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शैक्षिक समाजशास्त्र (Educational Sociology)
सोशियोलॉजी (Sociology) शब्द का प्रयोग सबसे पहले एक फ्रांसीसी दार्शनिक आगस्ट कॉम्ट (Auguste Comte) ने अपने भाषणों में सन् 1837 ई. में किया था। उसने विज्ञानों की एक सीढ़ी बनाई और इस क्रम में समाजशास्त्र को मुख्य स्थान देते हुए बताया कि समाजशास्त्र एक व्यापक विज्ञान है। यह सभी विज्ञानों का समन्वय है तथा इसका प्रयोग सामाजिक पुनर्निमाण में होना चाहिए। चूँकि कॉम्ट ने समाज के वैज्ञानिक अध्ययन की सबसे पहले कल्पना की इसलिए इन्हें समाजशास्त्र का जन्मदाता माना जाता है। कॉम्टे के अतिरिक्त इस विषय के दूसरे प्रवर्तकों ने भी इसकी प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। समाजशास्त्र आंग्ल भाषा के सोशियोलॉजी (Sociology) शब्द के दो शब्दों से मिलकर बना है, सोशियो तथा लॉजी। इस प्रकार समाजशास्त्र (सोशियोलॉजी) का अर्थ है ‘समाज का विज्ञान’।
शैक्षिक समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Educational Sociology)
शिक्षा के प्रति रूचि उत्पन्न हो जाने से समाजशास्त्र की एक नई शाखा कुछ ही वर्षों में विकसित हो गई है जिसे शैक्षिक समाजशास्त्र की संज्ञा दी जाती है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि यह विज्ञान समाजशास्त्र का एक ऐसा अंग है जो शिक्षा तथा समाजशास्त्र का समन्वित रूप है। शैक्षिक समाजशास्त्र इस बात पर बल देता है कि समाजशास्त्र के उद्देश्यों को शैक्षिक प्रक्रिया के द्वारा प्राप्त किया जाए। अतः यह विज्ञान समाज की सम्पूर्ण संस्थाओं, जैसे परिवार, स्कूल, समुदाय, धर्म, राज्य तथा समाचार-पत्र एवं रेडियो आदि का अध्ययन करके व्यक्ति को एक श्रेष्ठ एवं सामाजिक प्राणी बनाने के लिए शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रमों, शिक्षण-पद्धतियों तथा अन्य सभी अंगों का निर्धारण करता है। इस प्रकार शैक्षिक समाजशास्त्र सामाजिक विकास और उसकी उन्नति के लिए उन सभी सामाजिक प्रतिक्रियाओं एवं सामाजिक अन्तः क्रियाओं (Interactions) का अध्ययन करता है जिनको जाने बिना शिक्षा के स्वरूप तथा शिक्षा की समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। संक्षेप में, शैक्षिक वह विज्ञान है जो शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली प्रक्रियाओं, जन-समूहों, संस्थाओं तथा समीतियों का अध्ययन करता है। चूँकि अब शिक्षा से सम्बन्ध रखने वाली शाखा व्यक्ति और समाज की उन्नति के लिए उत्तरदायी होती है इसलिए शैक्षिक समाजशास्त्र को समाज के सभी नियमों, आदर्शों, साधनों, समस्याओं तथा परिस्थितियों एवं उनके व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करके समाज की उन्नति हेतु शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण-पद्धति, स्कूल, शिक्षक, अनुशासन तथा पुस्तकों आदि का स्वरूप निर्धारित करना पड़ता है।
जॉर्ज पेनी (George Payne) को शैक्षिक समाजशास्त्र का पिता (Father of Educational Sociology) माना जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘दि प्रिन्सिपल्स ऑफ एजूकेशनल सोशियोलॉजी’ में इस बात पर प्रकाश डाला है कि शिक्षा का सामूहिक जीवन पर तथा सामूहिक जीवन का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा है? यही नहीं, उसने यह भी स्पष्ट किया है कि व्यक्ति को पूर्णरुपेण विकसित करने के लिए उस पर पड़ने वाली सामाजिक शक्तियों के प्रभाव का अध्ययन करना परम आवश्यक है। जॉन डीवी (John Dewey) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘स्कूल तथा समाज’ एवं ‘जनतन्त्र और शिक्षा’ में शैक्षिक समाजशास्त्र के महत्व को स्वीकार करते हुए शिक्षा को सामाजिक प्रक्रिया माना है। तथा बताया है कि शिक्षा की प्रक्रिया व्यक्ति द्वारा जाति की सामाजिक चेतना (Social Consciousness) में भाग लेने से ही विकसित होती है। जब तक सामाजिक चेतना का अध्ययन नहीं किया जायेगा तब तक शिक्षा का पूर्ण विकास होना सम्भव नहीं है।
शैक्षिक समाजशास्त्र के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ दी जा रही हैं जो निम्नलिखित हैं:
रोसेक के अनुसार, “शैक्षिक समाजशास्त्र मुख्य रूप से शिक्षा की समस्याओं से सम्बन्धि समाजशास्त्र है।”
According to Roucek, “Educational Sociology is primarily sociology related to the whole problems of education.”
