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अधिगम अक्षमता वाले बच्चों के शैक्षिक कार्यक्रम

अधिगम अक्षमता वाले बच्चों के शैक्षिक कार्यक्रम
अधिगम अक्षमता वाले बच्चों के शैक्षिक कार्यक्रम

अधिगम अक्षमता वाले बच्चों के शैक्षिक कार्यक्रम (Educational programme for lerning disabled children)

अधिगम अक्षमता वाले बच्चों के शैक्षिक कार्यक्रम (Education Programme) – अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के शैक्षिक पुनर्वास के लिए शिक्षण-अधिगम संबंधी कई तरह के प्रावधान उपलब्ध हैं। ये प्रावधान हैं :

1. दिवसीय विद्यालय (Day School)- ये वैसे विद्यालय हैं जहाँ अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों को विशिष्ट शिक्षा दी जाती है। विशेष शिक्षक विशिष्ट पाठ्यचर्या (Curriculum) के जरिये बच्चों को शिक्षण-अधिगम सुविधा मुहैया कराते हैं।

2. सामान्य विद्यालय में विशिष्ट कक्षाएँ (Special Class in a Regular School)- अधिगम अक्षम बालकों के शिक्षण-अधिगम के लिए सामान्य विद्यालयों में विशिष्ट कक्षाएँ होना जरूरी होता है। यहाँ पर विशिष्ट शिक्षक अधिगम अक्षम बालकों को विशिष्ट कक्ष में विशेष अनुदर्शन ( Special Instruction) देते हैं। साथ ही नियमित शिक्षक पाठ्य विषयों के संबंध में बालकों की सहायता करते हैं।

3. समन्वित शिक्षा (Integrated Education)- समन्वित शिक्षा के तहत अधिगम अक्षम बच्चों को मुख्य धारा के विद्यालयों में समन्वित किया जाता है।

अधिगम अक्षमताग्रस्त सभी बच्चों की समस्या एक जैसी नहीं होती है। शिक्षा का जो तरीका एक बालक के लिए उपयुक्त है वही दूसरे पर भी लागू हो जाए ऐसा आवश्यक नहीं है । ऐसी स्थिति में व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक योजना (Individulaized Education Plan) तैयार किया जाना आवश्यक होता है। इस योजना के जरिये अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों के विशिष्ट समस्या वाले क्षेत्रों का पता लगाया जाता है। उदाहरणार्थ- बच्चा पठनं अक्षमता पीड़ित (Dyslexic) है, लेखन अक्षमता पीड़ित (Dysgraphic) है अथवा अंकगणितीय कौशल विकृतिग्रस्त (Dyscalculia) है।

4. उपचारात्मक शिक्षक रणनीतियाँ (Remedial Teaching Strategies)- अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों को उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) से काफी लाभ मिलता है । उपचारात्मक शिक्षण के कई आयाम हैं। मनोवैज्ञानिकों ने इसे सात कोटियों में वर्गीकृत किया है। ये आयाम हैं- (i) प्रक्रिया प्रशिक्षण (ii) बहु-संवेदी आयाम (iii) संरचना और उद्दीपन घटाव (iv) औषधीय प्रयोग (v) संज्ञानात्मक प्रशिक्षण (vi) व्यवहार संशोधन (vii) प्रत्यक्ष अनुदेशन

(i) प्रक्रिया प्रशिक्षण (Process Traning) – यह इस तथ्य पर आधारित है कि अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के लिए अगर शैक्षिक कार्यक्रमों के योजना बनाने के क्रम में आवश्यक मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने की आवश्यकता होती है। अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों की मनोवैज्ञानिक प्रक्रियायें सही क्रम में नहीं हो और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का यह गलत क्रम उसके समझने में, बोलने में लिखने में, पढ़ने में तथा गणितीय क्षेत्र में आवश्यक है। ऐसे में उन बालकों को मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का भी प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी होता है । उदाहरणार्थ यदि अधिगम अक्षमताग्रस्त किसी बालक में दृश्य बोध (Visual Perception) के कारण पढ़ने की समस्या उत्पन्न हो गयी हो तो पढ़ने संबंधी कोई अनुदेशन देने से पहले उन्हें दृश्य बोध का प्रशिक्षण देना होगा (हल्लहन एवं कॉफमैन, 1991)।

