समाजशास्‍त्र / Sociology

बहुलक या भूयिष्ठक की परिभाषा, गुण या लाभ, दोष या कमियाँ

बहुलक या भूयिष्ठक की परिभाषा
बहुलक या भूयिष्ठक की परिभाषा

बहुलक या भूयिष्ठक की परिभाषा

बहुलक या भूयिष्ठक उस मूल्य को कहते हैं जो समंकमाला में बार-बार आता है या जिसकी बारम्बारता सबसे अधिक होती है। इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं –

“भूयिष्ठक महत्वपूर्ण प्रकार, रूप या पद या आकार या सबसे अधिक घनत्व की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”– वॉडिंगटन

“किसी सांख्यिकीय समूह में वर्गीकृत मात्रा का वह मूल्य (मजदूरी ऊँचाई या अन्य किसी मापनीय मात्रा का) जहाँ पर पंजीकृत संख्याएँ सबसे अधिक हों, भूयिष्ठक या ‘अधिक घनत्व का स्थान’ या सबसे महत्वपूर्ण मूल्य कहलाता है।”- डा. बाउले

बहुलक के गुण या लाभ

बहुलक के गुण या लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) इसको ज्ञात करना, इसका प्रयोग करना व समझना सरल है। प्राय: देखने में आता है कि मात्र निरीक्षण की दृष्टि से ही इसे ज्ञात कर लिया जाता है।

(2) बहुलक की गणना करने में अति सीमांत या चरम मूल्यों का बहुत कम प्रभाव पड़ता है।

(3) बहुलक या भूयिष्ठक को बिन्दुरेखीय रीति से भी प्रदर्शित किया जा सकता है।

(4) बहुलक का प्रयोग अधिकतर तभी किया जाता है जब लोकप्रियता का अध्ययन करना हो।

(5) सिले- सिलाये कपड़ों के आकार का निर्धारण बहुलक के माध्यम से ही किया जाता है। फैशन के मामले में भी बहुलक का प्रयोग किया जाता है।

(6) बहुलक समकमाला का श्रेष्ठ प्रतिनिधि माना जाता है क्योंकि इसकी पहली विशेषता यह होती है कि स्वयं इसकी आवृत्ति अधिकतम होती है और दूसरी विशेषता यह होती है कि बहुलक के आस-पास अन्य आवृत्तियों का केन्द्रीकरण होता है।

(7) न्यादर्श की दृष्टि से बहुलक के मूल्य में स्थिरता पायी जाती है। समग्र में से देव निदर्शन द्वारा चाहे जितनी बार न्यादर्श लिखा जाये लगभग बहुलक एक ही आयेगा।

बहुलक के दोष या कमियाँ

(1) इसके अन्तर्गत गणितीय विवेचना करना सम्भव नहीं है। उदाहरण के लिए यदि दो श्रेणियों का बहुलक ज्ञात हो तो उनके आधार पर सामूहिक बहुलक ज्ञात नहीं किया जा सकता है।

(2) कभी-कभी एक श्रेणी में दो या दो से अधिक बहुलक दिखायी पड़ते हैं और कभी-कभी निरीक्षण विधि से बहुलक स्पष्ट नहीं होता है और बहुलक का पता लगाने के लिए सामूहीकरण विधि का प्रयोग करना पड़ता है।

(3) समूहों की संख्या में परिवर्तन होने के साथ-साथ बहुलक के मूल्य का भी परिवर्तन हो जाता है यदि श्रेणी के सभी मूल्यों की आवृत्ति को समान कर लिया जाये।

(4) बहुलक को निकालने के लिए पदों को क्रमानुसार रखना आवश्यक होता है क्योंकि सबसे अधिक आवृत्ति वाले पद के आस-पास वाले पद की आवृत्तियों की आवश्यकता पड़ती है।

(5) बहुलक ज्ञात करने के लिए अविच्छिन्न श्रेणी में समान वर्ग अन्तर का होना आवश्यक होता है और यदि समान करना सम्भव नहीं है तो बहुलक की गणना नहीं की जा सकती है।

(6) बहुलक सभी मूल्यों पर आधारित नहीं होता है। अविच्छिन्न श्रेणी में बहुलक वर्ग और बहुलक वर्ग से पहले वाले वर्ग और बहुलक वर्ग के बाद वाले वर्ग की आवृत्तियों को ही ध्यान में रखा जाता है।

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shubham yadav

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