समाजशास्‍त्र / Sociology

वर्णनात्मक अनुसंन्धान तथा निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना में अन्तर

वर्णनात्मक अनुसंन्धान तथा निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना में अन्तर
वर्णनात्मक अनुसंन्धान तथा निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना में अन्तर

वर्णनात्मक अनुसंन्धान तथा निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना में अन्तर

वर्णनात्मक अनुसंन्धान तथा निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना में अन्तर समझने से पहले हम जान लेते है कि वर्णनात्मक अनुसन्धान प्ररचना तथा निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना किसे कहते है-

वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना

विषय या समस्या के सम्बन्ध में सम्पूर्ण वास्तविक तथ्यों के आधार पर उनका विस्तृत वर्णन करना ही वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प का प्रमुख उद्देश्य है। इस पद्धति में आवश्यक है कि हमें वास्तविक तथ्य प्राप्त हो तभी हम उसकी वैज्ञानिक विवेचना करने में सफल हो सकते हैं। यदि समाज की किसी समस्या का विवरण देना है, तो उस समस्या के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त होने चाहिए, जैसे निम्न श्रेणी के परिवारों का विवरण देना है, तो उसकी आयु, सदस्यों की संख्या, शिक्षा का स्तर व्यावसायिक ढाँचा, जातीय और पारिवारिक संरचना आदि से सम्बन्धित तथ्य, जब तक प्राप्त नहीं होते तब तक हम उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर सकते। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हम अपना अनुसंधान अभिकल्प विषय के उद्देश्य के अनुसार बनायें।

निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना

अनुसन्धान कार्य का मूलभूत उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति एवं ज्ञान की वृद्धि करना है। किन्तु यह भी सम्भव है कि अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किसी समस्या के कारणों के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उस समस्या के समाधानों को भी प्रस्तुत करना हो। इस प्रकार के अनुसन्धान अभिकल्प को निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना कहते हैं। दूसरे शब्दों में में, विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान की खोज करने वाले अनुसन्धान कार्य को, निदानात्मक अनुसन्धान कहते हैं।

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क्र. सं.

वर्णनात्मक अनुसंधान प्ररचना (Discriptive Research Design)

निदानात्मक अनुसंधान प्ररचना (Dignostic Research Design)
1.

केवल समस्या के प्रस्तुत स्वरूप का अध्ययन करता है।

सामाजिक ढाँचे से सम्बन्धित अस्पष्ट सम्बन्धों और वर्तमान की सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करता है।
2. समस्या सम्बन्धी कारणों को बदला नहीं जाता है। समस्या सम्बन्धी कारणों का समाधान प्रस्तुत किया जाता है।
3. प्राक्कल्पनाओं पर पूर्णतया न तो आधारित होता है और न ही निर्देशित होता है। यह प्राक्कल्पनाओं से ही निर्देशित होता है।
4. विकास और ज्ञान के क्षेत्र में इसका महत्व कम है। इसका उपयोग और महत्व वहाँ अधिक है जहाँ समस्या से सम्बन्धित ज्ञान व्यक्तियों में है।
5.

इसके अनुसन्धान का उद्देश्य ज्ञानवर्द्धन मात्र है।

समस्या के कारणों को खोजने का प्रयास करता है तथा उनके समाधान के लिये सुझाव प्रस्तुत करता है।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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