(ii) बहु-संवेदी अथवा बहु-इन्द्रिय आयाम (Multi-Sensory Approach)- बहु-इन्द्रिय आयाम के अंतर्गत प्रशिक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चों को कई तरह की इंद्रियों (Sensory Systems) के उपयोग पर बल दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि सीखने के दौरान बालक की एक से अधिक इन्द्रियाँ क्रियाशील होगी तो बालक उतना ही अधिक सीखने को उत्सुक होगा। फर्नाल्ड (Fernald) को दृश्य (visual), श्रव्य (Auditory), काइनेस्थेटिक (Kinesthetic)-टैक्चुअल (Tactual) (यानि VAKT) विधि बहुइन्द्रिय प्रशिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है। यदि बालक अपने शिक्षक को एक कहानी सुनाता है तब शिक्षक कहानी में प्रयुक्त शब्दों को लिख लेता है। फिर शिक्षक उन शब्दों को ब्लैकबोर्ड पर लिखता है। ये शब्द बालक की पढ़ने की प्रक्रिया में सहायक होता है।

(iii) संरचना एवं उद्दीपन (Structure and Stimulus Reduction) – विलियम क्रुकशैंक, 1961 ने ध्यान संबंधी समस्या एवं अतिसक्रियता पीड़ित अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के लिए एक शैक्षिक कार्यक्रम का विकास किया। इसमें संरचना वातावरण संबंधी उद्दीपन का घटाव एवं शिक्षण सामग्रियों की तीव्रता की वृद्धि आदि शामिल हैं। इसके तहत कक्षा के संरचनात्मक वातावरण से इन अनुपयुक्त उद्दीपनों को कम किया जाता है जो बालक को अधिगम कार्य से ध्यान हटाती है। निम्नलिखित संशोधन के लिए जरिए ऐसे उद्दीपनों को कम किया जा सकता है- (i) ध्वनिरोधक दीवार और छत का निर्माण । (ii) गलीचा बिछाना। (iii) अपारदर्शी खिड़कियों की व्यवस्था करना। (iv) किताब रखने का बंद होने वाला आलमीरा एवं कपबोर्ड की व्यवस्था। (v) बुलेटिन बोर्ड का सीमित उपयोग करना।

(iv) औषधीय प्रयोग (Medication) – इस विकृति के मुताबिक ध्यान संबंधी समस्या से पीड़ित एवं अतिसक्रिय (Hyperactive) अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के शिक्षण-अधिगम के क्रम में औषधियों का प्रयोग किया जाना जरूरी है। लेकिन अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के लिए औषधीय प्रयोग विवादास्पद मुद्दा बन गया है। हेंकर एवं व्हालेन (1989) ने भी इस बात की पुष्टि की है कि अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के व्यवहार परिवर्तन में औषधीय प्रयोग काफी प्रभावी नहीं है। हालाँकि इस बात के सभी प्रमाण मिले हैं कि रिटालिन (Ritalin) सरीखी उद्दीपक औषधि बच्चों के अतिसक्रियता को कम करने में सहायक साबित होती है। लेकिन औषधि पर निर्भर रहने वाले बच्चों के औषधि-व्यसनी बन जाने की भी प्रबल संभावना होती है।