ब्राउन (Brown) के अनुसार, शैक्षिक समाजशास्त्र व्यक्ति तथा उसके सांस्कृतिक वातावरण के बीच होने वाली अन्तःक्रिया का अध्ययन है।”
हेम्पसन के अनुसार, “शिक्षा का समाजशास्त्र, शिक्षा तथा समाज के मध्य सम्बन्धों का वर्णन करता है।”
According to Hempsen, “The Sociology of Education is concerned with the relationship between education and society.”
डब्ल्यू. बी. ब्रुकओवर के अनुसार, “शिक्षा का समाजशास्त्र, शिक्षा प्रणाली में निहित सामाजिक प्रक्रियाओं तथा सामाजिक प्रतिमानों के विश्लेषण का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
According to W.B. Brookover, “The Sociology of Education is the scientific study of analysis of the social processes and social patterns in the educational systems.”
ओटावे के अनुसार, “संक्षिप्त रूप में, शैक्षिक समाजशास्त्र शिक्षा और समाज के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है।”
According to Ottaway, “The Sociology of Education may be defined as a study of the relations between education and society.”
कार्टर (Carter) के अनुसार, शिक्षा समाजशास्त्र, समाजशास्त्र के उन पक्षों का अध्ययन हैं जो शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण हैं।”
कुक एवं कुक के अनुसार, शिक्षा समाजशास्त्र, शिक्षा प्रक्रिया में मानवीय तत्वों का अध्ययन है जो सभी प्रकार की शिक्षा संस्थाओं में शिक्षण व अधिगम में सुधार की ओर लक्ष्य केन्द्रित करती है।”
According to Cook and Cook, “Education sociology is the study of human factor in the educative process, with the aim to improve teaching and learning in all types of educational institutions.”
शैक्षिक समाजशास्त्र की प्रकृति (Nature of Educational Sociology)
ई. जार्ज. पेन को शैक्षिक समाजशास्त्र का पिता माना जाता है। ‘न्यूयार्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एजूकेशन’ में इनकी अध्यक्षता में शैक्षिक समाजशास्त्र विभाग की स्थापना हुई और ‘जर्नल ऑफ एजूकेशनल सोशियोलॉजी’ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
जार्ज पेनी के अनुसार, “शैक्षिक समाजशास्त्र से तात्पर्य उस विज्ञान से है जो संस्थाओं, सामाजिक समूहों तथा सामाजिक प्रक्रियाओं का वर्णन करता है और उनकी व्यवस्था करता है। सामाजिक प्रक्रिया से तात्पर्य उन सामाजिक सम्बन्धों से है जिनमें अथवा जिनके द्वारा कोई एक व्यक्ति अनुभव प्राप्त करत है और अपने इन अनुभवों को व्यवस्थित करता है।” शैक्षिक प्रक्रिया के अन्तर्गत विषय-वस्तु क्रियाएँ, विधियाँ, विद्यालय प्रबन्ध तथा मापन इत्यादि सभी का समावेश है।
(1) शैक्षिक समाजशास्त्र सामाजिक प्रगति का साधन है (Educational Sociology as the Means of Social Progress) – इस दृष्टिकोण का प्रतिपादन गुड, एलविन वार्ड (Ward) तथा किनयेन आदि के द्वारा किया गया। जिसके आधार पर इन्होंने सामाजिक घटनाओं, मूल्यों, प्रक्रियाओं एवं प्रतिमानों का अध्ययन करके उनसे जुड़ी समस्याओं का निवारण किया तथा सामाजिक प्रगति में सहयोग प्रदान किया।
(2) व्यावहारिक समाजशास्त्र (Behavioural Sociology)- इसके अन्तर्गत् शैक्षिक समाजशास्त्र शिक्षा प्रणाली से सामाजिक व्यावहारिक प्रक्रियाओं का अध्ययन व्यावहारिक रूप से करता हैं। व्यावहारिक समाजशास्त्रीय मत का प्रतिपादन जिलेनी (Zeleny), काल्प (Kalp), स्मिथ, जारबॉग (Zorbough) इत्यादि के द्वारा किया गया था।
(3) उद्देश्यों के निर्धारण का आधार (Basis for Deciding the Objectives of Education)- शैक्षिक समाजशास्त्र विद्यालय में शिक्षा के प्रमुख एवं विभिन्न उद्देश्यों के निर्धारण का आधार माना जाता है क्योंकि इन उद्देश्यों का निर्धारण सामाजिक हित एवं प्रगति को ध्यान में रखकर किया जाता है। इस मत को स्नेडन, पीटर्स, क्लिमेंट्स आदि ने दिया ।
