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ऊतक क्या है? जंतु-ऊतक तथा पादप ऊतक (tissue in hindi)

ऊतक क्या है? जंतु-ऊतक तथा पादप ऊतक (tissue in hindi) :- आज Currentshub.Com आपके जीव विज्ञान के अंतर्गत आने वाले वाला एक महत्वपूर्ण टॉपिक ‘ऊतक क्या है? जंतु-ऊतक तथा पादप ऊतक (tissue in hindi) , लेकर आए हुए हैं। यहाँ हम जानेंगे की ऊतक क्या है? जंतु-ऊतक क्या है? पादप ऊतक क्या है? विभज्योतक ऊतक क्या है,वसा ऊतक के क्या कार्य है,पादप ऊतक क्या है,एपिथीलियम ऊतक क्या है,ऊतक की खोज किसने की थी,उत्तक कितने प्रकार के होते है,संयोजी ऊतक कितने प्रकार के होते हैं,स्थायी ऊतक परिभाषा, इत्यादि के बारे में विस्तार से|

अनुक्रम (Contents)

ऊतक क्या है? जंतु-ऊतक तथा पादप ऊतक (tissue in hindi)

ऊतक (TISSUES) क्या है?

tissue in hindi

कोशिकाओं का एक ऐसा समूह जिसमें कोशिकाएँ उद्गम (Origion) आकृति परिवर्द्वन व कार्य की दृष्टि से समान ही ऊतक कहलाता है।

जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत जन्तु एवं वनस्पति ऊतको का सूक्ष्म संरचना का अध्ययन किया जाता है। उसे हिस्ट्रोलॉजी (Histrology) कहते है।

वैज्ञानिक मायर ने सर्वप्रथम इसे हिस्ट्रोलॉजी (Histrology) नाम दिया जबकि इस विज्ञान की शाखा के संस्थापक इटली के वैज्ञानिक मारसेलो मैल्पीली थे। मारसेलो मैल्पीली को Father of Histrology कहा जाता है।

Tissue शब्द का प्रथम उपयोग फ्रांसीसी वैज्ञानिक बिकाट (Bichat) ने किया था।

कोशिकाएँ जो आकृति मे एक समान होती है, किसी कार्य को एक साथ सम्पन्न करती है, वे कोशिकाएँ समूह में एक ऊतक (Tissue) का निर्माण करती है।

सभी जीवित प्राणी या पौधे कोशिकाओं से बने होते है। जीवों मे सभी । मौलिक कार्य (Fundamental Work) एक ही कोशिका द्वारा किये जाते है। जैसा कि अमीबा एक कोशिकीय जीव है। इसमें एक ही कोशिका द्वारा गति, भोजन लेने | की क्रिया, श्वसन, उत्सर्जन व कार्य सम्पन्न की जाती है।

बहुकोशिकीय जीवों मे लाखों कोशिकाएँ होती है। इनमे से अधिकतर कोशिकाएँ कुछ ही कार्यो को सम्पन्न करने मे सक्षम होती है। सभी विशेष कार्य कोशिकाओं के विभिन्न समूहो द्वारा किया जाता है। कोशिकाओं के ये समूह एक विशिष्ट कार्य को ही अति दक्षता पूर्वक संपन्न करने के लिए सक्षम होते है।

शरीर के अन्दर ऐसी कोशिकाएँ जो एक तरह के कार्य को सम्पन्न करने मे दक्ष होती है, सदैव एक समूह मे होती है। शरीर के अन्दर एक निश्चित कार्य एक निश्चित स्थान पर कोशिकाओं के एक विशिष्ट समूह द्वारा सम्पन्न किया जाता है। कोशिकाओं का यह समूह ऊतक (Tissue) कहलाता है।

जंतु और पौधों के ऊतको में स्पष्ट अन्तर होता है। पौधे स्थिर होते है इसलिये उनमें अधिकांश ऊतक सहारा देने वाले होते है। पौधों को संरचनात्मक शक्ति प्रदान करते है। जबकि जन्तु भोजन, साथी व आश्रय की खोज मे गतिशील, व पौधों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा का उपयोग करता है। इसलिये इसी के अनुरूप जंतुओं में ऊतक होते है।

एक जीव के विभिन्न ऊतक शरीर में होने वाले विभिन्न प्रक्रियाओं के संचालन के लिए एक दूसरे के साथ समन्वय में कार्य करते है।