(v) बोधात्मक या संज्ञानात्मक प्रशिक्षण (Cognitive Training) – अधिगम अक्षमताग्रस्त कुछ बच्चों में बोधात्मक या संज्ञानात्मक कौशल (Cognitive Skills) की कमी होती है। ऐसे बच्चे अपनी दुनिया को समझने एवं व्यवस्थित रखने में असमर्थ होते हैं। वे निश्चयात्मक रूप से केवल विचार कर सकते हैं, परंतु निष्कर्षों को समझने में असमर्थ रहते हैं। वे किसी लक्ष्य को पूरा करने के पहले ही भूल जाते हैं। ऐसे में उन्हें संज्ञानात्मक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। गूढ़ सोच (Covert thought) को बदलना ही संज्ञानात्मक प्रशिक्षण का केन्द्र बिन्दु होता है। अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के लिए संज्ञानात्मक प्रशिक्षण एक अचूक अस्त्र है। इसमें बच्चे और शिक्षक दोनों स्वतः स्फूर्त तरीके से समस्याओं के समाधान में तल्लनी होते हैं। यह प्रशिक्षण बच्चों के उत्प्रेरणा (Motivation) संबंधी समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है। अधिगम संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए यह बच्चों को विशिष्ट अधिगम रणनीति बनाने में मदद करता है। प्रेसले एवं उनके सहकर्मियों (Pressley & Colleagues, 1989) ने संज्ञानात्मक प्रशिक्षण के आठ सिद्धांत सुझाये हैं। ये सिद्धांत हैं- (i) एक समय में कुछेक रणनीतियों का शिक्षण करना (ii) आत्म-निरीक्षण करने का शिक्षण (iii) रणनीतियों का कब और कहाँ उपयोग करने का शिक्षण देना (iv) विद्यार्थियों के उत्प्रेरण स्तर को कायम रखना (v) प्रासंगिक शिक्षण देना (vi) अ-रणनीतिक ज्ञान आधार की उपेक्षा नहीं करना (vii) प्रत्यक्ष शिक्षण में व्यस्त रखना (viii) लम्बी अवधि तक संज्ञानात्मक प्रशिक्षण पर विचार करना ।

(vi) व्यवहार संशोधन (Behaviour Modification) – व्यवहार में संशोधन करना शिक्षण की एक तकनीक है जो एक पुराने सिद्धांत पर आधारित है कि जब बच्चे को किसी कार्य करने हेतु पुरस्कृत किया जाता है तो उसमें उस कार्य को फिर से करने की संभावना बढ़ जाती है। मनोवैज्ञानिक इसे “साकारात्मक क्रियान्वयन” कहते हैं।

व्यवहार संशोधन नियमों के अनुसार, अपनी कक्षा के बच्चों के प्रयासों एवं उपलब्धियों हेतु उनको पुरस्कृत करने से उनकी कार्य करने एवं सीखने की उत्सुकता बनी रहती है। यह कोई जरूरी नहीं है कि जो बात एक बच्चे के लिये पुरस्कारस्वरूप एवं प्रेरणात्मक हो, वह अन्य बच्चे के लिये पुरस्कारस्वरूप एवं प्रेरणात्मक न हो ।

बच्चों को अभिप्रेरित करने के लिये पुरस्कार का बच्चों की इच्छाओं के अनुरूप होना आवश्यक होता है। और उसको उनके द्वारा किये गये प्रयासों या लक्ष्य की उपलब्धि के तुरंत बाद दिया जाना आवश्यक होता है। अवांछनीय आचरण की तरफ ध्यान न देना, कभी-कभी, बच्चों को दंडित किये जाने की अपेक्षा ज्यादा कारगर साबित होता है। बच्चों द्वारा अपेक्षित आचरण प्रदर्शित करने से उन्हें सराहना मिलती है। जब शिक्षक बच्चों को डाँटने या आलोचना करने के रूप में पुरस्कृत करना बंद कर देते हैं तो बच्चों द्वारा समस्याजनक आचरण को करते रहने की संभावना कम हो जाती है।

हालाँकि अधिकांश आचरणों में परिवर्तन लाने के लिये दण्डित करना अधिक लाभकारक नहीं होता, फिर भी कुछ ऐसे मौके होते हैं जब आपको बच्चों की सुरक्षा हेतु उनको दृढ़तापूर्वक ‘ना’ कहना या सौम्य रूप से फटकारना आवश्यक होता है।

किसी खतरनाक या अवांछनीय आचरण को रोकने का एक अच्छा तरीका यह होता है कि बच्चों को उसके बदले में किसी उपयुक्त आचरण का शिक्षण प्रदान किया जाय। असलियत में, किसी भी पूर्व स्कूल की कक्षा में शारीरिक रूप से दंडित किया जाना उचित नहीं है।

(vii) प्रत्यक्ष अनुदेशन (Direct Instruction)- प्रत्यक्ष अनुदेशन प्रक्रिया भी व्यवहार संशोधन प्रक्रिया से काफी मिलती-जुलती प्रक्रिया है। यह विशिष्ट रूप से अनुदेशन प्रक्रिया पर केन्द्रित प्रक्रिया है। इसके तहत बच्चों को विशेषताओं की बजाए उन्हें दिये जाने वाली शिक्षण अवधारणा के तार्किक विश्लेषण पर ज्यादा बल दिया जाता है। इसके जरिये बच्चों के छोटे समूह को पढ़ने, अंकगणितीय फार्मूले एवं भाषा संबंधी प्रशिक्षण दिया जा सकता है। ‘करेक्टिव रीडिंग : डिकोडिंग’ और ‘करेक्टिव रीडिंग कम्प्रीहेन्सन’ नामक दो प्रत्यक्ष अनुदेशन कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हैं।