(4) की प्रक्रिया का विश्लेषण (An Analysis of the Sociolising Process)— इसके अन्तर्गत् समाज में समाजीकरण की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता हैं, तत्पश्चात् शिक्षा प्रणाली के माध्यम से सम्पूर्ण सामाजिक प्रक्रिया का विश्लेषण किया जाता हैं। इसके प्रतिपादक वुड हैं।
(5) शैक्षिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण (Training for the Educational Work) – शैक्षिक समाजशास्त्र शैक्षिक कार्यकर्त्ताओं के लिए एक प्रशिक्षण है इसके अन्तर्गत् शैक्षिक प्रणाली के अन्तर्गत् सामाजिक प्रक्रियाओं, प्रतिमानों इत्यादि के बारे में प्रशिक्षण लेते हैं।
(6) विद्यालय में और विद्यालय एवं समुदाय के बीच अन्योन्यक्रिया का विश्लेषण (Analysis Different Process within the School and between School and Community)- शैक्षिक समाजशास्त्र विद्यालय में तथा विद्यालय और समुदाय के बीच होने वाली सामाजिक अन्तः क्रिया का विश्लेषण हैं। इस मत के प्रतिपादक कुक विल्सन (Wilson) तथा एफ. जे. ब्राउन F.J. Brown हैं।
उपर्युक्त सभी विचार ‘शिक्षा के लिए समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के प्रयोग मात्र के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। जिससे शैक्षिक कार्यक्रमों में सुधार लाया जा सके। अन्त में हम कह सकते हैं कि शैक्षिक समाजशास्त्र समाजशास्त्र की वह शाखा है, जो विद्यालय तथा समुदाय में शैक्षिक प्रक्रिया के माध्यम से सामाजिक शक्तियों को समझने तथा नियन्त्रित करने का प्रयास करती है।
शैक्षिक समाजशास्त्र की विशेषताएँ (Characteristics of Educational Sociology)
शिक्षा समाजशास्त्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) शिक्षा समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का वैज्ञानिक अध्ययन है।
(2) यह व्यक्ति और उसके सांस्कृतिक वातावरण के मध्य होने वाली अंतःक्रिया है।
(3) यह समाजशास्त्र का समन्वित रूप है।
(4) यह समाज में एक शिक्षा प्रक्रिया है ।
(5) यह समाज में उन्नति एवं विकास के लिए सामाजिक प्रक्रियाओं एवं सामाजिक अंतःक्रियाओं का अध्ययन है।
(6) यह समाज की समस्त संस्थाओं, जैसे- राज्य, धर्म, समाज, आदर्शों, नियमों आदि के पक्षों का अध्ययन करता है।
(7) यह समाजशास्त्र के मूल तत्वों-सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक नियंत्रण, सामाजिक गतिशीलता आदि का अध्ययन करता है।
शैक्षिक समाजशास्त्र का क्षेत्र (Scopes of Educational Sociology)
शैक्षिक समाजशास्त्र का क्षेत्र[/caption]
शैक्षिक समाजशास्त्र का महत्व (Importance of Educational Sociology)
शैक्षिक समाजशास्त्र का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) शैक्षिक समाजशास्त्र संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में पूर्ण सहयोग प्रदान करता है। इससे व्यक्ति ऐसी संस्कृति की स्थापना करने के योग्य बन जाता है जो आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं को विकसित करने में सहयोग प्रदान कर सके।
(2) शैक्षिक समाजशास्त्र ऐसे नियमों को निर्धारित करता है जो समय-समय पर समाज की सहायता करते रहते हैं।
(3) शैक्षिक समाजशास्त्र की सहायता से व्यक्ति इस प्रकार की सामाजिक संस्थाओं को निर्मित करता है जिनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। वह जिस व्यवसाय में लग जाता है, उसी के अनुकूल बन जाता है। इससे समाज विकसित होता जाता है।
(4) शैक्षिक समाजशास्त्र के अध्ययन से समाज की आवश्यकताओं और समस्याओं के अनुरूप शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करने में सहायता प्राप्त होती है।