समान आकार व आकृति की कोशिकाओं का समूह, जिनका कार्य समान , व जिनकी उत्पत्ति भी समान होती है, ऊतक कहलाता है। पौधे अपने संपूर्ण जीवन में नए ऊतक उत्पन्न करने में समर्थ है। जंतु कुछ अवस्थाओं के अंतर्गत कुछ ऊतकों को बदल सकते है। हृदय की माँसपेशियाँ व तंत्रिका ऊतक के क्षतिग्रस्त हो जाने पर उनका पुनः निमार्ण सम्भव नहीं है।

पादप ऊतक (Plant Tissue)

एक या अधिक तरह की कोशिकाओं के संगठित समूह ऊतक होते है। ऊतकों की विभिन्न कोशिकाओं को विभाजन के द्वारा नई कोशिकाओं का निर्माण के आधार पर पादप ऊतक को मुख्यत: 02 वर्गों में बाँटा जा सकता है।

1.स्थायी ऊतक (PERMANENT TISSUE)

स्थायी ऊतक ऐसी कोशिकाओं के बने होते है, जो विभाजन के पश्चात एक निश्चित रूप व परिणाम ग्रहण कर लेते है। ये मोटी या पतली दीवार की जीवित या मृत कोशिकाएँ होती है। इनमें विभाजन की क्षमता नही होती है।

स्थायी ऊतक ऐसी कोशिकाओं से बना होता है, जिनकी विभाजित होने की क्षमता समाप्त हो चुकी होती है। उनके कार्य के अनुसार स्थायी ऊतक 03 प्रकार के होते है।

i. संरक्षी ऊतकः यह ऊतक मोटी भितियों कि कोशिकाओं से बना होता है। और पत्तियों तनों जड़ो आदि कि सतह पर पाया जाता है।

ii. आलबी ऊतकः यह पौधे के विभिन्न भागो की सहारा देता है। इस ऊतक मे आलुओं के भीतरी भाग में भरी हुई कोशिकाओं शामिल है, जिनके भीतर भोजन संचित रहता है। यह पत्तियों के डंठल मे पाया जाता है।

iii. सवाहक ऊतकः इसे संवहनी ऊतक भी कहते हैं यह तरल पदार्थो को पोधे मे ऊपर-नीचे आने-जाने का मार्ग प्रदान करता है। यह 02 प्रकार {1.जाइलम (Xylem) 2. फ्लोएम (Phloem)} होता है। जाइलम तने में अधिक केन्द्र की ओर स्थित होता है। इसमे
होकर मिटटी से अवशोषित जल व खनिज पदार्थ पौधे मे ऊपर की तरफ जाते है।

फ्लोएम जाइलम के बाहर की तरफ स्थित होता है, और पत्तियों द्वारा संश्लेषित भोजन (शर्करा) को नीचे और ऊपर की ओर संवाहित करता है, ताकि भोजन अन्य सभी क्षेत्रो में पहुँच जाए।

स्थायी ऊतक विभाज्योतक ऊतक से बनते है। लेकिन इनमे विभाजन की क्षमता नही होने के कारण ये ऊतक स्थायी ऊतक मे परिवर्तित हो जाते है।

चूंकि स्थायी ऊतक की कोशिकाए विभाजन के पश्चात एक विशेष कार्य के लिए एक निश्चित परिमाप व संरचना ग्रहण कर लेते है। इस क्रिया को विभेदन या विभेदीकरण (Differentiation) कहते है।

स्थायी ऊतक के 03 श्रेणिया

1. साधारण ऊतक (Simple Tissue)
2. जटिल ऊतक (Complex Tissue)
13. विशिष्ट या सावी ऊतक (Special or secretory Tissue)

1. साधारण ऊतक या सरल उतक(Simple Tissue)

साधारण या सरल स्थायी ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बने होते है। ये कोशिकाएँ रचना व कार्य मे समान होती है।

कोशिका भित्ति की संरचना के आधार पर साधरण स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissue) 03 प्रकार के होते है।

A. मृदूतक (Perenchyma)
B. स्थूलकोण ऊतक (Collenchyma)
C. दृढ ऊतक (Sclerenchyma)

A. मृदूतक (Parenchyma)

मृदूतक पौधे के सभी मुलायम भागों मे व्यापक रूप से पाये जाते है। तथा ऐसी कोशिकाओं का समूह है जो प्रायः समव्यासी (Isodiametric) होते है। इन ऊतको की कोशिकाएँ जीवित होती है। इनकी दीवारे पतली व सेलुलोज की बनी होती है। ये आकार मे गोल, अण्डाकार या बहुभुजी होते है। इनमें अंतरकोशिकीय स्थान परन्तु बहुभुजी कोशिकाओं मे नही होती है।