5. अकादमिक रणनीतियाँ (Academic Strategies)- अधिगम अक्षम बालकों की शिक्षा के लिए अपनायी जाने वाली अकादमिक रणनीतियाँ निम्नलिखित हैं:

(i) हस्तलेखन (Handwriting)- ब्लैन्डफोर्ड एवं लॉयड (1987) ने हस्तलेखन के अनुदेशन विशेषता को महत्वपूर्ण माना है। उनके मुताबितम इसके प्रशिक्षण से अधिगम अक्षम बालकों को शुद्ध हस्तलेखन के बारे में सोचने एवं उसके मूल्यांकन का मौका मिलता है। इसलिए उन्हें उचित लेखन का आदत विकसित करना चाहिए।

(ii) कंपोजिशन (Composition) – हैरिस एवं ग्राहम (1985) ने कम्पोजिशन में क्रियात्मक शब्दों की संख्या वृद्धि करने के लिए अधिगम अक्षम बच्चों की मदद के लिए एक अकादमिक रणनीति विकसित किया है। यह प्रक्रिया बच्चों के कार्यों की गुणवत्ता के मूल्यांकन करने में सहायक सिद्ध होती है।

(iii) कंम्प्रीहेंसन का पाठ (Reading Comprehension)- यह अकादमिक रणनीति बच्चों को किसी कम्प्रीहेंसन को समझने एवं उसे मुख्य उद्देश्य को समझने में मदद करता है।

(iv) अंकगणितीय रणनीति (Arithmetic Strategy)- कुलीनन (1981) एवं उनके साथियों ने बच्चों को गुणनफल संबंधी समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनाई हैं- (a) समस्या का पाठ । (b) गणना करना। (c) गणना प्रारंभ करना । (d) अंतिम अंक लिखना । (e) रंगीन खल्ली (Chalk) का प्रयोग करना।

उपयोगी संसाधन (Helpful Resources) स्कूल के कर्मचारी (School Personnel) – सभी कार्यक्रमों में सहायकों एवं स्वयंसेवकों की मुख्य भूमिका होती है। ये कर्मचारी हैं : (i) सहायक (Aides) – एक स्कूल सहायक अधिगम अक्षम बच्चों और शिक्षकों को गतिविधियों का शिक्षण प्रदान करने में सहायता पहुँचाता है। इसलिए बच्चों के लिए व्यक्तिगत रूप के लक्ष्यों का विकास करने और किये जा रहे नियोजन में सहायकों को सम्मिलित करना चाहिए।

(ii) स्वयंसेवक (Volunteers ) – विकलांग बच्चों के साथ कार्य करने में स्वयंसेवक सहायक साबित होते हैं। बच्चों के माता-पिता एवं स्कूल के छात्र स्वयंसेवक की भूमिका निभाते हैं। ‘सीनियर सिटीजन क्लब’ (Senior Citizen Club) या ‘वृद्ध निवास’ (Old- age House) आदि स्वयंसेवकों को प्राप्त करने के अन्य स्रोत हैं।

अधिगम रणनीति पाठ्यचर्या (Learning Strategies Curriculum) – डोनाल्ड डेश्लर (1986) एवं उनके साथियों ने द्वितीयक अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के शिक्षण-अधिगम के लिए अधिगम रणनीति पाठ्यचर्या का विकास किया है। अकादमिक रणनीति के इस आयाम के पीछे यह आईडिया छिपा है कि अधिगम अक्षमताग्रस्त किशोरों को, अधिक से अधिक कैसे सीखा जाए, सरीखे रणनीति सीखने की आवश्यकता होती है । इसकी तीन कड़ी होती हैं। पहला कड़ी के तहत बच्चों को लिखित सामग्रियों से सूचनाएँ एकत्रित करने में सहायता मिली है। उदाहरणार्थ- शब्दों की पहचान एवं डायग्राम तथा चार्ट की व्याख्या आदि। दूसरी कड़ी बच्चों को कुछ महत्वपूर्ण सूचनाओं और तथ्यों को याद करने में सहायता पहुँचाती है। वहीं तीसरा कड़ी बच्चों को लेखन अभिव्यक्ति को बेहतर बनाने में सहायता पहुँचाती है।