(5) शैक्षिक समाजशास्त्र में सामाजिक क्रियाओं के कारणों और परिणामों का विश्लेषण किया जाता है तथा उससे प्राप्त ज्ञान से शिक्षा के पाठ्यक्रम का निर्माण किया जा सकता है। इस प्रकार शैक्षिक समाजशास्त्र शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्माण में सहायक होता है।
(6) यद्यपि शिक्षण विधियों के निर्माण का मुख्य आधार शिक्षा मनोविज्ञान होता है तथापि मनुष्य और समाज के पारस्परिक सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए भी शिक्षण विधियों के निर्माण में शैक्षिक समाजशास्त्र सहायक होता है।
(7) शैक्षिक समाजशास्त्र शैक्षिक अनुसन्धानों को एक ठोस आधार प्रदान करता है। शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक शोधकार्यों का अपना अलग ही महत्व है।
(8) शैक्षिक समाजशास्त्र सामाजिक वर्ग या समूह संघर्षों के कारणों की गहन समीक्षा कर उन्हें शिक्षा के माध्यम से पक्षपात रहित तरीके से दूर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(9) शैक्षिक समाजशास्त्र के द्वारा शिक्षक के व्यक्तित्व पर भी सामाजिक दृष्टि से विस्तार किया जाता है। अतः शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक के महत्व और योगदान को जानने के लिए इस शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है।
(10) शैक्षिक समाजशास्त्र की सहायता से पिछड़े हुए बालकों और अपराधी बालकों की समस्याओं को उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में समझने का प्रयत्न किया जाता है।
(11) शैक्षिक समाजशास्त्र की सहायता से शिक्षा की अन्य समस्याओं का हल खोजने में सहायता प्राप्त होती है।
(12) शैक्षिक समाजशास्त्र बालक को समाज में पूर्ण स्वतन्त्र रहने के सभी रास्ते सहज रूप में उपलब्ध कराता है तथा नये रास्तों की तलाश करने में सार्थक भूमिका निभाता है। ताकि उसका जीवन पूर्णतया सुखी, समृद्ध एवं आनन्दमय रहे।
शैक्षिक समाजशास्त्र का शिक्षा पर प्रभाव (Impact of Educational Sociology on Education)
शैक्षिक समाजशास्त्र के प्रभाव के फलस्वरूप शिक्षा में अनेक परिवर्तन हुए हैं जो कि निम्न किया गया।
(1) जनतान्त्रिक तथा लोक-कल्याणकारी शिक्षा के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया गया।
(2) बालकों के अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रयत्न किए गए।
(3) सरकार ने शिक्षा के उत्तरदायित्व को स्वीकार कर अनेक महत्वपूर्ण और उपयोगी कदम उठाए।
(4) विकलांग और मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा का उत्तरदायित्व भी सरकार ने ग्रहण किया।
(5) प्रौढ़ शिक्षा के लिए प्रयत्न प्रारम्भ किए गए।
(6) शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना की गई।
(7) शिशु शिक्षा तथा बालक मनोविज्ञान पर बल दिया गया।
(8), शिक्षकों के अभाव में शिष्याध्यापक (मॉनीटर) प्रणाली को प्रारम्भ किया गया।
(9) शिशु सेवा आन्दोलन प्रारम्भ हुआ जिससे बालकों को कारखानों आदि में कार्य करने से रोका जाने लगा।
(10) राज्यों द्वारा व्यावसायिक, तकनीकी तथा कृषि शिक्षा की व्यवस्था की गयी।
(11) शिक्षा के समस्त अंगों – शिक्षा का अर्थ, शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा का पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, अनुशासन आदि में भारी परिवर्तन हुए।
प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र का पिता या जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर- ई. जार्ज. पेन(E. George Payne) को शैक्षिक समाजशास्त्र का पिता माना जाता है।
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