रों के अभिलेख सुरक्षित रखे जा सकते हैं।

(11) कम्प्यूटर में शिक्षक अपनी पढ़ायी जाने वाली सामग्री को संग्रहित कर भविष्य में आवश्यकतानुसार प्रयोग कर समय व श्रम की बचत कर सकते हैं।

(12) कम्प्यूटर छात्रों को विभिन्न प्रयोग के अवसर देता है।

2. दूरदर्शन (Television)

आज हम टेलीविजन के युग में निवास कर रहे हैं। सर्वप्रथम अमेरिका में हेराल्ड हण्ट नामक व्यक्ति ने इसका आरम्भ करते हुए कहा था, अब हमें परम्परागत शिक्षण तथा पिछड़ी हुई शिक्षा प्रणाली को त्यागकर टेलीविजन जैसी आधुनिक उपकरण द्वारा शिक्षा का आरम्भ करना चाहिए। आज विश्व के अनेक विकासशील देश इसे शिक्षा के एक सशक्त तथा उपयोगी साधन के रूप में काम में ले रहे है। दूरदर्शन शिक्षा से छात्र या सीखने वाले को प्रत्यक्ष उद्दीपन प्राप्त होते हैं। यह उसके ऊपर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है। यह अधिगम शिक्षण से सुसंगतता कायम करने में भी सहायक है साथ ही यह मितव्ययी भी है इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में दूरदर्शन विशेष महत्व रखता है।

टेलीविजन के शैक्षिक लाभ (Educational Benefits of Television)

टेलीविजन के शैक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) यह एक दृश्य-श्रव्य सामग्री है जिसमें छात्र किसी कार्यक्रम को देख भी सकते हैं तथा सुन भी सकते हैं।

(2) अध्यापक के निजी विकास में भी दूरदर्शन सहायक सिद्ध हो सकता है।

(3) दूरदर्शन कार्यक्रम पाठ्यक्रम को विस्तृत करने और शैक्षिक कार्यक्रमों को सरलता तथा मितव्ययिता से समृद्ध करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

(4) स्क्रीन के माध्यम से दूरदर्शन कक्षा भवन में संसार की वास्तविकता को प्रस्तुत कर सकता है।

(5) इसके द्वारा बालकों का सर्वांगीण विकास होता है।

(6) यह विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बहुत उपयोगी साधन है।

(7) टेलीविजन के कार्यक्रम को रिकॉर्ड किया जा सकता है व आवश्यकता पड़ने पर इसे पुनः देखा या दिखाया जा सकता है।

(8) इसके प्रयोग से शिक्षण में गतिशीलता बनी रहती है।

(9) इसमें किसी भी क्रिया या कार्य में लगने वाला समय नष्ट नहीं होता है।

(10) यह कम खर्चीला साधन है तथा इसके माध्यम से छात्रों की एक बड़ी संख्या का शिक्षण एक साथ हो सकता है।

टेलीविजन की सीमाएँ (Limitations of Television)

टेलीविजन की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-

(1) यह भी रेडियों की तरह एक तरफा साधन है।

(2) इसमें पृष्ठपोषण का कोई स्थान नहीं होता है।

(3) व्यक्तिगत विभिन्नता की प्रतिपूर्ति भी इस माध्यम से सम्भव नहीं होती है।

(4) विद्युत व्यवस्था के अभाव में इसका उपयोग सम्भव नहीं है।

(5) कार्यक्रम प्रसारण के दौरान विद्युत चले जाने कोई खराबी आने या सिग्नल सही न आने की स्थिति में व्यवधान उत्पन्न होता है।

सुझाव (Suggestions)

टेलीविजन का प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(1) इसका प्रयोग करने से पूर्व शिक्षक को मानसिक तौर पर पूरी तरह तैयार होना चाहिए।

(2) कार्यक्रम को दिखाने से पूर्व शिक्षक को छात्रों को भी मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए।

(3) शिक्षक को प्रसारण केन्द्रों से उपयोगी सामग्री तथा कार्यक्रम समय से पूर्व ही तैयार कर लेने चाहिए।

