समाजशास्‍त्र / Sociology

सामाजिक विघटन का क्या अर्थ है ? “सामाजिक विघटन एक प्रक्रिया है।” स्पष्ट कीजिए।

सामाजिक विघटन का अर्थ 
सामाजिक विघटन का अर्थ 

सामाजिक विघटन का अर्थ 

किसी भी समाज के व्यक्तियों में समान व्यवहार, दृष्टिकोण, आदतें आदि समान नहीं होती हैं। सभी समाज में ऐसे व्यक्ति देखे जा सकते हैं जो सामाजिक नियमों, मूल्यों, विश्वासों आदि का उल्लंघन करते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति न तो सामाजिक परम्पराओं में विश्वास करते हैं और न ही परिवर्तित होते हुए मूल्यों के साथ समझौता करते हैं। इस प्रकार के व्यक्तियों की संख्या में जब वृद्धि होने लगती है तो सामाजिक संस्थाओं के नियम टूटने लगते हैं। जब संस्थाएँ अपना कार्य व्यवस्थित रूप से नहीं कर पाती हैं तब सामाजिक विघटन प्रारम्भ होता है। इस प्रकार की स्थिति में समाज के विभिन्न वर्गों, संस्थाओं एवं मूल्यों में कार्य एवं पदों में संघर्ष उत्पन्न होता है। यह संघर्ष व्यक्तियों के व्यवहारों को समाज के प्रचलित व्यवहार के प्रतिमान से विचलित करते हैं। जितनी तीव्रता से समाज के अन्दर विचलित व्यवहारों में वृद्धि होती है उतनी ही तीव्रता से समाज विघटित होने लगता है। विचलित व्यवहारों में वृद्धि से समाज के क्रिया-कलाप टूटने और नष्ट होने लगते हैं। समाज के विभिन्न अंगों में संघर्ष, श्रम, तनाव, अलगाव आदि चीजें उत्पन्न होने लगती हैं। साथ ही व्यक्तियों के व्यवहारों को भी परिवर्तित करती हैं।

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सामाजिक विघटन का अर्थ है समाजिक संघटन में कुछ टूट-फूट और कमी होना जो केवल सामाजिक परिवर्तन से आती है। सामाजिक विघटन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के सदस्यों के बीच स्थापित सम्बन्ध टूट जाते हैं या समाप्त हो जाते हैं।”- इलियट और मेरिल

“सामाजिक विघटन मुख्यतः सामाजिक नियंत्रण के भंग होने को कहते हैं जिससे अव्यवस्था और गड़बड़ी उत्पन्न होती है।”- लैंडिस 

“सामाजिक विघटन का अर्थ किसी सामाजिक इकाई जैसे- समूह, संस्था, समुदाय के कार्यों का भंग होना है।”- आगबर्न और निमकॉफ

“सामाजिक विघटन मानव सम्बन्धों के आदर्शों और यंत्रीकरण में पड़ने वाला विघ्न है।” – फैरिस

उपरोक्त विद्वानों की परिभाषाओं से ज्ञात होता है कि जब समाज में सामाजिक सम्बन्ध टूटने लगते हैं, नियंत्रण के अभाव में अव्यवस्था का जन्म होता है, सामाजिक संस्थाएँ अपना कार्य नहीं कर पाती हैं, सामाजिक नियम आचरण को नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाते हैं, तब समाज का सम्पूर्ण ढाँचा टूटने लगता है। यह टूटने की प्रक्रिया जब समाज के विभिन्न अंगों में तीव्रता से घटित होने लगती है तब सामाजिक विघटन आरम्भ हो जाता है। आर.टी. लापियरे कहते हैं, “विघटन विशेष रूप से सामाजिक ढाँचे के संगठनात्मक पक्ष के अन्तर्गत असंतुलन को व्यक्त कराता है।”

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सामाजिक विघटन एक प्रक्रिया है (Social Disorganization in a Process)

“सामाजिक विघटन वह क्रिया है जिसके कारण एक समूह के सदस्यों के मध्य स्थापित सम्बन्ध टूट जाते हैं अथवा समाप्त हो जाते हैं।” – इलियट और मेरिल

“सामाजिक विघटन एक मात्र असंतुलित अवस्था नहीं है वरन् यह मुख्यतः एक प्रक्रिया है। अस्तु यह उन घटनाओं श्रृंखला की खला को व्यक्त करता है जो कि व्यक्तियों एवं समूहों की स्वाभाविक क्रियाशीलता में बाधा उत्पन्न करते हैं।”- न्यूमेयर

अस्तु व सामाजिक विघटन ऐसी अवस्था नहीं है जहाँ पहुँचकर समाज विघटित हो जाता है अथवा अमुक व्यवस्था पर पहुँचने पर समाज का विघटन होता है बल्कि एक प्रक्रिया है जो समाज में निरन्तर किसी-न-किसी रूप में चलती रहती है। सामाजिक विघटन एक प्रक्रिया है, कोई पूर्ण अवस्था नहीं है, जहाँ पहुँचकर समाज पूर्णतया नष्ट-भ्रष्ट, विश्रृंखलित अथवा परिवर्तित हो जाए। समाज में कभी भी इतना विघटन नहीं पाया जाता है कि सम्पूर्ण सामाजिक नियंत्रण समाप्त हो जाए। ठीक इसी प्रकार समाज कितना ही धर्मनीति, रूढ़िवादी एवं परम्परावादी क्यों न हो उसमें भी पूर्ण संगठन नहीं पाया जाता है। इस आधार पर हम यह नहीं कह सकते हैं कि सामाजिक विघटन एक प्रक्रिया है क्योंकि सामाजिक विघटन की कुछ-न-कुछ स्थिति प्रत्येक समाज में निरंतर बनी रहती है। वास्तव में सामाजिक विघटन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो प्रत्येक समाज में कम अथवा अधिक रूप में विद्यमान रहती है। वास्तव में सामाजिक विघटन जिस वर्तमान व्यवस्था को विघटित करता है उसके स्थान पर भविष्य में नवीन व्यवस्था, संरचना, मूल्य आदि की स्थापना भी होती है और इस क्रिया से समाज पुनः संतुलित हो जाता है।

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shubham yadav

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