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बोध-स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ, विशेषताएँ, गुण, दोष, बोध स्तर शिक्षण के लिए सुझाव

बोध-स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
बोध-स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

बोध-स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Understanding Level of Teaching)

शिक्षणशास्त्र तथा शिक्षण के संदर्भ में बोध का तात्पर्य निम्न प्रकार से लिया जाता है-

(1) बोध सम्बन्धों को देखने के रूप में (Seeing Understanding as a Tool for Relationships)- पाठ्यवस्तु सम्बन्धी तत्वों, सिद्धान्तों एवं नियमों आदि में परस्पर सम्बंध देखना।

(2) बोध को तथ्यों के संचालन के रूप में देखना (Seeing Understanding as a Tool of Facts)- इसका तात्पर्य है कि व्यक्ति कैसे किसी वस्तु, तथ्य, विचार तथा प्रक्रिया को किसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रयोग कर सकता है। वह किसी वस्तु के संबंध में यह समझ जाता है कि वह किस लिए है तथा इसका क्या उपयोग है। साथ ही वह परस्पर तुलना द्वारा सम्बन्ध देख लेता है।

(3) बोध सम्बन्ध व संचालन दोनों रूपों में (Understanding both as Relationship and Tool) – बोध, सम्बन्ध व संचालन दोनों का समन्वित रूप है। 

बोध स्तर शिक्षण में शिक्षक छात्रों को सामान्यीकरण, सिद्धांतों तथा स्तर तथ्यों के सम्बन्ध में बोध कराने पर विशेष बल देता है। इसके लिए स्मृति स्तर का शिक्षण होना आवश्यक है। यदि शिक्षक अपने इस प्रयास में सफल हो जाता है तो छात्रों में नियमों को पहचानने, समझने तथा उन्हें प्रयोग करने की क्षमता विकसित हो जाती है। इस प्रकार शिक्षण अर्थपूर्ण हो जाता है। इस प्रकार के शिक्षण तथा अधिगम में शिक्षक व छात्र दोनों ही क्रियाशील होते हैं।

मोरिस एल. विग्गी के अनुसार, ‘जो विद्याथियों को सामान्यीकरण तथा विशिष्ट या तरह दूसरे शब्दों में सिद्धान्त तथा अलग-अलग तथ्यों के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों से परिचित कराने का प्रयत्न करता है और यह भी बताता है कि सिद्धान्तों का किस व्यावहारिक उपयोग किया जा सकता है।”

According to Morris L. Wiggy, “The one that seeks to acquaint students with the relationship between a generalisation and the particulars between principles and solitary facts and which shows the use to which the principles may be applied.”

अवबोध का शाब्दिक अर्थ है, अर्थ समझना, विचार को ग्रहण करना, गुण या विशेषता को स्पष्ट रूप से समझना, किसी तथ्य को स्पष्ट रूप से समझना। इस प्रकार बोध स्तर का शिक्षण छात्रों में सूझबूझ उत्पन्न करता है। जिससे वह विद्यालय तथा उसके बाहर उपस्थित समस्याओं का समाधान सरलतापूर्वक कर सकते हैं। बोध स्तर के शिक्षण में स्मृति तथा अन्तरदृष्टि दोनों सम्मिलित होती हैं।

बोध स्तर हेतु शिक्षण (Teaching for Understanding Level) शिक्षाविदों ने स्मृति स्तर के शिक्षण को सीखने के लिए अधिक उपयुक्त नहीं माना। तब बोध स्तर के शिक्षण की रूपरेखा विद्वानों जिनमें हरबर्ट मॉरीसन एवं ब्रूनर प्रमुख है ने दी- स्मृति स्तर के शिक्षण को विचारहीन माना जाता है इसका चिन्तन से कोई सम्बन्ध नही होता है। इसके विपरीत चिन्तन स्तर का शिक्षण विचार युक्त माना जाता है। तथा अवबोध स्तर इन दोनों के मध्य की श्रेणी के अन्तर्गत आता है। इस स्तर से ही विचार या सूझ की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है बिना समझे हम किसी भी बालक को कुछ सिखा नहीं सकते हैं। अवबोध स्तर के शिक्षण में अर्न्तदृष्टि को महत्व दिया जाता है। इसमें सम्बन्धों का ज्ञान होना, सामान्यीकरण का विकास एवं अन्तर्दृष्टि तीनों ही सम्मिलित होते हैं। बोध स्तर के शिक्षण में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं कि इससे पहले स्मृति स्तर का शिक्षण हो चुका हो। यदि हम स्मृति स्तर के शिक्षण के बिना सीधे बोध स्तर पर शिक्षण करना चाहते हैं तो व्यर्थ है । अतः स्पष्ट है कि स्मृति स्तर का शिक्षण बोध स्तर के शिक्षण के विकास के लिए प्रथम चरण है। किन्तु केवल स्मृति स्तर के शिक्षण से सूझ या बोध का विकास किया जाना सम्भव नहीं है। इसलिए बोध स्तर का शिक्षण पाठ्य-वस्तु की समझ उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है।