(4) छात्रों के बैठने की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।

(5) छात्रों को टेलीविजन से अनावश्यक छेड़खानी नहीं करने देना चाहिए।

3. चलचित्र (Movie/ Moving Picture)

आधुनिक युग में पाश्चात्य देशों में सिनेमा जितना मनोरंजन हेतु अनिवार्य समझा जाता है. उतना ही शिक्षण के लिए भी आवश्यक माना जाता है। वहाँ अन्य विषयों के शिक्षण, जैसे- विज्ञान, भूगोल, इतिहास, भाषा आदि में इसका प्रचलन बढ़ता जा रहा है। परन्तु जीव-विज्ञान विषयों के अध्यापन में अभी उन उन्नत देशों में भी सिनेमा को कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिला। जीव-विज्ञान के स्वरूप और व्यापक क्षेत्र को देखते हुए यह आश्चर्यजनक प्रतीत होता है क्योंकि इसमें चलचित्र द्वारा अध्यापन का क्षेत्र यथेष्ट है।

भारत जैसे निर्धन देश में साधारण स्कूल में चलचित्र प्रदर्शनी सम्भव नहीं है। इसके लिए एक तो अंधेरे कमरे की आवश्यकता होती है और दूसरे 16 से 32 मिलीमीटर तक प्रक्षेपक यंत्र होना चाहिए परन्तु यह कुछ ही भाग्यशाली स्कूलों में उपलब्ध है। जिन स्कूलों के पास इसके लिए साधन एवं सुविधा दोनों हैं, उन स्कूलों में शिक्षण हेतु इसका पर्याप्त प्रयोग अवश्य होना चाहिए । चलचित्र शिक्षा का एक अमूल्य साधन है। इसे सरकार ने भी स्वीकार कर लिया है। देश की अपार अज्ञानता को दूर करके जागृति के मार्ग पर लाने का यह अद्वितीय साधन राज्य के सूचना एवं प्रसारण विभाग तथा शिक्षा विभाग इस ओर विशेष रुचि ले रहे हैं।

चलचित्र के शैक्षिक लाभ (Educational Benefits of Moving Picture)

चलचित्र से निम्नलिखित लाभ हैं-

(1) अभ्यास के द्वारा फिल्मों से सीखने की योग्यता से ज्ञान में वृद्धि होती है।

(2) चलचित्र एक साधन है जिसके द्वारा कार्य कौशल विकसित होते हैं।

(3) इससे समस्या समाधान की योग्यता विकसित होती है।

(4) फिल्मों को बार-बार देखने से सीखने की क्रिया में वृद्धि होती है।

(5) चलचित्रों की सहायता से पाठ्यवस्तु को शुद्ध रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है जिसमें दृश्य-श्रव्य दोनों ज्ञानेन्द्रियाँ क्रियाशील रहती हैं। इसके उपयोग से छात्रों में पाठ्यवस्तु के प्रति रुचि उत्पन्न होती है। छात्र एकाग्र होकर देखते तथा सुनते हैं।

(6) इस सहायक प्रणाली को प्रयुक्त करने से छात्रों में बोधगम्यता एवं धारण शक्ति (Retentiveness) का विकास होता है।

(7) छात्रों की एकाग्रता, घटनाओं एवं वस्तुओं के निरीक्षण या अवलोकन में गहनता आती है।

(8) चलचित्र द्वारा जटिल पाठ्यवस्तु को पढ़ाने या प्रस्तुत करने से छात्रों को सीखने में सुगमता या सरलता होती है और छात्र उसका परिपाक (Assimilation) भी कर लेते हैं।

(9) इस उपकरण के द्वारा प्रस्तुतीकरण की गति को घटाया और बढ़ाया भी जा सकता है साथ ही ध्वनि में उतार चढ़ाव भी लाया जा सकता है।

(10) इस उपकरण के द्वारा एक बड़े समूह के छात्रों को एक साथ शिक्षण दिया जा सकता है।

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shubham yadav

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