चूँकि अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चे वर्ग कक्ष में सामान्य बच्चों की तरह की पढ़ते-लिखते हैं। इसलिए अगर कुछ कौशल क्षेत्रों में उन्हें अभ्यास प्रशिक्षण दिया जाए तो उनकी अधिगम संबंधी समस्या को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है। ये कौशल क्षेत्र हैं-(क) स्वयं सहायता कौशल (ख) सकल गति प्रेरक कौशल (ग) सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशल (घ) संचार कौशल (ङ) दृष्टि कौशल (च) श्रवणात्मक कौशल (छ) संज्ञानात्मक कौशल (ज) सामाजिक कौशल।

(क) स्वयं सहायता कौशल प्रशिक्षण (Self-help Skill Traning)- अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों को उन कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे अपनी देख-भाल स्वयं कर सकें। उदाहरणार्थ-भोजन पकाना, कपड़े पहनना, शरीर की सफाई करना आदि। इन कौशलों के प्रशिक्षण से बच्चों में स्वयं के प्रति सकारात्मक धारणा का विकास होता है।

(ख) सकल गतिप्रेरक कौशल प्रशिक्षण (Gross Motor Skills Traning)- स्वयं सहायता कौशल प्रशिक्षण के अलावा अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों को बाहों, टाँगों, धड़, हाथों एवं पैरों के संचालन सरीखे सकल गतिप्रेरक कौशल प्रशिक्षण दिया जाना भी लाभदायक साबित होता है।

(ग) सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशल प्रशिक्षण (Fine Motor Skills Traning)- सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशल प्रशिक्षण भी अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों के लिए लाभकारी साबित होता है। उदाहरणार्थ- ऊँगलियों एवं कलाइयों का संचालन।

(घ) संचार कौशल प्रशिक्षण (Communication Skills Traning) – संचार संबंधी गड़बड़ी को सुधारने के लिए संचार कौशल प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी होता है। ये गतिविधियाँ हैं : शब्दों से तस्वीरों का मिलान, वाक्यों को पूरा करना, अभिनय करने का खेल करना आदि।

(ङ) दृष्टि कौशल प्रशिक्षण (Visual Skills Traning) – विभेदीकरण, मार्ग की खोज, याद करना सरीखे दृष्टि कौशलों का प्रशिक्षण अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों के लिए लाभकारी साबित होता है।

(च) श्रवणात्मक कौशल प्रशिक्षण (Auditory Skills Traning) – विभेदीकरण, याद रखना एवं स्थानीकरण सरीखे श्रवणात्मक उपकौशल के प्रशिक्षण से अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों को श्रवणात्मक कौशल संबंधी दोष को न्यूनतम करने में सहायता मिलती है। यहाँ ध्वनियों के मध्य विभिन्नता बरतने की क्षमता को ‘श्रवणात्मक विभेदीकरण’, सुने गये बातों को याद रखने की क्षमता को श्रवणात्मक रूप से याद रखना और ध्वनि के उत्पत्ति स्थान का पता लगाने की क्षमता को ‘स्थानीकरण’ कहा जाता है।

(छ) संज्ञानात्मक कौशल प्रशिक्षण (Cognitive Skills Traning) – अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों को तर्क-वितर्क, जानकारी को संग्रह करके याद रखने, संबंधों एवं विभिन्नताओं को पहचानने, वस्तुओं का वर्गीकरण करने, तुलना करने, विरोध करने एवं समस्या सुलझाने सरीखे संज्ञानात्मक कौशल प्रशिक्षण देना लाभकारी होता है।

(ज) सामाजिक कौशल प्रशिक्षण (Social Skills Training)– सामाजिक कौशलों के प्रशिक्षण से अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों को सामाजिक गतिविधियाँ करने में सहूलियत होती है। उदाहरणार्थ सामूहिक अल्पाहार, सामूहिक खेल खेलना आदि।