यह बाह्रात्वचा, वल्कुट मज्जा तथा फलों के गूदे में पायी जाती है। इनका कार्य मुख्य रूप से खाद्य पदार्थ (प्रोटीन व वसा) का संचयन है। जब मृदुतक मे हरित लवक होता है, तो हरित ऊतक या क्लोरिनकाइमा (Chlorenchyma)कहते है, इनका काम भोजन बनता है।

जलीय पौधों मे एक विशेष प्रकार का मृदूतक उत्पन्न हो जाता है। जिनकी कोशिकाओं के बीच काफी रिवत स्थान होता है। जिसमें बहुत अधिक मात्रा हवा भरी होती है, इन्हे एरेनकाइमा (Aerenchyma) कहते है।

B. स्थूलकोण (Collenchyma)

इनकी कोशिकाएँ जीवित व आकार मे बहुभुजी होती है। और संरचना में मृदूतक के समान होती है। परन्तु इनमे अन्तर कोशिकीय स्थान नही पाया जाता है। कोशिका भित्ति पर सेलुलोज व पेक्टिन नामक पदार्थ जमा होने के कोणो पर स्थूलन हो जाता है।

C.दृढ ऊतक(Sclerenchyma)

इनकी कोशिकाओं की भित्तियां स्थूलित व लिग्निन युक्त होती है। दृढ ऊतक पौधों को यांत्रिक शक्ति देता है। यह निम्नलिखित 02 प्रकार का होता है।

(i). दृढोतक तन्तु (Sclwrenchyma fibres)

 यह बहुत लम्बी, सकरी व प्राय दोनो सिरो पर नुकीली लिग्निनयुक्त, मोटी भित्तियों वाली कोशिकाओं की बनी होती हैं। और इनकी भित्तियों पर अनेक साधारणगर्त (Simple pits) पाए जाते है। रेशे उत्पन्न करने वाले पौधों में यह तक अधिक मिलता है। जैसे-सनई (Crotalaria Juncea), कपास(Gossypium), पटसन (Hibiscus cannabimus), अलसी (Linum), जुट व नारियल|

यह ऊतक पौधे के वल्कुट एब्र जाइलम मे अधिक पाया जाता है। प्रायः इसकी कोशिकाएँ मृत होती है। जो यांत्रिक कार्य सम्पन्न करती है।

(ii). दृढ कोशिकाएँ (Stone cells)

ये प्रायः छोटी बेलनाकार व अनिश्चित आकार की लिग्निन युक्त मोटी भित्ति वाली मृत कोशिकाएं है। पौधे के शरीर में विशेष स्थानीय यांत्रिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए उत्पन्न होती है। इन्हें दृढ़ कोशिकाएँ (Stone cells) कहते है। नाशपाती, शरीफा, अमरूद जैसे फलो के गुदे, तने के वल्कुट, मज्जा, फ्लोएम बीजावरण, दृढता प्रदान करने का कार्य करती है।

2.जटिल ऊतक (Complex Tissue)

 जटिल ऊतक विभिन्न आकार व परिणाम की कोशिकाओं से मिलकर बने ऐसे समूह होते हैं, जिनमें कोशिकाए सामूहिक रूप से एक इकाई की भाँति कार्य करती है।

जटिल ऊतक ऊतक के अंतर्गत जाइलम (Xylem) व फ्लोएम (Phloem) आते है।

A.जाइलम (xylem)

यह संवहन ऊतक( Counducting Tissue) है, इसके द्वारा जल का संवहन होता है। इसमें 04 प्रकार की कोशिकाओं पायी जाती है।

(i). वाहिनिकाएँ (Tracheids):- ये कोशिकाये नलिकाकार नुकीली या छेनी समान सिरे वाली लिग्निनयुक्त और स्थूलित होती है। स्थूलन अनेक प्रकार का होता है। जैसे-वलायाकार (Annular) सपिल (Spiral) सोपानवत (Scalari-form) जालिकावत (Reticulate) और गर्ती (Pitted) इनका कार्य पौधे मे जड द्वारा अवशोषित जल मे घुलित खनिज लवणो को पत्तियों तक पहुचाना तथा  कोमल अंगो को सहारा देना हैं।

