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भाषा विकास के कारक | Factors of Language Development in Hindi

भाषा विकास के कारक
भाषा विकास के कारक

भाषा विकास के कारक (Factors of Language Development)

भाषा के विकास में कई कारक महत्त्वपूर्ण होते हैं, जो निम्न प्रकार है-

1. बुद्धि (Intelligence)- भाषा के विकास में बुद्धि का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। जिस बालक की बुद्धि जितनी प्रखर होती है, वह उतनी ही जल्दी भाषा को सीखता है। मन्द बुद्धि वाला बालक भाषा को जल्दी सीख नहीं पाता है और सीखता भी है तो बहुत-सी त्रुटियाँ व्याप्त होती हैं। प्रखर बुद्धि वाले भाषा का प्रयोग तेजी से करते हैं, चाहे उनके पास व्यापक भाया. का भंडार न हो।

2. वातावरण (Environment)- बालक की भाषा के विकास में सबसे पहले सबसे अधिक प्रभाव पारिवारिक वातावरण का पड़ता है। बालक के परिवार के लोग जो भाषा प्रयुक्त करते हैं, जिस तरह विचारों को आदान-प्रदान करते हैं, बालक भी वैसे ही सीखता है। निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के परिवार के बच्चे अक्सर भाषा विकास में पिछड़ जाते हैं। उनको दूसरों से सम्पर्क और सुविधाओं का अवसर कम ही प्राप्त होता है। जिस परिवार में माता-पिता अन्य लोग शिक्षित व सुसंस्कृत होते हैं, उन परिवारों के बच्चों का भाषा विकास सराहनीय होता है।

3. परिस्थिति (Situation) – बालक का पालन-पोषण जिस तरह की परिस्थितियों में होता है, उसका प्रभाव उसके भाषा-विकास पर पड़ता है। जिन परिवारों में माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं, बालक दिन में एक लम्बे समय तक आया या नौकरों की देखरेख में रहता है। इस परिस्थिति का असर बालक की भाषा पर पड़ता है।

4. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health) – स्वस्थ बालक का भाषा विकास तीव्र गति से होता है। जो बालक अक्सर बीमार रहते हैं, उनके भाषा-विकास की प्रक्रिया में रुकावट आती है। बालक भाषा को अनुकरण के माध्यम से सीखता है, अस्वस्थ बालक की अनुकरण क्षमता कम हो जाती है। बीमारी के कारण उसे बोलने का कम ही अवसर मिलता है, उसकी आवश्यकतायें बिना बोले ही पूरी कर दी जाती हैं, जिससे वह अपने साथियों तथा अन्य लोगों के सम्पर्क में नहीं आ पाता, सम्पर्क से भाषा विकास होता है। सम्पर्क के अभाव में बालक की भाषा का विकास प्रभावित होता है।

5. शरीर-रचना (Body Structure)- बालक की शरीर-रचना भी भाषा विकास को प्रभावित करती है। शरीर-रचना से तात्पर्य स्वरयंत्र, जीभ, तालू, दाँत आदि की बनावट से है, क्योंकि ये अंग ही बोलने की क्रिया में सहायक होते हैं। यदि बालक का स्वरयंत्र परिपक्व होता है, जीभ की माँसेपशियाँ क्रियाशील होती हैं, दाँतों की रचना सामान्य होती. है तो वह शीघ्र और स्पष्ट बोलता है।

6. लिंग-भेद (Sex Difference)- बहुत-से मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि भाषा का विकास लिंग-भेद से भी प्रभावित होता है। मैकार्थी ने अपने अध्ययनों से प्रमाणित किया कि समान आयु वाले बालक-बालिकाओं में बालिकाओं की भाषा जल्दी समझ में आने योग्य हो जाती है। अन्य शोधों के निष्कर्ष भी दर्शाते हैं कि लड़कियाँ लड़कों की तुलना में शीघ्र बोलने लग जाती हैं। लड़कियों का शब्द-भंडार भी लड़कों से अधिक होता है। बालिकाओं की अपेक्षा बालकों में उच्चारण दोष अधिक पाया जाता है।

7. परिपक्वता (Maturiy) – जब तक बालक के बोलने से सम्बन्धित अंगों (फेफड़े, मला, जीभ, दाँत, होठ, स्वरयंत्र तथा मस्तिष्क) को परिपक्वता नहीं प्राप्त होती, बालक को चाहे जितना प्रशिक्षण दिया जाये, भाषा विकास नहीं हो सकता।

8. सीखने के अवसर (Learning Opportunity)- भाषा सीखने से विकसित होती है। जिन घरों में सदस्यों की संख्या अधिक होती है वहाँ बालक जल्दी बोलना सीख जाते हैं, क्योंकि सभी लोग उससे बात करते हैं तो उसे सीखने के अधिक अवसर मिलते हैं।

9. अनुकरण की प्रवृत्ति (Tendency of Imitation)- बालक में अनुकरण की प्रवृत्ति होती है। वह अपने परिवार के सदस्यों का अनुकरण करके बोलना सीखता है। जब वह घर से बाहर जाने लायक हो जाता है तो अपने पड़ोसियों, साथियों और अध्यापकों का अनुकरण करके भाषा सीखता है।

10. अभिप्रेरणा (Motivation)- भाषा के विकास में अभिप्रेरणा की बहुत बड़ी भूमिका होती है। अवलोकन से ज्ञात होता है कि बोलने वाले शिशु को, उसके पसंद की खाने की चीज का प्रलोभन देकर, स्पष्ट भाषी बनाया जा सकता है। शिशुओं को चित्र दिखाकर उनके नाम याद कराये जा सकते हैं, जैसे- ‘अ’ से अमरूद, ‘आ’ से आम आदि । ये अभिप्रेरणा के महत्त्व को दर्शाते हैं। वाद-विवाद प्रतियोगिता में जीतने पर बालक को पुरस्कार मिलता है तो उसे अधिक प्रभावशाली वक्ता बनने की प्रेरणा मिलती है।

11. निर्देशन (Guidance)- भाषा विकास के लिए प्रेरणा के साथ-साथ निर्देशन की भी आवश्यकता होती है। जो शब्द बच्चे के साथ बोले जाते हैं, यदि उनके प्रतिरूप (Modal) दिखाकर बोला जाये तो बच्चा बोले गये शब्द की सही तस्वीर अपने मस्तिष्क में अंकित कर लेता है, जैसे- ‘केला’ दिखाकर उसके सामने केला शब्द का उच्चारण किया जाता है तो धीरे-धीरे ‘केला’ शब्द और उसकी आकृति बच्चे के मस्तिष्क में अंकित हो जाती है, जिससे भविष्य में जब कभी वह ‘केला’ देखता है तो स्वतः ही ‘केला’ बोल पड़ता है। अतः उचित निर्देशन से बालक जल्दी बोलना सीखता है।

12. वैयक्तिक भिन्नताएँ (Individual Differences) – भाषा विकास सभी बालकों में एक जैसा नहीं होता, वैयक्तिक भिन्नता का प्रभाव रहता है। जो बालक बहिर्मुखी (Extrovert) तथा उत्साही होते हैं उनमें भाषा विकास उन बालकों की अपेक्षा जल्दी होता है जो अन्तर्मुखी (Introvert) व शान्त होते हैं।

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