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समग्र व्यक्तित्व की संकल्पना
समग्र व्यक्तित्व की संकल्पना गार्डन ऑलपोर्ट द्वारा दी गई परिभाषा एवं उनके शीलगुण सिद्धांत पर आधारित है जिसके अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के अन्दर के उन मनो-शारीरिक तंत्रों का गतिशील संगठन है, जो उसके वातावरण से किये जाने वाले अनूठे समायोजन को निर्धारित करता है।” इस परिभाषा में व्यक्तित्व को मनो-शारीरिक तंत्रों का गतिशील संगठन कहा गया है। ऑलपोर्ट ने व्यक्तित्व के विकास के लिए मन और शरीर दोनों पक्षों को महत्त्व दिया है। मन और मानव के आंतरिक जगत में जितने भी शीलगुण, मानसिक शक्तियाँ, संवेग, भावनाएँ, चरित्र एवं अन्य प्रकार की मानसिक क्रियाएँ होती हैं, वे सभी शरीर के माध्यम से ही प्रकट होती हैं। अतः मन और शरीर के उक्त समस्त तंत्र मिलकर इस प्रकार संगठित व्यक्ति को उतना गतिशील बना देता है वह अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होकर उसके साथ समायोजन स्थापित करने के लिए प्रेरित हो जाता है।
शारीरिक शिक्षा और व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास
शारीरिक शिक्षा सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग है जो गुणवत्तापरक निर्देशित शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से व्यक्ति के जीवन के शारीरिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पक्षों को एकीकृत एवं परिवर्द्धित करती है। किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम, विधि या उद्देश्य के औचित्य का अंतिम मानदण्ड इसका जीवन के उद्देश्यों, स्थितियों एवं समस्याओं के साथ सम्बन्ध है। इसका आशय है कि दिए गए उद्देश्य या कार्यक्रम जिनके लिए निर्मित किये गए हैं उन व्यक्तियों, समूहों एवं समुदायों के दर्शन या अंतिम लक्ष्यों के साथ सुसंगत सिद्ध होने चाहिए। यदि छात्र लगातार एक अर्थहीन सिद्धांत या अप्रासंगिक गतिविधि और कौशलों से सम्बद्ध होते हैं, तो ऐसा कार्यक्रम छात्रों की वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति में विफल रहने के कारण शीघ्र ही अलोकप्रिय हो जाता है।
इसी सन्दर्भ में स्वामी विवेकानन्द का कथन है कि “सभी प्रकार की शिक्षा, सभी प्रकार के प्रशिक्षण एवं शैक्षिक कार्यक्रमों का अंतिम उद्देश्य व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना ही है।” थॉमस वुड के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा का ध्येय व्यक्ति की सर्वांगीण शिक्षा में योगदान से सम्बन्धित होना चाहिए।”
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