(ii). वाहिकाएँ (Vessels or Trachea):- वाहिकाएँ लम्बी नलिका के समान होती है। ये एक के ऊपर एक जुडी कोशिकाएँ है। जिनकी अनुप्रस्थ भित्ति या तो छिद्रयुक्त होती है या नष्ट होकर एक लम्बी नली बनाती है। वाहिनिका की भाँति इनकी भित्तियों पर भी वलयाकार, सर्पिल सोपानवत या गती स्थूलन पाया जाता है। उन वाहिकाओं का मुख्य कार्य जल तथा पोषक प्रदार्थो का संहवन है। इसके अतिरिक्त पौधे को दृढ़ता भी प्रदान करती है।

(iii). दारू या काष्ठ मृदूतक (Xylem parenchyma):- इसकी कोशिकाएँ जीवित और समव्यासी होती है, तथा भित्तियाँ पतली या संतुलित दोनो ही प्रकार की हो सकती है। इनकी मुख्य कार्य मण्ड तथा वसीय पदार्थों का संचय है।

(iv). काष्ठतन्तु (Wood Fibres):- प्रायः लम्बे, निर्जीव तन्तु है जिनके दोनो सिरे नुकीले तथा भित्ति लिग्निनयुक्त होती है। इनमें साधारण गर्त पाए जाते है। इनका कार्य पौधे को दृढता प्रदान करती है।

B.फ्लोएम (Flowam) 

 फ्लोयम भी जाइलम की भाति ऊतक है इसके द्वारा पत्तियों मे बने खाद्य पदार्थो का संवहन (Conducticn) पौधे के भण्डार एव वृद्धि प्रदेशों तक होता है। फलोयम 04 प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है।

(i), चालनी नालिकाएँ (Sieve-Tubes):- लम्बी नलिका सदृश, सेल्युलोज की बनी पतली भित्ति वाली जीवीत कोशिकाएँ होती है। जो एक के ऊपर एक रखी होती है। इनके सिरे की अनुप्रस्थ भित्ति मे चलनी के समान अनेक छिद्र होते है। जिन्हे चालिनि पठिटकाएँ (Sieve-Plates) कहते है।

(ii), सखि कोशिकाएँ (Companion Cells): प्रत्येक चालिनि नालिका के पार्श्व भाग मे एक पतली लम्बी कोशिका होती है। जिसे सह सखी काशिका (Companion Cell) कहते है। इसकी पतली भित्ति पर अनेक साधारणगर्त होते है।

(iii), फ्लोएम मृदूतक (Phloem Parenchyma):- मृदुतक की कोशिकाएँ आकार मे लम्बी पतली भित्ती वाली तथा जीवित होती है, जो चालिनी नालिकाओं के बीच पायी जाती है। ये भोजन संचय का कार्य करती है। एक बीजपत्री पौधे मे फ्लोएम मृदुतक अनुपस्थित होता है।

(iv). फ्लोएम तन्तु (Pholem Fibres):- फ्लोएकम तंतु लम्बी नुकीली वर लिग्निन युक्त कोशिकाओं के होते है, जो पोधे को यांत्रिक शाक्ति प्रदान करते है।

सरल ऊतक और जटिल ऊतक में अंतर

सरल ऊतक

जटिल ऊतक

1. ये पतली कोशिकाभित्ति वाली सरल कोशिकाओं में बने होते है। 1. जटिल ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते है।
2. इनमें कोशिकाएँ जीवित है। 2. इनकी कोशिकाभित्ति मोटी होती है।
3. इन कोशिकाओं के मध्य काफी रिक्त स्थान होता है। 3. अधिकतर कोशिकाएँ मृत होती है।
4. ये ऊतक पौधे को सहायता प्रदान करते है। 4. इन्हें संवहन ऊतक भी कहते है। ये पानी और खनिज लवण पौधे के ऊपरी भाग तक पहुँचाते है।
5. क्लोरेन्काइमा ऊतकों में क्लोरोफिल पाया जाता है, जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया संपन्न होती है। 5. जाइलम तथा फ्लोएम इस प्रकार के उदाहरण है।
6. स्क्लेरेंन्काइमा ऊतक पौधे को कठोर व मजबूत बनाता है। 6. फाइबर (रेशे) मुख्यतः सहारा देने का कार्य करते है।

3.विशिष्ट या स्रावी ऊतक (Special or Secretory Tissue)