बोध स्तर शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Teaching at Understanding Level)

बोध स्तर शिक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) बोध स्तर का शिक्षण विचारपूर्ण होता है।

(2) शिक्षण बोध केन्द्रित होता है।

(3) बोध स्तर का शिक्षण छात्रों में सामान्यीकरण, सूझबूझ तथा समस्याओं के समाधान की क्षमता विकसित करता है।

(4) इस प्रकार के शिक्षण में प्रत्यास्मरण, पहचानना, व्याख्या करना तथा बुद्धि युक्त व्यवहार निहित होता है।

(5) छात्रों को स्वतन्त्रता प्रदान करता है।

(6) शिक्षक व छात्र के मध्य अन्तः क्रिया होती है।

(7) मुख्य रूप से तथ्यों व सिद्धातों का बोध कराया जाता है।

(8) शिक्षण सोपानों का प्रयोग भी क्रमबद्ध रूप से किया जाता है।

(9) मूल्यांकन के लिए निबन्धात्मक व वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है।

(10) शिक्षण का यह प्रतिमान मनोवैज्ञानिक तथा व्यावहारिक दृष्टि से प्रभावात्मक प्रतिमान है।

मॉरीसन का बोध स्तर शिक्षण प्रतिमान (Morrison’s Model of Teaching at Understanding Level)

बोध स्तर शिक्षण के प्रतिमान के जन्मदाता हेनरी सी. मॉरीसन है। इसलिए इसे मॉरीसन का शिक्षण प्रतिमान भी कहा जाता है। इस प्रतिमान के 4 तत्व हैं-

(i) उद्देश्य (Focus)

(ii) संरचना (Syntax)

(iii) सामाजिक प्रणाली (Social system)

(iv) मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation system)

इन तत्वों को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है-

(1) उद्देश्य (Focus)- इस प्रतिमान का उद्देश्य छात्र द्वारा प्रत्ययों पर स्वामित्व प्राप्त कर लेना है अर्थात् छात्र द्वारा पाठ्यवस्तु पर स्वामित्व प्राप्त करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु मॉरीसन ने विषय वस्तु को इकाइयों (units) में विभक्त करने को कहा है। जिससे विद्यार्थी सामान्यीकरण कर सके।

(2) संरचना (Syntax) – बोध स्तर की शिक्षण व्यवस्था को 5 सोपानों में बाँटा गया है। ये निम्न हैं-

(i) अन्वेषण (Exploration)

(ii) प्रस्तुतीकरण (Presentation)

(iii) आत्मसात्करण ( Assimilation)

(iv) व्यवस्था ( Organisation)

(v) वर्णन (Recitation)

(i) अन्वेषण (Exploration)- इसमें निम्नलिखित 3 क्रियाओं को करना पड़ता है-

(a) पूर्व ज्ञान का पता लगाना,

(b) पाठ्यवस्तु का विश्लेषण कर उसके अवयवों को तर्कपूर्ण व मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित करना तथा

(c) यह निश्चित करना कि पाठ्यवस्तु की इकाइयों को किस प्रकार प्रस्तुत किया जाए?

(ii) प्रस्तुतीकरण (Presentation) – इसमें शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है।

प्रस्तुतीकरण के लिए शिक्षक 3 क्रियाएँ करता है-

(a) पाठ्यवस्तु को छोटी-छोटी इकाइयों में प्रस्तुत करना,

(b) छात्रों की कठिनाइयों का निदान करना,

(c) पाठ्यवस्तु की पुनरावृत्ति करना जिससे कि वह छात्रों की समझ में आसानी से आ जाए।

(iii) आत्मसात्करण (Assimilation)- प्रस्तुतीकरण के पश्चात् शिक्षक यह देखता है कि छात्र नवीन ज्ञान को समझ गए तो वह परिपाक के लिए अवसर प्रदान करता है। परिपाक की विशेषताएँ निम्न है-

(a) परिपाक का उद्देश्य पाठ्यवस्तु की गहनता पर बल देना है।

(b) परिपाक में छात्रों को व्यक्तिगत क्रियाएँ करने पर विशेष बल दिया जाता है।

(c) परिपाक के समय छात्रों को प्रयोगशाला व पुस्तकालय में स्वयं जाकर कार्य करना पड़ता है।

(d) परिपाक का कालांश पर्यवेक्षण अध्ययन (Supervised study) का होता है। शिक्षक व छात्र दोनों ही सक्रिय रहते हैं।