शिक्षण की विशेष तकनीकें (Specific Teaching Techniques) – अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों के शिक्षण अधिगम के लिए कई विशिष्ट शैक्षिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है । इनमें ध्यान रखने योग्य संकेतों, लक्ष्य के विश्लेषण एवं आचरण में संशोधन की तकनीकों, पारगमन के समय की व्यवस्था करने के तरीके एवं भाषा से प्रभावित बच्चों को सहायता पहुँचाने के तरीके आदि शामिल हैं।

(क) ध्यान रखने योग्य संकेत (Tips to keep in Mind) – (i) भाषा एवं श्रवणात्मक समस्याग्रस्त बच्चों को साधारण निर्देश देना चाहिए। (ii) अधिगम अक्षम बच्चों को संक्षिप्त गतिविधियों के जरिये प्रशिक्षण देना चाहिए। (iii) अधिगम की सुगमता के लिए सुगठिन (Organised) एवं व्यवस्थित माहौल उपलब्ध कराना चाहिए। (iv) शिक्षण के विभिन्न तरीकों के जरिए उन्हें शिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। (v) शिक्षण अधिगम के लिए निरंतर प्रयोग करते रहना चाहिए।

(ख) लक्ष्य विश्लेषण (Task Analysis) – लक्ष्य का विश्लेषण करना शिक्षण की एक तकनीक है। अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों के मामले में यह तकनीक एक अचूक औषधि का काम करती है। इस तकनीक के तहत किसी लक्ष्य अथवा गतिविधि को छोटे-छोटे क्रमबद्ध चरणों में विभाजित करना होता है और फिर एक-एक करके प्रत्येक चरण का शिक्षण उस समय तक प्रदान किया जाता है जब तक कि बच्चा समस्त लक्ष्य को हासिल करने में समर्थ न हो जाये। इस प्रक्रिया को पिछली कड़ी से जोड़ना (Backward Chaining) भी कहा जाता । पिछली कड़ी जोड़ने से न केवल किये गये कार्य में सफलता प्राप्त करने की संभावनाएँ प्रबल होती हैं बल्कि किये गये प्रयासों के परिणामों से भी रू-ब-रू हो सकते हैं।

(ग) परिवर्ती अंतरालों की व्यवस्था (Handling Transition Times)- अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों के लिए गतिविधियों के मध्यांतर का अव्यवस्थित समय विनाशकारी साबित होता है। एकाग्रता के अभाव में उन्हें जानकारी का वर्गीकरण करने में कठनाई होती है। ऐसे में उन्हें अपनी क्रियात्मकता को सहायता प्रदान करने तथा सुरक्षा भावना को बढ़ाने के लिए संकेतों के रूप में कुछ परिचित उत्प्रेरकों की आवश्यकता होती है। लेकिन कभी-कभी उन्हें नये संकेतों से तालमेल बैठाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता महसूस होती है। उचित समय प्रबंधन न होने की स्थिति में बच्चों में घबराहट होने लगती है लिहाजा कभी-कभी वे अनुचित आचरण करने लगते हैं। ऐसे में परिवर्ती अंतरालों की व्यवस्था करना जरूरी हो जाता है।

(घ) भाषा विकृति वाले बच्चों की सहायता (Helping Children with Language Disorder) – अधिगम अक्षमताग्रस्त कुछ बालकों में बोली और भाषा कौशल का विकास ठीक ढ़ंग से नहीं हो पाता है। अक्सरहाँ उन्हें बात करने एवं बोली समझने में कठिनाई महसूस होती है। इस तरह के वाक् एवं भाषा विकृतिवाले बच्चों को अधिक सहायता की आवश्यकता होती है। भाषाई समस्या पीड़ित बालकों की सहायता के लिए निम्नलिखित बातों पर अमल करना चाहिए- (i) सुनने एवं बोलने के लिए पुरस्कृत करना । (ii) किये जा रहे कार्यों के बारे में बताना। (iii) साधारण शब्दों अथवा वाक्यों के जरिये निर्देश देना। (iv) पूर्व ज्ञान का उपयोग करने को प्रेरित करना । (v) शब्दों को सही रूप में दोहराना । (vi) बोले गये वाक्यों का विस्तारण करना सीखाना। (vii) सहपाठियों के बीच वार्तालाप करने के लिए प्रोत्साहित करना ।

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shubham yadav

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