स्रावी ऊतक ऐसी कोशिकाओं का समूह है, जिनके द्वारा अनेक प्रकार के पदार्थ स्रावित (Secrete) होते है।

स्त्रावी ऊतक के 02 प्रकार

A. ग्रन्थिल ऊतक (Glandular tissue):- पौधों के बाह्यत्वचा के ऊपर या शरीर के भीतरी भागों मे एक व अनेक कोशिकाओं के पुज से बनी ग्रन्थियाँ पायी जाती है। इनके द्वारा म्यूसिलेज (Mucilage) नीबू, संतरा की पती व भिति मे गोद (Gums) तेल (Oils) चीड (Pinus) टेनिन (Tannins) एंजाइम (Enzymes) मकरन्द (Nectar) अनेक प्रकार के प्रदार्थों का स्रावण होता है।

B. रबर क्षीरी ऊतक (Laticiferous tissue):- इस प्रकार के ऊतक जड या तनो के वल्कुट प्रदेश मे पाये जाते है। इनसे सफेद या पीला गाढा व जलीय तरल पदार्थ जिसे रबर-क्षीर ( Latex) कहते है। यह ऊतक 02 प्रकार के होते है।

(i). रबर क्षीरी कोशिकाएँ (Lates Cells)

रबरक्षीर कोशिकाए लम्बी व शाखायुक्त होती है। इनका निमार्ण एक ही कोशिका द्वारा होता है। इसका उदाहरण मदार (Catotropis) है।

(ii), रबर क्षीरी वाहिनिकाए (Latex tracheids)

जाइलम वाहिनिकाओं की भाति ये भी नालिका जैसी होती है परन्तु जीवित होती है, रबरक्षीरी वाहिनिकाएँ अधिक शाखान्वित होती है। जो जाल सा बनती है। इसके उदाहरण-रबर पोस्ता पपीता (Carica Papaya) है।

(II). विभाज्योत्तक ऊतक (Meristematic Tissue)

 पौधों में वृद्धि कुछ निश्चित भागों में ही हो पाती है ऐसा इसलिये होता है, क्योंकि विभाजित ऊतक उन भागों में पाये जाते हैं। ऐसे ऊतकों को विभाज्योत्तक ऊतक भी कहा जाता है।

विभाज्योत्तक ऊतकों का कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन तीव्र गति से विभाजन करते रहने की क्षमता होती है।

विभाज्योत्तक ऊतक पादप की वृद्धि के लिये जिम्मेदार कोशिकाओं के समूह के एक साथ मिलने से बनते है।

विभाज्योत्तक ऊतक के द्वारा तैयार नई कोशिकाएँ प्रारम्भ में विभाज्योत्तक की तरह होती है लेकिन जैसे ही ये बढ़ती व परिपक्व होती है।

इनके गुण में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है व ये दूसरे ऊतकों के घटकों के रूप मे विभाजित हो जाते है।

इस प्रकार के ऊतक पौधे के वर्धी क्षेत्रों (Growing Regions) मे पाये जाते है जिनके सतत विभाजन से ही पौधे की वृद्धि होती है।

विभाज्योत्तक ऊतक के 03 प्रकार

1. शीर्षस्थ या अग्रक विभाज्योत्तक ऊतक (Apical Meristem)

शीर्षस्थ ऊतक पौधों के जड़ों तथा तनों के अग्रशीर्ष भाग में पाये जाते है। ये पौधों की लम्बाई में वृद्धि के लिये मुख्यतः उत्तरदायी होते है। इसे ग्रोइंग प्वाइन्ट (Growing point) भी कहते है।

पौधों के लम्बाई में वृद्धि शीर्षस्थ विभाज्योत्तक ऊतक द्वारा होती है।

कोशिकाओं की संख्या मे वृद्धि, कोशिका विभाजन के फलस्वरूप होती है।

प्रारम्भ में कोशिका विभाजन से बनी सभी नयी कोशिकाएँ एक समान होती है। लेकिन धीरे-धीरे इनमे परिवर्तन प्रारम्भ होता है, व बाद में विभिन्न आकार-प्रकार की परिपक्व कोशिकाओं में विकसित होने की प्रकिया को कोशिका विभेदन (Cell Differenciation) व कोशिका परिपक्वन (Cell Maturation) कहते है।

