समाजशास्‍त्र / Sociology

समंकों के संकलन का अर्थ,प्रकार | प्राथमिक और द्वितीयक तथ्यों में अन्तर

समंकों के संकलन का अर्थ
समंकों के संकलन का अर्थ

समंकों के संकलन का अर्थ (Meaning of Collection of Data)

समंकों के संकलन का अर्थ- समंकों के संकलन से अभिप्राय समकों के एकत्र किये जाने से है। सांख्यिकी अनुसंधानों में समकों का संकलन अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। एकत्रित आंकड़े अनुसंधान की आधारशिला हैं। अशुद्ध तथा अविश्वसनीय आंकड़ों के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष कभी पूर्ण व शुद्ध नहीं हो सकते हैं। अतः समकों को संग्रह करते समय विशेष सावधानी की जरूरत है। समंक दो प्रकार के होते हैं :

(1) प्राथमिक समक

(2) द्वितीयक समंक।

समंकों के प्रकार (Types of Data) | प्राथमिक और द्वितीयक तथ्यों में अन्तर

1. गुणात्मक तथ्य- ये तथ्य सूक्ष्म भावना पर आधारित, सामाजिक सम्बन्धों की सान्द्रता पर आधारित होते हैं। धर्म, सद्भाव, राष्ट्रीयता, भाईचारा, संगठनात्मकता, स्नेह, श्रद्धा, प्रतिस्पर्धा, सहयोग जैसे तथ्य गुणात्मक हैं। इनका अध्ययन करना, इनका संकलन, सारणीयन वैसे नहीं हो पाता जैसे जनसंख्या, आय, श्रमिक समस्या या विद्यार्थियों में नशाखोरी की आदत से सम्बन्धित तथ्यों का हो जाता है। इन तथ्यों को समझने के लिये गुणात्मक विधियों का प्रमापन की स्केल विधियों का प्रयोग बढ़ रहा है।

2. मात्रात्मक तथ्य – मात्रात्मक तथ्य वह हैं जो संख्यात्मक ढंग से लिखे – दर्शाये जा सकते हैं। इन्हें गिना, तौला और नापा जा सकता है। जैसे किसी समुदाय में जनसंख्या, आय-खर्च, जीवन-मृत्यु के आँकड़े। सांख्यिकीय शब्दों में कहें तो इनके विचलन, सह-संबंध का पता लगाया जा सकता है। मात्रात्मक तथ्यों को “आँकड़ा” कहने का प्रचलन है।

3. प्राथमिक समंक (Primary Data) – वे समंक जिन्हें अनुसंधानकर्ता अपने प्रयोग के लिए पहली बार एकत्र कर रहा है, प्राथमिक समंक कहलाते हैं। प्राथमिक समकों की प्रकृति मौलिक होती है। यदि इससे सम्बन्धित आंकडे पहले एकत्र भी किये जा चुके हैं तो भी अनुसंधानकर्ता अपने प्रयोग के लिए पुनः प्रारम्भ से लेकर अंत तक आंकड़े एकत्र करता है तो उन्हें भी प्राथमिक समंक कहते हैं। जैसे गरीबी से प्रभावित लोगों के बारे में, यदि कोई प्रथम बार आंकड़े एकत्र करके अध्ययन करता है तो उसके लिए एकत्रित सामग्री प्राथमिक कहलाएगी।

4. द्वितीयक समंक अथवा द्वितीयक सामग्री (Secondary Data)- ये वे समक हैं जिनको पहले से किसी अन्य व्यक्ति या संस्था ने एकत्र किया हुआ है और अनुसंधानकर्ता उन्हें ही अपने प्रयोग में लाता है, जैसे- यदि सरकार द्वारा की गई जनगणना द्वारा उपलब्ध आंकड़ों का प्रयोग कोई अनुसंधानकर्ता करता है तो ये समंक द्वितीयक समंक होंगे। इस प्रकार के समंक प्रयोग करते समय, धन और परिश्रम की बचत होती है। इस प्रकार की सामग्री अपने मौलिक रूप में न होकर सारणी या प्रतिशत आदि में व्यक्त होती है। ये समंक अधिकतर सरकारी या गैर-सरकारी प्रकाशनों से उपलब्ध हो जाते हैं। इस सम्बंध में कुछ प्रमुख विद्वानों ने इसकी निम्नलिखित परिभाषा दी हैं –

“व्यापक रूप से प्राथमिक व द्वितीयक समंकों में भेद केवल अंशों का ही है। जो समंक एक पक्ष के लिये द्वितीयक हैं वे ही अन्य पक्ष के लिये प्राथमिक होते हैं।”– सेक्राइस्ट

“द्वितीयक संमक वे हैं जो पहले से अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्रित किये गये हैं।”-ब्लेयर

“द्वितीयक समक वे होते हैं जिन्हें मौलिक स्रोतों से एक बार प्राप्त कर लेने के पश्चात् काम में लिया गया है एवं जिनका प्रसारण अधिकारी इस व्यक्ति से भिन्न होता है जिसने प्रथम बार तथ्य संकलन को नियंत्रित किया था।” – श्रीमती पी. वी. यंग

प्राथमिक समंकों को संकलित करने की विधियाँ (Methods of Collecting Primary Data)

“प्राथमिक समकों को संकलित करने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं

(1) प्रत्यक्ष व्यक्तित्व अनुसन्धान, (2) अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान, (3) स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति, (4) सूचना देने वालों द्वारा अनुसूची भरना (5) प्रगणकों द्वारा अनुसूची भरना।

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shubham yadav

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