समाजशास्‍त्र / Sociology

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान से आप क्या समझते हैं ? इसके गुण व दोष भी बताइये।

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान  | Direct Personal Investigation in Hindi

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान- इस विधि में अनुसन्धानकर्ता स्वयं उन लोगों के पास जाता है जिनके बारे में सूचनाएं प्राप्त करनी होती है। यह विधि बहुत ही सरल है। यदि अनुसन्धानकर्ता व्यवहार कुशल, मेहनती व धैर्यवान है तो रीति द्वारा संकलित किये गये आँकड़े अनुसंधान हेतु अत्यन्त विश्वसनीय होते हैं। इस रीति अनुसन्धानकर्ता को निरीक्षण या अवलोकन का भारी सहारा लेना पड़ता है। इस रीति का उपयोग यंग द्वारा कृषि उत्पादन अध्ययन में किया गया। यह विधि छोटे अनुसन्धान क्षेत्र के लिए बहुत उपयुक्त है।

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के गुण (Merits of Direct Personal Investigation)

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं :

(1) शुद्धता – इस प्रणाली में आंकड़े अत्यधिक शुद्ध रहते हैं क्योंकि इसमें अनुसंधानकर्ता स्वयं समकों का एकत्रीकरण करता है। यही कारण है कि आंकड़ों में अत्यधिक शुद्धता पायी जाती है।

(2) कम समय – इसमें आंकड़े कम समय में एकत्र कर लिये जाते हैं। चूंकि प्राथमिक समको का संग्रहण करने का कार्य बहुत छोटा होता है इसलिये इसका संग्रह बहुत जल्दी हो जाता है।

(3) मौलिकता – इस प्रणाली में आंकड़े पूर्णतया मौलिक होते हैं। क्योंकि आंकड़ों का संग्रह निश्चित उद्देश्यों के लिये किया जाता है। जहाँ तक समकों को गुप्त रखने का प्रश्न है यह विधि उपयुक्त रहती है क्योंकि इसमें मौलिकता रहती है।

(4) लोचपूर्ण- इसमें बहुत अधिक लोच पाया जाता है। क्योंकि अनुसंधानकर्ता  स्वयं अपनी आवश्यकता के अनुसार अपनी कार्यविधि में परिवर्तन कर सकता है।

(5) अन्य सूचनाओं की प्राप्ति- इस प्रणाली में अनुसंधानकर्ता को मुख्य सूचनाओं के साथ अन्य प्रकार की सूचनायें प्राप्त होती हैं। जैसे किसी कारखाने में श्रमिकों की आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त करते समय उनके रहन सहन, उनकी शिक्षा आदि का ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है।

(6) कम लागत- इस प्रणाली में अनुसंधान का क्षेत्र सीमित होने के कारण लागत कम आती है। इस प्रणाली में आंकड़ों का संग्रह अनुसंधानकर्ता स्वयं करता है। अतः वह व्यय को कम करने का प्रयत्न करता है।

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के दोष (Demerits of Direct Personal Investigation)

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं।

(1) विस्तृत क्षेत्रों के लिये अनुपयुक्त- यह प्रणाली केवल सीमित क्षेत्रों के लिये ही उपयुक्त है। जब अनुसंधान का क्षेत्र बड़ा हो जाता है तो फिर इस विधि का प्रयोग करना असंभव हो जाता है क्योंकि विस्तृत क्षेत्र में अनुसंधानकर्ता अकेले कार्य नहीं कर सकता है।

(2) व्यक्तिगत पक्षपात- इस प्रणाली में पक्षपात की पूरी गुंजाइश रहती है क्योंकि इसमें अनुसंधानकर्ता स्वयं समंकों का संकलनकर्ता होता है।

(3) लम्बी अवधि तथा अधिक लागत- इस प्रणाली में बड़ा क्षेत्र होने के कारण समय तथा लागत बहुत लगती है। इस प्रकार अनुसंधानकर्ता के मूल्यवान शक्ति का दुरुपयोग होता है।

(4) परिणाम की शुद्धता की कोई गारंटी नहीं- इस प्रणाली में अनुसंधान के द्वारा जो भी परिणाम निकाले जाते हैं उनकी शुद्धता की कोई गारंटी नहीं है।

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shubham yadav

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