कोशिका विभाजन के बाद कोशिकाओं मे विभेदन उनकी स्थिति व कार्य के आधार पर होता है। कोशिका विभेदन पौधों मे Region of Cell Differenciation में होता है। जो कि जड़ तना व अन्य उपांगो (Appendages) मे शाखा के ठीक नीचे स्थित होते है।

पौधों मे कोशिका विभाजन के उपरांत नई कोशिकाओं में पहले कोशिका-प्रवर्धन (Cell enalargement) होता है। इसी क्रम में आगे चलकर पादपों की आवश्यकतानुसार कोशिकाओं का विभेदन (Cell-differenciation) होता है। विभेदन के परिणाम स्वरूप कोशिकाओं की संरचना में उनके कार्य के अनुरूप परिवर्तन आ जाता है और विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ बन जाती है। जैसे मृदूतकी कोशिकाएँ (Parenchyma cells) स्थूलकोण ऊतकी कोशिकाएँ (Col-lenchyma cells) दृढ़ ऊतकी कोशिकाएँ (Sclerenchyma cells), आधारीय कोशिकाएँ (Supporting cells), चालन कोशिकाएँ (Conducting cells) रक्षक कोशिकाएँ (Protective cells), जनन कोशिकाएँ (Reproductive cells)

शीर्षस्थ विभाज्योत्तक जड़ तथा तनों के शीर्ष पर जाये जाते है, जिससे उनकी लम्बाई में वृद्धि होती है। जड़ तथा तने, इन दोनो के शीर्ष भाग की संरचना में काफी समानता होती है और इनमें 03 भाग पाये जाते है।

A.त्वचाजन (Dermatogen)

यह एक पर्त का बना बाहरी स्तर है जिसकी कोशिकाएँ विभाजित होकर बाह्य त्वचीय ऊतक तंत्र (Epidermal Tissue System) बनाती है। तना में यह बाह्य त्वचा (Epidermis) और जड़ में मूलीय त्वचा (Epiblema) कहलाती है। जड़ के शीर्षस्थ विभाज्योत्तक के त्वचाजन (Dermatogen) की कुछ कोशिकाएँ विभाजित होकर एक विशेष रचना गोपकजन (Calyptrogen) बनाती है। जो मूलगोप (Root-Cap) का निर्माण करती है। यह भूमि के अन्दर बढ़ते समय जड़ को रगड़ से बचाती है।

B. वल्कुटजन (Periblem)

त्वचाजन के नीचे पाई जाने वाली यह पते भरण ऊतक तन्त्र (Ground Tissue system) का निर्माण करती है। जिसके द्वारा वल्कुट (Cortex) और अन्तस्त्वचा (endootermis) बनती है।

C.रम्भजन (Plerome)

यह सबसे आंतरिक भाग है जो संवहन ऊतक तंत्र (Vascular Tissue system) को बनाता है। इसमें जाइलम (Xylem) फ्लोएम (Phloem) और कैम्बियम (Cambium) होते है। इसकी शेष कोशिकाएँ परिरम्भ (Pericycle), मज्जा (Pith) व मज्जा किरणों (Medullary Rays) को बनती है। रम्भजन से संवहन बंडल का उद्गम होता है। फ्लोयम (Phloem) में चालनी नलिकाएं (sievetube) पायी जाती है।

2. पार्श्व विभाज्योत्तक Leteral Meristem

इस प्रकार के ऊतक द्विबीजपत्री तनो व जड़ों के पार्श्व (Lateral) भागों में मिलते है। संवहन ऊतकों की एधा (Vascular cambium)कार्कएधा (Cork Cambium) इसके उदाहरण है, इनमें आरीय विभाजन (Radial Division) होने कारण जड़ और तना मोटाई में बढ़ते है। पार्वीय विभाज्योत्तक ऊतकों में आयु विभाजन के परिणामस्वरूप द्वितीयक ऊतक (Secondary Tissue) का निर्माण होता है। ये ऊतक जड़ों व तने का पार्श्व या परिधि भागों में वृद्धि करते है और तने व जड़ों की मोटाई में वृद्धि करते है इसे द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) भी कहते है।

3.अन्तर्वेशी विभाज्योत्तक Intercalary Meritem

अन्तर्वेशी विभाज्योत्तक भी शीर्षस्थ विभाज्योत्तक का ही अवशेष है जो बीच में कुछ स्थायी ऊतकों के आ जाने से अलग हो जाता है। यह घास कुल पोदीना की पर्व-सन्धियों पर पाया जाता है व इसी को क्रियाशीलता के कारण इनका तना लम्बाई में बढ़ता है।