(e) परिपाक द्वारा छात्रों को सामान्यीकरण के अवसर दिए जाते हैं।

(f) छात्र इकाई में दिए हुए अनेक प्रकार के दृष्टान्तों एवं उन पर आधारित सामान्यीकरण के मध्य सम्बन्ध देख सकें।

(iv) व्यवस्था (Organisation) – व्यवस्था कालांश में छात्रों को पाठ्यवस्तु को पुनः पुनः प्रस्तुतीकरण का अवसर दिया जाता है। छात्र पाठ्यवस्तु को बिना किसी की सहायता से अपनी भाषा में लिखते हैं। व्याकरण, गणित आदि विषयों में प्रस्तुतीकरण का कोई महत्व नहीं होता है। अतः छात्र, व्यवस्था कालांश से वर्णन कालांश में पहुँच जाते हैं।

(v) वर्णन (Recitation) – वर्णन कालांश में छात्र पाठ्यवस्तु को शिक्षक तथा अपने साथियों के सम्मुख मौखिक रूप से प्रस्तुत करता है। संगठन के समय प्रस्तुत विवरण अत्यन्त सूक्ष्म व संक्षिप्त होता है, जबकि आवृत्ति या वर्णन के अन्तर्गत लिखित विवरण एक लेख या अध्याय की तरह होता है।

(3) सामाजिक व्यवस्था (Social System) – बोध स्तर के शिक्षण में सामाजिक प्रणाली बदलती रहती है। प्रस्तुतीकरण में शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है। परिपाक कालांश में शिक्षक और विद्यार्थी दोनों क्रियाशील रहते हैं। शिक्षक निर्देशन देता है व छात्रों को आन्तरिक व बाह्य प्रेरणा प्रदान करता है।

(4) मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation System) – बोध स्तर शिक्षण में विभिन्न प्रकार की मूल्यांकन प्रणाली का प्रयोग करना पड़ता है। व्यवस्था कालांश के अन्त में लिखित परीक्षा तथा वर्णन कालांश में मौखिक परीक्षा होती है। इस प्रकार विभिन्न सोपानों में मौखिक व लिखित दोनों प्रकार की परीक्षा ली जाती है जिनके द्वारा छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है।

बोध स्तर शिक्षण के गुण (Merits of Teaching at Understanding Level)

बोध स्तर शिक्षण के गुण निम्नलिखित हैं-

(1) बोध स्तर के अन्तर्गत विद्यार्थी को पाठ्यवस्तु, शिक्षण-अधिगम व्यवस्था तथा अन्य सभी बातें पूरी तरह से नियोजित, क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित रहती हैं।

(2) बोध स्तर में विद्यार्थियों की शिक्षण प्रक्रिया को औपचारिक रूप से संगठित एवं व्यवस्थित बनाएं रखने में पूर्ण सहायता प्राप्त होती हैं।

(3) बोध स्तर विद्यार्थियों को उचित अवसर और प्रशिक्षण में सहायता प्रदान करता है।

(4) मानसिक शक्तियों के विकास में पर्याप्त अवसर प्रदान करती है।

(5) बोध स्तर के शिक्षण द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक प्रभावपूर्ण एवं स्थायी होता है।

बोध स्तर शिक्षण के दोष (Demerits of Teaching at Understanding Level)

बोध स्तर शिक्षण के दोष निम्नलिखित हैं-

(1) बोध स्तर के शिक्षण में पाठ्‌यवस्तु के स्वामित्व पर बल दिया जाता है और मानव व्यवहार की अवहेलना की जाती है।

(2) पाठ्यवस्तु के स्वामित्व से केवल ज्ञानात्मक पक्ष का विकास हो सकता है, भावात्मक व क्रियात्मक पक्षों का नहीं।

(3) बोध स्तर के शिक्षण में शिक्षक छात्रों को समुचित प्रेरणा प्रदान नहीं कर पाता है।

(4) यह प्रतिमान मनोवैज्ञानिक व व्यावहारिक दृष्टि से अधिक प्रभावशाली नहीं है।

बोध स्तर शिक्षण के लिए सुझाव (Suggestions for Teaching at Understanding Level)

बोध स्तर शिक्षण के लिए सुझाव निम्नलिखित हैं-

(1) स्मृति स्तर शिक्षण की परीक्षा पास करने पर बोध स्तर का शिक्षण प्रदान किया जाए।

(2) बोध स्तर के सोपानों का अनुसरण क्रमबद्ध रूप से किया जाए।

(3) शिक्षक को पाठ्यवस्तु की तल्लीनता के साथ मनोवैज्ञानिक प्रेरणा भी प्रदान करनी चाहिए।

(4) शिक्षक को बोध स्तर के शिक्षण की समस्याओं का विचार करके समाधान के लिए उचित प्रयास करने चाहिए ।

(5) प्रत्येक सोपान के बाद मूल्यांकन उचित रूप से किया जाए।

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