समाजशास्‍त्र / Sociology

सामाजिक विघटन का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है ? विस्तृत विवेचना कीजिए।

सामाजिक विघटन का समाज पर प्रभाव
सामाजिक विघटन का समाज पर प्रभाव

सामाजिक विघटन का समाज पर प्रभाव

सामाजिक विघटन के कारण सामाजिक संरचना में अस्थिरता तथा व्यक्तियों की प्रस्थिति एवं कार्यों में अनिश्चितता आ जाती है। वास्तव में विघटित समाज ही समस्त बुराइयों की जड़ है। सामाजिक विघटन के समाज पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं-

1. आचरण पर प्रभाव (Impact on Behaviour)

सामाजिक विघटन मनुष्य के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। आत्महत्या, मद्यपान, अपराध, व्यभिचार और पागलपन आदि सामाजिक विघटन के व्यक्तिगत परिणाम हैं। ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति अपने सम्पूर्ण दायित्वों को दूसरों के ऊपर डालना आरम्भ कर देता है और सहयोग के स्थान पर संघर्ष और कलह सामान्य घटना बन जाती है। विघटन की स्थिति में पारिवारिक नियंत्रण में ह्रास होता है, जिसके फलस्वरूप किशोर अपराधियों की मात्रा अधिक बढ़ने लगती है।

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2. धार्मिक जीवन पर प्रभाव (Impact on Religious Life)

सामाजिक विघटन का धार्मिक क्षेत्र पर भी अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। सामाजिक विघटन के कारण धर्म का वास्तविक स्वरूप लुप्त होने लगता है। ज्यों-ज्यों समाज विघटन की ओर चलता है त्यों-त्यों धर्म के स्थान पर धर्म का महत्व बढ़ जाता है, जिसके कारण मनुष्य और धार्मिक संस्थाओं के पारस्परिक सम्बन्ध भी ढीले पड़ जाते हैं और धर्म अनौपचारिक नियंत्रण एवं व्यवहार को निर्धारित करने वाला प्रभावकारी साधन नहीं रहता।

3. नैतिक जीवन पर प्रभाव (Impact on Moral Life) 

सामाजिक विघटन समाज के नैतिक स्तर को भी प्रभावित करता है। सामाजिक विघटन की अवस्था में व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिये नैतिकता की बलि दे डालता है। चोरी, डाका, घूसखोरी, व्याभिचार आदि अनैतिकता के विभिन्न रूप हैं जो व्यक्ति को पतन की ओर ले जाते हैं और पुराने प्रतिष्ठित रीति-रिवाजों को समूल नष्ट कर देते हैं। सामाजिक विघटन की अवस्था में व्यक्ति की प्रवृत्ति पापमयी हो जाती है और वह उचित और अनुचित का ध्यान न रखकर समाजविरोधी कार्य करने में किसी भी प्रकार का संकोच नहीं करता।

4. शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव (Impact on Education System)

शिक्षा व्यवस्था भी सामाजिक विघटन के प्रभाव से अछूती नहीं रहती। सामाजिक विघटन की अवस्था में शिक्षा व्यवस्था के अस्थिपंजर ढीले पड़ जाते हैं तथा शिक्षा निरुद्देश्य हो जाती है। अध्यापकगण अपने कार्य को भूल जाते हैं। विद्यार्थी भी अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते। ऐसी अवस्था में विद्यार्थी उद्घण्ड, अनुशासनहीन एवं उद्देश्यरहित बन जाते हैं। विद्यार्थियों का नैतिक, मानसिक एवं चारित्रिक पतन हो जाता है। शिक्षा संस्थाओं में हड़तालें, गुण्डागर्दी आदि में वृद्धि हो जाती है तथा शिक्षा भी व्यक्तियों के व्यवहार को नियमित करने एवं दिशा प्रदान करने में असफल हो जाती है।

5. परिवार पर प्रभाव (Impact on Family)

परिवार व्यक्ति का प्राथमिक समूह और बच्चे की प्रथम पाठशाला है जिसका समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। जब तक समाज संगठित रहता है, परिवार अपने कार्यों को ठीक प्रकार से करता है और राष्ट्र के लिये अच्छे नागरिक प्रदान करता रहता है। इसके विपरीत जब समाज असंगठित अवस्था में होता है, तो इसका पारिवारिक व्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। पारस्परिक प्रेमभाव और सहयोग की परम्परा का लोप हो जाता है और संयुक्त परिवार व्यवस्था विघटित होने लगती है। सहयोग के स्थान पर स्वार्थ और हम की भावना के स्थान पर व्यक्तिवादी भावना बढ़ने लगती है। पति-पत्नी के सम्बन्ध ढीले पड़ने लगते हैं। समाज में विवाह-विच्छेद बढ़ने लगते हैं तथा बलात्कार व अन्य यौन अपराधों की संख्या भी बढ़ जाती है। इन सबके साथ-साथ बच्चों की उचित देख-रेख नहीं होती है और बाल अपराध बढ़ने लगते हैं।

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6. वेश्यावृत्ति एवं अन्य अपराधों को प्रोत्साहन (Encouragement to Prostitution and Other Crimes)

सामाजिक विघटन के कारण समाज में अपराध बढ़ने लगता है। विवाह-विच्छेद, बाल-अपराध तथा मद्यपान आदि में वृद्धि हो जाती है और वेश्यावृत्ति जैसी कुरीतियाँ बढ़ने लगती हैं। सामाजिक विघटन के कारण समाज में बेरोजगारी एवं निर्धनता भी बढ़ने लगती है और समाज की व्यवस्था भंग हो जाती है। भौतिकवादी धारणाओं का जोर बढ़ने लगता है। व्यक्ति सामान्य रूप से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल हो जाता है और ऐसी स्थिति में अपराधी बन बैठता है।

7. आत्महत्याओं में वृद्धि (Increase in Suicides)

जब समाज में सामाजिक विघटन बढ़ने लगता है तो पारिवारिक विघटन और व्यक्तिगत विघटन भी बढ़ने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप अपराध अधिक होने लगते हैं। बेकारी और निर्धनता में वृद्धि के कारण समाज में आर्थिक संकट बढ़ने लगते हैं और विविध प्रकार के संकटों से विवश होकर समाज के सदस्य आत्महत्या कर बैठते हैं।

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shubham yadav

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