विभाज्योत्तक ऊतक की विशेषताएँ

1. ये विभाजित हो कर नई कोशिकाएँ बनाती है।

2. कोशिकाए जीवित व समव्यासी होती है।

3. इनमें जीव द्रव्य संघन, केन्द्रक बड़ा तथा रिक्तिकाएं छोटी अथवा अनुपस्थित होती है इसमें अन्तकोशिकीय स्थान (Intercellular Spaces) का अभाव होता है।

4. आकार में गोल, आयताकार, बहुभुजी तथा पतली भित्ती वाली होती है।

जन्तु ऊतक (Animal or Epilhelical Tissue)

जन्तु ऊतको को 04 प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।

जन्तु ऊतक के प्रकार

जन्तु ऊतक के प्रकार

(i). एपिथीलियमी या उपकलाऊतक (Epithelial Tissue)

  • शरीर की बाहरी व भीतरी सतहों अंतरंगो की बाहरी और भीतरी सतहों पर रक्षात्मक (संरक्षी) परतों से ढके रहते है।
  • ये कोशिकाओं की पतली संरक्षी परतों के रूप मे पायी जाती है।
  • सामान्यतः ये ऊतक शरीर को बाहरी सतह पर, अतिरिक्त अंगो की सतह पर और शरीर को गुहाओं के स्तर के रूप मे पाये जाते है।
  • भ्रूण मे एक्टोडर्मएन्डोडर्म परतों के मध्य मे कोशिकाओं की एक तीसरी परत होती है। जिसे मीसोडर्म कहते है। इन परतो से बनने वाले ऊतको को मीसेनकाइमा कहते है। मीसेनकाइमा नाम सर्वप्रथम सन् 1883 ई मे वैज्ञानिक हर्टविग ने दिया था।
  • भ्रूणीय परिवर्धन के समय मीसोर्ड के कुछ भाग सघन होकर पेशीय ऊतक व शेष भाग ढीले होकर संयोजी संवहनीय ऊजक बनाते है।
  • भ्रूणीय परिवर्धन के समय मीसोडर्म के कुछ भाग सघन होकर पेशीय ऊतक व शेष भाग ढीले होकर संयोजी व संवहनीय ऊतक बनाते है।
  • पेशीय ऊतको के अतिरिक्त अन्य सभी मीसोडर्मी ऊतक संयोजी ऊतको की श्रेणी में आते है।

(ii). पेशीय ऊतक (Muscular Tissue)

  • पेशीय ऊतक लम्बी संकीर्ण कोशिकाओं से बनते है। जिसे पेशीय तंतु कहते है, पेशी तंतु पेशी कोशिकाएँ होती है।
  • पेशिय शरीर के अंगो मे गति व जीवधारीयों को गतिशील बनाती है। शरीर की मांसपेशियो का निमार्ण पेशीय उतकों के द्वारा होता है।
  • पेशी कोशिकाए लम्बी व संकरी होती है। इसलिए इन्हे पेशी तन्तु कहते है।
  • आकुंचनशीलता (Contractility) पेशी कोशिकाओं का मुख्य लक्षण है।

पेशीय ऊतक के 03 प्रकार

  1. रेखित पेशियाँ ( Striated or Striped Muscles)
  2. अरेखित पेशियाँ (Unstriped or Involuntary Muscles) 
  3. हृदय पेशियाँ (Cardiac musles) नीचे बाक्स देखे!

(iii). संयोजी ऊतक (Connective Tissue)

  • संयोजी ऊतक अंगो को जोड़ने के कार्य करता है।
  • मुख्यतः संयोजी ऊतक मे अधात्री (Matrix = मैटिक्स) योजी ऊतक कोशिकाए व संयोजी ऊतक तन्तु होते है। एक निर्जीव माध्यम में बिखरी ऊतक की कोशिकाओं को अधात्री (Matrix) कहते है।
  • चोट से नष्ट होने वाले ऊतको की स्थान पूर्ति का कार्य संयोजी ऊतक करते है। इसके अतिरिक्त शरीर मे प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को भी रोकने का कार्य करते है।
  • संयोजी ऊतक वसा के भण्डार में सहायक होते हैं ये वृक्क अण्डाकार एव नेत्रगोलक के चारो व धक्का रोधी कुशन (गद्दी) बनाते है।
    ये ऊतक विभिन्न संरचनाओं को एक दूसरे से जोड़ते है। कंडराए आस्थि को पेशी से जोडती है। स्नायु आस्थि से जुडे होते है। रक्त भी एक संयोजी ऊतक है।

(iv). तंत्रिका ऊतक (Nervous Tissue)

तंत्रिका ऊतक तत्रं कोशिकाओं या न्यूरान से बनी होती है।

रेखित,अरेखित तथा हृद पेशियों में अंतर | difference between striated,unstriated and cardiac muscles

क्र०सं० रेखित पेशियां (striated muscles) अरेखित पेशियां (Unstriated muscles) हृदयी पेशियां (Cardiac muscles)
1 अस्थियों के साथ जुड़ी रहती हैं और शरीर की पेशियों का अधिकांश भाग बनाती है। अंतरांगो की दीवार में मिलता है। हृदय की दीवार में पाई जाती है।
2 पेशी कोशिकाएँ लम्बी व बेलनाकार होती है। इनका व्यास लम्बाई में समान रहता है। ये शाखित नहीं होती। पेशी कोशिकाएँ तर्कुरुपी होती है। कभी-कभी इनके सिरे द्विशाखित भी होते है। पेशी कोशिकाएँ या पेशी तन्तु शाखान्वित होते है और परस्पर जाल सा बनाते है
3 पेशी तन्तु 2-4 सेमी लम्बा तथा 10-304 मोटा होता है। पेशी तन्तु 1/20 मिमी लम्बा व 1/60 मिमी मोटा होता है।  पेशी तन्तु 50-100µ लम्बे तथा 20µ मोटे होते है।
4 पेशी तन्तु बहुकेन्द्रीय होते है। पेशी तन्तु(पेशी कोशिकाएँ) एककेन्द्रीय होते है और केन्द्रक कोशिका के बीचों-बीच चौड़ेभाग में स्थित हाकता है। पेशी तन्तु एककेन्द्रीय होते है और केन्द्रक कोशिका के लगभग मध्य में इन्टरकेलेटेड डिस्क के बीच में होते है।
5 सार्कोलमा पेशी तन्तुओं या मायोफाइब्रिल्स केक बीच भरा रहता है।  केन्द्रक के चारो ओर का सार्कोप्लाज्म बहुत पतला होता है।  सोर्कोप्लाज्म होता है।
6 सार्कोलेमा स्पष्ट तथा अपेक्षाकृत मोटा तथा पेशी तन्तु के पूरी लम्बाई में फैलें रहते है। सार्कोलेमा बहुत पतला होता है। सार्कोलेमा स्पष्ट नहीं होता।
7 मायोफाइब्रिल्स अपेक्षाकृत मोटे तथा पेशी तन्तु की पूरी लम्बाई में फैले रहते है। मायोफाइब्रिल्स बहुत छोटे व पतला होते है। मायोफाइब्रिल्स रेखित पेशी के मायोफाइब्रिल्स के समान होता है।
8 इसमें संकुचन धीरे-धीरे किन्तु देर तक होता है। इसमें संकुचन धीरे-धीरे होता है। संकुचन व शिथिल-क्रमिक होता है और जीवनपर्यन्त होता रहता है।
9 इनका संकुचन इच्छा के आधीन होता है। इनका संकुचन इच्छा के अधीन नहीं होता है। इनका संकुचन इच्छा के आधीन नहीं होता।
10 ये केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र की केनियल तथा ज्ञपाइनल तन्त्रिकाओं द्वारा सम्भरणित होती है। ये पेशियाँ स्वायन्त तन्त्रिका तन्त्रं की तन्त्रिकाओं से सम्भरणित होती है। सिम्पैथेटिक तथा पैरासिम्पैथेटिक तन्त्रिका तन्त्र से सम्बन्धित होती है।

तो दोस्तों, शायद अब आपको ऊतक क्या है? जंतु-ऊतक क्या है? पादप ऊतक क्या है? विभज्योतक ऊतक क्या है,वसा ऊतक के क्या कार्य है,पादप ऊतक क्या है,एपिथीलियम ऊतक क्या है,ऊतक की खोज किसने की थी,उत्तक कितने प्रकार के होते है,संयोजी ऊतक कितने प्रकार के होते हैं,स्थायी ऊतक परिभाषा, का कांसेप्ट अच्छे से समझ आ गया होगा, यदि कोई डाउट हो तो आप कमेंट या मेल के माध्यम से अपना डाउट क्लियर कर सकते हैं|

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shubham yadav

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